मेरे ब्लॉग के किसी भी लेख को कहीं भी इस्तमाल करने से पहले मुझ से पूछना जरुरी हैं

मेरे ब्लॉग के किसी भी लेख को कहीं भी इस्तमाल करने से पहले मुझ से पूछना जरुरी हैं

May 17, 2009

एक परिवार हैं हिन्दी ब्लोगिंग सही हैं पर हम सब कर क्या रहे हैं ??

ब्लोगिंग क्या है और क्या हिन्दी मे सच मे ब्लोगिंग होती हैं पर बहुत सी पाठक प्रतिक्रिया मिली हैं आप यहाँ देख सकते हैं ।

ब्लोगिंग यानी वेबलॉग यानी एक डायरी नुमा लेखन जिसमे आप जो चाहे दर्ज कर सकते हैं । अब जो चाहे का अर्थ कुछ भी हो सकता हैं । लेकिन ऐसा नहीं हैं ।
ब्लोगिंग मेरे ख्याल से विषय आधारित होती हैं और जहाँ विषय आधारित होती हैं वहाँ बहुत पढी भी जाती हैं ।
ब्लोगिंग इंग्लिश से शुरू हुई होगी क्युकी कंप्यूटर इंग्लिश मे ही था शुरू मे । धीरे धीरे भाषा की सीमाये टूटी और हिन्दी मे भी ब्लॉग बने लेकिन श्याद एक भी हिन्दी का ब्लॉग ऐसा नहीं हैं जिसकी चर्चा पुरी विश्व मे ना सही पूरे हिंदुस्तान मे हो । किसी भी हिन्दी ब्लॉग पर हिन्दी से इतर कुछ नहीं लिखा जाता और इसीलिये हिन्दी का जो पाठक वर्ग हैं वो सिमित हैं । हिन्दी ब्लॉग अग्रीगेटर की सहायता के बिना पड़ने मे नहीं आ पाते हैं ।

इंग्लिश का एक बहुचर्चित अखबार हैं जिसने अपनी वेबसाइट पर ब्लॉग लेखन का भी कोलौमं बनाया हैं । वहाँ बहित से ब्लॉगर इंग्लिश मे ब्लॉग लिखते हैं और उनके विषय समस्या आधरित होते जो देश मे व्याप्त हैं । वो ब्लॉगर अपने ब्लॉग मे उन समस्याओं पर अपना नजरिया देते हैं और फिर उनके यहाँ जो लोग कमेन्ट करते हैं वो अपना नजरिया देते हैं ।
प्रति टिप्पणी बहुत कम होती हैं क्युकी बात अलग अलग नज़रिये की होती हैं ना की बहस की ।

हिन्दी मे आज भी ब्लोगिंग का मतलब हिन्दी हैं और इससे आगे कुछ नहीं । हिन्दी कैसे लिखे , सही हिन्दी कैसे लिखे । हिन्दी के साहित्यकारों को पढे ।

क्या हिन्दी ब्लोगिंग का लक्ष्य यही हैं ??
हिन्दी ब्लोगिंग की चर्चा अगर मीडिया मे होती हैं तो उन्ही अखबारों मे होती हैं जहाँ ब्लॉगर के मित्र काम करते हैं ।

हिन्दी ब्लॉगर एक दूसरे की तारीफ़ , चापलूसी और खिचाई से ऊपर नहीं उठ पा रहे हैं । विषय भी वही हैं जो सिमित मानसिकता को दर्शाते हैं । एक परिवार हैं हिन्दी ब्लोगिंग सही हैं पर हम सब कर क्या रहे हैं ??

इस पोस्ट के कमेंट्स को चर्चा पर भी देखा जा सकता हैं

31 comments:

  1. जब हम आलोचक बन एक उंगली किसी व्यक्ति /व्यवस्था की और उठाते हैं तो यह भी देखना चाहिए कि खुद की ओर शेष चार उंगलियाँ इशारा करती हैं -आप ने मनमाफिक नारी विमर्श के अलावा खुद कितने विषयों की चर्चा की है जरा इसे भी देखिये ! आप अपना देखें ,हिन्दी ब्लागजगत पूरी सम्पूर्णता और विविधता के साथ उभर रहा है आप इसकी चिंता में और दुबली मत होईये !

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  2. मैं भी अरविन्द जी से सहमत हूँ ..ठीक है की हिंदी ब्लॉग जगत अपनी प्राम्भिक अवस्था में है..!लेकिन फिर भी बहुत अच्छा सार्थक विषयों पर लिखा जा रहा है?और ये भी जान ले की अंग्रेजी अख़बार पढने वालों की बनिश्पत हिंदी का पाठक जगत भी विशाल है..

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  3. अभी दो वर्ष पूर्व तक तो हिन्‍दी ब्‍लागिंग के बारे में किसी को जानकारी भी नहीं थी .. जैसे जैसे जानकारी हुई .. बहुत तेजी से इतने लोग जुडें .. हम सभी ब्‍लागर खास खास क्षेत्र के विशेषज्ञों को इससे जोडने की कोशिश करें .. तो इसे विकसित होने में देर नहीं लगेगी ।

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  4. अरविन्द जी आप मे और मुझमे वही फरक हैं जो एक पढे लिखे जाहिल और एक पढे लिखे संभ्रांत व्यक्ति मे होता हैं आप एक पढे लिखे जाहिल हैं तभी इस भाषा का प्रयोग कर है "आप इसकी चिंता में और दुबली मत होईये !"
    मैने अपनी पोस्ट मे किसी की तरफ़ भी ऊँगली नहीं उठाई हैं मे केवल हिन्दी ब्लोगिंग समझने की कोशिश कर रही हूँ ।
    रही बात नारी ब्लॉग की सो वो एक चांटा हैं हिन्दी के उन ब्लोग्गेर्स पर जो निरंतर केवल और केवल नारी को भोग की वस्तु बना कर उसको क्या करना चाहिये बताते रहे हैं ।
    कभी पुरानी प्रविष्टियाँ पढे २००७ की सारथि ब्लॉग , मसिजीवी ब्लॉग और काकेश के ब्लॉग पर आप को ख़ुद अंदाजा हो जाएगा की तकनीक से ले कर ब्लॉग चोरी तक और हिन्दी इंग्लिश की भाषा गत विषयों पर काफ़ी बार मैने अपना मत रखा हैं । जो बताए तकनीक को लेकर और भाषा को ले कर मैने कही थी वो आज सब कह रहे हैं ।
    पढ़ ले आप भी तो कुछ भ्रांतियां जो आपने नुजेह ले कर पाल ली हैं दूर हो जायेगी ,

    मै किसी की चाटुकारिता करके अपने ब्लॉग की टी आर पी नहीं बढाती और ना ही महिला के अंगो का description दे साइंस के बहाने प्रोनो लिखती हूँ ।
    और ना ही मै दुसरो को हिन्दी बोलने को कह कर अपने टाइम पर इंग्लिश मै प्रेजेंटेशन देती हूँ
    इस पोस्ट पर भी मे अपने विचार रख रही हूँ पर नहीं आप को विचार पर बात नहीं करनी हैं आप को पर्सनल लेवल पर ही उतारने मे मज़ा आता हैं । आप बात कर सकते हैं कुछ विषयों मे जैसे आप ने डॉ अमर की पिछली पोस्ट मे अपने कमेन्ट मे किया ।
    menopause

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  5. बाकी लोगो से विनर्म आग्रह हैं की डॉ अरविन्द और मेरे संवाद से ऊपर उठ कर मूल विषय पर बात करे ताकि पता लगे की हिन्दी ब्लोगिंग मै क्या नहीं हैं

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  6. किन फिर भी बहुत अच्छा सार्थक विषयों पर लिखा जा रहा है?और ये भी जान ले की अंग्रेजी अख़बार पढने वालों की बनिश्पत हिंदी का पाठक जगत भी विशाल है..
    ranjish parihar ji

    हिन्दी ब्लोग्स को कहीं भी quote नहीं किया जाता हैं । अभी इलेक्शन मै तमाम पार्टियों ने भारत के इंग्लिश ब्लॉगर को मेल दे दे कर अपनी बात कही और अपनी बात आगे ले जाने की बात की , हिन्दी मै ऐसा क्यूँ नहीं हुआ ??सार्थक विषय क्या हैं ??

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  7. आपने विषय सही उठाया है, और इसका उत्तर भी इसी में निहित है कि "हिन्दी ब्लॉग की पाठक संख्या अभी बहुत सीमित है…" जब तक पाठक संख्या नहीं बढ़ेगी, न ही कोई "भाव" देगा, न ही विषयों में पर्याप्त विविधता आयेगी। यदि अमिताभ, आमिर खान, मनोज वाजपेयी जैसे लोग ब्लॉग नहीं लिखते तो आम लोगों को पता भी न चलता कि "ब्लॉग" क्या बला है… विस्तार हो रहा है लेकिन बहुत धीमी रफ़्तार से… हालांकि लिखने वाले भी बढ़े हैं, लेकिन उनमें निरन्तरता नहीं है… जोश-जोश में ब्लॉग शुरु तो कर देते हैं, लेकिन थोड़ा सा लिखकर बन्द कर देते हैं… बदलाव आयेगा, लेकिन समय लगेगा…

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  8. ये भी तो देखिये -

    हिन्दी में "सी" भाषा में प्रोग्रामिंग की चर्चा हो रही है।

    हिन्दी में स्वास्थ्य-विषयक समस्याओं पर चोपड़ा जी, टण्डन जी लिख रहे हैं;

    हिन्दी में विधि-विषयक चीजों पर दिनेशराय जी एवं अन्य लोग लिख रहे हैं;

    राजनीतिक विषयों पर तो हिन्दी में कुछ कमी ही नहींहै

    साहित्य पर उच्च कोटि के लेख आ रहे हैं (सलिल जी और अन्य)

    खेती-बाड़ी की चर्चा हो रही है

    अर्थनीति पर अफलातून जी लिखते रहते हैं।

    भारत की धरोहरों और दर्शनीय स्थानों के बारे में शृंखलाबद्ध लेख आ रहे हैं;

    पर्यटन पर मनीश एवं अन्य लोग लिख रहे हैं;

    कम्प्यूटर तकनीकी के विविध पहलुओं पर अनेक लोगों ने अच्छे लेख लिखें हैं;

    कम्प्यूटर पर हिन्दी भाषा के प्रयोग से सम्बन्धित चर्चा आज के समय की महती आवश्यकता है। रवि रतलामी एवं अन्य लोग इस दिशा में अच्छा कामकर रहे हैं;

    कई लोग हिन्दी में 'कार्टून' बना कर मनोरंजन कर रहे हैं;

    शास्त्री जी नैतिक विषयों पर बखूबी लिखते रहे हैं;

    कला से सम्बन्धित भी कई चिट्ठे हैं;

    खान-पान पर कई चिट्ठे हैं;

    एक भाई ने प्रतियोगी परीक्षाओं से सम्बन्धित प्रश्नों पर खूब लिखा था;

    कई लोगों ने गणित के रोचक पहलुओं पर लिखा;

    सामाजिक विषयों पर भी लेखकों की कमी नहीं है;

    हाँ बकवास भी कम नहीं है;


    और कितना गिनाऊँ, अभी तो ज्यादा याद नहीं आ रहा है।

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  9. " जब तक पाठक संख्या नहीं बढ़ेगी, न ही कोई "भाव" देगा, न ही विषयों में पर्याप्त विविधता आयेगी।

    iskae liyae kyaa aur karna hogaa ??? taaki vividhtaa kae saath hindi blogs ko importance bhi milae suresh ji

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  10. anunaad singh ji blogpar vividhtaa haen is mae raay nahin haen par kyun yae itnae poputlar nahin hotey jinae inglish kae blog

    kahin naa kahi kuchh kami to jarur haen

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  11. हिंदी ब्लॉग मेरी समझ के अनुसार शैशव अवस्था में है . अभी बहुत सारे लोगों को इसके बारे में जानकारी भी नहीं है . मेरे ख्याल से किसी अन्य भाषा से तुलना करने के बजाय एक नया धरातल बनाना होगा जो सबके सहयोग से ही सम्भव है। aभी तो हमें टाइप भी दूसरी लिपि में करना पड़ता है , लेकिन भला हो ब्लॉगर का जिसने ये सुविधा हमें उपलब्ध कराई ।

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  12. रचना जी,
    आपका यह कहना गलत है कि मीडिया में उन्हीं अखबारों में ब्लागों की चर्चा होती है जहां पर ब्लागरों के मित्र हैं। हम आपको बता दें कि हम दैनिक हरिभूमि रायपुर में काम करते हैं और हमारे ब्लाग की इस अखबार में मात्र एक बार चर्चा हुई है। हमारे जिस संपादकीय पेज में ब्लाग चर्चा होती है, वह पेज रोहतक से बनकर आता है और हमारे रोहतक के लोगों को यह भी नहीं मालूम है कि हम उन्हीं के अखबार के रायपुर संस्करण में काम करते हैं। हो सकता है किसी अखबार में ब्लागरों के मित्र हों और वहां ऐसा होता हो लेकिन इसका यह मतलब कताई नहीं है कि सारे अखबार ऐसे ही होते हैं। हमने भी आपके सामने एक उदाहरण रखा है। अब रही बात ब्लागिंग की तो हिन्दी ब्लाग की शुरुआत एक अच्छी पहल है। इसकी जिसको जितनी मदद हो सके करनी चाहिए। हिन्दी को बढ़ाने के लिए ही हमें एक बार हमारे एक मित्र जयप्रकाश मानस ने ब्लाग लिखने के लिए कहा था उन्होंने हमारा एक ब्लाग भी बनाया था, पर हम तब नहीं लिख पा रहे थे। लेकिन हमने उनकी बातों पर ध्यान दिया और ब्लाग लिखने का काम सिर्फ इसलिए प्रारंभ किया है ताकि अपनी राष्ट्र भाषा के लिए कुछ तो कर सकें। एक बात और हमारी हिन्दी ब्लाग बिरादरी को स्त्री-पुरुष के साथ हर तरह के सारे भेदभावों को पीछे छोड़कर हिन्दी को आगे बढ़ाने के लिए काम करना चाहिए। किसी की टांग खींचने के किसी का फायदा नहीं होता है। ऐसा करने वालों से किनारा करना ही बेहतर होता है क्योंकि ऐसे लोगों काम ही ऐसा करना होता है। हिन्दी ब्लाग बिरादरी में हर किसी को एक-दूसरे की मदद का भाव लेकर ही चलना चाहिए।

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  13. मैंने तो आपके दुबली न होने की टिप्पणी स्नेह से की थीं पर आप तो अपनी असलियत पर उतर आयीं -अपने किसी भी ब्लॉगर साथी को जाहिल कहना किस मानसिकता का परिचायक है -आप से तो संवाद ही कोई शिष्ट व्यक्ति क्यों करना चाहेगा -अलविदा !

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  14. अलविदा कहने के लिये धन्यवाद डॉ अरविन्द और एक बात हमेशा ध्यान रखे , स्नेह कि वर्षा वहाँ करे जहाँ आपसी सम्बन्ध ऐसे जिसमे आप आप को अधिकार हो स्नेह कि वर्षा कर सकने का । जरुरी नहीं हैं कि है कोई आपके स्नेह कि वर्षा मे डूबना ही चाहे । संबंधो को जांच परख कर ही सम्बन्ध बनाये जाते हैं और मैने आप को ऐसा कोई व्यक्तिगत अधिकार नहीं दिया हैं कि आप माज़क मे भी मुझ पर स्नेह बरसाए । यही हैं एक जाहिल मानसिकता जो सामने वाले को बिना समझे सम्बन्ध बानाती हैं ताकि समय असमय अपने हिसाब से उस सम्बन्ध को दिखाया जा सके
    सादर रचना

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  15. हिन्दी को आगे बढ़ाने के लिए काम करना चाहिए।
    raaj kumar ji kyaa kewal hindi ko aagey badhnaa hi bloging haen ??

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  16. रचना जी,
    हमने यह नहीं कहा है कि हिन्दी को बढ़ाना ही ब्लागिंग है। लेकिन ब्लागिंग हिन्दी को बढ़ाने का एक माध्यम तो जरूर हो सकता है। वैसे ब्लागिंग को कौन किस रूप में लेता है यह तो ब्लाग लिखने वाले के ऊपर निर्भर करता है। हमको अगर लगता है कि हिन्दी को आगे बढ़ाने का काम ब्लाग से किया जा सकता है तो हम वह करेंगे। हो सकता है आपको कुछ और लगता हो, इसी तरह से हर किसी का नजरिया अलग-अलग होता है। ब्लागिंग अपनी अभिव्यक्ति को दूसरों तक पहुंचाने का एक सरल माध्यम है। अब यह माध्यम हिन्दी में भी उपलब्ध हो गया है तो हिन्दी भाषीय भी खुश हैं। अंग्रेजी हर किसी को न तो पढऩी आती है और न ही लिखनी। ऐसे में हिन्दी जानने वालों को एक-दूसरों के विचारों को जानने का मौका ब्लागिंग से मिल रहा है। इसी के साथ अपनी राष्ट्रभाषा का भी एक तरह से प्रचार-प्रसार हो रहा है। विदेशों में बैठे हिन्दी भाषीय भी ब्लागों के माध्यम से हिन्दी में यहां के बारे में जान रहे हैं। कुल मिलाकर हिन्दी का भी ब्लागों से भला हो रहा है तो इसमें बुरा क्या है।

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  17. कभी कभी भटक जाते है हम। हालांकि मै विवादो से दूर ही रहना चाहता हूं,वैसे भी दुनिया मे विवादो की क्या कोई कमी है।सवाल ये है कि हिंदी ब्लागिंग की तरक्की की रफ़्तार बढनी चाहिये और ब्लागरों के आपस के रिश्ते और मज़बूत होने चाहिये।थोड़ी बहुत खट्टी मीठी तक़रार चलती है मगर वो मन की कड़ुवाहट मे न बदले इस बात का हमे खास खयाल रखना चाहिये और अगर इतना ही कर लेते है तो भी हमारा परिवार फ़लता-फ़ुलता रहेगा।

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  18. मान लिया हिंदी ब्लोगिंग की शैशवावस्था है, लेकिन जवानी जल्द आने वाली है, जिस तेजी से हिंदी ब्लोगर बढ़ रहे हैं...

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  19. चूँकि हिन्दी ब्लागिंग से जुड़ा व्यक्ति स्वयं को साहित्यकार समझने लगता है और ये सभ्ज्ञी जानते हैं कि हिन्दी का साहित्यकार (वर्तमान तथाकथित) एक दूसरे की खिंचााई करने और आपस में गुटबंदी करने के अलावा कोई और काम करते भी नहीं।
    इसलिए आप परेशान न हों, हिन्दी की हालत यही है।

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  20. अभी तो ब्लोगिंग में वही सब कुछ हो रहा है जो आप ने पोस्ट में लिखा है और जो आप लोग कर रहे है
    (उदाहरण आपका अरविन्द जी से फालतू का विवाद (जी हाँ फालतू का) )

    रही बात अनुनाद जी की बात से भी सहमत हूँ
    पीछे मुड कर देखा जाये जो हमने काफी तरक्की के है कही पढ़ा था अगले साल तक हिंदी ब्लॉगर की संख्या १ लाख तक पहुचने के संभावना है शायद तब कुछ बड़े परिवर्तन देखने को मिले हिंदी ब्लोगिंग में
    अरविन्द जी टिप्पडी से आहत हूँ, आपके पलट वार से चकित
    आपका वीनस केसरी

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  21. हिन्दी ब्लॉगर एक दूसरे की तारीफ़, चापलूसी और खिचाई से ऊपर नहीं उठ पा रहे हैं।....
    चाटुकारिता भी अपने चरम पर है। तुम मुझे पंत कहो मैं तुम्हें निराला वाली स्थिति सवॆत्र व्याप्त है। गुटबंदी की कोई कमी नहीं है। विवाद पैदा करके टीआरपी बढ़ाने की जुगत में लगे ब्लागर जगह-जगह मिलते हैं।
    इन सबके बीच अनुनाद सिंह जी की बात भी सही है।
    हां, एक बात और कुछ लोग खुद को ब्लॉग की दुनिया के मठाधीश मानते हैं। कोई माने या न माने। शायद न चाहते हुए भी ऐसे लोग एक कोटरी बनाकर चल रहे हैं।
    परिवार जैसी बात तो बेकार ही है। ध्यान रहे कि ब्लॉग जगत में भी इसी दुनिया के लोग हैं। ...और इस दुनिया में किस बुराई की कमी है। ...अच्छाई भी कहीं न कहीं है ही।

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  22. इतने दिनों से ब्लागिंग कुरुक्षेत्र में हैं, पूछती हैं.. क्या कर रहे हैं ? आप अपनी जानो..

    हम तो भाई हिन्दी की घास छील रहे हैं,
    जिससे अँग्रेजी ब्लागिंग के गदहे ( Kush Exempted ! ) अपनी सेहत दुरुस्त रख सकें ।

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  23. डॉ० कुमारेन्द्र सिंह सेंगर आपकी बात सही हैं

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  24. पाथॆ जी आप की इस बात पर स्मित की रेखा आगई चाटुकारिता भी अपने चरम पर है। तुम मुझे पंत कहो मैं तुम्हें निराला वाली स्थिति सवॆत्र व्याप्त है। और गुटबंदी की कोई कमी नहीं है। भी सही हैं पर किया क्या जाए की विस्तार हो

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  25. डा. अमर कुमार आप की छीली हुई घास जिसने भी खायी हैं अमर हो गया । सादर रचना

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  26. Ham to Jahil me hi ulajh kar rah gaye is post me..
    kuchh apni tarah se bhi kisi ko jahil samajh baithe.. jo ham batan nahi chahte hain.. :)

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  27. हिंदी ब्लॉगिंग की हर गंभीर चर्चा का अंत जहाँ जा कर होता है, वहीं फिर हुआ...! बात क्या थी और मुद्दा क्या बन गया। गाँधी विमर्श हो, स्त्री विमर्श हो, सांप्रदायिकता की बात हो, देश के किसी बड़े मुद्दे की बात हो, चुनाव की बात हो ......और पता नही क्या क्या विशेषता है इस हिंदी ब्लोग की मगर एक ये विशेषता अवश्य है कि हम लिखने वाले, रोज शब्दो की जादूगरी करने वाले अपना सारा जादू इसमें निकाल देते हैं कि हम कितने बुरे शब्दों का प्रयोग कर सकते हैं।

    जिस मुद्दे पर चर्चा होनी थी वो मुद्दा पता नही कहाँ है ? अब मुद्दा क्या है कि हम कितना बुरा बोल सकते हैं एक दूसरे के लिये। हम ही हैं ना वो लोग जो नेताओं के संसद में एक दूसरे पर कुर्सी प्रहार को गलत ठहराते हैं। अरे हमारे हाथ में कलम है और दूर बैठे लोगो को चोट पहुँचाने का तरीका और हो भी क्या सकता है।

    विचार विमर्श और तू तू मै मै में कुछ तो अंतर होना चाहिये।

    अनुनाद ज के विचारो से सहमत हूँ, पोस्ट पर सहमति उन्होने भी नही जतायी लेकिन शब्दो का प्रयोग वैसा है जैसा एक लेखक का होना चाहिये।

    विवादो में पड़ना कभी नही चाहती मैं भी..मगर क्या करें विचार हैं, निकल ही आते हैं।

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  28. मेरी उस बेवकूफ़ाना टिप्पणी के लिये क्षमा चाहता हूँ रचना जी।
    ये फौजी बुद्धी कमबख्त घुटनों से ऊपर उठती ही नहीं...

    लेकिन इससे एक फायदा हुआ मेरा कि एक अद्‍भुत ब्लौग से परिचय हो गया मेरा।

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  29. हिंदी ब्लोगिंग कम क्यों है? क्योंकि यह आम बोलने वाली भाषा को अपना अभिव्यक्ति माध्यम बनाने में लगता है कि हम पिछड़े हुए हैं. विषय बहुत हैं और लिखने वाले भी बहुत हैं. हिंदी कि इतनी सारी पत्रिकाएं ऐसे ही नहीं चल रही हैं. हाँ यह जरूर है कि इस कंप्यूटर कि विधा से कौन कितना परिचित है. इसके दायरे को बढ़ने का काम कौन करेगा ? हम लोग ही करेंगे. न विषयों कि कमी है और न ही लिखने वालों की. हाँ कुछ प्रबुद्ध लोग इसको अनर्गल विवाद का विषय बना देते हैं. किसी का कोई एक शब्द पकड़ लिया और फिर दो चार नहीं कई लोग उस पर चर्चा करने लगते हैं और मूल विषय से भटक जाते हैं.
    हिंदी ब्लोगिंग बहुत अच्छी है और इस पर हमें गर्व होना चाहिए कि हम किसी से कम नहीं हैं. हम कंप्यूटर भाषाओँ को अब हिंदी में लाये या न लायें पर जो हमारे सामने है उसको तो हिंदी को समृद्ध बनाने में लगा दें.

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  30. रचना जी
    बाकी टिप्पणियों का तो पता नहीं पर मुझे तो लगता है की हिंदी ब्लोगिंग माना की बहुत अच्छी स्तिथि में नहीं है पर इसका मतलब ये भी है की इसमें सम्भावनाये सबसे अधिक है . अब हमारे पास अवसर है अब देखते हैं कि हम इसका कितना सदुपयोग कर सकते हैं .

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