मेरे ब्लॉग के किसी भी लेख को कहीं भी इस्तमाल करने से पहले मुझ से पूछना जरुरी हैं

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February 22, 2009

हिन्दी ब्लोगिंग की क्लास

हिन्दी ब्लोगिंग की क्लास मे
नैतिकता का पीरियड था
सीनियर सिटिज़न पढा रहे थे
सीनियर सिटिज़न पढ़ रहे थे
ब्लैक बोर्ड पर नारी के
अर्ध नग्न चित्र थे
सब विद्यार्थी ताली बजा रहे थे
चित्र समझ ना आने पर
उसकी डिटेल मे जा रहे थे
अब नैतिकता का प्रश्न हो !!
नारी शरीर पर बात ना हो ??
कुँवारी कैसे स्त्री बनती हैं
जब तक अधेड़ उम्र के
ब्लॉगर समझे और समझायेगे नही
यौन शिक्षा का प्रचार क्यूँ
ग़लत हैं भारत मे
इस विषय पर चर्चा कैसे कर पायेगे ??

हर प्रश्न का जवाब शिक्षक दे रहा था
जहाँ जहाँ जरुरत थी प्रतीकात्मक हो रहा था
नारी को घर मे ही रहना था
बाहर क्यूँ आयी
अब बाहर आयी है तो नग्न उसको कहो
बार बार शास्त्रार्थ करने को कहता था
अब शास्त्रार्थ कौन करता
सब तो ताली बजा रहे थे
एक दो नटखट बच्चो ने
कक्षा मे झाँका तो
केवल वयस्कों का बोर्ड लगा पाया

अब नारी देह पर बात केवल
व्यसक ही भारत मे करते हैं
रिटायर होने की सीमा हो जाए
तब भी इस विषय मे
बच्चो की तरह पढ़ते हैं
और ताली भी बजाते हैं

नग्न औरत के चित्र
इन्टरनेट पर जो लगाते हैं
स्रोत का नाम देना भी भूल जाते हैं
चोरी जो करते हैं
चोरी गलत काम हैं
बार बार वही दोहराते हैं

और बंद दरवाजो के पीछे ही नहीं
खुले आम ब्लॉग पर
नग्न नारी को निहारते


disclaimer is kavita kaa kisi jeenda yaa murda blog post sae koi laena daena nahin haen

22 comments:

  1. हमारे मन के अंधेरों में बुराईयां हो सकती है लेकिन सार्वजनिक रुप से प्रयोग करने पर इसे हिचकें तो, और अगर यह भी नहीं कर सकते तो कम से कम कभीकभार अपनी आत्मा की आवाज तो सुने कि एक शरीर से अधिक आत्मा के रूप में नारी को पहचान सकें

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  2. उस क्लास में एक एक 'विमर्शी नारी' भी थी
    पुरुषों की कर बात से उसे घृणा थी
    नैतिकता का पाठ उसे बिलकुल रास नहा रहा था
    उसे खुद पता नहीं कि वह क्या सोच रही है
    उसने अन्त में सोचा कपड़े पहनना ही नारी का सबसे बड़ी कमजोरी है।
    हर अच्छाई का विरोध करो, यही नारी-विमर्श है
    पुरुष-नारी कभी एक न रहें यही नारी-विमर्श का लक्ष्य है।

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  3. कविता बेशक बहुत अच्छी बन पडी है ! बधाई !
    पर सही परिप्रेक्ष्य को सामने नहीं रखती -
    विपरीत लिंगी आकर्षण सहज है !
    नारी ही नहीं नर भी नेट पर प्रेक्षित है .
    देह में अश्लीलता नही वह मन में है !
    -बाकी जाकी रही भावना जैसी .......!
    किसी का पक्ष/बचाव नहीं
    बस एक विनम्र आत्माभिव्यक्ति है !

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  4. कल के उस लेख की शुरूआत में लिखा था
    "पिछले दिनों कर्नाटका के अंग्रेजी-दारुखाने (पब) में घुस कर शराबियों की जो पिटाई की गई थी...."
    यानी जो लड़कियां पिटी उनकी पिटाई जायज थी क्योंकि वे शराबी थीं. उनकी पिटाई को इस तरह से जायज कोई महामूर्ख भी नहीं ठहरा सकता. जो तालियां बजा रहे थे सिर्फ इसलिये कि उनके ब्लाग पर आकर तालियां पीटी जातीं है. यहां आकर वे अपने यहां पिटी तालियों का उधार चुका रहे थे.
    ओशो ने कहा है कि स्वयंभू गुरुओं से बचना चाहिये, क्योंकि ये मतिभ्रम और अहं के शिकार होते हैं.

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  5. इन दिनों हर चीज की परिभाषा अलग है ....सो नैतिकता के पाठ भी अलग हो गये है बंधू ......
    एक शेर याद आ गया ,आपकी कविता पढ़कर .....

    "हर शौक से तौबा कर ली जब जवानी जा चुकी
    जाहिदों जन्नत में जाना कोई तुमसे सीखे '

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  6. कुंठा तु न गयी मेरे मन से.....

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  7. दिलचस्प!
    दीपक भारतदीप

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  8. सही कहा है..
    कुंठित लोग ही नैतिकता और शुचितावादी हो जाते हैं
    तालिबानी तो नैतिकता और शुचितावादी हैं, वो इनसे थोड़ा अधिक ये थोड़े कम
    है तो एक ही जैसे..

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  9. @अनुनाद
    "रास नहा रहा था"
    अमां यार कभी तो नहाने धोने से मुक्ति पाओ . क्या हमेशा टॉयलेट मे ही जा बैठते हो , गुरु आदेश हैं क्या ??
    पुरुष-नारी कभी एक न रहें यही नारी-विमर्श का लक्ष्य है।
    उन का जो लक्ष्य हैं कम से कम स्पष्ट तो हैं , तुम्हारा क्या लक्ष्य हैं , बिना वज़ह ताली बजाना .

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  10. "देह में अश्लीलता नही वह मन में है ! " बिलकुल आप से सहमति हैं अरविन्द जी फिर पाँच तत्व के इस शरीर को लेकर इतनी हाय तोबा ही क्यूँ हो रही हैं । कौन क्या करता हैं या क्या पहनता हैं इसको भूल ही क्यूँ नहीं जाया जाता । opposite sex attraction कब नहीं था और कब नहीं होगा पर इसके लिये केवल स्त्रीलिंग पर ही पाबंदी क्यूँ । आप बचाव तब करेगे जब मंशा हमले कि होगी रुढिवादिता का glamourization होता हैं और ताली बजती हैं तो शब्दों मे टंकार अपने आप आती हैं । कविता पसंद आयी धन्यावाद । बाकी पक्ष और विपक्ष कि वोटिंग जारी हैं !!!!

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  11. बड़े लोगो कि बडी बाते है । हमारे लेवल कि नही है ।

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  12. 'जा की रही भावना जैसी/प्रभु मूरत देखी तिन्‍ह तैसी।'

    सब कुछ नजर का खेल है।
    मानो तो खुदा है वर्ना
    पैसा तो हा‍थों का मैल है।

    देखने वाले कयामत की नजर रखते हैं
    कितने ही कपडे पहने रखो,
    नजरों से उघाड देते हैं।

    नजर में शर्म हों तो
    नंगाई कहीं नहीं,
    नजरें बेशर्म हों तो
    नंगाई कहां नहीं।

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  13. क्या करें बेचारे.. निहारते रहने का अंत होता नहीं दिखता ।
    नयन बिनु बानी.. सो शब्दों के अभाव में नयनों को ही तृप्त कर लेने का प्रयास है, यह ।
    घुमा कर मारा है.. शैली का जोरदार कटाक्ष !

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  14. कहीं कुछ तो गडबड है।

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  15. वाह अदभुत! कमाल की शैली है..

    पहले पढ़ा तो मुझे लगा ये कही देखा है.. लेकिन अंत में आपने लिखा की किसी भी जीवित या मृत टाइप से कोई लेना देना नही है.. तो फिर लगा वाकई नही होगा...

    वैसे ऐसे बुज़ुर्गो को कुछ दैवीय शक्तिया भी प्राप्त हो जाती है.. मसलन इन्हे ये भी पता चल जात है की दूसरे लोगो को कब लघुशंका होने वाली है..

    या ये भी हो सकता है की जब दूसरे लोग लघुशंका कर रहे हो.. तो ये लोग वहा खड़े उन्हे निहार रहे हो.. अब आनंद तो आनद है किसी भी तरह लिया जा सकता है.. फिर हिन्दुस्तान में कोई रोक टोक तो है नही..

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  16. आप की कविता में जादू है .... सच कहा आपने लेकिन ये भी सच है आज नारी ही तो इस नग्नता को बड़ा रही है... तरह तरह के कपडे लपेट कर...

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  17. @ अनुराग जी - नैतिकता का पाठ सीखने-सिखाने की उम्र नहीं है जी अब युवाओं की, अब तो सब कुछ "खुला" होना चाहिये, कोई बन्धन नहीं, कोई रोक-टोक नहीं, तब ही मजा है, लाइफ़ है, स्टाइल है…
    @ अनुनाद जी - पूरी तरह सहमत…
    @ बेनामी जी - खुल्लमखुल्ला नाम लिखकर टिपियाओ भाई, शरमाते क्यों हो?

    और जिस जीवित या मृत ब्लॉग का इससे सम्बन्ध नहीं है उनसे भी अनुरोध करूँगा कि ये नटखट "बच्चे" हैं इन्हें माफ़ ही कर दें, ये अभी नहीं जानते कि ये क्या कर रहे हैं…

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  18. अनुनाद जी
    बहस और शास्त्रार्थ प्राचीन काल से केवल और केवल पुरूष का अधिकार रहा हैं । इस लिये आज भी अगर कोई नारी विमर्श करण चाहती हैं तो वो अनैतिकता की परिधि मे आ ही जाती हैं । अब बहस करनी होगी तो घूँघट तो मुंह से हटाना ही पडेगा और अगर इस को आप नारी का सबसे बड़ी कमजोरी मानते हैं तो ये आप की अपनी सोच हैं । और पुरूष तब ही तक एक होते हैं जब तक नारी पुरूष की अनुगामिनी रहती हैं अगर समानता की बात कोई भी स्त्री करती हैं तो वो अपने आप ही आप की नज़र मे पुरूष विरोधी हो जाती हैं ।
    एक तरफ़ हम सेक्स पर बात करते हैं और दूसरी तरफ़ हम बच्चो को यौन शिक्षा ना मिले इसका समर्थन करते हैं
    एक तरफ़ हम मार पीटाई को सही बताते हैं दूसरी तरफ़ हम अहिंसा के पुजारी बन जाते हैं ।
    स्त्री विरोधी साईट चल रही हैं और सब ताली बजा रहे हैं । ब्लॉग लिखना एक बात हैं लेकिन स्त्री विरोधी साईट चलाना दूसरी बात हैं । बाकी आप ज्ञानी हैं । नारी पुरूष समानता पर बात खुल कर करे ये कहना उसने अन्त में सोचा कपड़े पहनना ही नारी का सबसे बड़ी कमजोरी है। अपने आप मे सिद्ध करता हैं की हर विमर्श केवल नारी और उसके शरीर और कपड़ो तक ही सिमित होता हैं

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  19. सुरेश जी
    आप कमेन्ट मोदेराते करने के पक्ष मे नहीं हैं यानी आप के ब्लॉग पर सब कुछ खुला हैं ओपन हैं फिर नयी पीढी के प्रति इतना आक्रोश क्यूँ । मेरी दादी ने मेरे पिता जी को बहुत फटकारा था जब मेरा ४ वर्ष की उम्र मे स्कूल मे दाखिला कराया गया था क्युकी उनकी नज़र मे मै बहुत छोटी थी और मेरे पिता जी ७ वर्ष की आयु मै स्कूल गए थे । मेरी दादी के विरोध के बावजूद भी मुझे स्कूल भेजा गया । मेरी भांजी को मेरी बहिन ने २ वर्ष की आयु से स्कूल भेजा और मेरी माता जी के विरोध के बावजूद भी भेजा मेरी उन्ही माता जी के विरोध के बावजूद जिन्होंने मेरी दादी से विरोध किया था । सो कोई भी पीढी नयी या पुरानी नहीं होती , सब अपने वर्तमान के हिसाब से अपने जीवन को जीते हैं । हमारे बच्चे ज्यादा समझदार हैं क्युकी वो जल्दी बड़े हो रहे हैं । और जो लोग नयी पीढी को दोष देते हैं वो अपने आप को ही दोष दे रहे क्युकी अपनी पुरानी पीढी के लिये वो नयी पीढी हैं

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  20. करारा व्यंग्य ,ऐसा सोचते सब हैं मगर कह नहीं पाते /आपने ऐसा कहने और लिखने की हिम्मत करके ,न जाने कितने व्यक्तियों के दिल की बात कह दी

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  21. करारी बात है... जरुरत है तो अपने में झाकने की और सबसे पहले सफाई करे अपने दिमाग की ...

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