मेरे ब्लॉग के किसी भी लेख को कहीं भी इस्तमाल करने से पहले मुझ से पूछना जरुरी हैं

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July 28, 2012

एक ब्लॉग पर आये बेनामी कमेन्ट पढ़े

एक ब्लॉग पर आये बेनामी कमेन्ट पढ़े आज , सोचा बांटू , ज़रा देखिये क्या कहा गया हैं और क्या मतलब निकला हैं . 

बेनामी ने कहा…
मुझे तो लगता है आपमें ही शिखंडी का कुछ अंश है | दूसरों को ढाल बनाकर अपनी विकृति को शब्द देना बंद करिए | यदि आपमें इतनी ही हिम्मत है तो अगले दो-चार पोस्ट में सिर्फ और सिर्फ अपनी बात रखिये | हम भी जाने आप नारी के विषय में क्या विचार रखते हैं | मैं खुले में आपको ललकार रही हूँ | हिम्मत है ? अरे इतने विद्वान् होकर किस विषय में उलझे हुए हैं ? कोई सार्थक पोस्ट लिखते तो सबका लाभ होता और आपको भी अपने ज्ञान पर गर्व होता .
बेनामी ने कहा…
बलोग जगत के राखी सावंत हैं आप सस्ती लोकप्रियता में न जाने कौन सा सुख का अनुभव करते हैं आप | आपको भी रचना कर्म समझाने की जरुरत है | लिखने वाला उन्हीं बिन्दुओं को उभारता है जो उसके अन्दर दवी होती है | किसी की कही हुई बातें तो बहाना होता है | पाठकों की कतार में आकर आप अपना पोस्ट पढ़िए तो समझ में आ जाएगा कि आपके लिए लोगों के मन में क्या आता है | जो (अ) पुरुष होगा वो ही ऐसी ओछी बात पर विवाद करेगा | इस उम्र में भी राम का नाम सच्चे मन से लीजिये | उनका नाम गन्दा मत कीजिये |
चच्चा टिप्पू सिंह ने कहा…
अरे मिसिर बचुआ बहुते नीके लिखे हो। ई ससुर डागदरवा आज ईंहा आके काहे बिलबिलाय रहा है? ई भी लगत है शुक्लवा का चेला है। ऐसन ही लिखत रहो, ई कुकुर सुकर जैसन भौंकबे वारे प्राणियों की फ़िकिर नाही करो।
सभी बच्चा लोगन को चच्चा की टिप टिप।
बेनामी ने कहा…
ये बेनामी की शैली कुछ जानी पहचानी लगती है। उनके पूर्णविराम पर ध्यान देने से पता चल जाता है कि वे कौन ब्लॉगर/ ब्लॉगरा हैं।

इस तरह के बड़े पूर्णविराम छद्मी नारीवादी की एक तरह से वकील और जगह जगह उनकी स्पोक्सपर्सन बनकर तरफदारी करने वाली चार अक्षरी जी हैं :)
बेनामी ने कहा…
ओह !

चार अक्षरी ?

समझ गई हूँ कि ये किस महिला की बात की जा रही है. मैं इतना ही कहना चाहूँगी कि पुरूषवादी सोच के तहत न तो आप इस तरह की पोस्टें लिखने से बाज आयेंगे और न तो वे तथाकथित नारीवादी महिला जिन्हें खुद पता नहीं कि वे कहना क्या चाहती हैं, पारिवारीक खटमिठ क्या होता है, सहज जीवन कैसा होता है। लेकिन विडंबना यह कि हां विडंबना ही कहूंगी कि उनके चक्कर में हमारी बहनें भी अपनी सहज सोच को गंवा बैठी हैं. अपनी लेखन शैली को कुंद कर कहीं और दिशा में उर्जा लगा रही हैं. अब एक उदाहरण यहीं देखिये कि जिन चार अक्षरी जी की बात हो रही है कभी वे मुखर होकर अपनी सोच अपने ब्लॉग पर बयां करती थीं और आज ये नौबत आ गई कि बेनामी होकर अपनी उर्जा एक अबूझ स्त्रीवादी के चक्कर में लगा रही हैं. वैसे बेनामी होकर तो मैं खुद भी लिख रही हूँ लेकिन इस ओर ध्यान दिलाना जरूरी था.
सहज लेखन का यह पतन निराशाजनक है।
बेनामी ने कहा…
@ अबूझ स्त्रीवाद

उन्हें ब्लॉगजगत की महिलाओं ने अपनी आत्मरक्षा के लिये तैनात मान लिया है ताकि अरविंद मिश्र जैसी सोच वालों पर जब चाहें तब गले का पट्टा खोलते हुए "छू" बोलकर छोड़ सकें.
बेनामी ने कहा…
जो भी हो इस तरह से केवल पुरूषों को ही दोषी मानने की प्रवृत्ति को आंख मूंदकर समर्थन करना मैं अपनी सोच और समझ को कमतर करना ही कहूंगी,

किसी भी मामले में दोषी महिलायें भी हो सकती हैं पुरूष भी, इस तरह किसी के कहने मात्र से या स्त्री होने के नाते ही समर्थन करना अनुचित मानती हूँ

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