मेरे ब्लॉग के किसी भी लेख को कहीं भी इस्तमाल करने से पहले मुझ से पूछना जरुरी हैं

मेरे ब्लॉग के किसी भी लेख को कहीं भी इस्तमाल करने से पहले मुझ से पूछना जरुरी हैं

September 24, 2011

आत्महत्या

आत्महत्या करने वाले कमजोरऔर बहादुर दोनों होते हैं । वो अपने चारो तरफ एक ऐसी दुनिया बना लेते हैं जो जिसमे या तो खुशिया ही खुशियाँ हैं या गम ही गम हैं । लेकिन वो दुनिया उनकी अपनी दुनिया होती हैं और वो दुनिया बाहरी दुनिया से मैच नहीं करती ।

कहीं पढ़ा था जो लोग आत्म हत्या करसकते है वो किसी का खून भी कर सकते हैं
अगर हम मे से क़ोई तंग आकर आत्महत्या कर ले ब्लॉग पर विवाद के कारण स्त्री या पुरुष क़ोई भी तो क्या होगा

किसी को कगार पर देखिये तो सहारा दे कर किनारे कर दे मानवता का तकाजा हैं
वो कितना भी सही गलत क्यूँ ना हो

फेसबुक आत्म हत्या प्रकरण से अगर हम कुछ सीख सके तो ही नयी पीढ़ी को कुछ बचा सकेगे


अपने को माफ़ कर सके बस गलती इतनी ही हो । कभी कभी गलती / भूल ऐसी हो जाती हैं की फिर आजीवन अपने को माफ़ कर सकना भी संभव नहीं होता हैं

दुनिया इतनी बड़ी हैं की हम सब अपने अपने प्रिय जनों के साथ अलग अलग आराम से रह सकते हैं
अपने अपने कर्त्तव्य पूरे करे हम जहां हैं वहाँ बस

एक दूसरे से अपनी अपेक्षाए अगर हम कम कर दे तो शायद आत्महत्या की गूंजाईशे कम होगी

7 comments:

  1. जी मैं इस बात से पूरी तरह सहमत हूं कि आज लोगों को एक दूसरे से अपेक्षाएं बहुत ज्यादा बढ गई हैं। इसे कम करना ही होगा।

    बहुत सुंदर

    ReplyDelete
  2. स्वपीड़न का गुण मजबूत बनाये, न कि कमजोर।

    ReplyDelete
  3. किसी को कगार पर देखिये तो सहारा दे कर किनारे कर दे मानवता का तकाजा हैं
    वो कितना भी सही गलत क्यूँ ना हो.

    यही हर समझदार व्यक्ति से अपेक्षित है..

    ReplyDelete
  4. एक सही और संतुलित सोच के अभाव में आदमी ग़लतियाँ ही करता है ।
    एक ग़लती दूसरी ग़लतियों की वजह बन जाती है और बनती रहती है जब तक कि आदमी सही तरीक़े पर न आ जाए ।
    ग़लत से बचने के लिए ज़रूरी है कि सही को जान लिया जाए ।

    ReplyDelete
  5. समझदारी विकसित करनी होगी ऐसे व्यक्तित्व में।

    ReplyDelete
  6. agree with rashmi
    completely..

    ReplyDelete
  7. मानवता की बुनियाद के बारे में आपकी बात एकदम सही है। बचपन से ही अन्य गुणों के साथ चारित्रिक दृढता और भावनात्मक संतुलन की शिक्षा भी मिलनी चाहिये। न किसी का भावनात्मक शोषण हो और न इमोशनल ब्लैकमेल। शिक्षा शब्द का प्रयोग इसलिये कर रहा हूँ क्योंकि कई बार माता-पिता स्वयं इतने सक्षम नहीं होते हैं कि बच्चों को वैसा बना सकें परंतु यदि विशेषज्ञों के द्वारा इस विषय पर काम किया जायेगा तो सबको सीखने का अवसर मिलेगा। अपनी ओर से लोग सम्वेदनशील होने का प्रयास करते हैं, शायद थोडा और भी करना चाहिये परंतु जब पक्ष बदलते ही नियम बदल जाते हैं तो स्थिति दुष्कर हो जाती है।

    ReplyDelete

Blog Archive