छोटी छोटी नावो पर
ज्ञानी टिपण्णी जाल लिये बैठे हैं
ब्लोगिंग के ताल में
मछली से मगरमच्छ तक
हर नए जीव को
प्रोत्साहन के नाम पर
टिपण्णी का चूरा डाल
अपने अपने जाल में
फसाते हैं
उनको सारे नये पुराने अफसाने
फिर सुनाते हैं
किसी का जाल कभी
अगर फट जाता हैं
तो उसके फसाए
सब जीव जंतु बाहर आ जाते
कुछ फिर डूब जाते हैं क्युकी
दूसरे ज्ञानी उनको नहीं बचाते हैं
कुछ डूबते नहीं उतरा जाते हैं
और
टिपण्णी टिपण्णी खेलने लग जाते हैं
कुछ ना डूबते हैं ना उतराते हैं
बस उस ज्ञानी को ही काट खाते हैं
जिसके जाल में फसे थे
फिर एक ज्ञानी दूसरे ज्ञानी को
काटे का इलाज बताता हैं
और दूसरा ज्ञानी अपने जाल के
कांटे सही करने लग जाता हैं
लोग काटने वाले में
बुराई खोजते हैं
जबकि काँटा और चूरा
किसी और का था
दिस्क्लैमेर
ज्ञानी का उपयोग सरदार के लिये भी होता हैं पर यहाँ नहीं किया गया हैं । यहाँ ज्ञानी का अर्थ विद्या के धनी के लिये है
इस पोस्ट का किस ब्लॉगर से क़ोई लेना देना नहीं हैं अगर क़ोई अपने को पता हैं तो वो उसकी कल्पना हैं
सच बोलना जितना मुश्किल है , सच को स्वीकारना उस से भी ज्यादा मुश्किल है . लेकिन सच ही शाश्वत है और रहेगा मुझे अपने सच पर उतना ही अभिमान है जितना किसी को अपने झूठ से होने वाले फायदे पर होता हैं
मेरे ब्लॉग के किसी भी लेख को कहीं भी इस्तमाल करने से पहले मुझ से पूछना जरुरी हैं
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खेल टिप्पणी का है पर हम भी अपनी गोलपोस्ट पर खड़े हैं।
ReplyDeleteमजेदार हकीकत.:)
ReplyDeleteरामराम
ha ha ha ha :)))
ReplyDelete:-)
ReplyDeleteराप्चिक :-)
ReplyDelete:) :) :) :D :D
ReplyDeletewaaaaaaaaah rachna - bahut khoob ...
par kya sab hi aise hain ??? i dont think so ...
are ye to dukhad hai ...jo kaam protsaahan ke liye hona chahiye ...vahi...dil dukhta hai to kaise aavaaj karta hai ...dekhiye aapne kavita hi rach dali...
ReplyDeleteक्या कहने, बहुत सुंदर
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