मेरा कमेन्ट
अब तो सबके कमेन्ट आ चुके हैं सो कुछ प्रश्न हैं सोचा अब पूछ ही लूँ
इतनी सारी ब्लॉग मीटिंग के बाद
हिंदी को कितना आगे लेजाने में आप सक्षम हुए हैं
ब्लोगिंग को इस से कितना फायदा हुआ हैं
किस सामाजिक समस्या के लिये ब्लॉग समाज जो वास्तविक धरातल पर मिल चुका उसने कुछ किया हैं
क्या मसौदा होता हैं इन मीट का और क्या उस पर कभी बात भी होती हैं
हर बार कहा ये ही जाता हैं { जो ब्लॉग पर पढ़ कर पता चलता हैं } समय अभाव के कारण ब्लोगिंग पर ज्यादा बात नहीं हुई बस मिलना हुआ
केवल और केवल खाना पीना और ग्रुप बना कर एक दूसरे के ब्लॉग पर एक दूसरे की तारीफ़ में पोस्ट लिखना क्या यही हैं हिंदी ब्लॉग्गिंग की सकारात्मकता जिसके इतना बखान होता हैं
और क्या कभी आप ने ब्लॉग पर क़ोई सर्वे किया हैं की जो ज्यादा सक्रिय हैं ब्लोगिंग में वो इन मीटिंग में आते ही नहीं
ये मीटिंग केवल अपने सामाजिक सरोकारों को बढ़ावा देना का माध्यम हैं और उससे ज्यादा कुछ नहीं
इतने चित्र डाल कर क्या हासिल होता हैं की हम कितने प्रिये और पोपुलर हैं
चाय नाश्ता खाना पीना सब ठीक हैं अगर किसी मकसद से मिलना हो तो वर्ना इसको ब्लॉगर मीट कहना फिजूल ही हैं क्युकी ये फैशन हो गया हैं की हम ब्लोग्गर हैं , हम मिले , हम बैठे , हमने बीयर पी , हमने ब्लडी मेरी पिलाई .
ठीक हैं आप को या किसी को शौक हो सकता हैं अपने सामाजिक सरोकार बढाने का पर उसको मीट ना कहा करे . मीट हो तो क़ोई मुद्दा तो हो जिस पर दिस्कुशन हो यहाँ तो गाना बजना , ग़ज़ल कविता होती हैं हम किसी कवि सम्मलेन में नहीं जा रहे और ना ही किसी की ग़ज़ल सुनने ये सब पहले ही बता देना चाहिये ताकि जो लोग आते हैं उनको पता हो किस लिये आना हैं .
स्नेह प्रदर्शन के लिये मीट जरुरी हैं पता नहीं था और स्नेह का प्रदर्शन भी होना चाहिये ये भी पता नहीं था ।
ब्लॉग परिवार का ढोंग करने से क्या हासिल होता हैं
क्या आप के साथ कभी नहीं हुआ की इस परिवार के पीछे आप ने सच को नकार दिया वहाँ कमेन्ट नहीं दिया जहां आप के मित्र ब्लोग्गर गलत लिखते हैं क्या कभी आप की आत्मा ने आप को कचोटा हैं की हाँ मैने गलत किया इस मुद्दे पर अपने ख्याल ना देकर क्युकी ये मेरे दोस्त का ब्लॉग था और मेरे कमेन्ट करने से वो नाराज हो जाएगा
परिवार तो बच जाता हैं सतीश जी पर समाज रीढ़ विहीन हो जाता हैं जब हम मुद्दों से बचते हैं और स्नेह और समझदारी की बात करते हैं केवल इस लिये की टिप्पणी की संख्या में कमी ना आये
सच बोलना जितना मुश्किल है , सच को स्वीकारना उस से भी ज्यादा मुश्किल है . लेकिन सच ही शाश्वत है और रहेगा मुझे अपने सच पर उतना ही अभिमान है जितना किसी को अपने झूठ से होने वाले फायदे पर होता हैं
मेरे ब्लॉग के किसी भी लेख को कहीं भी इस्तमाल करने से पहले मुझ से पूछना जरुरी हैं
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दीदी, ब्लागिंग मे अब केवल दिखावा ही रह गया है.. वाह्य अडम्बर इतना है अब ब्लागर कहलाने का मन नही करता।
ReplyDeleteअब तो मै कम लिखता हूँ और अपने लिये लिखता हूँ अपने पाठको के लिये न कि टिप्पणी के लिये.....
ब्लॉगर मीट -जहां भी ब्लॉगर (मीत) मिल लें ब्लॉगर मीट हो गयी -ये परिभाषा पल्लू से गाँठ बान्ध लें.....
ReplyDeleteअब कुछ लोगों की हमेशा नकनकाने की आदत होती है -सिनिक होते हैं -
दोनों जहां हार जाते हैं -न खुदा ही मिला न विशाले सनम न इधर के रहे न उधर के रहे ...
ध्यान रहे -जीवन अभी भी शेष है !
*विसाले सनम
ReplyDeleteओह ना खुदा मिला ना विसाले सनम
ReplyDeleteइसीलिये इतने मीत मिलते हैं
क्या घर बैठे उनके सनम नाकाफी हैं जो और खोजने चले
या घर बैठे हुए सनम ने उनको खुदा मानना छोड़ ही दिया हैं
इस लिये दर दर भटक रहे हैं
:) @सत्यान्वेषण के लिए हम खुले और पवित्र मन से आमंत्रित करते हैं ,आईये और खुद जान जाईये!
ReplyDelete* विचारोत्तेजक पोस्ट। विचारमंथन की ज़रूरय।
ReplyDelete** आपसे सहमत।
*** दो साल ब्लॉगजगत में होने को आए। अब तक अपनी राह आप बनाकर चलता चल वाली स्थिति है .. आगे भी रहेगी। इसमें टिप्पणियों से प्रोत्साहन तो रहा है, मोह नहीं।
**** जब तक कोई पोस्ट भड़काऊ, जाति-धर्म विद्वेश फैलाने वाली या व्यक्तिविशेष को केन्द्रीत कर आक्रोश और उन्माद से न लिखा गया हो मैं उसे अच्छा ही मानता हूं और सब पर जाकर टिप्पणी देना पसंद करता हूं।
***** अब तक किसी ब्लॉगर मीट में नहीं गया। कम से कम अफ़सोस नहीं है। हां, जहां तक मिलने मिलाने की बात होती है जहां दिल मिलते हैं, समय और सुअवसर हाथ लगता है मिल ही लेते हैं।
@arvind mishra
ReplyDeleteदूसरो के घर में क्या हैं , दूसरो की जीवन शैली मे क्या हैं इस का ब्लॉग लेखन से क़ोई सम्बन्ध नहीं हैं आप का कमेन्ट व्यक्तिगत था इस लिये मोडरेट ना करके जवाब दिया । इंसान बनने का सफ़र कुछ के लिये जल्दी ही ख़तम हो जाता हैं और इंसानियत का सत्यान्वेषण उनको ही रास आता हैं
व्यक्तिगत मुलाकत को ब्लॉगर मीट कह दें चाहे जो कह दें, वह रहेगी व्यक्तिगत मुलाकात ही. हर बार यह याद दिलाना कि हिंदी ब्लॉग परिवार में प्रेम है, सद्भाव है, ज़रूरी नहीं है. जो बात है वह है. उसे बार-बार लिखने और याद दिलाने से लोगों के मन में शंका उत्पन्न हो सकती है कि कहीं कुछ गड़बड़ तो नहीं है.
ReplyDeleteमैंने केवल एक बार ब्लॉगर मीट (जो कि घोषित ब्लॉगर मीट थी) अटेंड की थी और उसके बाद तौबा कर ली. ब्लॉगर मीट मुझे तो नहीं भाई. मीट करके हिंदी की सेवा कर उसे को एवरेस्ट पर पहुंचाने वाले लगे रहें. शायद हिंदी ऊपर पहुँच ही जाए.
और हाँ, अपने-अपने ग्रुप बनाते रहें. टिप्पणियां बहुत महत्वपूर्ण होती हैं. ये तथाकथित ब्लॉग-बल देती हैं.
ReplyDeletemaine bahut blogger meet to nahin atend kar paai lekin ek men shamil hui. ham usake arth ko khojate rah gaye. bas santosh yah hua ki ham kuchh achchhe logon se mil paaye. ve diggaj hain isaliye bhi nahin balki mujhe achchhe lage. rahi sahi tippani dene kee bat to shayad maine sirph prashasti nahin karti. han agar kisi ne kuchh galat likha hai to usa par apane vichar jaroor vyakt karti hoon. tippani milane ka moh nahin hai aur na hi main isa daud men shamil hoon. apane seemit smay men jo bhi likh leti hoon daal deti hoon. samajik sarokar jaroori hai aur usase judi hoon.
ReplyDeleteरचना जी,जहाँ तक बात आपने की आपसी संबंधों की वजह से आलोचनात्मक टिप्पणी करने से बचने वाली प्रवृति की तो वो तो वैसे भी लोगों में यहाँ बहुत देखी जाती है इसके लिए हम ब्लॉगर मीट को क्यों दोष दें.किसीको मीट आयोजित करनी है तो करे पर हाँ यदि उसमें कोई मुद्दे वाली बात ही नहीं हुई हैं तो यहाँ चर्चा करने की जरूरत है ही नहीं.और एक राज की बात तो मैं आपके कान में कहना चाहता हूँ.जो लोग ऐसी मीट का हिस्सा नहीं होते उन्हें इन पर आई पोस्टे पढना बहुत बोझिल लगता है जिनमें सिवाय खाने पीने की चर्चा या एक दूसरे की प्रशंसा भरी हुई हो चाहे लोग कमेंट में कुछ भी कह रहे हों इनमें भी ज्यादातर नियमित पाठक ही होते है.पर मैं ये किसी खास पोस्ट के संदर्भ में नहीं बल्कि ऐसी हर पोस्ट के बारे में कह रहा हूँ.
ReplyDeleteतो शिव भाई का निष्कर्ष यह कि हिन्दी ब्लॉग जगत की सेवा बिना ब्लॉग मीट के बेहतर की जा सकती है -जो वे निरंतर अप्रतिभ कर रहे हैं -उन्हें बधाई !जिन्हें सम्बन्धों की ऊष्मा का पता नहीं ,जो लोग मनुष्य होकर भी एकाकी रह जाते हैं -हे ईश्वर उन्हें तू शान्ति दे!
ReplyDeleteमनुष्य दुनिया में एकाकी आता हैं और एकाकी ही जाता हैं
ReplyDeleteशांति तब पाता हैं जब दूसरो के जीवन में नहीं झांकता हैं
बहुत से मनुष्य एकाकी नहीं होते पर अकेले होते हैं
वही संबंधो का प्रदर्शन कर के अपने अकलेपन को छिपाते हैं .
हे ईश्वर जिनके पास सम्बन्ध हैं पर फिर भी वो अकेले हैं
उनको मानसिक विक्षिप्ता से बचाना
लिखने-लखाने और टिप्पणियां पाने से ज्यादा अच्छा है हम आपस में मिलते रहें,और हो सके तो जलते भी रहें...दिये की तरह ,दिलजले की तरह नहीं !
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