.... बारिश की बूंदे .... उसका नीला दुपट्टा ....भीगा... लगा आस्मां और तारे ....... चमचमाते ...... झिलमिलाते....
ओढा दुप्पटा ... चाँद चमक गया .... उसके चहरे मे ...
उसकी आंखे ..... झिलमिलाती .... बिल्कुल जुगुनू ... अँधेरी रात .... उफ़ भयानक अँधेरा ... दो जुगनू ... पीले ..... नहीं .... ना ना ...... सुनहेरे .... बिल्कुल उसके कंगन जैसे ........
कंगन .... गोल ... दुनिया गोल ... अजनबी .... फैली भी ... सिमटी भी .... बिल्कुल सकुचाई ... उसकी तरह ....
वो ... एक बच्ची ....... मासूम ...... नादान सिमिटी .... नहीं सिमटी नहीं ... फैली ..... जैसे पीली सरसों का खेत ...
दूर तक ........एक पीलापन ..... थका थका ..... कहीं पीलिया .....
क्या पीलिया ..... किसने पिलाया ... साकी ने ..... नहीं नहीं जाम ने
जाम ........ कौन सा ..... नहीं जाम नहीं आम .......
आम लड़की .... उसका आम सा दुपट्टा .... छेद से भरा .... सितारे नहीं ...... चाँद नहीं ......
बस एक चिथडा ... मासूमियत से लिपटा .... भीगने से बचाता
सच बोलना जितना मुश्किल है , सच को स्वीकारना उस से भी ज्यादा मुश्किल है . लेकिन सच ही शाश्वत है और रहेगा मुझे अपने सच पर उतना ही अभिमान है जितना किसी को अपने झूठ से होने वाले फायदे पर होता हैं
मेरे ब्लॉग के किसी भी लेख को कहीं भी इस्तमाल करने से पहले मुझ से पूछना जरुरी हैं
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कम शब्दों में कहानी भाव पूर्ण लग रही है .
ReplyDeleteवाह ! बढिया लगा.
ReplyDeleteरामराम.
behad khubsoorat ehasaaso se bharee padi hai rachana
ReplyDeleteबढिया !
ReplyDelete"!!!!"
ReplyDeleteसोचा था कि सब की तरह मैं भी अच्छा है, बढ़िया कह कर निकल जाऊँ...
kuch gehre ehsaas chipe hai in alfazon mein.shayad us ladki ki chikh bhi ho/
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