मेरा एक कमेन्ट इस लिंक पर
"नारी दुखो की खान हैं बोले सियावर राम जी "
सही तो कहा था
माँ अगर खीर को ना बाँट कर खुद ही खा लेती तो अकेले वारिस होते
कैकयी अगर वन ना भेजती तो १४ साल राज महल में ऐश करते
चंद्र्नाखा अगर ना रीझती तो उसको शुपनखा न बनाते ना रावन आता
सीता अगर सोने का हिरन ना मांगती तो बन बन ना भटक ना पड़ता , रावन से ना लड़ना पड़ता
और सीता अगर धरती में ना समाती तो पत्नी को त्यागने का अपयश युगों तक ना मिलता
और सियावर और सीता राम जिसको कहा जाए यानी पत्नी का नाम पहले तो वो तो यही कहेगा "नारी दुखो की खान हैं "
सो उनकी जिन्दगी में तो हर नारी दुखो का खान ही थी उनकी व्यथा को कौन समझेगा
अगर उनके युग , उनके समय की बात करे और उनको इन्सान समझे तो
वर्तमान में
राम हिन्दू आस्था का प्रतीक हैं क्युकी राम का नाम मुक्ति का प्रतीक हैं मुक्ति इस जीवन से अपनी व्याधियों से , अपने दुष्कर्मो से , अपने मोह से और अपनी माया से
मरा मरा जपते जपते राम मिल जाते हैं बस मरामरा में स्पेस ना दे और पहला म यानि अपना अहम त्याग दे .
और चलते चलते
स्त्री "नरक का द्वार बनजाती हैं"
ताकि राक्षस उस द्वार से बाहर आ सके और "राम" उनको ख़तम करके "राम" बन सके
जिस दिन स्त्री ने "अपना द्वार " बंद करने की ठान ली और नरक वासियों को वही ख़तम करना शुरू कर दिया , समय बदलने लगेगा . अभी तो उस नरक के द्वार से निकले बहुत से "किसी राम " या फिर "किसी काली " के इंतज़ार में जीवन जी रहे हैं . और उनमे से कुछ तो "राम नाम सत्य हैं से भी मुक्त नहीं हो सकते " क्युकी धर्म की परमिशन नहीं हैं
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