मेरे ब्लॉग के किसी भी लेख को कहीं भी इस्तमाल करने से पहले मुझ से पूछना जरुरी हैं

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July 21, 2009

चाह नहीं मै सुर बाला के गहनों मे गुथा जाऊं चाह हैं बस इतनी साहित्यकार कहलाऊं

चाह नहीं मै सुर बाला के गहनों मे गुथा जाऊं
चाह हैं बस इतनी साहित्यकार कहलाऊं



सोचा था मेरा लिखा ब्लॉग पर जब छप जाएगा
हर कूड़ा करकट जहां साहित्य कहलाएगा
मै भी नाम दर्ज कराउंगा
और साहित्यकार बन जाऊँगा

पर
साहित्यकार बस मै ही कहलाऊं
इतनी थी ब्लोगरिया इच्छा मेरी
सो
मेरे मामा साहित्यकार ब्लॉगर एक ने बताया
मेरे पिता साहित्यकार ब्लॉगर दो ने गिनवाया
मेरी माँ साहित्यकार ब्लॉगर तीन ने समझाया

क्या हैं साहित्य और कौन हैं साहित्यकार
पूछे जो वो ब्लॉगर हैं
क्युकी साहित्य तो हेरिदिटी मे
सिर्फ़ कुछ ब्लॉगर को मिला हैं
और बार बार उनका ही
लहू खोलता हैं

सो भईया हम तो ब्लॉगर भले
मुद्दे पे लिखे , विवादों मे घिरे
मन बीती कहे जग बीती सहे
पर अपने लिखे को कभी
साहित्य ना कहे

कालजयी होगा तो रह जायेगा
साहित्य तब ख़ुद बन जायेगा
वरना गूगल के साथ ही
विलोम हो जाएगा

साहित्य रचा नहीं जाता
साहित्य रच जाता हैं
रचियता ख़ुद अपनी रचना को
साहित्य साहित्य नहीं चिल्लाता हैं

8 comments:

  1. साहित्य रचा नहीं जाता
    साहित्य रच जाता हैं
    रचियता ख़ुद अपनी रचना को
    साहित्य साहित्य नहीं चिल्लाता हैं...

    बहुत सही कहा.. खुद भी और दुसरे भी.. छड़ी लेकर नापने लगते है.. कुछ वक्त तो दो..

    कालजयी होगा तो रह जायेगा
    साहित्य तब ख़ुद बन जायेगा
    वरना गूगल के साथ ही
    विलोम हो जाएगा

    खुब..

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  2. बहुत खूब रचना जी,


    आपका जवाब नहीं !

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  3. वाह साहित्य !!

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  4. लेकिन यहाँ तो चिल्ला कर जताना पड़ेगा....

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  5. ye baat bilkul sahi hai,

    साहित्य रचा नहीं जाता
    साहित्य रच जाता हैं
    रचियता ख़ुद अपनी रचना को
    साहित्य साहित्य नहीं चिल्लाता हैं...

    achchha na lage , bhool jao aur jise achchha lage vah padh le , itana hi kaphi hai. Blogger abhivyakti ka eka manch hai aur sabki apani apani marji hai.

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