कल फिर प्रकारों मे बटा
स्वप्नलोक मे ब्लॉगर
एक प्रकार रह गया
चमचा ब्लॉगर
जो जैसे ही
ब्लॉग जगत मे आता हैं
पुराने ब्लॉगर के ब्लॉग
की चर्चा कर जाता हैं
और फिर चर्चा
के मंच पर
ब्लॉग चर्चा करता हैं
अरे वही
जो अपने को
चमचा नहीं शिष्य
कहता हैं
सच बोलना जितना मुश्किल है , सच को स्वीकारना उस से भी ज्यादा मुश्किल है . लेकिन सच ही शाश्वत है और रहेगा मुझे अपने सच पर उतना ही अभिमान है जितना किसी को अपने झूठ से होने वाले फायदे पर होता हैं
मेरे ब्लॉग के किसी भी लेख को कहीं भी इस्तमाल करने से पहले मुझ से पूछना जरुरी हैं
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सीधे हमला क्यों नहीं किया
ReplyDeleteचमचा पहचाना गया
ReplyDeleteरचना में बांधा गया
हम दुखी नहीं हैं
अपने दुख से
दूसरे का सुख
हमसे देखा न गया।
बहुत खुब.......
ReplyDeleteअपने यहाँ तो पुराने ज़माने से ऐसे लोगों की परम्परा रही है. वैसे वह महान कविता मैं देख आया हूँ.
ReplyDeleteकौन है भई? बड़ा जोर डाला दिमाग पर-समझ ही नहीं आ रहा.
ReplyDeleteकोई तो बूझो??
hi...hi....hi...hi....hi...!!!!
ReplyDeletehi...hi...hi...hi...hi....!!
ReplyDelete:)
ReplyDeleteरामराम.
रचनाजी, इस तरह की कवितायें लिखकर आपको कौन सा सुख मिलता है? किसको सुख देती हैं? विवेक को चमचा ब्लागर कहकर क्या आनंद मिला आपको?
ReplyDeleteFor Anup
ReplyDeleteBefore you question the reason of this poem feel free to read . And its you who is pointing to a name I have not . Freedom of speech and liberty is viceversa all of us need to remember this and when its within the parameters then why should it hurt .
"कुछ संजीदा टाइप ब्लॉगर जिनके कंधों पर ब्लॉग-जगत की सारी चिंताओं का भार रखा रहता है, हमेशा गंभीर मुद्रा का लबादा ओढ़े रहते हैं . अगर इनको कहीं हँसी-मजाक होता दिख जाए तो ये फौरन हा हा-ठी ठी का झूठा केस बना देते हैं . हँसने मुस्कराने वाले लोगों से इन्हें सख्त नफरत होती है . ऐसे लोगों को देखते ही इनके तन-बदन में वैसे ही आग लग जाती है"
कौन सा सुख मिलता है? किसको सुख देती हैं?
ReplyDeleteI am here to blog and that is my happiness I dont blog to give and take popularity and comments , i blog to enjoy my own self
हमारे लिए तो ये एक पहेली ही है:)
ReplyDeleteब्लॉगर के प्रकार पर प्रकाश डालना ज़रूरी तो नहीं. ब्लॉगर तो ब्लॉगर है. अगर तरह-तरह के ब्लॉगर न हों, तो फिर ब्लॉग-जगत में अभिव्यक्ति का बारह बज जाएगा. सभी एक ही तरह से लिखने लगें तो कितना बोरिंग हो जाएगा सबकुछ? आज प्रकार पर चर्चा हो रही है. देखा-देखी कल आकार पर चर्चा होगी. फिर दरकार पर चर्चा शुरू हो जायेगी..:-)
ReplyDeleteअब देखिये न. पंडित जी जैसे ज्योतिषी ब्लॉगर के लिए यह पहेली है तो मेरे जैसे के लिए तो यह हथेली हो जायेगी. पढने की कोशिश करेंगे और कुछ नहीं पढ़ सकेंगे.
अरे, कमेन्ट तो कविता से भी बड़ा हो लगा. अब निकल लेने में ही भलाई है.
वाह! क्या सीन है :-)
ReplyDeleteरचना जी मेरी समझ से परे है ....... फिर भी समझने की कोशिश में लगा हूँ .......
ReplyDelete??
ReplyDeleteसमझ से परे
ReplyDeleteआपकी अभिव्यक्ति के पीछे कुछ कारण जरुर रहे होंगे !
ReplyDeleteनिवेदन ये है कि ...क्या इसे टाला नहीं जा सकता था ?
जब विवेक जी ने रचना जी पर लिखा तो अनूप जी की आपत्ति क्यूँ दर्ज नहीं हुई विवेक जी के ब्लॉग पर अगर अनूप जी को ये लगता हैं की ये कविता विवेक जी पर हैं तो और अगर उन्हे ऐसा नहीं लगता हैं तो विवेक जी जैसे हसोड़ ब्लॉगर का नाम अनूप जी ने यहाँ क्यों दिया
ReplyDelete
ReplyDeleteपहले न पढ़ पाये थे,
पर इसका कोई अफ़सोस भी नहीं है ।