कल या परसों अखबार में एक खबर थी
एक चमड़े के व्यापारी ने बहुत अधिक कर्ज़े के कारण और व्यापार में बहुत अधिक नुक्सान के कारण आत्म हत्या कर ली
अफ़सोस हुआ मंदी के दौर में एक्सपोर्ट का व्यापार बहुत लोगो को नुक्सान ही दे रहा हैं इस लिये ज्यादा आश्चर्य नहीं हुआ
आश्चर्य तब हुआ जब मैने उसी अखबार के तीसरे पन्ने पर उन्ही सज्जन की obituary देखी चित्र के साथ । उस obituary को छपने के लिये कम से कम २५००० रूपए तो लगे ही होगे
एक व्यक्ति ने अपनी जान देदी और उसके परिवार को अब भी दिखावा करना है और पैसा नष्ट करना हैं ।
मंदी के दौर से ज्यादा , दिखावे ने परिवारों को आर्थिक तंगी के दौर में ला कर खड़ा कर दिया हैं ख़ास कर बिज़नस करने वालो को ।
लगा बहुत गैर जरुरी खर्चा था ये २५००० रुपया , हो सकता हैं उनके यहाँ काम करने वालो को तनखा ना मिली हो , हो सकता हैं लोन को क़ोई किश्त जानी हो ।
बैंक से लोन लेकर गाडी , मकान खरीदना और किश्ते ना दे पाना ,
क्रेडिट कार्ड से समान खरीदना
पैसा ना होने पर भी पैसे का दिखावा करना और अपने परिवार को अपनी आर्थिक वस्तु स्थिति से परचित ना करवाना आज कल जितना आम हो गया हैं उतना ही आम अब आर्थिक तंगी के कारण आत्महत्या करना हो गया हैं
ईश्वर मृतक की आत्मा को शांति दे
सच बोलना जितना मुश्किल है , सच को स्वीकारना उस से भी ज्यादा मुश्किल है . लेकिन सच ही शाश्वत है और रहेगा मुझे अपने सच पर उतना ही अभिमान है जितना किसी को अपने झूठ से होने वाले फायदे पर होता हैं
मेरे ब्लॉग के किसी भी लेख को कहीं भी इस्तमाल करने से पहले मुझ से पूछना जरुरी हैं
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व्यर्थ का दिखावा ही तो जान लेता है !!
ReplyDeleteगावों में जहाँ मृत्युभोज जैसी कुरीतियाँ होती है वहीं शहरों में ये जबरदस्ती के चोंचले.केवल दिखावा ही नहीं व्यक्ति में आज कहीं न कहीं संघर्ष करने की क्षमता में भी कमी आई है.और आपकी इस बात से बिल्कुल सहमत हूँ कि व्यापारी वर्ग में दिखावे की प्रवृति थोडी ज्यादा होती है.
ReplyDeleteखुद को बड़ा दिखाने की कोशिश करते हैं लोग ,सार्थक पोस्ट
ReplyDeleteकटु सत्य
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