उनका ये इस "सर" को समर्पित हैं
उनका वो उस "सर" को समर्पित हैं
कोई भी "मैडम" उनके किसी
समर्पण कि अधिकारी नहीं हैं
क्युकी बे सिर पैर को
पलकों पे बिठाना
किसी ना किसी
"सर" को ही आता हैं
पर दोस्ताना के माहोल मे
पलकों पर सर ही सर को बिठाते हैं
सच बोलना जितना मुश्किल है , सच को स्वीकारना उस से भी ज्यादा मुश्किल है . लेकिन सच ही शाश्वत है और रहेगा मुझे अपने सच पर उतना ही अभिमान है जितना किसी को अपने झूठ से होने वाले फायदे पर होता हैं
मेरे ब्लॉग के किसी भी लेख को कहीं भी इस्तमाल करने से पहले मुझ से पूछना जरुरी हैं
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June 01, 2010
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आईये, मन की शांति का उपाय धारण करें!
ReplyDeleteआचार्य जी
ha ha ha achcha vyang...madam
ReplyDeleteये कोई गे लोगों का चक्कर है क्या ? गे -जमावड़ा !
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