आज सुबह ये ख़बर पढ़ कर लगा की हम कितने पिछडे हुए हैं । आज भी दलित बच्चों को खाना अलग बर्तनों मे दिया जाता हैं । आज भी उनको अलग बिठा कर खिलाया जाता हैं । और वो भी स्कूल मे जहाँ शिक्षा मिलनी चाहिये बराबरी की और समानता की ।
आप भी पढिये इस ख़बर को
दलित बच्चे
सच बोलना जितना मुश्किल है , सच को स्वीकारना उस से भी ज्यादा मुश्किल है . लेकिन सच ही शाश्वत है और रहेगा मुझे अपने सच पर उतना ही अभिमान है जितना किसी को अपने झूठ से होने वाले फायदे पर होता हैं
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यह जीवन की सच्चाई है। कभी जनजातीय क्षेत्रों में जाइए तब पता लगेगा कि हमारा समाज कितना संवेदनशील है?
ReplyDeleteसाक्षर भर हो जाने से भीतर का अँधेरा मिट जाता तो ऐसा न होता. हमारी शिक्षा पद्यति आज भी केवल साक्षर ही उत्पन्न कर रही है.
ReplyDeleteइस सदी में भी ऐसी मानसिकता वाले शिक्षकों के बारे में और ऐसी घटना के लिए क्या कहा जा सकता है ?
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