मेरे ब्लॉग के किसी भी लेख को कहीं भी इस्तमाल करने से पहले मुझ से पूछना जरुरी हैं

मेरे ब्लॉग के किसी भी लेख को कहीं भी इस्तमाल करने से पहले मुझ से पूछना जरुरी हैं

June 17, 2009

कल की पोस्ट पर आए दो कमेन्ट

कल की पोस्ट पर आए दो कमेन्ट यहाँ दे रही हूँ क्युकी दोनों मे बहुत कुछ हैं जिस पर चर्चा हो सकती हैंकमेन्ट पढेसंभवत आप के पास इनके जवाब हो पर आप ना देना चाहे तो भी कोई बात नहीं क्युकी जवाब तो आप के पास है ही , संभवत आप के पास इन दोनों के लिये प्रश्न हो तो वो आप इनसे यही पूछे देखे ये आप के प्रश्नों के उत्तर देना चाहते हैं या नहीं
वैस नीरज रोहिला ने जो कहा उस से मै पूरी तरह सहमत हूँ और Anonymous ने कमेन्ट करने के कारण को लेकर भी जो कहा हैं उस से भी मे सहमत हूँ और इसी लिये दोनों कमेन्ट पोस्ट बना कर दे रही हूँ
Anonymous said...

As a reader you may agree or disagree with the post on any Blog. But the comments on the post give you more views related to that subject. Those comments may support/oppose/addition to the post. Basically comment section should be a critical analysis of the subject matter of the post. However in Hindi Blogging comments section is used for support/oppose the writer/blogger and most of the time comments have no relation to the post/subject. If you review comments, you may find that atleast 2 out of 7 are worthless for other readers. They posted there comment since they want to be your friend/enemy/on your good book/on your bad book, but not adding any value to your post/blog. If we review any blogs/post with 100 or more comments, you may find 90% are worthless. As a Hindi blogger if you are concern about future of Hindi Blogging, you should pay more attention / respect to the comment section and while posting comment pay attention that you are adding some value to that post. As a blogger stop posting worthless comments on other hindi blogs/post. We are making hindi blogging like:- Pan ki Dukan ka Adda, Samantshahi Raja ki Gaddi jahaa par log salaam karane aate hai, mushayara/kavita sabha ka manch for wah....wah...wah. On one hand most of the hindi blogger claim that they are doing this to promot Hindi. However their action shows they are doing this for interneting (relationship building)/ to show off his higher cast or higher position / promoting personal business etc.
I dont want to hurt anyone and this is for all hindi bloggers (not for you only Rachana)

Neeraj Rohilla said...

रचना,
एक और सवाल भी है जिस पर मैं पिछले काफ़ी समय से सोच रहा हूँ। हिन्दी ब्लागिंग अपने विचारों को हिन्दी भाषा के माध्यम से व्यक्त करने का जरिया है अथवा केवल हिन्दी बोलने/पढने/सुनने वाले क्षेत्र से सम्बद्ध बातों पर विचार-विमर्श।

बहुत बार देखा है कि कोई ऐसी बात जो हमारे कम्फ़र्ट जोन से बाहर की होती है उस पर संस्कृति/सभ्यता/समाज का ठप्पा लगाकर अप्रासंगिक सिद्ध करने की कोशिश होती है। अगर हिन्दी केवल भाषा है तो फ़िर किसी भी प्रकार के विचारों का स्वागत होना चाहिये बिना किसी पूर्वाग्रह के, आप सहमत हों कि न हों ये अलग बात है।

मैं अपनी पढाई के सिलसिले में आजकल देश से बाहर हूँ और कई बार कुछ लिखना चाहता हूँ लेकिन फ़िर सोचता हूँ हिन्दी ब्लाग जगत पर लिखने से अच्छा अंग्रेजी में लिखूँ लेकिन अलग अंग्रेजी ब्लाग बनाने के आलस्य में छूट जाता है।

5 comments:

  1. निरज, ब्लॉग अपने विचार व्यक्त करने के लिए बनाया जाता है या दुसरों की प्रतिक्रिया पाने के लिए? आप अगर हट कर कुछ लिख सकते हैं तो जरूर लिखें. सुनिल दीपक वही तो कर रहें है.

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  2. Anonymous की प्रतिक्रिया बिल्कुल सटीक है। उसके बावज़ूद, टिप्पणियों में यदि टिप्पणीकर्ता अपने व्यक्तिगत विचार प्रकट करता है, पोस्ट के विषय से सम्बन्धित, तो पोस्टलेखक उसे अपने पर ओढ़ कर, पूर्वाग्रह सहित, व्यक्तिगत/ सामाजिक स्तर पर ले आता है।

    पोस्ट लेखक यदि उदार हो तो फिर टिप्पणी करने वाला पहले से दिख रही टिप्पणियों के आधार पर ऐन वक्त पर विचार बदल संदर्भ से अलग लिख देता है। इस चिल्ल-पों के चलते ही कितने ही व्यक्ति, सार्थक टिप्पणी दिये बिना लौट जाते हैं। यदि पोस्ट लेखक ऐसी बातों को रोकना ही चाहता है तो अपनी पोस्ट के प्रकाशित होने के अगले 24 घंटे तक मॉडेरेशन लगा दे फिर अपनी समझ से चुन चुन कर प्रकाशित कर दे। कई ब्लॉगर कर भी रहे हैं ऐसा।

    कई पोस्टें तो मात्र filler जैसी प्रतीत होतीं हैं। कई टिप्पणीकर्ता वही 3-4 शब्द बिना किसी संदर्भ के, हर पोस्ट में लिख देते हैं, जिससे अर्थ का अनर्थ हो जाता है।

    वैसे मेरा व्यक्तिगत अनुभव रहा है कि विषय-विशेष से जुड़े व्यक्ति संबंधित पोस्ट बड़े ध्यान से पढ़ते हैं, असहमति होने पर व्यक्तिगत ई-मेल से सम्पर्क कर स्पष्टीकरण मिल जाने पर अपनी अच्छी-बुरी प्रतिक्रिया सार्वजनिक करते हैं। किन्तु ऐसे लोग बहुत कम हैं।

    नीरज की टिप्पणी से जुड़े 'पूर्वाग्रह' के बारे में, मैं पहले पैराग्राफ में लिख चुका।

    वैसे Anonymous की टिप्पणी बहुत कुछ कह रही, उन बातों पर गौर किया जाना चाहिए

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  3. मुझे भी कभी-कभी लगता है कि ब्‍लॉग पर इतनी वाह-वाह क्‍यों होती है। गंभीर टिप्‍पणियां पोस्‍ट लेखक के साथ-साथ पढ़ने वालों के लिए भी उस विषय की जानकारी बढ़ाती हैं। वैसे मुझे ब्‍लॉग पर गंभीर लेखन का ही थोड़ा अभाव नजर आता है। कहीं इससे हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग से स्‍तरीय लेखक और पाठक न दूर हो जाएं। इसके अलावा असहमतियों के लिए स्‍पेस भी लगभग न के बराबर छोड़ा जाता है। किसी बात को सुनने से पहले ही अमुक विचारधारा का लेबल लगाकर अपनी बात अनवरत कहते रहना ब्‍लॉग पर खूब दिखाई देता है। वैसे मुझे एनोनिमस की बात में दम नजर आता है। टिप्‍पणियां सार्थक और वैल्‍यू एड करने वाली होनी चाहिए।

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  4. मैं असहमत हूँ।
    (1) अपने मुँह मिया मिठ्ठू नहीं बन रहा लेकिन मेरे अलावा बहुत से हिन्दी ब्लॉगों पर गम्भीर लेखन भी हो रहा है और गम्भीर टिप्पणियाँ भी । थोड़ा 'सूप' फटकें और फटकाएँ।
    (2) हिन्दी ब्लॉगिंग अभी अपने शैशव में है अत: थोड़ा बचकानापन स्वाभाविक है। लेकिन बचकानापन मुख्य धारा नहीं है।
    (3) हर भाषा की एक खास संस्कृति होती है जो उसे विशिष्टता और खास पहचान देती है। अंग्रेजी की अपनी खासियत है तो हिन्दी की अपनी।

    भाषा की विशिष्टता उससे जुड़े हर पहलू में दिखती है और हिन्दी ब्लॉगिंग अपवाद नहीं है । इसका अपना एक सौन्दर्य है, एक अपनी सुगन्धि है और सबसे बड़ा है अपनापन का भाव। मातृभाषा जो है।

    इसीलिए टाइपिंग में तंग होने पर भी मैं हिन्दी में लिखता हूँ हालाँकि मैं अंग्रेजी में भी उतना ही अच्छा या बुरा लिख सकता हूँ ।

    और मैं अकेला नही हूँ।

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  5. गुमनाम की बातों से मैं मोटे तौर पर सहमत हूं, पर इसे सही परिप्रेक्ष्य में देखने की जरूरत है।

    हिंदी ब्लोगिंग अभी नया है, यही दो-चार साल पुराना। लोग अभी भी इस माध्यम की पूरी संभावनाओं को टटोल ही रहे हैं। अधिकांश हिंदी ब्लोगरों और पाठकों के सामने यह समस्या भी रहती है कि वे लंबे समय तक इंटरनेट से जुड़े नहीं रह सकते। अधिकांश ब्लोगर दफ्तर के खाली समय में अथवा इंटरनेट कफे में जाकर ब्लोगों को देखते हैं और उन पर टिप्पणी करते हैं। ऐसे में सोच-विचारकर लंबी चौड़ी टिप्पणियां करने का समय उनके पास नहीं रहता। दूसरी समस्या यह है कि अधिकांश ब्लोग पाठकों को कंप्यूटर पर ठीक से देवनागरी लिपि में लिखना नहीं आता, इसलिए लंबी टिप्पणियां करना उनके लिए मुश्किल होता है। अब भी काफी टिप्पणियां रोमन लिपि में लिखी हुई आती हैं या लोग फोनेटिक का उपयोग करते हैं।

    हर साहित्यिक विधा को हर संस्कृति में अलग-अलग तरीके से अपनाया जाता है। उपन्यास को ही लीजिए। अधिकांश भारतीय भाषाओं में अंग्रेजी के समान भारी-भरकम 500 पृष्ठों के उपन्यास नहीं लिखे जाते हैं। भारतीय भाषा का एक औसत उपन्यास 100 पृष्ठों के अंदर होता है। मलयालम के प्रसिद्ध उपन्यास वैकम मुहम्मद बशीर के कुछ उत्कृष्ठ उपन्यास तो मात्र 50 पृष्ठों के ही हैं।

    इसी तरह ब्लोगों को भी हिंदी भाषी अपनी समझ, रुचि, आदि के अनुसार अपना रहे हैं। यदि वे छोटी टिप्पणियां करते हैं, तो इसमें क्या बुरा है? जरूरी थोड़े ही है ब्लोगों को संसद या विधान सभा में बदला जाए।

    हिंदी ब्लोगरों का अदर्श कवि सम्मेलन हैं, जिसमें भी इसी तरह की टिप्पणियां आती हैं। काव्य की बाल नकालने का काम समालोचक अपनी पुस्तकों और साहित्यिक पत्रिकाओं में अलग से करते हैं।

    तो इन बातों को समझने की भी जरूरत है।

    जैसे अंग्रेजी उपन्यास का रूप-रंग अलग है और हिंदी उपन्यासों का रूप-रंग अलग है, उसी प्रकार अंग्रेजी ब्लोगों की चाल-ढाल और हिंदी ब्लोगों की चाल-ढाल में भी फर्क है।

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