ब्लॉग वाणी कि सुविधा बंद होगई हैं , २००७ मे मैने लिखना शुरू किया था और २००७ मे ही ब्लोगवाणी बनी थी । कई बार मैने अपने ब्लॉग पर ब्लोगवाणी के ऊपर भी लिखा , किसी किसी पोस्ट को ब्लोगवाणी पर देखा और अपना विरोध भी जताया और हर बार आप लोगो को संचालक के रूप मे "इंसान" पाया ।
ब्लोगवाणी केवल और केवल एक अग्रीगेटर ना रहकर ब्लॉग जीवन कि साथी बन गयी । हम लिखते , ब्लोगवाणी पर आता , कभी पोस्ट ऊपर होती , कभी कोई उसे नीचे कर देता , हम फिर उसको ऊपर करते और इसी प्रकार तकनीक के जरिये ह अपने विचारो को देश कि सीमाओं से दूर ले जाते ।
धीरे धीरे कुछ ब्लॉगर ने अपने लेखन के अस्तित्व को ब्लोगवाणी कि सीढ़ी से जोड़ लिया और एक पायदान ऊपर या नीचे मे उन्हे अपना मान - अपमान दिखने लगा ।
यही ब्लोगवाणी कि सफलता का पैमाना था कि एक सुविधा जो महज हिंदी ब्लोगिंग को आगे ले जाने के लिये शुरू कि गयी थी उस पर आने के लिये लोग लाइन लगा रहे थे । उसके पसंद ना पसंद के चटको से अपने लेखन को आंक रहे थे ।
कितनी अजीब बात हैं कि जो तकनीक आप ने दी उस पर ब्लॉगर अपनी रचनाओ का आकलन कर रहे थे, अपनी स्रजनात्मक प्रक्रियाओं को तोल नाप रहे थे !!!!!
सिरिल के लिये बस इतना कहना काफी हैं कि आज के ज़माने मे तकनीक के ज्ञाता अपने को खुदा / दानव समझ लेते हैं लेकिन सिरिल इंसान ही रहे । उनका मन व्यथित हुआ कि उनकी दी गयी सुविधा और जिस पर वो भविष्य मे सुधार भी कर रहे थे को लोग गाली दे रहे हैं लेकिन सिरिल संस्कार विहीन नहीं हैं इस लिये अपनी तकनीक के दरवाजे उन्होने आम ब्लॉगर के लिये बंद कर दिये पर पलट कर जवाब नहीं दिया किसी को भी किसी भी शिकायती पोस्ट पर ।
ब्लोगवाणी का इस तरह जाना मन को व्यथित कर गया पर क्युकी ब्लोगवाणी के समपर्क पेज पर दी हुई मेल disable की जा चुकी थी सो मुझे कई दिन से लग रहा था की शायद अबकी बार ब्लोगवाणी के संचालको ने तकनीक को बंद कर दिया हैं
ब्लोगवाणी दुबारा आये ना आये लेकिन मैथिली जी और सिरिल के लिये हमारे मन मे जो आदर हैं वो कभी ख़तम नहीं होगा ।
एक साथ छूटा हैं पर जिन्दगी रही तो फिर मिलेगे इसी दुआ के साथ शुक्रिया मैथिली जी एंड सिरिल