आप ब्लॉग लिखते हैं पर खुश तब होते हैं जब कोई आप को साहित्यकार कह देता हैं ।
क्या ब्लॉग लेखन करना एक कमतर कार्य हैं और ब्लॉगर कहलाने से बेहतर हैं साहित्यकार कहलाना ??
अगर आप को ब्लॉग लेखन से प्रसिद्दि मिल रही हैं तो आप को तुष्टि साहित्यकार कह लाने से ही क्यों मिलती हैं ??
आप बडे हैं , आप बेहतर हिन्दी के ज्ञाता हैं ये किसी को आप कैसे बता सकते हैं या आप साहित्यकार हैं और ब्लॉगर से ऊँचे पायदान पर खडे हैं , इस बात को कैसे स्थापित कर सकते हैं ?
बहुत आसान हैं ,
किसी की भी पोस्ट मे या कमेन्ट मे वर्तनी की त्रुटियां खोज ले और उसकी पोस्ट के नीचे लिख दे , लीजिये आप का वर्चस्व स्थापित होगया । तालियाँ .......
सच बोलना जितना मुश्किल है , सच को स्वीकारना उस से भी ज्यादा मुश्किल है . लेकिन सच ही शाश्वत है और रहेगा मुझे अपने सच पर उतना ही अभिमान है जितना किसी को अपने झूठ से होने वाले फायदे पर होता हैं
मेरे ब्लॉग के किसी भी लेख को कहीं भी इस्तमाल करने से पहले मुझ से पूछना जरुरी हैं
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तालियाँ ...हमने भी बजाई जी :-)
ReplyDeleteलिखा जो नुस्खा आपने होगा बहुत प्रभाव।
ReplyDeleteठीक वर्तनी संग में रचना में हो भाव।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
आसन को आसान लिखतीं तो अच्छा होता.
ReplyDelete:-)
अब तो हम बड़े बने कि नहीं? आपकी पोस्ट में कमी खोज दी न :-)
roshan
ReplyDeleteaap saahitaykaar ban gayae badhaaii aur taaliyaan
aasaan ko aasaan sahii kar diya blogger banii rahee
आप गवाह हैं कि हम बड़े साहित्यकार हैं भूलियेगा नहीं :-)
ReplyDeleteअपनी समझ से तो " आसन " ही बेहतर था . try reading again. It'll give u an expression----'there are many crooked ways' .
ReplyDeleteroshan
ReplyDeletejab bhi maeri gavhi ki jarurat ho bataa daena
uff munish you too !!!!!
ReplyDeleterachana ji hum to blogger hi reh gaye na:):),sahityakaar kab banege:):)aaj tak 200 se jyada kavita dheli hai:):)ha ha kaunu certificate hamka bhi de do ji:)
ReplyDeleteet tu brute?
ReplyDeleteअब सभी बनेगे बड़े :-)
हम तो ब्लागर ही भले।
ReplyDeleteहम तो ब्लागर ही भले।
ReplyDeleteएक बार और कह दीजिए अनिल जी तीन बार कहने पर भरोसा हो जायेगा कि आप ब्लोगर ही भले हैं
ReplyDeletehaan anil ji roshan ko dar lag rahaa haen ki kahin saahitykaaro ki bheed mae wo beechara kho naa jyae
ReplyDeleteaur mehak certificate ban rahaa haen
jaldi yahii blog par hogaa
aap down losd kar laena
किसी की गलतियां निकालने से कोई साहित्यकार नहीं हो जाता है। इसमें कोई दो मत नहीं है कि ब्लाग में लिखना इसलिए कठिन है क्योंकि इसमें रोमन में लिखना पड़ता है। रोमन में कई शब्द बनते ही नहीं है या फिर लोगों को इसकी जानकारी नहीं है। यूनीकोड का की-बोर्ड हमारी जानकारी में काफी कम लोग जानते हैं। हमारे साथ एक अच्छी बात यह है कि हम चाणक्य में लिखते हैं और उनको यूनीकोड में बदल देते हैं। ऐसे में गलतियों का सवाल ही नहीं। ध्यान गलतियों पर नहीं लिखने वाले की भावनाओं पर देना चाहिए। गलतियां तो सब करते हैं। कोई इस बात का दावा ही नहीं कर सकता है कि उससे गलती नहीं होती। कई बार अनचाही गलतियां भी हो जाती हैं। वैसे यह बात समङो से परे है कि ब्लागर और साहित्यार को लेकर आखिर बवाल क्यों मचाया जा रहा है। जो जिसको चाहे ब्लागर समङो जो जिसको चाहे साहित्यकार समङो। अगर मुङो किसी को पुरस्कार देना है तो मैं तो उसी को दंूगा जिसके बारे में बहुमत होगा या फिर उसको दूंगा जिसको मेरा देने का मन होगा। वैसे भी अपने देश में मिलने वाले सम्मान किस तरह से मिलते हैं यह बताने की जरूरत नहीं है। ज्यादातर सम्मान मिलते नहीं बल्कि उनका जुगाड़ किया जाता है। अब जिसमें जितनी क्षमता होती है वह उतने सम्मान जुगाड़ लेता है और एक वह भी होता है जो वास्तव में सम्मान के लायक रहता है, पर उसको लायक ही नहीं माना जाता है। क्या किसी ने कभी ऐसे लोगों के दिलों में ङाांककर देखा है कि उनके दिलों पर क्या बीतती है।
ReplyDelete"आप ब्लॉग लिखते हैं पर खुश तब होते हैं जब कोई आप को साहित्यकार कह देता हैं ।"
ReplyDeleteयह धारणा कैसे निर्मित हो गयी ? यहाँ तो बहुत से ब्लॉगर हिन्दी साहित्य की बेहतरी के लिये प्रकारांतर से जी जान लगा कर लगे पड़े हैं, पर खालिस ब्लॉगर बन कर । यह भी तो देखिये कि हिन्दी के साहित्यकार भी अब ब्लॉगिंग कर रहे हैं, ब्लॉगिंग के गुण गा रहे हैं । सुयश तो ब्लॉगर कहलाने में ही है ।
himanshu
ReplyDeletedrishti kaa vistaar karey kuch blog par idhar udar jhaankae bahut kuch milaega isधारणा kae baarey mae
अब अगर बोलने का है कि कुछ भी नहीं तो ऐसे कैसे काम चलेगा। एक खानी तो पड़ना ही पड़ेगा नई तो सबकी बैण्ड बज जाएगी। भले ई बात कित्ती समझा दो वर्तनी सई नई होगी तो बात का ई कचरा हो जाएंगा। ऐसा करने से हिन्दी की ऐसी तैसी तो होणी है भावों का भी सतानाश होगा। ऐसा नई है कि सब लोग ऐसा ही सोचत हैं लेकिन सोचने के लिए सोचना जरूरी हैं कि साहित्यवाला बनने से बढिया हैं कि बढिया लिखणवाला क्यों बन बना लिया जाए । ऐसे तो काम कैसे चलेगा कि ऊटपटांग में कुछ भी लिखा दे मारें तो कुछ समझ में आएगा तो कुछ कचरा हो जाएगा।
ReplyDeleteशायद इस वजह से वर्तनी और संबंधी शुद्धियों का आग्रह किया जाता होगा। :)
एक और शुद्धि
ReplyDeleteवर्तनी और भाषा संबंधी शुद्धियों का आग्रह किया जाता होगा। :)
तालियां बजाली हमने भी.:) हम तो ढंग के ब्लागर भी बन जायें तो बहुत बडी बात होगी.
ReplyDeleteसाहित्यकार का हमारा नम्बर इस जन्म मे तो आने वाला नही है.:)
रामराम.
रचना जी आपके पचीसवें लाईन के बांये अंतरे में वर्तनी ठीक कर लिजिये। अनिल जी, जरा अपने नाम में नील पर जोर ज्यादा दिजिये। रौशन जी, आप र शब्द जरा गुर्रा कर बोला किजिये....ताउ जी आप उ पर टेढे पू की मात्रा लगा दिजिये :)
ReplyDeleteअब इतनी गलतियां निकाल दिया है मुझे साहित्यकार वाला मैडल दिया जाय.......अरे वो क्या है ताउ के हाथ में - अरेरे ये तो कोई जूता है। माफ किजिये ताउ..... इसका माप मेरे पैर से नहीं मिलता....पहले मेरे पैरों का माप ले लिजिये तब जूता फेकिये और ऐसा फेकिये की मैं कैच कर सकूं.....औऱ हाँ मीडीया वालों को जरूर बुला देना ताकि खबर बने....एक साहित्यकार पर जूता फेंका गया :)
Just Kidding :)
रचना जी, ये ब्लॉगजगत में आजकल की नई खुशफहमी है कि बलॉगर कहाउं या साहित्यकार ।
मुझे तो लगता है इन दोनों शब्दों से अच्छा है कि कहा जाय - टाईम खोटीकार :)
BAHUT SAHI...
ReplyDeleteHUM BLOGGERS KA DIL JEET LIYA...
HIMANSHU JI KI TIPPANI BHI PASAND AAIE...
ReplyDeleterampuriya ji bhi aaj aagaey taali bajaane , aho bhagya is blog kae
ReplyDeletemae aap ko tau nahin kehsaktee kyuki uttar bharat mae tau pita kae badae bhai ko hi kehaa jaata haen aur us umr seema ko aap ne nahin chua haen
so raampuria ji sae hi kaam chalega mera to
satish pancham ji
ReplyDeleteaap ko jaldi hi medal milaega abhi to sirf badaey blogger sahitykaar banaaye jaa rahey haen
timekhoteekar is the appropriate word..i think...
ReplyDeletetaliyan...... :)
ReplyDeleteham to blogger ban kar khush hain..
hame na to buddhijivi banna hai aur na hi sahitykar... kabhi sahitykar banne ka bhoot chadha bhi to angreji me banege, kuchh dhang ki kamayi to hogi.... :D
सतीश जी गुर्राना किस पर है ये भी तो बताना था
ReplyDeleteरौशन जी, उस पर गुर्राईये जो आपसे तगडा न हो , जिस पर गुर्राने से पहले आपको पता हो कि ये मेरा कुछ नहीं बिगाड सकता :)
ReplyDeleteसतीश जी आपकी कद-काठी कैसी है
ReplyDeleteगुर्राने पर आप कैसे रिएक्ट करते हैं :-)
कद तो ठीक ठाक है पर काठी का पता नहीं है आज तक काठी का सिर्फ नाम सुना है देखा नहीं है :)
ReplyDeleteअरे ये तो हम लोग चैट बॉक्स की तरह रचना जी के ब्लॉग का इस्तेमाल कर रहे हैं। रचना जी बुरा मान जायेंगी :)
चलिये अब सो जाउं, वरना बच्चे मुझ पर गुर्रायेंगे और पत्नी अलग कि न जाने क्या टिपिर - टिपिर टीपते रहते हैं :)
मजेदार रहा आज रचना जी के ब्लॉग पर कई बार आना। शायद यह भी ब्लॉगिंग का एक अनोखा रंग है।
तालियाँ.... तालियाँ.... तालियाँ.... तालियाँ.... तालियाँ.... तालियाँ.... तालियाँ.... तालियाँ.... तालियाँ.... तालियाँ.... तालियाँ.... तालियाँ.... तालियाँ.... तालियाँ.... तालियाँ.... तालियाँ.... तालियाँ.... तालियाँ....
ReplyDeleteइतनी बजा दी, अब तो हमें भी साहित्यकार बना दो...
टाइमखोटीकार कौन बोला, जी ?
ReplyDelete2007 से तो इस पदवी पर मेरा कब्ज़ा है !
तालियाँ .. नहीं जी स्माईलियाँ !!
अमर जी, अब आपकी ये टाईंमखोटीकार की पदवी छिनने जा रही है क्योंकि ठेर सारे टाईमखोटीकार इस बात पर टाईम खोटी कर रहे हैं कि अगला कौन बनें :)
ReplyDeleteइस पोस्ट के मकसद को अगर रोशन और सतीश पंचम ने "जी " लिया तो पोस्ट लिखना सार्थक हुआ .
ReplyDeleteऔर रही बात टाइमखोटीकर उपाधि कि तो एक प्रशन था "किसका टाइम खोटी कर " अपना या जो उसको पढता हैं उसका . ये साफ़ यानी क्लीयर कर दिया जाए और फिर उपधियाया जाए
@ एक प्रशन था "किसका टाइम खोटी कर " अपना या जो उसको पढता हैं उसका .
ReplyDeleteरचना जी ये तो यक्ष प्रश्न है। बेहतर हो इसे अनुत्तरीत ही रहने दिया जाय। क्योंकि अनुत्तरीत प्रश्नों की भी एक सुंदरता होती है ।
रही बात मेरे द्वारा इस पोस्ट को जी लेने की तो हां , ये सच है काफी अच्छा लगा इस दोतरफा कमेंन्टबाजी से।
किसका.. टाइम ?
ReplyDeleteअरे, अपने अपने मन की मर्ज़ी के मालिकान का !
वस्तुतः यह टाइमखोटी तब होता, जब पाठ्क अपने को लेखक साबित करने में
और कीबोर्डधारी अगले को पाठक मनवाने में हलाकान होते रहते हैं !
हार कोई न मानता, बेचारे कम्प्यूटर का वक़्त जाया होता वह अलग से !
नतीज़ा निकला कुछ नहीं, तो हुआ न टाइम खोटी ?
हम सोचते थे कि साहित्यकार कहलवाने का ठेका सिर्फ हिन्दी साहित्य वालों को है (हम अपनी जुगाड़ में थे, इसी कारण साइंस छोड़कर हिन्दी साहित्य में घुसे)
ReplyDeleteक्या कोई भी लेखक नहीं बचा?
परिभाषा इतनी कि हम जिन्हें साहित्यकार कहते हैं उनको सामने रखकर अपनी तुलना करें।
इत्ता सरल: तो लिजिये-
ReplyDeleteबहुत आसान हैं -ऐसे नहीं- बहुत आसान है.....
-बन गये.