जन्माष्टमी पर
मंदिरों के अन्दर लम्बी लाइने
बाल गोपाल को झुला झुलाने के लिए
मन्दिर के बाहर लम्बी लाइने
मेले कुचले कपड़ो मे
प्रसाद मांगते बाल गोपाल
जन्माष्टमी पर
मन्दिर के अन्दर
कृष्ण के साथ परस्त्री को पूजती सुहागिने
मन्दिर के बाहर हाथ मे हाथ डाल कर घुमते
नौजवान अविवाहित जोडे पर टंच कसती सुहागिने
१५ अगस्त पर
आज़ादी के जश्न को मानते परिवार
नौकरानी के देर से आने पर आहत
बड़ी अजनबी लगती हैं ये दुनिया
अति सुन्दर...
ReplyDeleteविरोधाभासों की मारक अभिव्यक्ति करती एक सशक्त रचना। प्रभावित करने का सामर्थ्य रखती है।
ReplyDeleteशुक्रिया।
rachnaji
ReplyDeletehmare man ke bhavo ko bhi abhivykti de di hai kuchh aisa hi lga ye rachna padhkar.
बहुत अच्छी रचना..पर अब तो मंदिर भी आंतक के साए में है!कुछ समय पहले तक यही सब मॉहोल था पर अब ...नजर लग गयी है किसी की...
ReplyDeleteशानदार पोस्ट है...
ReplyDelete@-बड़ी अजनबी लगती हैं ये दुनिया
ReplyDeleteSahi farmaya !
Fir bhi na jane kyun , jiye ja rahe hain hum log..
Divya