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सच बोलना जितना मुश्किल है , सच को स्वीकारना उस से भी ज्यादा मुश्किल है . लेकिन सच ही शाश्वत है और रहेगा मुझे अपने सच पर उतना ही अभिमान है जितना किसी को अपने झूठ से होने वाले फायदे पर होता हैं
हिन्दी ब्लोगिंग पहुंची कहां तक
पता नहीं अभी तो बस महान ब्लॉगर
स्पेल्लिंग सम्भालने मे लगे हैं
कभी हिन्दी की तो कभी इंग्लिश की
जब स्पेल्लिंग सब की सही कर लेगे
तब ब्लॉगइंग करेगे
तब तक समय आगे चला जायेगा
और हिन्दी के महान ब्लॉगर
फेमस ब्लॉगर
हिन्दी ब्लोगिंग के खंडहर बन कर
जीण शीण हो कर झर रहे होगे
I like to be dependent, and so for ever
on my kith and kin, for they all shower
harsh and warm advices, complaints
full wondering ,true and info giants.
I like to be dependent, and so for ever
for my friends, chat and want me near
with domestic,family and romantic tips
colleagues as well , guide me work at risks.
I like to be dependent, and so for ever
for my neighbours too, envy at times
when at my rise of fortune like to hear
my daily steps , easy and odd things too.
सही है जी ।
जी, आप बात तो ठीक कह रहीं हैं रचना जी.
-लाख नौटंकी हो जाये हमारे साथ, मगर आपको हम रचना तो न कह पायेंगे, क्षमाप्रार्थी हैं जी.
बढ़िया कहाँ (जी) आपने
वीनस केसरी
bahut khoob leejie pangaa tankee yaad hai n
naav, bhee yaad hogee, kuchh yaad naheen to bhee jai ram jee kee
aakhir peeth khujaanaa bhee to aapasee mitrataa kee zaroorat hai
fir aap vahee bat khair chhodiye aanand magn honaa zarooree hai
taareef hee to ho rahee hai
aadar hee to diyaa jaa rahaa hai bhai etaraaz kyoon ....?
रचनाजी, आपने बहुत सही कहा जी. पर क्या करें हमारे पास जी का थोक स्टाक है तो इब आपको रचना नही कह सकते रचनाजी.:)
रामराम.
मुझे तो बहुत अच्छा लगता हैं जब नीरज रोहिला रचना कहते हैं या ममता रचना कहती है । एक समभाव महसूस होता हैं एक ऐसी जगह जहाँ हम सब बराबर हैं कोई सीमा नहीं हैं । इन्टरनेट की यही खासियत हैं की सीमाए तोड़ कर बात होती हैं ।
और अगर समीर और पीसी भी मुझे रचना कहे और आदित्य और कुश भी रचना कहे तो कितना अच्छा महसूस होगा कह नहीं सकती ।
आग्रह हैं की मुझे रचना ही कहे , ना बड़ा ना छोटा ।
bahut sahi baat kahi aapne
सही कह रही हो रचना.. :)
ठीक है, फिर जैसा तुम चाहो, रचना.
ठीक है, फिर जैसा तुम चाहो, रचना.
हम तो आपको पिछली पोस्ट से ही रचना कह कर संबोधित कर रहे हैं जी :-)
ठीक है रचना. हमारे यहां तो वैसे भी जी और आप जैसे संबोधन नही होते. हरयाणवी तो अपने बाप को भी जी और आप नही कहता.
ये तथाकथित सभ्य समाज मे रहने का बोध बना रहे इसके लिये ढकोसला है. तो आज तुम्हारे साथ यह ढकोसला तोड देते हैं.
पी.सी.
हां एक बात और...पर कभी कभी मजाक करने के लिये तो रचनाजी कहना ही पडेगा ना रचनाजी.:)
रामराम