सच बोलना जितना मुश्किल है , सच को स्वीकारना उस से भी ज्यादा मुश्किल है . लेकिन सच ही शाश्वत है और रहेगा मुझे अपने सच पर उतना ही अभिमान है जितना किसी को अपने झूठ से होने वाले फायदे पर होता हैं
मेरे ब्लॉग के किसी भी लेख को कहीं भी इस्तमाल करने से पहले मुझ से पूछना जरुरी हैं
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December 08, 2008
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और पोस्ट कापी करने के लिये
ReplyDelete1. कमेन्ट देने के लिये क्लिक करिये
2. बांयी ओर लिखे Show Original Post पर क्लिक कीजिये
3 अब पूरी पोस्ट नीचे दिख रही है, इसे कापी करके पेस्ट कर लीजिये, जैसे यहां की गई है.
अपने ब्लॉग को लाक करे यानी टेक्स्ट को कॉपी करने से बचाए । एक १०० प्रतिशत सही तकनीक नहीं हैं पर फिर भी काम करती हैं ।
ऊपर दिये गये कोड को कॉपी करके लेआउट मे नया html gadget मे पेस्ट कर दे .
आभार Hindi Blog Tips
इस लिंक को भी क्लिक करके आप को कोड मिल जायेगा
posted by रचना at 5:23 AM on Dec 8, 2008
ये कापी करने के 376 तरीकों में से एक तरीका है.
thanks annonymous
ReplyDeletesuch comments help in improvement
अपने ब्लॉग को लाक करे यानी टेक्स्ट को कॉपी करने से बचाए । एक १०० प्रतिशत सही तकनीक नहीं हैं पर फिर भी काम करती हैं ।
ReplyDeleteऊपर दिये गये कोड को कॉपी करके लेआउट मे नया html gadget मे पेस्ट कर दे .
आभार Hindi Blog Tips
इस लिंक को भी क्लिक करके आप को कोड मिल जायेगा
posted by रचना at 5:23 AM on Dec 8, 2008
आशा है जबाव मिल गया रचना जी को :)
विवेक और अनोनिमस जी
ReplyDeleteमेरे ब्लॊग्स (मेरी प्रोफ़ाईल से सबके लिंक मिल जाएँगे) पर भी जरा ३७६ नुस्खों में से कोई एक अपना कर प्लीज़ बताइये कि क्या मेरे द्वारा अपनाई गई लॊक तकनीक का भी कोई तोड़ है? just to know the tech.ticks
कोई नकल मार ले तो क्या फ़र्क पड़ता है. नकल मारने वाले को तो पता रहेगा ही कि उसने नकल मारी है. हमें तो संतुष्टि होगी की किसी ने हमारी नकल मारी!
ReplyDeleteकविता जी, कौन सा ब्लाग? वागर्थ?
ReplyDeleteसाहित्य अकादमी के तत्वावधान में गत 25,26,व 27 नवम्बर को आन्ध्रप्रदेश के ऐतिहासिक-सांस्कृतिक नगर विजयवाड़ा में त्रिदिवसीय साहित्य समारोह सम्पन्न हुआ, जिसमें स्थानीय संयोजक के रूप में सिद्धार्थ कलापीठम ने सहयोग किया।
25 को प्रात: सम्पन्न उद्घाटन सत्र में पी.एल.एन. प्रसाद ने अपने उद्घाटन भाषण में कहा कि यह समारोह मुख्यत: भारतीय भाषाओं की कविताओं पर केन्द्रित है और इसका उद्देश्य भारतीय साहित्य की मूलभूत एकता को प्रतिपादित करना है। मुख्य अतिथि डॊ. टी कुटुम्बराव ने तेलुगु तथा भारतीय भाषाओं की साहित्यिक धरोहर को अमूल्य बताते हुए रचनाकारों का आह्वान किया कि वे विदेशों से आयातित विचारधाराओं के बजाय अपनी रचनाओं द्वारा मानवजाति की मूलभूत संवेदनशीलता को खंगालें।
The Hindu' और `Deccan Chronicle' ने मेरे ही चित्र छापे,जबकि समाचार तो ५-६ समाचार पत्रों में छपा| कुछ की कतरनें ले आई थी वे ऊपर संजो ली हैं| बल्कि ‘डेक्कन क्रॊनिकल’ में बिना समाचार के केवल चित्र छपा था, जिसे अगले दिन सायंकालीन सत्र से पूर्व बाहर चायपान के समय एक वृद्ध - से सज्जन ने आकर बताया और घिसट कर चलते जा कर वे अँधेरा होने के बावजूद भी कहीं से पेपर ले कर आए और सभागृह मे मुझे सौंपा। मैं एकदम भावविगलित कंठ से उन्हें अच्छे -से धन्यवाद भी नहीं कह पाई (कार्यक्रम आरम्भ हो चुका था व एकदम प्रथम पंक्ति मे होने के कारण बातचीत खड़े होकर मेरे लिए संभव न थी) The Hindu तो होटल के मेरे कमरे मे स्वत: ही डाल दिया गया था| फिर सायं कालीन सत्र के लिए नीचे आई तो रिसेप्शन वालों ने अपने यहाँ आने वाले पत्रों मे समाचार दिखा कर वे मुझे सौंप दिए| अच्छा लगा वरना उस प्रकार के बढ़िया स्तर के होटल वाले ऐसी सद्भावना कम ही दिखाते हैं। यात्रा सुखदा व संस्मरणात्मक रही. देश के अलग अलग भागों से आए लोगों से मिलने का आह्लाद भी बना रहा।
या हिन्दी भारत जिसका एक अंश निम्न है?
ReplyDeleteसचाई के साथ फ्लर्ट करता मीडिया
- प्रभु जोशी
आज हम गाहे-ब-गाहे सुनते रहते हैं और अख़बारों के पन्नों पर भी हमें बार-बार यह याद दिलाया जाता है कि ‘सूचना भी एक सत्ता है।’ लेकिन, इसमें संशोधन करते हुए यह कहा जाना उचित होगा कि ‘अब तो केवल ‘सूचना’ ही सत्ता है।’ कहना न होगा, कि जब से सूचना के इतने ‘सत्तावान’ होने का अहसास हमारे मीडिया को हुआ है, तभी से उसने स्वयं को लगभग ‘सर्वसत्ता’ के रूप में बिना किसी संकोच के निर्विघ्न रूप से स्थापित कर लिया है। कदाचित् यही कारण है कि ‘मीडिया’ का पूरा चरित्र अब ’सत्ता’ के चरित्र से भिन्न नहीं रह गया है।
दरअसल, किसी भी क़िस्म की ‘सत्ता’ को जो हक़ीकतन ‘सत्ता’ बनाती है; वह घटक है स्वयं ‘राज्य‘ का प्रतिरूप बन जाना। राज्य की विशेषता यही होती है कि उसी में ’दमन’ है और उसी में ’मुक्ति’ भी समाहित है। ‘दमन’ और ‘मुक्ति’, राज्य को उपलब्ध दो ‘अमोघ अस्त्र’ हैं, जिन्हें ‘श्राप और वरदान’ की तरह कहना ज़्यादा उचित होगा। राज्य को उपलब्ध इन्हीं दो आयुधों के कारण, ‘व्यक्ति’ और ‘समाज’ उससे निकटता बनाये रखने में जुटे रहते हैं। और, यह आकस्मिक नहीं कि ये दोनों ही चीजें अब ‘मीडिया’ के अधिकार में है। अर्थात् वह अब किसी ‘वामन’ को ‘अभयदान’ देकर विराट बना सकता है, तो किसी ’विराट’ पर कुपित होकर उसे वामन बना सकता है। यह खेल खेलता हुआ वह अपनी लीला में ‘राज्य’ का ही तो स्वांग रचाता है। इसमें ध्यान देने की बात यह है कि मीडिया के इस खेल में बाज़ार सबसे बड़ी भूमिका में आ चुका है।
:)
ReplyDeleteYe smily Vivek Singh ji ke comment par hai.. kyonki main bhi vahi karne vaala tha.. :D
इस ताले का निर्माता हूं, इसलिए मुझे इसके बचाव पक्ष के वकील की भूमिका तो निभानी ही पड़ेगी। जब यह ताला ब्लॉगर साथियों के इस्तेमाल के लिए जारी किया था, तभी मैंने साफ कर दिया था-
ReplyDeleteमैं यहां साफ कर देना चाहूंगा कि यह ताला टैक्स्ट को प्रोफेशनल चोरों से तो नहीं बचा सकता, लेकिन उचक्कों से आपके ब्लॉग को जरूर बचा लेगा। मैं यह दावा कतई नहीं कर रहा हूं कि यह ताला लगाने के बाद आप टैक्स्ट को कॉपी नहीं कर सकते। पर विश्वास जरूर रखता हूं कि यह आसानी से कॉपी नहीं होगा।
यानी कंप्यूटर की दुनिया में कोई काम असंभव नहीं। हां, अगर हमने टेक्स्ट कॉपी करने वाले को थोड़ी मशक्कत करा दी तो हो सकता है कि वह अपना इरादा बदल दे। वैसे जिसे कॉपी करना ही होगा, वह आपकी स्क्रीन को पढ़कर दुबारा टाइप भी तो कर सकता है.. :)
अजी थमनै यो तो बताया ई कोणी के लाक करणा क्यूं है.
ReplyDeleteबलाग मै के हीरे-मोती जड रक्खे है या फेर आडै डालर-पौंड पडे है, जो कोई चुरा कै लेजेगा.
महाराज ! खाली आए है अर खाली ई चले जाणा है.
के तेरा-के मेरा
:)
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