चाह नहीं मै सुर बाला के गहनों मे गुथा जाऊं
चाह हैं बस इतनी साहित्यकार कहलाऊं
सोचा था मेरा लिखा ब्लॉग पर जब छप जाएगा
हर कूड़ा करकट जहां साहित्य कहलाएगा
मै भी नाम दर्ज कराउंगा
और साहित्यकार बन जाऊँगा
पर
साहित्यकार बस मै ही कहलाऊं
इतनी थी ब्लोगरिया इच्छा मेरी
सो
मेरे मामा साहित्यकार ब्लॉगर एक ने बताया
मेरे पिता साहित्यकार ब्लॉगर दो ने गिनवाया
मेरी माँ साहित्यकार ब्लॉगर तीन ने समझाया
क्या हैं साहित्य और कौन हैं साहित्यकार
पूछे जो वो ब्लॉगर हैं
क्युकी साहित्य तो हेरिदिटी मे
सिर्फ़ कुछ ब्लॉगर को मिला हैं
और बार बार उनका ही
लहू खोलता हैं
सो भईया हम तो ब्लॉगर भले
मुद्दे पे लिखे , विवादों मे घिरे
मन बीती कहे जग बीती सहे
पर अपने लिखे को कभी
साहित्य ना कहे
कालजयी होगा तो रह जायेगा
साहित्य तब ख़ुद बन जायेगा
वरना गूगल के साथ ही
विलोम हो जाएगा
साहित्य रचा नहीं जाता
साहित्य रच जाता हैं
रचियता ख़ुद अपनी रचना को
साहित्य साहित्य नहीं चिल्लाता हैं
सच बोलना जितना मुश्किल है , सच को स्वीकारना उस से भी ज्यादा मुश्किल है . लेकिन सच ही शाश्वत है और रहेगा मुझे अपने सच पर उतना ही अभिमान है जितना किसी को अपने झूठ से होने वाले फायदे पर होता हैं
मेरे ब्लॉग के किसी भी लेख को कहीं भी इस्तमाल करने से पहले मुझ से पूछना जरुरी हैं
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साहित्य रचा नहीं जाता
ReplyDeleteसाहित्य रच जाता हैं
रचियता ख़ुद अपनी रचना को
साहित्य साहित्य नहीं चिल्लाता हैं...
बहुत सही कहा.. खुद भी और दुसरे भी.. छड़ी लेकर नापने लगते है.. कुछ वक्त तो दो..
कालजयी होगा तो रह जायेगा
साहित्य तब ख़ुद बन जायेगा
वरना गूगल के साथ ही
विलोम हो जाएगा
खुब..
बहुत खूब रचना जी,
ReplyDeleteआपका जवाब नहीं !
Bahut Khoob kya likha hai aapne...
ReplyDeletebadhiya vyagyatmak rachana .badhai.
ReplyDeleteवाह साहित्य !!
ReplyDeleteसटीक!
ReplyDeleteलेकिन यहाँ तो चिल्ला कर जताना पड़ेगा....
ReplyDeleteye baat bilkul sahi hai,
ReplyDeleteसाहित्य रचा नहीं जाता
साहित्य रच जाता हैं
रचियता ख़ुद अपनी रचना को
साहित्य साहित्य नहीं चिल्लाता हैं...
achchha na lage , bhool jao aur jise achchha lage vah padh le , itana hi kaphi hai. Blogger abhivyakti ka eka manch hai aur sabki apani apani marji hai.