ये पोस्ट पढ़ कर टी वी पर आता विज्ञापन याद आगया
वो जिसमे दो महिला कपड़े धो कर सुखा रही हैं और पड़ोसन आ कर कहती है
आप के बेटे की कमीज मेरे घर में उड़ कर आगई थी इस लिये मैने धो दी
जिन लोगो को ब्लोगिंग पर अपनी पुस्तक छप वाने के लिये सरकारी ग्रांट मिल चुकी हो उनके यहाँ कुछ बेहतर लेखन की उम्मीद रहती हैं ये सोच कर की ये सरकारी अनुदान प्राप्त लेखक हैं पर यहाँ आकर निराशा हाथ लगी .
सच बोलना जितना मुश्किल है , सच को स्वीकारना उस से भी ज्यादा मुश्किल है . लेकिन सच ही शाश्वत है और रहेगा मुझे अपने सच पर उतना ही अभिमान है जितना किसी को अपने झूठ से होने वाले फायदे पर होता हैं
मेरे ब्लॉग के किसी भी लेख को कहीं भी इस्तमाल करने से पहले मुझ से पूछना जरुरी हैं
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