लोकार्पण - पुस्तक का मतलब अपनी पुस्तक को लोक को अर्पण करना ये मतलब आज पहली बार ही पढ़ा हैं
लोकार्पण /विमोचन इत्यादि का मतलब सहज रूप से बात इतना होता हैं की नयी किताब बाजार में आगयी हैं और आज ओपचारिक रूप से उसका एलान हो रहा हैं .
लोकार्पण / विमोचन लेखक और प्रकाशक दोनों करते हैं / करवाते हैं और इसका मूल उदेश्य किताब को बेचना होता हैं .
लोकार्पण /विमोचन किसी जानी मानी हस्ती से करवाया जाता हैं जो किताब को बिकवाने में सहायक हो
आज कल लोग पैसा भी लेते हैं किसी किताब के लोकार्पण मे आने के लिये
लोकार्पण के बाद भी किताब मे लिखी हर पंक्ति हर शब्द पर लेखक का कॉपी राईट होता हैं अगर ये किताब में लिखा हो तो
जिस किताब में ऐसा नहीं लिखा होता मान कर चलना चाहिये की लेखक ने पाण्डुलिपि प्रकाशक को बेच दी हैं
लेखन का उदेश्य क्या हैं ये आलोचक नहीं बता सकता हैं , आलोचक महज ये बता सकता हैं की उसको किताब / लेख कितना पसंद आया . पाठक जरुर उदेश्य खोज लेता हैं क्युकी पाठक लिखे को बरतता हैं .
वर्तमान कभी ये निर्धारित नहीं कर सकता की नकारात्मक लेखन हैं क्युकी अगर वर्तमान ये निर्धारण कर सकता तो तुलसी को ब्राह्मण समाज की अवेहेलना ना झेलनी पड़ती . समकक्ष लोगो के अपने उदेश्य जुड़े होते हैं किसी को सकारात्मक या नकारात्मक लेखक कहने के लिये और महाभारत के रचियता को तो समाज ने उनके जनम के कारण शायद अपना कभी माना ही नहीं
साहित्य रचा नहीं जाता
साहित्य रच जाता हैं
रचियता ख़ुद अपनी रचना को
साहित्य साहित्य नहीं चिल्लाता हैं
लेकिन लोकार्पण साहित्यकार बनने का भोपू मात्र होता हैं और इसके जरिये कोंटेक्ट बनते हैं
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सच बोलना जितना मुश्किल है , सच को स्वीकारना उस से भी ज्यादा मुश्किल है . लेकिन सच ही शाश्वत है और रहेगा मुझे अपने सच पर उतना ही अभिमान है जितना किसी को अपने झूठ से होने वाले फायदे पर होता हैं
मेरे ब्लॉग के किसी भी लेख को कहीं भी इस्तमाल करने से पहले मुझ से पूछना जरुरी हैं
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