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December 20, 2008

क्या नैतिकता एक सामजिक प्रश्न नहीं हैं केवल एक व्यक्तिगत प्रश्न हैं ?

कल की पोस्ट पर कमेन्ट मे कई प्रतिक्रिया मिली । सभी नीचे दे रही हूँ ।
8 comments:
रूपाली मिश्रा said...
मै आपकी बात से सहमत हूँ मेरी चैट एक बार एक गृह मंत्रालय में कार्यरत सज्जन से हुई थी जो दिनभर जीमेल , ऑरकुट और अपने ब्लॉग पर रहते थे और ऊपर से गृह मंत्री और देश की सरकार को निकम्मा बताते थे
December 19, 2008 1:45 AM
विवेक सिंह said...
ऐसा क्यों ? यह तो आप ही जानें :)
December 19, 2008 2:24 AM
लवली कुमारी / Lovely kumari said...
100% सहमत हूँ रचना जी आपसे...पर किसी को फर्क क्या पड़ता है.
December 19, 2008 2:48 AM
ताऊ रामपुरिया said...
बात तो आपकी सही है ! अब दुसरो की बात क्या करे ? हम सेल्फ़ ईम्पलायड हैं तो भी कोशिश करके आफ़िस मे बचने की कोशिश करते हैं पर जब काम नही होता तो खुद ब खुद ब्लाग पर पहुंच जाते हैं ! आगे से कोशिश करेंगे कि आफ़िस मे आफ़िस का ही काम किया जाये !आपक सुझाव मानने लायक है और माना जाना चाहिये !राम राम !
December 19, 2008 3:43 AM
विष्णु बैरागी said...
ऐसे लोगों के लिए ही कबीर बाबा कह गए हैं -बुरा जो देखन मैं चला,बुरा न मिलिया कोय ।जो दिल खोजा आपना,मुझसे बुरा ना कोय ।।
December 19, 2008 4:33 AM
डॉ .अनुराग said...
खरी बात है जी....वैसे हम अपने privet क्लीनिक में है ,सरकारी डॉ नही है....ओर बिल भी भरते है.....
December 19, 2008 5:39 AM
masijeevi said...
नैतिकता की अपनी निजता होती है तथा होनी चाहिए। मुझे याद पड़ता है कि ज्ञानदत्‍तजी ने अपनी एक पोस्‍ट स्‍पष्‍ट किया था कि इस विषयक नैतिकता स्‍व आरोपित ही होनी चाहिए। न कीजिए ब्‍लॉगिंग, उपन्‍यास भी मत पढि़ए लेकिन फाइल खोलकर बैठे रहें, कोई काम न करें या करें तो उलटा नुक्‍सान करें, इससे कहीं बेहतर है कि जिम्‍मेदारी निबाहें, काम के प्रति, अपने प्रति और किलसने की बजाए प्रसन्‍न रहें
December 19, 2008 6:46 AM
नीरज गोस्वामी said...
बात सच्ची और खरी है....नीरज
December 19, 2008 9:49 AM



क्या नैतिकता एक सामजिक प्रश्न नहीं हैं केवल एक व्यक्तिगत प्रश्न हैं ? कुछ बातो मे जहाँ हमारी नैतिकता से दूसरो की जीवन शैली पर असर आता हो क्या वहाँ ये कहना सही हैं की नैतिकता व्यक्तिगत प्रश्न हैं । आप सरकारी समय का उपयोग सरकारी काम के लिये ना करके किसी और काम के लिये करते हैं जो आप का व्यक्तिगत काम हैं तो आप सरकारी धन का अप्वय कर रहे हैं और सरकारी धन कहां से आता हैं ?? सरकार की कोई अपनी कमाई का साधन हैं क्या टैक्स के अलावा ? सो सरकारी महकमे मे काम करने वाले उन घंटो मे केवल और केवल सरकारी काम करे जिन घंटो की उनको तनखा मिलती हैं तो शायद वो अपने कर्तव्य को पूरा करेगे ।

पिछली बार जब दिल्ली विश्व विद्यालय मे पे रेविसन हुआ था तो UGC चाहती थी की और विश्व विद्यालय की तरह टीचर्स के लिये भी समय सारणी हो यानि ९-५ की नौकरी , जहाँ आपको उतने घंटे कॉलेज मे बैठना अनिवार्य हैं .लेकिन किसी भी अध्यापक को ये बात रुचिकर नहीं लगी क्युकी हर अध्यापक ये समझता हैं की हफ्ते मे १८ period पढ़ने हैं यानि तक़रीबन 4 period रोज के सो पढाओ और घर जाओ । लेकिन तनखा पूरे दिन की मिले ।
अगर कॉलेज मे बैठना अनिवार्य हो जाए तो शिक्षा का स्तर उठे ना उठे पर हर तरह की नौकरी मे समानता जरुर आजायेगी ।

7 comments:

  1. हमारे अंदर सबसे गलत बात तो यह है कि हम अधिकार के लिए लडते हैं और कर्तब्‍यों के पालन के समय मुकर जाते हैं। बस , अधिकार और कर्तब्‍य में सही तालमेल बनाए रखें तो सारी समस्‍या का हल हो जाए।

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  2. मेरा एस सवाल है कि अगर मान लीजिये किसी सरकारी कार्यालय में अपना काम खत्म करके कोई कर्मचारी खाली वक्त में गप्प मारे, इधर उधर घूम कर औरों को भी परेशान करे या फिर चुपचाप ब्लागिंग करे, आप किसे पसंद करेंगी?

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  3. मै चुनाव २ ग़लत चीजों के बीच मे नहीं करना चाहूगी
    येही फरक हैं नैतिकता की परिभाषा मे आपकी नैतिकता की परिभाषा का मतलब और मेरी नैतिकता की परिभाषा का मतलब अलग अलग हैं । अगर आप का काम ख़तम होगया हैं तो अपने को अपने कार्य छेत्र मे आगे ले जाने के लिये अपने से ऊपर वाले कामो को करे या अपने बॉस को कहे की आप के पास ज्यादा समय हैं आप को ज्यादा काम दिया जन सकता हैं । मै ये कर सकती हूँ क्या आप कर सकते हैं ??

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  4. और सुक्ष्मता से देखिये.. जो अपना ओफि़स चलाते है और वहां से गैर व्यवसायिक कार्य करतें है तो क्या ये सही है?

    १. क्या ऐसी सुविधा वहां कार्यरत सभी व्यक्तियों को मिलती है?
    २. उस पर हुआ व्यय क्या व्यक्तिगत व्यय माना जाता है? अगर उसे ओफि़स का खर्चा मानते है तो वो भी गलत होगा..

    आपने सही मुद्दा उठाया.. हमें खुद ही इस बारें में सोचना होगा..

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  5. नैतिकता की निजता नैतिकता की निर्मिति के सामाजिक होने का निषेध नहीं करती। अत: व्‍यक्ति से उसकी नैतिकता के खुद निर्धारण का अधिकार छीनना एक किस्‍म का सिनिसिज्‍म है। वही जो उन स्‍टीरियोआईप्‍स में भी दिखाई देता है जिसके अनुसार कर्मचारी काम नहीं करते, सभी नेता भ्रष्‍ट होते हैं, अफसरों में नैतिकता नहीं होता, फैशन कलाकार अश्‍लील होते हैं, अध्‍यापक आलसी होते हैं, महिलाएं मूर्ख होती हैं...

    जाहिर है ये सभी प्रचलित स्‍टीरियोटाईप उच्‍च नैतिकता के धारण की प्रवंचना से उपजते हैं।

    वैसे अगर अध्‍यापकों को आठ घंटे सिर्फ इसलिए कॉलेज में बैठाया जाए कि वे क्‍लर्कों के 'समान' काम करें तो अगले दिन की कक्षा के लेक्‍चर तैयार करने के लिए की जाने वाली पढा़ई के 'काम' और समय की गिनती कहॉं होगी। :)

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  6. @masijeevi
    अगले दिन की कक्षा के लेक्‍चर तैयार करने के लिए की जाने वाली पढा़ई के 'काम' और समय उन्ही ८ घंटो मे अगर निकल आए जो आप कॉलेज मे बिताते हैं तो आप को घर आ कर अपना समय अपने परिवार के साथ बिताने का अपने आप मिल जाया करेगा यानी सही तरीके से सही समय का बटवारा । और आप जिस "स्‍टीरियोआईप्‍स" की बात कर रहे हैं आप की सोच उसी स्‍टीरियोआईप्‍स को बहार ला रही हैं जब आप "क्‍लर्कों के 'समान' काम करें कहते हैं ।

    जैसे आप को लगता हैं क्‍लर्कों के 'समान' काम वैसे ही क्‍लर्कों को लगता है की आप को बिना काम के पैसा मिलता हैं । कोई भी क्षम छोटा बड़ा करना ही "स्‍टीरियोआईप्‍स" होना होता हैं । ये कहीं नहीं कहा गया हैं की अध्‍यापकों को ८ घंटे पढ़ना हैं ये कहा गया था की ८ घंटे परिसर मे रहना जरुरी हैं और दिल्ली विश्व विद्यालय के अलावा और भी विद्यालय हैं जहाँ ये सारिणी मान्य हैं । अब ये ना कहे की छेत्रिय अध्यापक भी कोई अध्यापक हैं !!

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