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February 13, 2009

चड्ढी क्यूँ पैंटी क्यूँ नहीं

उसने चड्ढी क्यूँ भेजी पैंटी क्यूँ नहीं क्युकी अगर वो पैंटी भेजती तो भारतीये संस्कृति बिल्कुल धरातल मे चली जाती क्युकी पैंटी विदेशी परिधान हैं और चड्ढी देशी । हाँ पैंटी भेजने का एक फायदा जरुर होता हिन्दी ब्लोगिंग मे ज्यादा बहस ना होती क्युकी यहाँ सबको सबसे ज्यादा इंग्लिश भाषा से बैर हैं । अब पैंटी पर कौन बात करता बताओ निशा ?? लेकिन मुथालिक को पैंटी भेजती भी कैसे , जो चड्ढी बनियान मे ही अटके हैं पैंटी शायद ही समझ पाते ।

5 comments:

  1. प्रमोद मुतालिक और गुलाबी चड्डी अभियान चला रही (Consortium of Pubgoing, Loose and Forward Women) निशा (०९८११८९३७३३), रत्ना (०९८९९४२२५१३), विवेक (०९८४५५९१७९८), नितिन (०९८८६०८१२९) और दिव्या (०९८४५५३५४०६) को नमन. जो श्री राम सेना की गुंडागर्दी के ख़िलाफ़ होने के नाम पर देश में वेलेंटाइन दिवस के पर्व को चड्डी दिवस में बदलने पर तूली हैं. अपनी चड्डी मुतालिक को पहनाकर वह क्या साबित करना चाहती है? अमनेसिया पब में जो श्री राम सेना ने किया वह क्षमा के काबिल नहीं है. लेकिन चड्डी वाले मामले में श्री राम सेना का बयान अधिक संतुलित नजर आता है कि 'जो महिलाएं चड्डी के साथ आएंगी उन्हें हम साडी भेंट करेंगे.'
    तो निशा-रत्ना-विवेक-नितिन-दिव्या अपनी-अपनी चड्डी देकर मुतालिक की साडी ले सकते हैं. खैर इस आन्दोलन के समर्थकों को एक बार अवश्य सोचना चाहिए कि इससे मीडिया-मुतालिक-पब और चड्डी क्वीन बनी निशा सूसन को फायदा होने वाला है. आम आदमी को इसका क्या लाभ? मीडिया को टी आर पी मिल रही है. मुतालिक का गली छाप श्री राम सेना आज मीडिया और चड्डी वालियों की कृपा से अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त सेना बन चुकी है. अब इस नाम की बदौलत उनके दूसरे धंधे खूब चमकेंगे और हो सकता है- इस (अ) लोकप्रियता की वजह से कल वह आम सभा चुनाव में चुन भी लिया जाए. चड्डी वालियों को समझना चाहिए की वह नाम कमाने के चक्कर में इस अभियान से मुतालिक का नुक्सान नहीं फायदा कर रहीं हैं. लेकिन इस अभियान से सबसे अधिक फायदा पब को होने वाला है. देखिएगा इस बार बेवकूफों की जमात भेड चाल में शामिल होकर सिर्फ़ अपनी मर्दानगी साबित कराने के लिए पब जाएगी. हो सकता है पब कल्चर का जन-जन से परिचय कराने वाले भाई प्रमोद मुतालिक को अंदरखाने से पब वालों की तरफ़ से ही एक मोटी रकम मिल जाए तो बड़े आश्चर्य की बात नहीं होगी. भैया चड्डी वाली हों या चड्डे वाले सभी इस अभियान में अपना-अपना लाभ देख रहे हैं। बेवकूफ बन रही है सिर्फ़ इस देश की आम जनता.

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  2. आपकी बुद्धी भ्रष्ट है.. सोच निहायत घटिया !
    इतनी ज्यादा अग्रेजी दा है आप ? तो यहा क्यू बहस मे लगी है ? चली क्यू नही जाती अपनी उसी गुलाम सोच के साथ जिनके चक्कर मे आप पैंटी चड्ढी मे लगी है ...आपको स्त्री विमर्श से कुछ नही लेना देना आपको तो सिर्फ़ खुले सेक्स के समर्थक अग्रेजो की तरह जो खुद पैंट पहनते है महिलाओ को स्कर्ट पहनाते है... की तरह अग्रेज बन कर दिखाना है मानसिक गुलाम है आप अग्रेजियत की , कुछ समझी आप
    लगता है आप यहा भी वही स्वंतंत्रता लाना चाहती है जिसमे लोग नंगे पुंगे नाचते ब्राजील की तरह सडको पर दिखाई दे
    लगता है आप यहा भी वही हालत चाहती है जिसमे किसी महिला के छै बच्चो मे से हर बच्चे का समवैधानिक और बायलोजिकल बाप अलग अलग हो

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  3. बंद करो, चड्ढी-फड्ढी, बताओ चड्ढी के नीचे क्या है?

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  4. अनाम कमेंट्स बता रहे हैं कि जिस संस्क्रति को बचाने की बात हम कर रहे हैं , वह तो ऑलरेडी नष्ट हो चुकी।

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  5. चड्डी से बात पैंटी तक आ गई है, अभी बिकनी तक आनी बाकी है। अभी बात बहुत दूर तक जानी बाकी है। :)

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