मेरी दादी ने मेरे पिता जी को बहुत फटकारा था जब मेरा ४ वर्ष की उम्र मे स्कूल मे दाखिला कराया गया था क्युकी उनकी नज़र मे मै बहुत छोटी थी और मेरे पिता जी ७ वर्ष की आयु मे स्कूल गए थे । मेरी दादी के विरोध के बावजूद भी मुझे स्कूल भेजा गया । मेरी भांजी को मेरी बहिन ने २ वर्ष की आयु से स्कूल भेजा और मेरी माता जी के विरोध के बावजूद भी भेजा मेरी उन्ही माता जी के विरोध के बावजूद जिन्होंने मेरी दादी से विरोध किया था । सो कोई भी पीढी नयी या पुरानी नहीं होती , सब अपने वर्तमान के हिसाब से अपने जीवन को जीते हैं ।
हमारे बच्चे ज्यादा समझदार हैं क्युकी वो जल्दी बड़े हो रहे हैं । और जो लोग नयी पीढी को दोष देते हैं वो अपने आप को ही दोष दे रहे क्युकी अपनी पुरानी पीढी के लिये वो नयी पीढी हैं । नयी पीढी को दोष देना उनके माता पिता को दोष देना होता हैं ।
वैसे नयी पीढी की आयु सीमा क्या होती हैं ???
सच बोलना जितना मुश्किल है , सच को स्वीकारना उस से भी ज्यादा मुश्किल है . लेकिन सच ही शाश्वत है और रहेगा मुझे अपने सच पर उतना ही अभिमान है जितना किसी को अपने झूठ से होने वाले फायदे पर होता हैं
मेरे ब्लॉग के किसी भी लेख को कहीं भी इस्तमाल करने से पहले मुझ से पूछना जरुरी हैं
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पीढी दर पीढी सब कुछ वही चलता रहता है....पर अपने समय में लोगों को बुरा नहीं लगता...दूसरों में बुरा लग जाता है।
ReplyDeleteनई पीढ़ी की आयु सीमा वहां से शुरू होती है, जहां से पुरानी पीढ़ी खत्म होती है।
ReplyDeleteअंशुमाली जी ने सहेरे कहा है -नई पीढ़ी की आयु सीमा वहां से शुरू होती है, जहां से पुरानी पीढ़ी खत्म होती है।
ReplyDeleteबचपन से खिलवाड़ करने का हक़ माँ-बाप को भी नहीं है. बच्चों को अपना बचपन जी लेने देने से पहले स्कूल नाम की जेल में धकेलना पागलपन है. पैंतीस वर्ष तक पहुँचते पहुँचते अधिकतर लोगों की सोच एक दायरे में कैद हो कर रह जाती है, और उसे फिर बदल पाना कठिन होता है (हालाँकि ऐसा किशोरावस्था में भी हो सकता है) तो सांखिकीय रूप से पैंतीस के आसपास इंसान के अन्दर का बच्चा पूरी तरह मर जाता है. अब तो इस भीतर बैठे बच्चे ज़िन्दगी और भी कम हो गई है, कारण आपने बता ही दिया है...
ReplyDeleteकाया या भौतिक वास्तु भले समय से बढ़ी होती है,समय के साथ पुरानी पड़ती है,पर जहाँ तक सोच समझदरी का सवाल है,इसका उम्र से लेना देना नही होता....
ReplyDeleteनया उसे माना जाता है,जिसमे ताजगी स्फूर्ती,सकारात्मक उर्जा हो.यह सब जैसे जैसे क्षीण होता जाता है,नया पुराना होता जाता है.