मेरे ब्लॉग के किसी भी लेख को कहीं भी इस्तमाल करने से पहले मुझ से पूछना जरुरी हैं

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May 23, 2009

मुझे तो "रचना" ही कहे ,

हिन्दी ब्लोगिंग का " जी " कल्ट इस पर आयी टिप्पणियाँ पढे । P C रामपुरिया की टिप्पणी " ये तथाकथित सभ्य समाज मे रहने का बोध बना रहे इसके लिये ढकोसला है. तो आज तुम्हारे साथ यह ढकोसला तोड देते हैं."पढ़ कर महसूस हुआ की हम सब अपने चारो तरफ़ एक दीवार बना लेते हैं जिस की सीमा रेखा को तोड़ना ही नहीं चाहते हैं ।

आप भी पढे बाकी टिप्पणी और अगर आप ने भी अपने को को सीमाप से बाँध रखा हैं तो आज़ादी दे अपने आप को और इन्टरनेट पर हिन्दी ब्लोगिंग को भी ताकि खुल कर लोग विचारों को लिख सके । इन्टरनेट ने सीमओं को तोडा हैं और आप फिर उसको कैद कर रहे हैं ।
बाकी मुझे तो रचना ही कहे ,

12 comments:

हिमांशु । Himanshu said...

सही है जी ।

Udan Tashtari said...

जी, आप बात तो ठीक कह रहीं हैं रचना जी.

-लाख नौटंकी हो जाये हमारे साथ, मगर आपको हम रचना तो न कह पायेंगे, क्षमाप्रार्थी हैं जी.

venus kesari said...

बढ़िया कहाँ (जी) आपने

वीनस केसरी

"मुकुल:प्रस्तोता:बावरे फकीरा " said...

bahut khoob leejie pangaa tankee yaad hai n
naav, bhee yaad hogee, kuchh yaad naheen to bhee jai ram jee kee
aakhir peeth khujaanaa bhee to aapasee mitrataa kee zaroorat hai
fir aap vahee bat khair chhodiye aanand magn honaa zarooree hai
taareef hee to ho rahee hai
aadar hee to diyaa jaa rahaa hai bhai etaraaz kyoon ....?

ताऊ रामपुरिया said...

रचनाजी, आपने बहुत सही कहा जी. पर क्या करें हमारे पास जी का थोक स्टाक है तो इब आपको रचना नही कह सकते रचनाजी.:)

रामराम.

रचना said...

मुझे तो बहुत अच्छा लगता हैं जब नीरज रोहिला रचना कहते हैं या ममता रचना कहती है । एक समभाव महसूस होता हैं एक ऐसी जगह जहाँ हम सब बराबर हैं कोई सीमा नहीं हैं । इन्टरनेट की यही खासियत हैं की सीमाए तोड़ कर बात होती हैं ।
और अगर समीर और पीसी भी मुझे रचना कहे और आदित्य और कुश भी रचना कहे तो कितना अच्छा महसूस होगा कह नहीं सकती ।
आग्रह हैं की मुझे रचना ही कहे , ना बड़ा ना छोटा ।

अनिल कान्त : said...

bahut sahi baat kahi aapne

कुश said...

सही कह रही हो रचना.. :)

Udan Tashtari said...

ठीक है, फिर जैसा तुम चाहो, रचना.

Udan Tashtari said...

ठीक है, फिर जैसा तुम चाहो, रचना.

बी एस पाबला said...

हम तो आपको पिछली पोस्ट से ही रचना कह कर संबोधित कर रहे हैं जी :-)

ताऊ रामपुरिया said...

ठीक है रचना. हमारे यहां तो वैसे भी जी और आप जैसे संबोधन नही होते. हरयाणवी तो अपने बाप को भी जी और आप नही कहता.

ये तथाकथित सभ्य समाज मे रहने का बोध बना रहे इसके लिये ढकोसला है. तो आज तुम्हारे साथ यह ढकोसला तोड देते हैं.

पी.सी.

हां एक बात और...पर कभी कभी मजाक करने के लिये तो रचनाजी कहना ही पडेगा ना रचनाजी.:)

रामराम

14 comments:

  1. अगर मैं जी न लगाऊँ तो असहज महसुस करता हूँ, संस्कार इतनी जल्दी नहीं छूटते. :)

    क्षमा करें मैं आपको केवल रचना नहीं कह पाऊँगा, आपकी बात सही होते हुए भी. यह भी सही है कोई मुझे केवल संजय कहता है तो अच्छा ही लगता है.

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  2. मुझसे तो आपको केवल रचना न कहा जा सकेगा । माफ करें ।

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  3. चलो आज से आदत बदलते है रचना.. थोड़ा अजीब लग रहा है पर धीरे धीरे ये भी सामान्य हो जायेगा...

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  4. रचना,
    कुछ बातें हैं जो धीरे धीरे आँखों के सामने आती हैं और लगता है कि जिससे डर रहे थे वैसा हम कुछ भी नहीं हुआ|
    इंजीनियरिंग कालेज में सीनियर और बैच वाले भी कहते थे कि अगर रैगिंग बंद हो गयी हम पूरा सिस्टम बिगड़ जाएगा कोई किसी का सम्मान नहीं करेगा, प्रोफेशनल कैसे बनेंगे| अब लगता है सब ढकोसला है, पहले बंगलोर में Indian Institute of Science mein देखा कि कैसे जूनियर और सीनियर मित्र होते हैं, सर बोलने का झंझट भी नहीं|

    अब यहाँ राईस विश्वविद्यालय में देखते हैं कि अध्यापक को भी पहले नाम से ही बुलाते हैं, मेरे एडवाइज़र ६७ साल के हैं और उन्हें आराम से जॉर्ज कहते जरा भी अटपटा नहीं लगता| लेकिन अपने बी टेक वाले कालेज के २-३ साल सीनियर मित्र को इमेल/फोन करते समय कभी कभी केवल नाम लेना अटपटा लगता है| इसको कंडीशनिंग कह लो, या झिझक लेकिन जब काम की बात हो अथवा तर्क चल रहा हो तो संबोधन से कुछ फर्क नहीं पड़ता (जब तक आप संबोधन का नाजायज फायदा न उठाएं) |

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  5. मैं आप को रचना कह सकता हूँ। पर जी लगाने में आप को क्या आपत्ति है? इस से एक दूसरे के प्रति सम्मान प्रदर्शित होता है।

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  6. रचना, आज यहां अपने आपको PC रामपुरिया से संबोधित पाकर मैं तो अपने थर्टीज मे पहुंच गया. थैंक्स..

    पी.सी.

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  7. @ पी.सी.
    मैने आप को कभी आपके ब्लोग्पर भी ताऊ कह कर संबोधित नहीं किया क्युकी ताऊ पिता के बडे भाई को कहते हैं जो मे आप को नहीं मानती आप को खुशी मिली अच्छा लगा जान कर

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  8. @ दिनेशराय द्विवेदी

    सम्मान मन मे होता हैं प्रदर्शन मे नहीं

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  9. पीसी थर्टीज़ में?? फिर से न घूमने निकल पड़ना भारत-अब शरीर पर रहम करना. :)

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  10. अब क्या कहे जी चुप चाप निकल लेते हैं

    वीनस केसरी

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  11. इतना आसान नहीं मेरे लिये जी लगाये बिना आपका या किसी का भी नाम लेना।
    ब्लॉगिंग में डॉ गरिमा और लवली कुमारी मुझसे बहुत छोटी हैं, पर मैं उन्हें भी जी लगाये बिना नहीं संबोधित कर सकता।
    आज के हिसाब से ये शायद कुसंस्कार हों पर मुझे आपको रचनाजी कहना हि अच्छा लगता है, रचनाजी।
    :)

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  12. आज आपकी इस पेज की सारी पोस्टें एक्मूस्त पढ़ गया....कुछ से ज्ञानवर्धन हुआ.....कुछ से असहमत भी हूँ....लेकिन हाँ यह कह कर जा रहा हूँ....अच्छा बाबा "रचना"कह दिया....अब तो ठीक है ना रचना जी.....!!ही---ही---ही---ही---ही....मैं ऐसा ही हूँ....हा..हा..हा..हा..हा...!!

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  13. आज आपकी इस पेज की सारी पोस्टें एक्मूस्त पढ़ गया....कुछ से ज्ञानवर्धन हुआ.....कुछ से असहमत भी हूँ....लेकिन हाँ यह कह कर जा रहा हूँ....अच्छा बाबा "रचना"कह दिया....अब तो ठीक है ना रचना जी.....!!ही---ही---ही---ही---ही....मैं ऐसा ही हूँ....हा..हा..हा..हा..हा...!!

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