चंचल को दुःख होता तो वो कब की इस सम्बन्ध को ख़तम कर चुकी होती , चंचल को दुःख होता नहीं हां उसको लगता हैं की वो दुखी हैं क्युकी बहुत से लोग दुखी दिखना चाहते हैं . ख़ास कर वो जो सुख रोग से पीड़ित होते हैं . सुख रोग यानी जब किसी के पास सब कुछ हैं और फिर भी वो दुखी हैं .
जो जैसा हैं उसको बिना बदले स्वीकार करना होता हैं अन्यथा अलग होना होता हैं . बदलना अपने को होता हैं जबकि लोग दूसरो को बदलना चाहते हैं
प्रश्न ये भी हैं की चंचल को क्यूँ लगता हैं की मिहिर में अहंकार हैं मुझे तो कहानी पढ़ कर लगा अंहकार मिहिर में नहीं हैं हां चंचल जरुर "attention seeker " हैं . बहुत सी महिला इस रोग से पीड़ित होती हैं जहां वो बार बार पुरुष मित्र बनाती हैं , उनके अहम् को पोषित करती हैं और फिर टेसुये बहा कर अपने को अच्छा , कोमल भावनाओं से ओत प्रोत और देवी स्वरुप दिखती हैं
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मित्र रचना ,
उपरोक्त कहानी में 'मित्र' शब्द एक व्यापक अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। इसे स्त्री-पुरुष मित्र से जोड़कर लिंग-विभेद का अनावश्यक जामा मत पहनाइए। यदि आपको लगता है की स्त्रियाँ टसुये बहाकर सहानुभूति चाहती हैं तो आपको स्त्रियों के खिलाफ इस विषय पर बिना लाग-लपेट के विमर्श करना चाहिए नारी ब्लॉग पर। अन्यथा नारी ब्लॉग पर तो सिर्फ पुरुषों के खिलाफ विष-वमन ही पढने को मिलता है।
यदि मैं अपने लेख में , पूनम जैसी स्त्री के खिलाफ लिखती हूँ , जो भारतीय खिलाड़ियों के लिए सरेआम निर्वस्त्र होना चाहती है , तो भी आप विवाद करती हैं और यदि मैं कहानी के पात्र में स्त्रियोचित शांत स्वभाव को अभिव्यक्त करना चाहती हूँ तो भी विषयांतर करके विवाद उपस्थित करना चाहती हैं।
कहानीकार कहानी में जिस भाव को उभारना चाहता है , उसे देखिये और जो प्रश्न उपस्थित किया है , उसका उत्तर दीजिये। आनावाश्यक विषयांतर क्यूँ ? यहाँ प्रश्न एक विशेष प्रकार की मानसिकता पर है जिसमें आपका लिंग विभेद करना अनुचित लग रहा है।
आप चाहें तो कहानी के पात्रों को उलट दीजिये और जवाब दीजिये की शांत मिहिर को चंचल क्यूँ सताती है ?
वैसे तो मिहिर एक कल्पित चरित्र है लेकिन यदि मैं मिहिर के स्थान पर -" मित्र " रचना को कहानी में रख कर देखूं तो आपकी टिप्पणी क्या होगी ? .....कहीं आप ये तो नहीं लिखेंगी की --- "स्त्रियाँ ही स्त्रियों की दुश्मन होती हैं "
आपसे निवेदन है कृपया कहानी को कहानी की तरह पढ़ें और पूछे गए प्रश्न पर ही अपने विचार रखें । आनावश्यक रंग देकर विषयांतर न करें । यही कहानीकार ने एक कहानी लिखी तो आप लेखिका की कहानी को उलटना क्यूँ चाहती हैं ।
वैसे आपकी टिप्पणी पढ़कर मेरे मन में एक विचार आया की... " मित्र "...रचना मेरे ब्लौग पर होने वाले विमर्शों पर कभी नहीं आती लेकिन कुछ एक लेखों पर अचानक आकर इतनी आक्रामक क्यूँ हो जाती है ?
खैर मुझे तो चंचल ही पसंद है , इसलिए मित्र मिहिर हो या मित्र रचना , चंचल की तरह क्षमा कर देना ही उचित है।
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कहानी में दो पात्र हैं एक स्त्री हैं और एक पुरुष
दोनों की अपनी खूबियाँ हैं और अपनी कमियाँ
मुझ जिस पात्र में जो दिखा वो ही कहा
बात अगर लिंग भेद की हैं तो लिंग भेद स्त्री और पुरुष पात्रो में होगा ही
चंचल एक ऐसा पात्र हैं जो कमजोर कड़ी हैं इस कहानी की और क्युकी स्त्री हैं इस लिये स्त्रियोजित गुणों को ही दिखा रही हैं
रह गयी बात नारी ब्लॉग की तो आप निरंतर उसको पढ़ती हैं और अजीब लगता हैं जब आप कहती हैं की वहाँ पुरुषो के खिलाफ लिखा जाता हैं पर ये आप का नहीं बहुतो का नज़रिया हें जैसे मेरा आप की कहानी पर अपना नज़रिया हैं .
किस्से , कहानी और कविता में सबको हर पात्र अलग अलग दिखता हैं , जरुरी नहीं हैं जो लेखक ने लिखा हो वो ही दिखे . लेखक महज काल्पनिक पात्र का विवरण मात्र देता हैं और पाठक उन पात्रो में वो छवियाँ देखते हैं जो उनके आस पास होती हैं
आप के ब्लॉग पर कमेन्ट करने के लिये अगर कोई परमिशन लेनी होती हैं तो आप को ब्लॉग की सेट्टिंग उस हिसाब से करनी चाहिये ताकि मेरे जैसे गैर प्रबुद्ध पाठक कमेन्ट ना कर सके .
जब कमेन्ट का आप्शन और पढ़ने का आप्शन आप ने खोल रखा हैं तो क्या कमेन्ट में कौन लिखेगा ये तो आप कभी नहीं जान सकेगी
आप की कई पोस्ट पर कमेन्ट किया हैं ख़ास कर तकनीक आधारित पोस्ट पर क्युकी कमेन्ट उन्ही पोस्ट पर हो सकता हैं जो मेरी छोटी समझ में घुस सके
आगे से कमेन्ट नहीं करुगी आप को कष्ट हुआ इसके लिये अब कुछ नहीं किया जा सकता क्युकी तीर कमान से निकल चुका हैं और मै बिना गलती के क्षमा नहीं मांगती और ना गलती करने वालो को क्षमा करती हूँ
स्त्रियोचित गुणों से इश्वर ने नवाजा नहीं हैं और शायद इसलिये मिहिर जैसे पात्र भी नहीं दिये ईश्वर ने मेरी जिन्दगी में .
मित्रता का अर्थ होता हैं acceptence जो बहुतो में नहीं होती इस लिये उन्हे क्षमा करना और माँगना करना पड़ता है
कमेन्ट मोडरेशन ब्लॉग मालिक का अधिकार हैं
सच बोलना जितना मुश्किल है , सच को स्वीकारना उस से भी ज्यादा मुश्किल है . लेकिन सच ही शाश्वत है और रहेगा मुझे अपने सच पर उतना ही अभिमान है जितना किसी को अपने झूठ से होने वाले फायदे पर होता हैं
मेरे ब्लॉग के किसी भी लेख को कहीं भी इस्तमाल करने से पहले मुझ से पूछना जरुरी हैं
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