सच बोलना जितना मुश्किल है , सच को स्वीकारना उस से भी ज्यादा मुश्किल है . लेकिन सच ही शाश्वत है और रहेगा मुझे अपने सच पर उतना ही अभिमान है जितना किसी को अपने झूठ से होने वाले फायदे पर होता हैं
मेरे ब्लॉग के किसी भी लेख को कहीं भी इस्तमाल करने से पहले मुझ से पूछना जरुरी हैं
February 25, 2009
हम किसी के कर्मो को या विचारो को "देश द्रोही " होने का फतवा कैसे दे देते हैं ??
संजय जी का उत्तर बहुत ही सही लगा
और
सुरेश जी के उत्तर कि " देशभक्त किसी के चेहरे पर नहीं लिखा होता, यह तो उसके "कर्म" और "विचार" तय करते हैं… " से मन मे फिर प्रश्न उठा कि अगर ऐसा हैं तो किसी के कर्मो और विचारो के बारे मे निर्णय लेने वाले हम कौन होते हैं ? हम किसी के कर्मो को या विचारो को "देश द्रोही " होने का फतवा कैसे दे देते हैं ?? क्या हमे अधिकार हैं की हम किसी के विचारों और कर्मो को क्लासिफाई करे ? अगर ये अधिकार हमारा नहीं हैं तो फिर किसका हैं , कौन ये बता सकता हैं की कौन सा कर्म देश भक्ति हैं और कौन सा कर्म देश द्रोही हैं , कौन सा विचार देश भक्ति हैं और कौन सा विचार देश द्रोही हैं ।
मन मे जब प्रशन होते हैं तो ज्यादातर हम उन्हे किसी से दिस्कुस्स करते हैं मे कर रही हूँ ब्लॉगर मित्रो के साथ । जवाब हो तो शेयर करे
देश भक्त की पहचान ???
February 24, 2009
ऑस्कर २००९ - दुनिया को ये भी बताने के लिये काफ़ी हैं कि " डोंट अंडर एस्टीमेट अस " .
आज कल professionalism का ज़माना हैं . रहमान केवल एक कलाकार नहीं हैं . उनकी कला उनकी रोजी रोटी का साधन हैं . उन्होने खुद कहा हैं कि ऑस्कर से उनको सब से बड़ा फायदा ये होगा कि जिन hollywood के director के साथ वो काम करना चाहते हैं वो अब उनको काम देगे । किसी भी प्रोफेशनल के लिये सबसे ज्यादा ख़ुशी का दिन वही होता हैं जब उसको अपने क्षेत्र का सबसे highest award मिलता हैं.
कलाकार के लिये प्रशंसा काफी होती हैं पर प्रोफेशनल के लिये प्रशंसा के साथ साथ पैसा भी जरुरी हैं क्युकी वो अपनी कला से अपनी जीविका कमाता हैं । रहमान भारत के पहले संगीत कार हैं जिनके लिये कंप्यूटर पर संगीत बनाना एक तकनीक से जुड़ना था , उस तकनीक से जो संगीत से उनको एक एअसा मुकाम दिलवा सकती थी जो उन्होने अपने लिये तय किया था ।
उनकी तकनीक की जानकारी उनकी संगीत की जानकारी से ज्यादा महत्व पूर्ण हैं क्युकी उसी की वजह से वो संगीत मिक्सिंग कर पाते हैं । विदेशी निर्देशक अपनी फिल्मो मे तकनीक का प्रयोग बहुत करते हैं । भारत मे जो फ़िल्म बंटी थी उनमे तकनीक के लिये तकनीशियन विदेशी होते थे जैसे राकेश रोशन ने अपनी फ़िल्म मे "जादू { Alien " को बनाने के लिये विदेशी तकनीशियन का सहारा लिया था । या और पहले जाये तो हिन्दी फिल्मो के सेट बाहर से बन कर आते थे और तमाम तेच्निक भी विदेशी होती थी ।
रहमान ने इसका उल्टा किया हैं उन्होने अपना हुनर अपनी तकनीक विदेशी फ़िल्म के लिये दी हैं , जिसका सीधा मतलब हैं की अब भारतीये तकनीक मे भी विदेशो मे अपना झंडा फेहरा रहे हैं ।
Slumdog Millionaire {फ़िल्म मैने नहीं देखी हैं } की कास्ट मे ज्यादातर लोग बहुत नीचे से उठ कर ऊपर आए हैं और इस बात को वो भूले भी नहीं हैं । रहमान , इरफान , अनिल कपूर तीनो ही बहुत ही साधारण परिवारों से आए हैं और बहुत मेहनत कर के सफलता की सीढियां चढ़ कर आज ऑस्कर के मकाम पर पहुचे हैं ।
पिक्चर के नाम को लेकर जो लोग ये कहते हैं की भारतीये गरीबो को ये नाम दिया गया हैं वो सब या तो हमेशा अमीर ही रहे हैं या अपनी गरीबी {humble beginning } को भूलना चाहते हैं । अगर एक नाम देने से सब भारतीये गरीब और डोग होगये तो शायद इससे बड़ा उपहार और जवाब रहमान , गुलज़ार , Resul Pookutty भारत को नहीं दे सकते थे ।
उन्होने Danny Boyle के जरिये वो किया जो अभी तक नहीं हुआ था , एक शाम तीन बार भारतीये लोग उस ऑस्कर के मंच पर खडे हुए जहाँ अभी तक केवल सत्यजीत राय और भानु अथिया खड़ी हुई थी ।
ये अपने आप मे भारतीये लोगो के लिये एक कीर्तिमान स्थापित करने जैसा था और ये दुनिया को ये भी बताने के लिये काफ़ी हैं कि " डोंट अंडर एस्टीमेट अस " .
अगर हम ये केहते हैं की ये फ़िल्म बेकार हैं और इससे अच्छी फ़िल्म तारे ... थी तो हम ये भूल रहे हैं कि ये ऑस्कर किसी भारतीय फ़िल्म का नहीं हैं { foriegn film category } .
रहमान और पूकुत्टी ने जो किया हैं उस से मुझे तो बहुत फकर हुआ क्युकी मुझे तो हर उस मोमेंट मे फकर होता हैं जब भारत का कोई भी नागरिक उस उच्चाई पर पहुचता हैं जहाँ पर सब नहीं पहुचते । चाहे वो क्रिकेट का मैच हो , या शतरंज का या टेनिस का , या स्पेल्लिंग का मुकबला ।
भारतीये हैं तो भारतीयों कि जीत का जश्न मनाए नाकि ये कहे कि हमे इसकी जरुरत ही नहीं हैं । जरुरत आप को हैं या नहीं पर रहमान और पूकुत्टीको थी अपनी प्रतिभा का आकलन करवाने की ।
बहुत से लोग जो scholarship पर विदेश मे उच्च शिक्षा के लिये जाते हैं सिर्फ़ इसलिये ताकि अपने ज्ञान को बढ़ा सके और फिर वो उस ज्ञान के सहारे सबसे ऊंचे शिखर पर पहुँच जाते हैं । किसी भी रास्ते से चले मकसद सफलता को पाना हैं और भारत का नाम ऊंचा करना हैं । रहमान और पूकुत्टी ने वही किया आप को पसंद आया या नहीं इससे उनको श्याद फरक नहीं पडेगा
वैसे नयी पीढी की आयु सीमा क्या होती हैं ???
हमारे बच्चे ज्यादा समझदार हैं क्युकी वो जल्दी बड़े हो रहे हैं । और जो लोग नयी पीढी को दोष देते हैं वो अपने आप को ही दोष दे रहे क्युकी अपनी पुरानी पीढी के लिये वो नयी पीढी हैं । नयी पीढी को दोष देना उनके माता पिता को दोष देना होता हैं ।
वैसे नयी पीढी की आयु सीमा क्या होती हैं ???
February 22, 2009
हिन्दी ब्लोगिंग की क्लास
नैतिकता का पीरियड था
सीनियर सिटिज़न पढा रहे थे
सीनियर सिटिज़न पढ़ रहे थे
ब्लैक बोर्ड पर नारी के
अर्ध नग्न चित्र थे
सब विद्यार्थी ताली बजा रहे थे
चित्र समझ ना आने पर
उसकी डिटेल मे जा रहे थे
अब नैतिकता का प्रश्न हो !!
नारी शरीर पर बात ना हो ??
कुँवारी कैसे स्त्री बनती हैं
जब तक अधेड़ उम्र के
ब्लॉगर समझे और समझायेगे नही
यौन शिक्षा का प्रचार क्यूँ
ग़लत हैं भारत मे
इस विषय पर चर्चा कैसे कर पायेगे ??
हर प्रश्न का जवाब शिक्षक दे रहा था
जहाँ जहाँ जरुरत थी प्रतीकात्मक हो रहा था
नारी को घर मे ही रहना था
बाहर क्यूँ आयी
अब बाहर आयी है तो नग्न उसको कहो
बार बार शास्त्रार्थ करने को कहता था
अब शास्त्रार्थ कौन करता
सब तो ताली बजा रहे थे
एक दो नटखट बच्चो ने
कक्षा मे झाँका तो
केवल वयस्कों का बोर्ड लगा पाया
अब नारी देह पर बात केवल
व्यसक ही भारत मे करते हैं
रिटायर होने की सीमा हो जाए
तब भी इस विषय मे
बच्चो की तरह पढ़ते हैं
और ताली भी बजाते हैं
नग्न औरत के चित्र
इन्टरनेट पर जो लगाते हैं
स्रोत का नाम देना भी भूल जाते हैं
चोरी जो करते हैं
चोरी गलत काम हैं
बार बार वही दोहराते हैं
और बंद दरवाजो के पीछे ही नहीं
खुले आम ब्लॉग पर
नग्न नारी को निहारते
disclaimer is kavita kaa kisi jeenda yaa murda blog post sae koi laena daena nahin haen
February 21, 2009
ब्लॉग और वेबसाइट
वेबसाइट एक कॉमर्शियल तरीका हैं अपनी बात अपना मकसद लोगो तक पहुचाने का । वेबसाइट के लिये आप को पैसा खरचना पड़ता हैं । वेबसाइट को इन्टरनेट पर अपलोड करने और डोमेन लेने के लिये एक फीस देनी ही होती हैं ।
वेबसाइट पर आप का पूर्ण अधिकार होता हैं और अगर आप ग़लत प्रचार भी करते हैं तो केवल और केवल साइबर पुलिस आप पर कानूनन कदम उठा सकती हैं । ब्लॉग मे आप को फ्लग किया जा सकता हैं या आप जिस सर्वर पर हैं उनको आप के ख़िलाफ़ मेल दी जासकती हैं ।
February 20, 2009
पता हो तो मुझे भी बताये
वेबसाइट और ब्लॉग मे क्या अन्तर हैं ?
पता हो तो मुझे भी बताये
February 15, 2009
"बागो मे बहार हैं , हैं , कलियों पे निखार हैं ," ऋतुराज बसंत , कुछ तस्वीरे मेरे कैम्ररे से
February 13, 2009
चड्ढी क्यूँ पैंटी क्यूँ नहीं
February 07, 2009
शिक्षा के बिना भी कीर्ति सम्भव हैं अगर किसी भी कार्य को करने की स्वाभाविक क्षमता हो .
- Natural ability without education has more often attained to glory and virtue than education without natural ability.
- Cicero
Roman author, orator, & politician (106 BC - 43 BC)
February 05, 2009
पब कल्चर के ऊपर कुछ पढ़ना हो तो यहाँ जाए
भारत मे पब कल्तुरे को बिना जाने ही इसका विरोध होता हैं क्युकी हम किसी भी नयी चीज़ को बिना समझे उसका विरोध करने के लिये हमेशा तत्पर रहते हैं । फिर चाहे वो कंप्यूटर हो , या मॉल हो या इंग्लिश मे बात चित हो , या ब्लॉग लिखना हो , या नव युवक युवती का साथ पढ़ना / घूमना हो । हम हमेशा एक संकीण मानसिकता मे अपने को जकड़ कर हर नयी चीज़ को बिना जाने बिना समझे उसका विरोध करते हैं ।
पब कल्चर के ऊपर कुछ पढ़ना हो तो यहाँ जाए
लिंक १
लिंक २
February 01, 2009
संस्कृति बचाये
भारतीये संस्कृति को कैसे बचाया जा सकता है ?? रोज कहीं ना कही , किसी ना किसी को ये ख़तम होती , भ्रष्ट होती , समाप्त होती , धरातल मे जाती दीख ही जाती हैं । कही महिला तो कहीं नयी पीढी को इस संस्कृति के विनाश का कारण माना जाता हैं । मुझे लगता हैं हम सब को एक राष्ट्रिये परिधान { नेशनल ड्रेस कोड } और एक राष्ट्रिये भोजन {नेशनल फ़ूड कोड } बना चाहिये , जिसके लिये संसद मे बाकायदा बिल पास हो और संविधान मे संषोधन किया जाए ।
नेशनल ड्रेस कोड
स्त्री : साड़ी अथवा सूट , साड़ी का रंग सफ़ेद , बॉर्डर भगवा और ब्लाउज हरा । सूट का रंग सफ़ेद , चग्वा किनारी और दुपता हरा । कोई चूड़ी, बिंदी , सिंदूर या साज सिंगार नहीं ताकि सर्वधर्म मान्य हो ।
पुरूष : कुरता -पाजामा या कुरता - धोती । सफ़ेद रंग और भगवा किनारी आस्तीन पर तथा हरे रंग का कॉलर ताकि सर्वधर्म मान्य हो ।
नेशनल फ़ूड कोड
नाश्ता-- रोटी / पराठा अचार के साथ , एक गिलास दूध
दोपहर का खाना-- दाल रोटी सब्जी
रात का खाना --सब्जी रोटी चावल
अगर हम इस प्रकार से संविधान मे संशोधन करवा ले तो धार्मिक या नर - नारी या दो पीढियों का भेद भाव
से मुक्त हो जायेगे और संस्कृति भी बची रहेगी ।
Blog Archive
-
▼
2009
(166)
-
▼
February
(12)
- हम किसी के कर्मो को या विचारो को "देश द्रोही " होन...
- देश भक्त की पहचान ???
- ऑस्कर २००९ - दुनिया को ये भी बताने के लिये काफ़ी ह...
- वैसे नयी पीढी की आयु सीमा क्या होती हैं ???
- हिन्दी ब्लोगिंग की क्लास
- ब्लॉग और वेबसाइट
- पता हो तो मुझे भी बताये
- "बागो मे बहार हैं , हैं , कलियों पे निखार हैं ," ऋ...
- चड्ढी क्यूँ पैंटी क्यूँ नहीं
- शिक्षा के बिना भी कीर्ति सम्भव हैं अगर किसी भी क...
- पब कल्चर के ऊपर कुछ पढ़ना हो तो यहाँ जाए
- संस्कृति बचाये
-
▼
February
(12)
जो कहे कि मैं तो संशय करो!!
बेहतर हो आप भगत सिंह व अन्य क्रांतिकारियों को गौर से पढ़ें, उत्तर मिल जाएगा।
जिस किसी पढ़े लिखे व्यक्ति को यही न मालूम हो वह तो देशभक्त हो ही नहीं सकता. कम से कम आप तो इस श्रेणी में .......
अब आप ने नहीं बताया ab inconvenienti जी , बे पढ़ा लिखा समझ कर ही बता देते
देशभक्त दो विपरीत विचारधारा वाले भी हो सकते है. गाँधी और गोडसे दोनो देशभक्त थे. अब कुछ कहने को बचता है? अगर कोई कहे कि खास विचारधारा ही देशभक्त है तो वह गलत है.
देशभक्त वही है ,जो देश की भलाई के लिए कुछ प्रयास करे । चाहे आप बड़े नामों को गिन लीजिए या फिर कुछ ऐसे गुमनाम को ले लीजिए जो हमारे आस-पास ही है ।वैसे आपकी राय में कौन है देश भक्त?
वैसे पहचान तो आसान है, 1) जो हमेशा देश का भला सोचे, 2) जिसे अपने देश का अपमान सहन न हो, 3) जो देश की समस्याओं से चिन्तित हो और उन्हें हल करने के सुझाव आदि देता हो, कार्यक्रम चलाता हो… ऐसे कई लक्षण हैं… पहचानने वाला चाहिये… देशभक्त किसी के चेहरे पर नहीं लिखा होता, यह तो उसके "कर्म" और "विचार" तय करते हैं… (यह उत्तर काफ़ी संक्षेप में है)
जो देश की समस्त संपदा पर देश के समस्त लोगों के समान अधिकार को मुहैया कराने के जज्बे का कद्रदान हो।
sirf wo jo ek achha insaan hai, kyonki samaaj parivaar ya desh hamse yani insaano se hee bana hai, ham hain to raashtra hai, ham theek hain to raashtra theek hai, waise prashn ke saath sandarbh ka ullekh kiya hota to jyada behtar hota।