मेरे ब्लॉग के किसी भी लेख को कहीं भी इस्तमाल करने से पहले मुझ से पूछना जरुरी हैं

मेरे ब्लॉग के किसी भी लेख को कहीं भी इस्तमाल करने से पहले मुझ से पूछना जरुरी हैं

June 30, 2011

मठाधीश के बाद मठ की जानकारी बिना किसी सक्रियता क्रम

मठ 1
जीतेंद्र , पंकज , देबाशीष , संजय , पंकज , अनूप
मठ 2
अनूप , समीर , शिव , ज्ञान ,
मठ 3
मसिजीवी , प्रत्यक्षा , प्रमोद , सुजाता , नीलिमा
मठ 4
विपुल , आलोक , शास्त्री , अनूप

मठ 5
समीर , मसिजीवी , मैथिली , साइरस
मठ 6
ताऊ {भरत } , समीर , राज
मठ 7
अमर , अनुराग , कुश ,
मठ 8
शास्त्री , अरविन्द ,
मठ 9
अनूप , अमर , कुश

मठ 10
सलीम , जाकिर ,
मठ 11
जाकिर , रविन्द्र , अरविन्द , महफूज
मठ 12
सतीश , अरविन्द , अमर , समीर , गिरिजेश , खुशदीप , महफूज
मठ 13
घुघूती , रचना , रेखा , अंशुमाला ,
मठ 14
अदा , वाणी ,रश्मि , मिथिलेश , महफूज , खुशदीप , अजीत , अरविन्द , बी अस , अलबेला , अजय , राज , समीर
मठ 15
अरविन्द , अलबेला , अजय , बी एस , राज , नरेश ,
मठ 16
अजय , बी एस , दिनेश
मठ 17
बी एस , रवि , अजय , ज्ञान , राजेश ,




मठाधीश के बाद मठ की जानकारी बिना किसी सक्रियता क्रम के गठ बंधन टिपण्णी के आदान प्रदान के चलते बनते बिगड़े हैं ना की विचारो के
दिस्क्लैमेर
its all based on writers observation
and names are not brand names they are merely how you want the world to address you
any resemblence with your name is mere coincidence and its also a coincidence that you and the name here blog

the post is merely a figment of imagination !!!!!!!!!!

June 29, 2011

हे नर , क्यों आज भी इतने कमजोर हो तुम

हे नर

क्यों आज भी इतने कमजोर हो तुम
कि नारी को हथियार बना कर
अपने आपसी द्वेषो को निपटाते हो

क्यों आज भी इतने निर्बल हो तुम
कि नारी शरीर कि
संरचना को बखाने बिना
साहित्यकार नहीं समझे जाते हो

तुम लिखो तो जागरूक हो तुम
वह लिखे तो बेशर्म औरत कहते हो

तुम सड़को को सार्वजनिक शौचालय
बनाओ तो जरुरत तुम्हारी है
वह फैशन वीक मे काम करे
तो नंगी नाच रही है

तुम्हारी तारीफ हो तो
तुम तारीफ के काबिल हो
उसकी तारीफ हो तो
वह "औरत" की तारीफ है

तुम करो तो बलात्कार भी "काम" है
वह वेश्या बने तो बदनाम है

हे नर
क्यों आज भी इतने कमजोर हो तुम

June 28, 2011

हमे तुम्हारा प्यार नहीं तुम्हारा कर्तव्य चाहिये


पुरानी पीढी बोली

नयी पीढी से

तुम क्या जानो

हमने क्या क्या किया हैं अपने

माता पिता के लिये

अब अगर करनी को कथनी का

साक्ष्य चाहिये

तो करनी और कथनी के अन्तर को

हर पुरानी पीढी

नयी पीढी को

समझाती ही रहेगी

श्रवण कुमारो की तादाद

पीढी दर पीढी

साक्ष्य के लिये

धूल भरे रास्तो पर

चलती रहेगी

बच्चे कभी जवान नहीं

सीधे बूढे ही बनेगे

और हर नयी पीढी के करमो को

पुरानी पीढी रोती रहेगी

हमने तुम्हे पैदा किया

तुम हमको ढोते रहो

क्युकी हमे तुम्हारा

प्यार नहीं तुम्हारा कर्तव्य चाहिये

June 27, 2011

मेरी पसंद के दो रुख

मेरे लिये मेरे से जो उम्र में कम हैं अगर उनको मेरी बात सही लगती हैं तो मुझे लगता हैं समाज सही दिशा में चल रहा हैं क्युकी आने वाला समाज नयी पीढ़ी से बनता हैं

इसके अलावा मुझे ये भी महसूस होता हैं की शायद में समय आगे हूँ इसीलिये आगे आने वाले समय के लोग मुझे बेहतर समझ पाते हैं

वैसे हर तस्वीर का एक दूसरा रुख भी होता हैं
यानी मेरा लेखन इतना अपरिपक्व हैं की मुझ से उम्र मै बड़े लोग उसको नकार देते हैं और
समकालीन पढने लायक समझते ही नहीं

June 26, 2011

मठाधीश बदलते रहे

२००६ - २००७
जीतेन्द्र , अनूप , शिव , ज्ञान , समीर , मसिजीवी , रवि , अविनाश , सुनीता, देबाशीष
२००७-२००८
अनूप , शिव , ज्ञान , समीर, मसिजीवी , रवि , शास्त्री , यशवंत , अविनाश , सुजाता , नीलिमा , सुनीता
२००८ -२००९
अनूप , समीर , ताऊ , बी एस , अजय , शास्त्री , अरविन्द , सतीश , अमर , कविता , सुजाता , रचना
२००९ -२०१०
ताऊ , समीर , बी एस , अजय , अरविन्द , सतीश , अमर , खुशदीप , अदा , सलीम, राज , अलबेला , रविन्द्र , अविनाश
२०१० - २०११
सतीश , दिव्या , अरविंद, रविन्द्र , अविनाश , रश्मि, अजीत


पाच साल बीत गये कुछ देखा हैं बस वही ये लेखा जोखा है

डिस्क्लेमर
नाम , ब्रांड नेम नहीं होता हैं । नाम ले कर आप यहाँ किसी को भी कुछ भी कह सकते हैं और बाद में उसको समझा सकते हैं नाम ब्रांड नेम नहीं होता हैं


और जैसे मठाधीश बदले हैं वैसे ही उनके पूजा करने वाले भी बदले हैं
आप का इसरार होगा तो अगली पोस्ट हर मठाधीश के पूजक की लिस्ट भी दी जा सकती हैं

June 24, 2011

५ साल होगये पता भी नहीं चला , मै यहाँ खुश होने आयी थी , खुश करने नहीं और मै उस मकसद में कामयाब हूँ ।

पत्नी घर द्वार से दुखी
ब्लॉग लिख कर खुश
फिर भी कहती है आभासी
दुनिया में हम
रीयल दुनिया से भाग कर नहीं आये हैं

पति , पत्नी से दुखी
कुछ समझती नहीं
सालो से एक घर में
रह कर भी
मानसिक रूप से अलग
ब्लॉग पर मर्मस्पर्शी कविता
लिखकर संबंधो में
मिठास भर रहे हैं और
फिर भी कहते हैं
हम आभासी दुनिया में
रीयल दुनिया से भाग कर नहीं आये

वृद्ध , खाली घर में परेशान
बेटा , बेटी विदेश में
नेट पर ब्लॉग परिवार में
इजाफा कर रहे हैं
अपना समय परिवार से दूर
व्यतीत कर रहे हैं पर
कहते हैं हम रीयल दुनिया से
आभासी दुनिया में नहीं आये

आज पढ़ा एक ब्लोगर
के भाई ने उससे नाता तोड़ रखा हैं
और वो ब्लोगर, बाकी सब ब्लोगर में अपना
भाई खोज रहा हैं
फिर भी कहता हैं हम
रीयल दुनिया से भाग कर
आभासी दुनिया में नहीं आये

किसी ब्लोगर का ब्लॉग भरा हैं
रोमांटिक कविता से
और वोमन सेल में
मुकदमा चल रहा हैं पति की
यातना के खिलाफ
फिर भी कहते हैं
रीयल लाइफ में खुश थे
आभासी दुनिया में
बस यूहीं हैं

किसी ब्लोगर की पत्नी ने
उनको नकार दिया था
क्युकी पत्नी का सौन्दर्यबोध
पति के शरीर को स्वीकार नहीं कर पाया
वही ब्लोगर नेट पर रोमांस करता पाया जाता हैं
फिर भी कहता हैं
रीयल लाइफ में सुखी हैं

मै एक एकल महिला
रात को कमेन्ट पुब्लिश नहीं करती
क्युकी रात सोने के लिये होती हैं

सुबह देखती हूँ हर विवाहित ब्लोगर
रात भर जग कर कमेन्ट देता हैं
और पुब्लिश ना होने का ताना भी

और फिर भी कहता हैं उसकी जिन्दगी
में सब सही था
वो रीयल दुनिया के रिश्तो से भाग कर आभासी दुनिया में नहीं आया


२००६ से हिंदी ब्लोगिंग में ५ साल पूरे होगये । बहुत से ब्लोगर को पढ़ा । जो पढ़ा ये कविता मात्र उसकी विवेचना हैं । आप अपने को इस में ना खोजे

५ साल होगये पता भी नहीं चला
मेरा समय अच्छा बीता मै खुश हूँ ।
मै यहाँ खुश होने आयी थी , खुश करने नहीं और मै उस मकसद में कामयाब हूँ ।

June 23, 2011

इस पोस्ट का किसी बंदरिया से कोई लेना देना नहीं हैं

कभी अगर आप ने किसी मदारी को बंदरिया को नचाते देखा होगा तो आप को महसूस होगा की अपने आस पास लगा मजमा देख कर बंदरिया ज्यादा ही उछल कूद मचाती हैं । जितनी भीड़ बढ़ती जाती हैं उतना जी बदरिया का नाचना बढ़ता जाता हैं ।
कभी कभी उसकी गुलाटीया देखने वाली होती हैं । कभी सर पर दुपट्टा लेकर वो एक बहू बन जाती हैं तो कभी हाथ में पर्स लटका कर एक फिल्म स्टार ।
बस मजेदार बात यही होती हैं वो भीड़ में ही खुश रहती है और मदारी की रस्सी से बंधी अपने करतब दिखाती रहती हैं ।
डोर हमेशा मदारी कर हाथ में रहती हैं और डुग डुगी भी ।
आज कल काजोल का नया विज्ञापन भी बंदरिया पर ही हैं

दिस्क्लैमेर
इस पोस्ट का किसी बंदरिया से कोई लेना देना नहीं हैं अगर किसी बंदरिया को बुरा लगा हो या उसके मदारी को बुरा लगे तो सूचित करे , पोस्ट हटा दी जायेगी ।

June 22, 2011

जानकारी चाहिये


इस बार डी यूँ के कई कॉलेज में कट ऑफ केट के बेसिस पर भी था


क्या
१२ कक्षा में जो इस साल हैं वो केट एग्जाम दे सकते हैं
अगर हां तो इस विषय मे आप के पास कोई जानकारी हो तो साझा करे

आभार होगा

June 20, 2011

मेरा कमेन्ट

चंचल को दुःख होता तो वो कब की इस सम्बन्ध को ख़तम कर चुकी होती , चंचल को दुःख होता नहीं हां उसको लगता हैं की वो दुखी हैं क्युकी बहुत से लोग दुखी दिखना चाहते हैं . ख़ास कर वो जो सुख रोग से पीड़ित होते हैं . सुख रोग यानी जब किसी के पास सब कुछ हैं और फिर भी वो दुखी हैं .
जो जैसा हैं उसको बिना बदले स्वीकार करना होता हैं अन्यथा अलग होना होता हैं . बदलना अपने को होता हैं जबकि लोग दूसरो को बदलना चाहते हैं
प्रश्न ये भी हैं की चंचल को क्यूँ लगता हैं की मिहिर में अहंकार हैं मुझे तो कहानी पढ़ कर लगा अंहकार मिहिर में नहीं हैं हां चंचल जरुर "attention seeker " हैं . बहुत सी महिला इस रोग से पीड़ित होती हैं जहां वो बार बार पुरुष मित्र बनाती हैं , उनके अहम् को पोषित करती हैं और फिर टेसुये बहा कर अपने को अच्छा , कोमल भावनाओं से ओत प्रोत और देवी स्वरुप दिखती हैं
--------
मित्र रचना ,

उपरोक्त कहानी में 'मित्र' शब्द एक व्यापक अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। इसे स्त्री-पुरुष मित्र से जोड़कर लिंग-विभेद का अनावश्यक जामा मत पहनाइए। यदि आपको लगता है की स्त्रियाँ टसुये बहाकर सहानुभूति चाहती हैं तो आपको स्त्रियों के खिलाफ इस विषय पर बिना लाग-लपेट के विमर्श करना चाहिए नारी ब्लॉग पर। अन्यथा नारी ब्लॉग पर तो सिर्फ पुरुषों के खिलाफ विष-वमन ही पढने को मिलता है।

यदि मैं अपने लेख में , पूनम जैसी स्त्री के खिलाफ लिखती हूँ , जो भारतीय खिलाड़ियों के लिए सरेआम निर्वस्त्र होना चाहती है , तो भी आप विवाद करती हैं और यदि मैं कहानी के पात्र में स्त्रियोचित शांत स्वभाव को अभिव्यक्त करना चाहती हूँ तो भी विषयांतर करके विवाद उपस्थित करना चाहती हैं।

कहानीकार कहानी में जिस भाव को उभारना चाहता है , उसे देखिये और जो प्रश्न उपस्थित किया है , उसका उत्तर दीजिये। आनावाश्यक विषयांतर क्यूँ ? यहाँ प्रश्न एक विशेष प्रकार की मानसिकता पर है जिसमें आपका लिंग विभेद करना अनुचित लग रहा है।

आप चाहें तो कहानी के पात्रों को उलट दीजिये और जवाब दीजिये की शांत मिहिर को चंचल क्यूँ सताती है ?

वैसे तो मिहिर एक कल्पित चरित्र है लेकिन यदि मैं मिहिर के स्थान पर -" मित्र " रचना को कहानी में रख कर देखूं तो आपकी टिप्पणी क्या होगी ? .....कहीं आप ये तो नहीं लिखेंगी की --- "स्त्रियाँ ही स्त्रियों की दुश्मन होती हैं "

आपसे निवेदन है कृपया कहानी को कहानी की तरह पढ़ें और पूछे गए प्रश्न पर ही अपने विचार रखें । आनावश्यक रंग देकर विषयांतर न करें । यही कहानीकार ने एक कहानी लिखी तो आप लेखिका की कहानी को उलटना क्यूँ चाहती हैं ।

वैसे आपकी टिप्पणी पढ़कर मेरे मन में एक विचार आया की... " मित्र "...रचना मेरे ब्लौग पर होने वाले विमर्शों पर कभी नहीं आती लेकिन कुछ एक लेखों पर अचानक आकर इतनी आक्रामक क्यूँ हो जाती है ?

खैर मुझे तो चंचल ही पसंद है , इसलिए मित्र मिहिर हो या मित्र रचना , चंचल की तरह क्षमा कर देना ही उचित है।

---------------
कहानी में दो पात्र हैं एक स्त्री हैं और एक पुरुष
दोनों की अपनी खूबियाँ हैं और अपनी कमियाँ
मुझ जिस पात्र में जो दिखा वो ही कहा
बात अगर लिंग भेद की हैं तो लिंग भेद स्त्री और पुरुष पात्रो में होगा ही
चंचल एक ऐसा पात्र हैं जो कमजोर कड़ी हैं इस कहानी की और क्युकी स्त्री हैं इस लिये स्त्रियोजित गुणों को ही दिखा रही हैं
रह गयी बात नारी ब्लॉग की तो आप निरंतर उसको पढ़ती हैं और अजीब लगता हैं जब आप कहती हैं की वहाँ पुरुषो के खिलाफ लिखा जाता हैं पर ये आप का नहीं बहुतो का नज़रिया हें जैसे मेरा आप की कहानी पर अपना नज़रिया हैं .

किस्से , कहानी और कविता में सबको हर पात्र अलग अलग दिखता हैं , जरुरी नहीं हैं जो लेखक ने लिखा हो वो ही दिखे . लेखक महज काल्पनिक पात्र का विवरण मात्र देता हैं और पाठक उन पात्रो में वो छवियाँ देखते हैं जो उनके आस पास होती हैं

आप के ब्लॉग पर कमेन्ट करने के लिये अगर कोई परमिशन लेनी होती हैं तो आप को ब्लॉग की सेट्टिंग उस हिसाब से करनी चाहिये ताकि मेरे जैसे गैर प्रबुद्ध पाठक कमेन्ट ना कर सके .
जब कमेन्ट का आप्शन और पढ़ने का आप्शन आप ने खोल रखा हैं तो क्या कमेन्ट में कौन लिखेगा ये तो आप कभी नहीं जान सकेगी
आप की कई पोस्ट पर कमेन्ट किया हैं ख़ास कर तकनीक आधारित पोस्ट पर क्युकी कमेन्ट उन्ही पोस्ट पर हो सकता हैं जो मेरी छोटी समझ में घुस सके

आगे से कमेन्ट नहीं करुगी आप को कष्ट हुआ इसके लिये अब कुछ नहीं किया जा सकता क्युकी तीर कमान से निकल चुका हैं और मै बिना गलती के क्षमा नहीं मांगती और ना गलती करने वालो को क्षमा करती हूँ
स्त्रियोचित गुणों से इश्वर ने नवाजा नहीं हैं और शायद इसलिये मिहिर जैसे पात्र भी नहीं दिये ईश्वर ने मेरी जिन्दगी में .
मित्रता का अर्थ होता हैं acceptence जो बहुतो में नहीं होती इस लिये उन्हे क्षमा करना और माँगना करना पड़ता है

कमेन्ट मोडरेशन ब्लॉग मालिक का अधिकार हैं

June 15, 2011

हमारी वाणी संचालक ध्यान दे और अपने नियम का पालन खुद भी करे

किसी भी ब्लॉग अग्रीगेटर अगर किसी भी माध्यम से इस प्रकार के चित्र आते हैं तो वो खेद की बात होती हैं ।
समाचार का लिंक अपने आप आता हैं तकनीक के सहारे ये सही हैं पर आप अपने नियम का पालन अगर खुद नहींकरेगे तो औरो से क्या करवायेगे
ये चित्र पूरे एक घंटे ठेक हमारी वाणी के होम पेज पर था

इस पोस्ट पर कमेन्ट बंद हैं लेकिन अपनी आपत्तियां हमारी वाणी पर दर्ज करवाए आप की हर आपत्ति कही नाकही कोई बदलाव लाती हैं

ये चित्र इस ब्लॉग से शीघ्र हटा दिया जाएगा

हमारी वाणी के निम्न अपडेट के बाद चित्र हटा दिया हैं

रचना जी,
आपकी शिकायत पर नोटिस लिया गया है, जल्दी ही उस पर कार्यवाही की जाएगी. आशा है इसी तरह आप भविष्य में मार्ग दर्शन करती रहेंगी.

संपर्क करने के लिए धन्यवाद!

June 13, 2011

समस्या भ्रष्टाचार होती तो निपटा सकते थे लेकिन समस्या हैं की हम भ्रष्टाचार विरोधी ना हो कर अब लोकतंत्र , संविधान और संसद विरोधी हो गए हैं

खुद को हम सब सुधारे सब सही होगा
समस्या जन आन्दोलन को चलाने की नहीं हैं

समस्या हैं मुखोटो से बाहर आने की ।
समस्या हैं परिवार वाद से बाहर आने की हैं .
समस्या लोकतंत्र को परिवाद से उबारने की हैं

समस्या भ्रष्टाचार होती तो निपटा सकते थे लेकिन समस्या हैं की हम भ्रष्टाचार विरोधी ना हो कर अब लोकतंत्र , संविधान और संसद विरोधी हो गए हैं
पता नहीं क्यूँ लगता हैं अगर बात निर्वाचन आयोग की सबसे पहले हो और वहाँ संसद में प्रवेश के कानूनों में कुछ बदलाव की बात हो तो शायाद नेता जो बनते हैं उन में कोई बदलाव हो .
कोई भी सरकार ना तो अच्छी होती हैं ना बुरी वो केवल हमे represent करती हैं .

हम चुनते हैं और अपनी तरफ से सब काबिल को ही चुनते हैं पर चुनना उपलब्ध विकल्पों से ही हो सकता हैं .
पोलिटिक्स मै सुधार लाना जरुरी हैं और वो तभी संभव हैं जब हम संविधान और संसद को मान देगे
कोई भी सरकार अगर हर कानून को लागू कर देगी और जोर से मनवाएगी तो यकीं मानिये emergency जैसी स्थिती होगी देश मे


कोई भी अगर भगवा वस्त्र पहन लेगा तो वो सही हो जायेगा
अगर सारे नेता भगवा पहन ले तो क्या ये जन आन्दोलन ख़तम हो सकता हैं
अगर सारे बड़े बड़े पैसे वाले व्यवसाई जैसे मुकेश अम्बानी इत्यादि भगवा वस्त्र पहन ले तो उन पर टंच कसना बंद हो जाएगा

ये "भगवा वस्त्र " क्या कोई टिकेट है की कटवा लो और अपने को "निष्पाप " सिद्ध कर लो
कम से कम जो लोग निरंतर हिन्दू होने में गर्व महसूस करते हैं उनको तो "भगवा वस्त्र " का मान रखना चाहिये .
भगवा रंग पहन कर जनता को बेवकूफ बनाने वाले भी कम नहीं हैं और हिन्दू होने का मतलब भगवा पाखण्ड का मान मंडन करना तो कभी नहीं हो सकता .

June 12, 2011

क्षमा

क्षमा कब मांगनी चाहिये
जब हमको लगता हैं की हम गलत हैं / थे
या
जब हमको लगता हैं इस से विवाद ख़तम होगा
या
महज इस लिये क्युकी कोई चाहता हैं की हम क्षमा मांगे


क्या क्षमा अपनी मानसिक स्थिति पर नियंत्रण के लिये होती हैं या क्षमा महज किसी सामाजिक परिस्थिति के नियंत्रण के लिये होती हैं



वैसे कहा तो जाता हैं

क्षमा शोभती उस भुजंग को जिसके पास गरल हो
उसको क्या जो विष रहीत विनीत सरल हो

June 09, 2011

क्या आप सर्टिफाइड लेखक बनना चाहते हैं

क्या आप सर्टिफाइड लेखक बनना चाहते हैं
तो इस लिंक पर जाए
समीर की पोस्ट आज पढ़ कर उनकी सुविधा का लिये ये लिंक खोजा
अब नेट हैं तो सब संभव हैं
सो सोचा बाँट दूँ
शायद आप को भी जरुरत हो

फिर आप को कोई ये ना कह सकेगा की आप को लिखना नहीं आता
बस इतना आग्रह हैं कृपा यहाँ बता जरुर दे जब सर्टिफाइड लेखक बन जाये

June 05, 2011

हर जगह, हर मुद्दे पर, इर्द गिर्द फैले कचरों पर सहमत होते रहना.. ब्लॉगजगत की तहज़ीब में शुमार है .

हर जगह, हर मुद्दे पर, इर्द गिर्द फैले कचरों पर सहमत होते रहना..
ब्लॉगजगत की तहज़ीब में शुमार है .
Link

इस बात से मै इतीफाक रखती हूँ

जो मुझे गलत लगता हैं उस पर अपनी असहमति दर्ज करवाती हूँ

ब्लॉग जगत में लोग बहस से परहेज करते हैं , तर्क जब नहीं दे पाते हैं तो व्यक्तिगत रूप से बदनाम करते हैं . हिंदी ब्लॉग जगत का या दंश झेल रही हूँ और क्युकी महात्मा गाँधी नहीं हूँ इस लिये जवाब देने में विश्वास रखती हूँ . अपनी तरफ से कभी भी कहीं भी किसी को अपशब्द नहीं कहती हूँ पर अपशब्द कोई कहे तो उसी भाषा में जवाब देती हूँ

ब्लॉग जगत आभासी दुनिया हैं किसी ब्लॉग पर कुछ मनपंसद हुआ तो कमेन्ट का कोई औचित्य नहीं बनता हैं जब तक उसमे कुछ और ना जोड़ा जा सके . हां अगर किसी पोस्ट में राय मांगी जाती हैं तो अवश्य निस्पक्ष राय देना मंशा होती हैं
असहमत होने पर टिपण्णी देती हूँ लेकिन अगर उस ब्लॉग मालिक को नहीं पसंद आये तो फिर चर्चा अपने ब्लॉग पर करने की कोशिश करती हूँ
विचारों का आदान प्रदान तभी हो सकता हैं जब ये दो तरफ़ा हो , हिंदी ब्लॉग जगत की ये रीति हैं की यहाँ कुछ लोगो को एक पायदान पर खडा कर दिया जाता हैं उनसे असहमत होने का अर्थ होता हैं की आप को " तमीज " नहीं हैं .
ब्लॉग मालिक को पूर्ण अधिकार हैं की वो अपने ब्लॉग पर क्या करे क्या ना करे , अगर समाज का नुक्सान होता हैं उनके ब्लॉग पर आयी सामग्री से तो उस से असहमत होना जरुरी हैं और हर संभव कोशिश कर के उसको हटवाना चाहिये .
कोई मुझ से सहमत हैं या असहमत हैं इससे फरक नहीं पड़ता हैं . क्युकी हर सहमति और असहमति का असर मेरी सोच पर नहीं पड़ता हैं . लेकिन जो मै सोचती हूँ अगर वो कुछ समय बाद ही सही लोगो को सही लगने लगता हैं ख़ास कर उनको जो असहमत थे तो बड़ा अच्छा लगता हैं .
एक example देती हूँ
शुरू में जब इंग्लिश में कमेन्ट देती थी तो लोग नाराज रहते थे , जब रोमन में देती थी तो भी लोग नाराज रहते थे , ब्लॉग को बाई लिंगुअल किया तब भी लोगो ने मखोल किया और आज वही लोग हमारी वाणी के पथ प्रदर्शको में हैं और हमारी वाणी पर इंग्लिश के ब्लॉग आराम से दिखाए जाते हैं .
कमेन्ट मोदेरेशन के खिलाफ डॉ अमर हमेशा रहते हैं लेकिन ये ब्लॉग मालिक का अधिकार हैं और जो इसके खिलाफ होते हैं वो कहीं ना कहीं किसी के अधिकार का हनन करते हैं . उनका असहमत होना ना होना कोई माने ही नहीं रखता हैं पर किसी के ब्लॉग पर बार बार ये कहना दूसरे को irritate करता हैं क्युकी अपने अधिकारों का हनन कौन पसंद करता हैं
ब्लॉग पर आप विचार रख सकते हैं , पर विचार में शून्यता मुझे भाति हैं क्युकी शून्य किसी भी संख्या में लगा दो उस संख्या में चार चाँद लग जाते हैं

मेरा कमेन्ट हैं ये यहाँ

June 04, 2011

पूरा देश जेल जा सकता हैं अगर हर कानून पूरी तरह लागू कर दिया जाये

अब वो समय दूर नहीं हैं जब सरकारी तंत्र कहेगा की आम आदमी पर सब कानून लागू कर दो .
और ये भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहीम . लोकपाल इत्यादि अपने आप बंद हो जायेगा
सोच कर देखिये आम आदमी यानी आप और मै रोज कितने कानून तोड़ते हैं
कितने लोग सड़क पार करते हैं ज़ेब्रा क्रोस्सिंग से
कितने लोग पानी की सुप्लाई से गाडी धोते हैं
कितने लोग किरायेदार रखते हैं पर हाउस टैक्स वालो को नहीं बताते
कितने लोग बिना बिल के समान खरीदते हैं
कितने लोग लोकर में कैश रखते हैं
कितने लोग १८ साल की उम्र से कम बच्चो को घर के काम के लिये रखते हैं
कितने लोग बच्चो के साथ यौनिक सम्बन्ध रखते हैं
कितने लोगो के पास कंप्यूटर पर ओरिजिनल सॉफ्टवेर हैं
कितने लोग पिक्चर और गाने डाउनलोड करते हैं बिना पैसा दिये
कितने लोग नेट कनेशन के लिये ड्राइव का लोक तोड़ते हैं
कितने लोग सड़क पर शराब पीते हैं
कितने लोग सड़क पर कूड़ा फेकते हैं
कितने लोग एक दूसरे को धक्का दे कर मेट्रो में चढते हैं
कितने लोग बिना टिकेट यात्रा करते हैं
ये जितनी रैलियाँ होती हैं क्या उनके लिये परमिशन ली जाती हैं
कितने लोग बारात लेकर सडको पर शोर माचा ते हैं क्या जानते हैं इसके लिये सरकारी परमिशन चाहिये
दस बजे के बात जगराते के नाम पर शोर मचाना कौन नहीं करता
ज़रा और लोग भी इस लिस्ट में कुछ जोड़े और फिर किसी को समर्थन दे
पूरा देश जेल जा सकता हैं अगर हर कानून पूरी तरह लागू कर दिया जाए




जब तक पकड़े ना जाओ तब तक ठीक
हम करे तो सही कोई और करे तो भ्रष्टाचार

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