मेरे ब्लॉग के किसी भी लेख को कहीं भी इस्तमाल करने से पहले मुझ से पूछना जरुरी हैं

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June 09, 2009

सुशील कुमारsk.dumka@gmail.कॉम स्पैम करना बंद करे

नीचे दी हुई मेल जिस ग्रुप से आ रही हैं उसको मैने कभी ज्वाइन नहीं किया फिर क्यूँ मेरे मेल बॉक्स मे स्पैम भेजा जा रहा हैं । अगर आप किसी को जबदस्ती कुछ खिलाते हैं तो उलटी होती हैं क्यूँ अपने इतने "बहुमूल्य !!!??? लेखन " को जबरदस्ती ठेल रहे हैं कि उसको उलटी करने का मन हैं । स्पैम करना बंद करे


----- Original Message -----
Sent: Tuesday, June 09, 2009 5:50 PM
Subject: [नई पोस्ट देंखे-लिंक नीचे] सुशील कुमार की ताजा कविता ’घर और घर’

साथियों,
हमारे वरिष्ठ कवि आदरणीय भगवत रावत जी ने हिंदी कविता के पाठकों के लिये कहीं लिखा था कि
‘दुनिया की आपाधापी से
बच - बचाकर
बड़ी मुश्किल से पहुंचती है
आपके पास
कवितायें
उनसे हड़बड़ी में न मिलें
कम से कम
अपना पसीना सूखा सकें
इतना समय उन्हें दें
उन्हें बस इतना अपना
हो लेने दें
कि वे आपसे
बातचीत किये बिना
वापस न जायें’।
प्रस्तुत है उक्त क्रम में हिन्द-युग्म पर अपनी एक कविता
घर और घर
जिसे आप नीचे का लिंक किल्क कर पढ़ सकते हैं-
निवेदक - सुशील कुमार।
http://words.sushilkumar.net/
http://www.sushilkumar.net/
http://diary.sushilkumar.net/
हंसनिवास/कालीमंडा/ पो.- पुराना दुमका/दुमका/झारखंड(भारत)-814 101
संपर्क- 0 94313 10216

10 comments:

  1. मान ना मान मैं तेरा मेहमान
    हम सहित कई लोग हैं परेशान
    पता नही किस दुश्मन ने इनको
    हमारा भी मेल एडरेस दे दिया?
    इनको सोचना चाहिये कि इस तरह
    जोर जबरदस्ती अच्छे लेखन की
    भी ऐसी तैसी कर देता है.

    इन भाई से हाथ जोडकर प्रार्थना है कि
    आप जब तक मेल करेंगे मैं आपके
    ब्लाग पर टिपणी तो दूर की बात है..आऊंगा भी नही..और अब बहुत होगया यार,,माफ़ करो,,अब कितनी दुश्मनी निकालोगे?

    रामराम.

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  2. इसको पढा है मैडम जी, अगर नही अभी पढें - http://sarathi.info/archives/620
    आदमी की परख नहीं और बात करती है !

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  3. इसको पढा है मैडम जी, अगर नही अभी पढें - http://sarathi.info/archives/620
    आदमी की परख नहीं और बात करती है !

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  4. इन की छपास की मार और आत्मप्रचार की वृत्ति से बहुधा लोग त्रस्त हैं.ऐसे लोग किसी दुसरे का कभी नहीं पढ़ते, उसे पढ़ने लायक नहीं समझते और अपने को महान बनाने के एकसूत्री कार्यक्रम में दिल खोल कर पिले रहते हैं.

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  5. सारथि ब्लॉग का जो लिंक आप दे रहे है वहाँ केवल और केवल मेरी तारीफ़ हुई हैं । आप को हिन्दी ही नहीं समझ आती तो जिसने वो पोस्ट लिखी हैं उस से ही जा कर समझ ले और जो गन्दी मेल आप ने मुझे भेजी हैं कल उसको ब्लॉग पर दालुगी ताकि लोग देख सके हिन्दी के ज्ञाता कितने महान हैं

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  6. हम मूरख क्या जाने इन बातों को.. हम तो बस ज्ञानियों कि बातें पढ़ते हैं यहां आकर..
    अगले ज्ञानी पोस्ट के इंतजार में.. :)

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  7. ताऊ रामपुरिया जी, मैंने आपका ईमेल बहुत ढूंढा पर मिला नहीं। आपसे अनुरोध है कि अपना ईमेल पता मुझे मेरे ईमेल पतेsk.dumka@gmail.com पर भेज दें ताकि आपको गूगल ग्रुप ‘हिंदी-रीडर’ से हटा सकूं। वैसे आपने तो मेरी रचना पढ़कर टिप्पणी भी की है पर ईमेल से आपको ठेस लगती है तो उसे सहर्ष हटाने के लिये मैं तैयार हूं। कविता जी का ईमेल- पता मिला,उसे हटा दिया गया है। वैसे उन्होंने भी मेरी रचना पर अच्छी टिप्पणी की है। पर मैं उनका दु:ख समझ सकता हूं। आभार। सुशील कुमार।

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  8. "दुनिया की आपाधापी से
    बच - बचाकर
    बड़ी मुश्किल से पहुंचती है
    आपके पास
    कवितायें"

    उनके कहने का मतलब यह है कि; "तुम एहसान मानो, जो मैंने अपनी कविता कितनी मुश्किल से तुम तक पहुँचाई है."

    इस बात पर इनको कविता लिखनी चाहिए थी. कुछ ऐसी..

    न समझो इसे मेल
    न समझो इसे एक्सप्रेस
    यह है कविता
    वही कविता
    जो बहुत मुश्किल से पहुँचती है
    दुनिया की आपाधापी से बचकर
    भेजता हूँ मैं इसे रचकर

    इसे पहुंचाने में मेहनत लगती है
    टाइप करना पड़ता है
    थोड़ा-बहुत वाइप करना पड़ता है
    तब जाकर पहुँचती है
    तुम्हारे मेलबॉक्स में जंचती है

    इसे पढो
    और एहसान मानो
    कि
    मैंने इसे तुम तक पहुँचाई

    कविताओं की यह फ्लीट
    मत करना इसे डिलीट
    बात है 'नीट'
    कि
    ब्लॉग पर आओ
    एक टिप्पणी दे जाओ

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  9. शिव जी की कविता बहुत जोरदार है... :)

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  10. मै सुशील जी के ब्लोग पर एक बार भी नही पहूचा हू । कारण मान न मान मै तेरा मेहमान ।

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