सच बोलना जितना मुश्किल है , सच को स्वीकारना उस से भी ज्यादा मुश्किल है . लेकिन सच ही शाश्वत है और रहेगा मुझे अपने सच पर उतना ही अभिमान है जितना किसी को अपने झूठ से होने वाले फायदे पर होता हैं
मेरे ब्लॉग के किसी भी लेख को कहीं भी इस्तमाल करने से पहले मुझ से पूछना जरुरी हैं
मेरे ब्लॉग के किसी भी लेख को कहीं भी इस्तमाल करने से पहले मुझ से पूछना जरुरी हैं
December 03, 2008
ये अंश हैं एक ब्लॉग पोस्ट के जो कल पढ़ी ।
उक्त प्रतिक्रियाओं में से एक प्रतिक्रिया मेरे पुत्र की उम्र के एक नवजवान की है जिनकी लेखन शैली मुझे बहुत पसंद है ! सशक्त लेखनी का धनी, इस भारत पुत्र के प्रति मेरा यह कर्तव्य है कि मैं स्पष्टीकरण दूँ !कृपया विश्वास करें कि लेखन के प्रति, मेरा किसी वर्ग विशेष के प्रति मोह या उसमें लोकप्रियता अर्जित करना बिल्कुल नही है ! आप प्रतिक्रियाएं अगर ध्यान से देखें तो इस देश के मुस्लिम बच्चों ने मेरी कभी तारीफ़ नहीं की जिससे मैं उत्साहित होकर यह लेख लिख रहा हूँ ! मगर यह लेख इस समय की पुकार हैं, और जो मैं समाज को समझाना (सर्व धर्म सद्भाव ) चाहता हूँ, उसी की सफलता में देश की नयी पीढी और आपकी अगली पीढी का स्वर्णिम भविष्य सुनिश्चित होगा !
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मैं हमेशा इन मुस्लिम बच्चों के लिए लेख क्यों लिखता हूँ ?-मुसलमान - हिन्दुस्तान का दूसरा बेटा ! अवश्य पढ़ें ! क्योंकि मैं बहुमत से सम्बंधित हूँ और अल्पमत के लिए आवाज़ उठाना और उनको अपने समाज के दिल में जगह दिलाने का प्रयत्न करना ही मैं भारत माँ की सबसे बड़ी इच्छा मानता हूँ सो नफरत फैलाने वाले अपनी दूकान चलायें मैं प्यार बांटूंगा देखता हूँ कौन शक्तिशाली है !
ये अंश हैं एक ब्लॉग पोस्ट के जो कल पढ़ी ।
आतंवादियों को पाकिस्तान अपना नागरिक नहीं मानता और मुसलमान यहाँ हिन्दुस्तान मे उनको इसलिये दफ़न की जगह नहीं देगा क्युकी वो उनको मुसलमान नहीं मानता हैं ।
अगर हिन्दुस्तान के मुस्लिम नागरिक ये कह कर उनको दफ़न से इनकार करते की हम पाकिस्तानी आतंकवादी को हिन्दुस्तान मे दफ़न नहीं करगे तो लगता की हाँ आज हमारी माइनोरिटी भी हमारे साथ हैं । लेकिन नहीं इस देश मे सिर्फ़ और सिर्फ़ राजनीती होती हैं लाशो पर भी । उन लाशो पर जिनको गीध चील कौवे कोई खा ले क्या फरक पड़ेगा ।
और मेरा मानना हैं की जो लोग ज्यादा नयी पीढी को नसीहत देते हैं { ऊपर दी गयी पोस्ट नयी पीढी को नसीहत के रूप मे डाली गयी हैं } की तुम ग़लत हो वो श्याद भारत के इतिहास को नहीं देखते । आज नयी पीढी जितने भी टेंशन उठा रही हैं उसकी जिमेदार एक लापरवाह पुरानी पीढी हैं । हम सब जिमेदार हैं इस आंतकवाद के क्युकी हम अपनी नयी पीढी को उनकी सोच को अपरिपक्व मानते हैं । हम आज भी एक ऐसा समाज चाहते हैं जहाँ हम अपने बच्चो को कठपुतली की तरह नचाए । क्या दिया हैं हमने नयी पीढी को डर , आंतकवाद और राजनीती ।
अगर आज एक २६ साल का युवक/युवती कुछ कहता हैं तो वो अपना भोग हुआ सच कह रहा हैं । हम उस से कुछ सीख भी सकते हैं । लेकिन नहीं वो तो हमारा प्रतिस्पर्धी हैं उसकी बात हमारे लिये एक चुनौती हैं ।
जब एक पिता की उम्र का व्यक्ति ये कहता हैं "देखता हूँ कौन शक्तिशाली है !" तो लगता हैं की वो होड़ कर रहा हैं ।
समय हैं की हम अपनी नयी पीढी को सीखने की जगह साथ मिल कर उनसे उनके विचार पूछे और खुले मन से आंतंकवाद और हिंदू मुस्लिम इत्यादि विषयों पार बात करे । जब तक ये आक्रोश हैं नयी पीढी मे तभी तक हम सुरक्षित हैं वरना पुरानी पीढी तो केवल समझोते करती आयी हैं
कल मेरा कमेन्ट उस पोस्ट पर नहीं आने दिया गया { ये उनका अधिकार हैं इसका मुझे शिकवा नहीं हैं } पर ये शिकायत जरुर हैं की जिस कमेन्ट के ऊपर और जिस व्यक्ति के ऊपर उन्होने ये पोस्ट डाली हैं ना तो उसका कमेन्ट ना उसका नाम दिया हैं । इस प्रकार से लांछन लगना शोभा नहीं देता और आश्चर्य हैं जिनके भी कमेन्ट आए हैं उनमे से किसी ने भी ये नहीं पूछा की पोस्ट मे आक्षेप किस पर हैं ।
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- ये अंश हैं एक ब्लॉग पोस्ट के जो कल पढ़ी ।
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kaash ki aap hi tarah sochne wale hamare samaaj mein zyada log hote...par nahi hain...nayi peedhi ke paas anubhav nahi hain...josh zyada hain...ye hi soch ke daba diya jata hain...par agar ye hi waqt ki zarurat ho to?
ReplyDeleteaur jahan tak rajniti ki baat hain...log bhi usi mein gumrah hote hain apne apne swarth ko le kar...
badlav ki ghadi hai par shayad...
रचना जी उम्र ओर समझदारी का कोई सम्बन्ध नही होता ...कम से कम मै तो इसे पुख्ता तरीके से मानता हूँ कोई माने या न माने ....
ReplyDelete"समय हैं की हम अपनी नयी पीढी को सीखने की जगह साथ मिल कर उनसे उनके विचार पूछे और खुले मन से आंतंकवाद और हिंदू मुस्लिम इत्यादि विषयों पार बात करे ।"
ReplyDeleteआपकी ये पंक्तिया पूर्णतय सही है.. आज की नयी पीढ़ी जो सफलता के झंडे गाढ रही है.. उसे देखते हुए ये नही समझना चाहिए की वे समझदार नही है.. डा साहब से सहमत हू उम्र का समझदारी से कोई लेना देना नही..
जो लोग ऐसा सोचते है वे खुद ही ये साबित करते है की उम्र और समझदारी का कोई लेना देना नही..