हिन्दी ब्लॉग्गिंग के
बडे बडे पेडो के नीचे
पनप सकते हैं
बस कुकुकुरमुत्ते
जिनका जीवन काल
होता हैं कुछ पलो का
और फिर वो मर जाते हैं
वही उसी पेड के नीचे
खाद बन कर सड जाते हैं
और बड़ा पेड मुस्कुराता हैं
कि देखो हंसते हंसते
एक और को मै खा गया
यहाँ साहित्यकार बनने आया था
मैने ब्लॉगर भी ना रहने दिया
सच बोलना जितना मुश्किल है , सच को स्वीकारना उस से भी ज्यादा मुश्किल है . लेकिन सच ही शाश्वत है और रहेगा मुझे अपने सच पर उतना ही अभिमान है जितना किसी को अपने झूठ से होने वाले फायदे पर होता हैं
मेरे ब्लॉग के किसी भी लेख को कहीं भी इस्तमाल करने से पहले मुझ से पूछना जरुरी हैं
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बढ़िया...गहरा एवं सटीक व्यंग्य...तालियाँ
ReplyDeleteइस मायावी हिंदी ब्लॉग जगत की कडवी हकीकत ...
ReplyDeleteआश्चर्य आप ऐसा भी लिख सकती हैं ...!!
ReplyDeleteआपने कितने खाये ?
मैं तो अघा कर हज़ करने चला,
तब तक आप वर्तनी ठीक कर लें ।
जो कहा जाए वही सच हैं = जो कहा जाए वही सच है !
कौन नयी बात है यही तो परिपाटी है ...जो बचेगा वही रहेगा !
ReplyDeletekhatarnaak...
ReplyDeletekunwar ji,
इन कुकुरमुत्तों में कोई बीज पीपल का भी हो सकता है जो अपनी जड़ें गहराई से जमा ले....हर किसी को अपनी लड़ाई अपने आप लड़नी पड़ती है...
ReplyDeleteसार्थक रचना कही है आपने...
सार्थक पोस्ट है...
ReplyDeletebilkul sahi baat ..lekin yah beej ki saflta hogi ..agar wo apni jijiviha ko barkarar rakhte hue..safalta paye
ReplyDeleteसच कहा! बिल्कुल यही है हिन्दी ब्लागजगत की हकीकत.....
ReplyDelete.
ReplyDelete.
.
दो बातें कहना चाहू्ंगा...
१- कुकुरमुत्ता कुकुरमुत्ता ही रहेगा, उगे चाहे पेड़ के नीचे या खुले मैदानों में...
२- कुकुरमुत्ते बड़े पेड़ों के नीचे इसलिये उगते हैं क्योंकि उनमें सामर्थ्य नहीं होती अपनी जड़ जमाने की... वह तो अपनी खुराक तक पेड़ की जड़ों से ही लेते हैं।
अब आप बताइये... यह व्यंग्य-कविता किसको निशाना बना रही है... पेड़ों को या कुकुरमुत्तों को ?