मेरे ब्लॉग के किसी भी लेख को कहीं भी इस्तमाल करने से पहले मुझ से पूछना जरुरी हैं

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October 03, 2009

हिन्दी ब्लॉगर जो हिन्दी को नेट पर आगे ले जा रहे उनमे से बहुत से ब्लॉगर ऐसे हैं जिन का हिन्दी से सम्बन्ध बहुत पुराना हैं ।

हिन्दी ब्लॉगर जो हिन्दी को नेट पर आगे ले जा रहे उनमे से बहुत से ब्लॉगर ऐसे हैं जिन का हिन्दी से सम्बन्ध बहुत पुराना हैं । किसी के माता पिता हिन्दी के प्रबुद्ध लेखको मे से हैं तो किसी के माता पिता हिन्दी विषय मे अध्यापन का कार्य करते रहे हैं या किसी के मामा , जाने माने कवि रहे हैं । इसके अलावा बहुत से ब्लॉगर हैं जो पेशे से डॉक्टर/वकील और इंजिनियर हैं पर उनका हिन्दी का ज्ञान { लैंग्वेज और लिट्रेचर } दोनों मे असीम हैं ।


ब्लॉगर प्रोफाइल मे केवल और केवल सिमित जानकारी उपलब्ध हैं इसलिये ये पता नहीं चल रहा की कितने ब्लॉगर ने हिन्दी कि फॅमिली बेकग्राउंड होते हुए भी इंग्लिश मीडियम स्कूल से पढाई की हैं और कितनो ने हिन्दी मीडियम स्कूल से ।

हिन्दी प्रेम होने के बावजूद भी हिन्दी भाषा मे स्नातकोतर या उससे ऊपर की पढाई और हिन्दी को पढ़ा कर अपनी जीविका का साधन बहुत ही सिमित संख्या के ब्लॉगर कर रहे हैं



ऐसे क्या कारण हैं कि हिन्दी कि फॅमिली बेकग्राउंड होते हुआ भी हिन्दी विषय मे कोई डिग्री नहीं हैं बहुतो से ब्लॉगर के पास ?? क्यूँ ??

पोस्ट लिखने का मकसद केवल और केवल हिन्दी के प्रति स्नेह होते हुए भी उसको जीविका का साधन क्यूँ नहीं बनाया जाता हैं ??

8 comments:

  1. सीधी सी बात है हिन्दी में अभी तक रोजगार के अवसर कम रहे हैं -लेकिन दिन निश्चित ही बहुरेगें !

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  2. रचना जी, आपको यह तो पता ही होगा कि हिंदी के कई बड़े साहित्यकारों में बहुत से ऐसे हैं जो किसी विद्यालय या महाविद्यालय में ताजिंदगी अध्यापन कर्म करते आए हैं. आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि इनमें से अधिकांश अंग्रेजी के प्राध्यापक रहे हैं.

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  3. हिन्दी हमारी राजभाषा है, अब और किसी डिग्री की क्या आवश्यक्ता है भाई ? और उसको भी जीविका का साधन बनाएँगे जी, जिस दिन लोगों के दिल से हिन्दीदाँ होने पर भूखा रह जाने का डर निकल जाने की स्थितियाँ बन जाएँगी। बनेंगी और ज़रूर बनेंगी। जय हिन्द। जय हिन्दी।

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  4. क्षमा चाहूँगा, रचना..
    मेरा जैसे आपसे मतभेद योग चल रहा है ।
    आपका यह प्रश्न ब्लागर के सँदर्भ में तो क्या, साहित्य के सँदर्भ में भी बेमानी है ।
    पृष्ठभूमि होने के मायने यह नहीं है कि, उस क्षेत्र या भाषा विशेष पर एकाधिकार ही माना जाये ।
    यदि परिवारवाद को लेकर चलें तो भी बेबुनियाद है । परिवार का जिक्र आया ही है, तो यह बता दूँ कि
    स्व० जयशँकर प्रसाद अपने पुश्तैनी धँधे, इत्र, तम्बाकू और सुँघनी के व्यापार से ही जीवनपर्यँत ही जुड़े रहे,
    परँतु जो उन्होंनें रच दिया, वह पी.एच.डी. करने वाले पर भी भारी पड़ता है । मैथिलीशरण गुप्त, श्रीलाल शुक्ल जैसे
    बीसियों उदाहरण हैं । विमल मित्र एक मामूली स्टेशन मास्टर थे, हज़ारी प्रसाद द्विवेदी जी भी रेलवेकर्मी रहे थे । अँग्रेज़ी
    तक में उदाहरण लें तो सामरसेट मॉम पेशॆ से डाक्टर थे । जीविकोपार्जन का माध्यम कुछ भी हो, साहित्यिक अभिरुचि इसमें कहाँ आड़े आती है,
    आपसे जरा तफ़्सील से समझना चाहूँगा । हम सब को ( कम से कम मुझे ) आपसे इस विषय को सँदर्भित किये गये पोस्ट की प्रतीक्षा रहेगी । खेद है कि,
    हम हिन्दी को कुछ देना तो दूर, देने और देते रहने का दम भरते हुये अपनी मातृभाषा को इन्हीं ग़ैरज़रूरी मुद्दों पर जहाँ के तहाँ लटकाये हुये हैं । क्योंकि हमें
    अपने अलावा किसी अन्य का सुर्ख़ियों में उभरना ग़वारा नहीं है । किसी डिग्री विशेष का रचनाधर्मिता से क्या वास्ता निकलता है, यह रिश्ता जरा मुझे भी समझायें । आपका कृपाकाँक्षी हूँ ।

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  5. @बवाल
    आपने पोस्ट का मकसद पकड लिया । इस पोस्ट का ना तो किसी डिग्री और ना किसी साहित्य से कोई लेना देना हैं , हिन्दी को कब वो स्तर मिलेगा जब अभिभावक अपने बच्चो को हिन्दी पढा कर खुश होगे की चलो अब ये कमाने लायक हो गया

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  6. इस मामले में दक्सा'अब की विचारनीय पोस्ट को मेरा कमेन्ट और उत्तर मन जाये !!
    :)

    http://c2amar.blogspot.com/2009/10/blog-post.html?showComment=1254673298878#c2889506056835928411

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  7. In reply to dr amars post

    -----------------------

    This is the email i sent you yesterday but it seems as usual it was "a spam" like you say इन्हीं ग़ैरज़रूरी मुद्दों because a issue was raised by me and not others . blogging is all about इन्हीं ग़ैरज़रूरी मुद्दों for me
    The carry forward of "irrelevant issues blog to blog " really makes me think do i really raise irrelevent issues . I am not objecting to it sir but do think over it ,whether you really understood what was written on my post
    _________________________________________
    quote

    ----- Original Message -----
    From: Rachna Singh
    To: डा० अमर कुमार
    Sent: Sunday, October 04, 2009 8:14 PM
    Subject: Re: [हिन्दी ब्लोगिंग की देन] New comment on हिन्दी ब्लॉगर जो हिन्दी को नेट पर आगे ले जा रहे उन....


    Dear Dr Amar
    My post simply is asking a question why our parents never sent us to study hindi and make it a lively hood . How so ever we may love hindi yet we dont want to make it a area where we can earn lively hood thru it
    My post has nothing to do with the zones you wanted me to clarify .
    It has nothing to do with creative wiriting
    It has nothing do with the reason of getting a degree to write in hindi
    I think somewhere you are relating this post with the question that i put to anup about his qualifications to "judge others claibre in comaprison to viveks creative writing "

    Even today most of us like our guardians dont want our kids to learn hindi to earn .

    I hope this clarifies the issue
    I have not published this comment because the comment prior to your comment have got the essence of the post
    if you want i can publish your comment and my answer along with it

    Regds to you
    Rachna
    ----- Original Message -----
    From: डा० अमर कुमार
    To: rachnagmail.com
    Sent: Sunday, October 04, 2009 8:04 PM
    Subject: [हिन्दी ब्लोगिंग की देन] New comment on हिन्दी ब्लॉगर जो हिन्दी को नेट पर आगे ले जा रहे उन....


    डा० अमर कुमार has left a new comment on your post "हिन्दी ब्लॉगर जो हिन्दी को नेट पर आगे ले जा रहे उन...":


    क्षमा चाहूँगा, रचना..
    मेरा जैसे आपसे मतभेद योग चल रहा है ।
    आपका यह प्रश्न ब्लागर के सँदर्भ में तो क्या, साहित्य के सँदर्भ में भी बेमानी है ।
    पृष्ठभूमि होने के मायने यह नहीं है कि, उस क्षेत्र या भाषा विशेष पर एकाधिकार ही माना जाये ।
    यदि परिवारवाद को लेकर चलें तो भी बेबुनियाद है । परिवार का जिक्र आया ही है, तो यह बता दूँ कि
    स्व० जयशँकर प्रसाद अपने पुश्तैनी धँधे, इत्र, तम्बाकू और सुँघनी के व्यापार से ही जीवनपर्यँत ही जुड़े रहे,
    परँतु जो उन्होंनें रच दिया, वह पी.एच.डी. करने वाले पर भी भारी पड़ता है । मैथिलीशरण गुप्त, श्रीलाल शुक्ल जैसे
    बीसियों उदाहरण हैं । विमल मित्र एक मामूली स्टेशन मास्टर थे, हज़ारी प्रसाद द्विवेदी जी भी रेलवेकर्मी रहे थे । अँग्रेज़ी
    तक में उदाहरण लें तो सामरसेट मॉम पेशॆ से डाक्टर थे । जीविकोपार्जन का माध्यम कुछ भी हो, साहित्यिक अभिरुचि इसमें कहाँ आड़े आती है,
    आपसे जरा तफ़्सील से समझना चाहूँगा । हम सब को ( कम से कम मुझे ) आपसे इस विषय को सँदर्भित किये गये पोस्ट की प्रतीक्षा रहेगी । खेद है कि,
    हम हिन्दी को कुछ देना तो दूर, देने और देते रहने का दम भरते हुये अपनी मातृभाषा को इन्हीं ग़ैरज़रूरी मुद्दों पर जहाँ के तहाँ लटकाये हुये हैं । क्योंकि हमें
    अपने अलावा किसी अन्य का सुर्ख़ियों में उभरना ग़वारा नहीं है । किसी डिग्री विशेष का रचनाधर्मिता से क्या वास्ता निकलता है, यह रिश्ता जरा मुझे भी समझायें । आपका कृपाकाँक्षी हूँ ।


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    Posted by डा० अमर कुमार to हिन्दी ब्लोगिंग की देन at October 4, 2009 8:04 PM
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  8. दिलचस्प प्रश्न उठाया है...और रोचक बहस चली। ये तो सच है कि बच्चे के कैरियर के बारे में सोचते ही इंगलिश मिडियम का ख्याल आता है। एक सदी तो लगेगी ही शायद इस मनःस्थिति को बदलने में ...

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