हिन्दी ब्लोगिंग के "जी "कल्ट पर कल लिखी पोस्ट पर जो टिप्पणी आई वो सब पढ़ कर आज सुबह जब ये पढ़ा " ब्लॉगजगत में आकर मात्र यही एक घाटा लगा है कि हम अपना युवत्व असमय खोते नजर आ रहे हैं. तो लगा की शायद मैने नब्ज पर सही जगह हाथ रखा । भारतीये संस्कृति को ब्लॉग पर ला कर और जी जी से सबको संबोधित कर के हम दुसरो को बूढा बुढ़िया और अपने को सदा छोटा बनाए रखना चाहते हैं । बहुत बार कई ब्लॉगर से बात की तो पता चला की वो दादी , नानी नाना , बाबा हैं पर केवल और केवल ४८-५५ वर्ष के बीच मे हैं । उन के सम आयु के लोग जब उनको जी कहते हैं तो उन्हे बड़ा अटपटा महसूस होता पर वो कह नहीं पाते क्युकी भारतीये संस्कृति का सवाल होता हैं लेकिन ब्लोगिंग मे वो इसके अटपटे पन को महसूस करते हैं ।
चलो जी चलते हैं जी आज के लिये बस इतना ही जी गर्मी बहुत हैं जी बत्ती आती नहीं है जी
सो कल मिलते हैं कमेन्ट देते रहना जी
और हद्द तो तब होती हैं जी जब हम
आंटी जी और अंकल जी कहते हैं दो इंग्लिश के शब्दों का शुद्ध भारतीये करण जी या फिर सर जी और मैडम जी
कभी ब्लॉग मे सोनिया गाँधी जी , अमिताभ बच्चन जी , आमिर खान जी लिखा या बोला जाता है { कोई कहीं ना कही से साक्ष्य ले ही आयेगा , आई ऍम श्योर जी } ।
सच बोलना जितना मुश्किल है , सच को स्वीकारना उस से भी ज्यादा मुश्किल है . लेकिन सच ही शाश्वत है और रहेगा मुझे अपने सच पर उतना ही अभिमान है जितना किसी को अपने झूठ से होने वाले फायदे पर होता हैं
मेरे ब्लॉग के किसी भी लेख को कहीं भी इस्तमाल करने से पहले मुझ से पूछना जरुरी हैं
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सही है जी ।
ReplyDeleteजी, आप बात तो ठीक कह रहीं हैं रचना जी.
ReplyDelete-लाख नौटंकी हो जाये हमारे साथ, मगर आपको हम रचना तो न कह पायेंगे, क्षमाप्रार्थी हैं जी.
बढ़िया कहाँ (जी) आपने
ReplyDeleteवीनस केसरी
bahut khoob leejie pangaa tankee yaad hai n
ReplyDeletenaav, bhee yaad hogee, kuchh yaad naheen to bhee jai ram jee kee
aakhir peeth khujaanaa bhee to aapasee mitrataa kee zaroorat hai
fir aap vahee bat khair chhodiye aanand magn honaa zarooree hai
taareef hee to ho rahee hai
aadar hee to diyaa jaa rahaa hai bhai etaraaz kyoon ....?
रचनाजी, आपने बहुत सही कहा जी. पर क्या करें हमारे पास जी का थोक स्टाक है तो इब आपको रचना नही कह सकते रचनाजी.:)
ReplyDeleteरामराम.
मुझे तो बहुत अच्छा लगता हैं जब नीरज रोहिला रचना कहते हैं या ममता रचना कहती है । एक समभाव महसूस होता हैं एक ऐसी जगह जहाँ हम सब बराबर हैं कोई सीमा नहीं हैं । इन्टरनेट की यही खासियत हैं की सीमाए तोड़ कर बात होती हैं ।
ReplyDeleteऔर अगर समीर और पीसी भी मुझे रचना कहे और आदित्य और कुश भी रचना कहे तो कितना अच्छा महसूस होगा कह नहीं सकती ।
आग्रह हैं की मुझे रचना ही कहे , ना बड़ा ना छोटा ।
bahut sahi baat kahi aapne
ReplyDeleteसही कह रही हो रचना.. :)
ReplyDeleteठीक है, फिर जैसा तुम चाहो, रचना.
ReplyDeleteठीक है, फिर जैसा तुम चाहो, रचना.
ReplyDeleteहम तो आपको पिछली पोस्ट से ही रचना कह कर संबोधित कर रहे हैं जी :-)
ReplyDeleteठीक है रचना. हमारे यहां तो वैसे भी जी और आप जैसे संबोधन नही होते. हरयाणवी तो अपने बाप को भी जी और आप नही कहता.
ReplyDeleteये तथाकथित सभ्य समाज मे रहने का बोध बना रहे इसके लिये ढकोसला है. तो आज तुम्हारे साथ यह ढकोसला तोड देते हैं.
पी.सी.
हां एक बात और...पर कभी कभी मजाक करने के लिये तो रचनाजी कहना ही पडेगा ना रचनाजी.:)
रामराम