जब से डॉ अमर की मृत्यु की खबर मिली तब से केवल एक ही विचार मन में रहा "उनकी माँ कैसी होगी " , जानती थी वो अभी जीवित हैं पर सुनना चाहती थी की नहीं हैं ।
किसी भी अभिभावक के लिये उसके बच्चे की मौत जिन्दगी की सबसे बड़ी त्रासदी हैं ।
अपनी माँ को देखती हूँ जो ७२ वर्ष की हैं मेरे या मेरी बहनों के ज़रा भी बीमार पड़ने से वो एक दम देहल जाती हैं ।
मै क्युकी उनके साथ रहती हूँ तो मुझ पर इस वृद्ध अवस्था में कुछ ज्यादा डिपेण्ड करने लगी हैं और मुझे खांसी भी आ जाये तो वो नर्वस हो जाती हैं
कई बार खिजलाहट में , मै कह बैठती हूँ , माँ तुम एक पुड़ियाँ बना कर मुझे उसमे रख लो ।
इस पर वो कहती हैं देख तेरा मेरा कुछ भी झगडा हो , अनबन हो पर इस बुढापे में मुझे ऐसा क़ोई कष्ट ना देना । मुझ से क़ोई दुश्मनी ना निकालना ।
ना जाने कितनी बार उनको दिलासा देना पड़ता हैं वायदा करना पड़ता हैं की नहीं ऐसा कभी नहीं होगा । तुमको भेज कर ही इस दुनिया से विदा लुंगी ।
कल जब उन्हे डॉ अमर जो शायद ५८ वर्ष मात्र थे के निधन का बताया और डॉ अमर की माँ का बताया तो कहने लगी पाता नहीं क्यों ईश्वर इतनी लम्बी आयु देता हैं जल्दी उठा ले , बच्चो के कष्ट किसी को ना दिखाये ।
कभी डॉ अमर की एक पोस्ट पढ़ी थी जब कैंसर ने उनके यहाँ दस्तक दी थी जिस में उन्होने अपनी माँ के विषय में लिखा था ।
कल से उनकी माँ का दर्द अपने आस पास बड़ी शिद्दत से महसूस हुआ ।
बच्चो के कर्तव्यो में एक कर्तव्य अभिभावक का संस्कार भी होता हैं क्यों डॉ अमर को वो कर्तव्य पूरा करने से ईश्वर ने रोका ?
और अभिभावकों के कर्तव्यो में एक अपने बच्चो को जिन्दगी में सुव्यवस्थित देखना होता हैं , क्यों डॉ अमर को कर्तव्य पूरा करने से ईश्वर ने रोका ??
और पति का कर्तव्य होता हैं अपनी पत्नी को खुश रखना , हमेशा , क्यूँ डॉ अमर को ईश्वर ने इस कर्तव्य को भी पूरा करने से रोका ?
एक व्यक्ति जिसकी मृत्यु बिना उसके कर्तव्य पूर्ति के होती हैं वो निर्मोही कहलाता हैं ।
और निर्मोही से कैसा मोह
जाईये डॉ अमर आज से आप से अपने मोह को खत्म किया , जो अपनी माँ का ना हुआ , अपनी पत्नी का ना हुआ , अपने बच्चो का ना हुआ वो हमारा कैसे होगा ।
आज़ाद किया आप को अपने मोह बंधन से ताकि आप वहाँ खुश रह सके जहां के लिये आप इतने सब कर्तव्यों की पूर्ति किये बिना चले गए ।
हमारा बार बार आप को याद करना आप को वहाँ भी कष्ट देगा जहां आप होंगे क्युकी कहीं ना कहीं ये दर्द आप को भी साल रहा होगा "मैने मर कर सही नहीं किया " ।
आप जहां रहे इस जीवन की झेली अपूर्णता से मुक्त रहे
आप की आत्मा शांत रहे और उनकी बन कर रहे जहां आप अब होगे
यहाँ की याद में बार बार आप अशांत ना हो
ॐ शांति शांति शांति
सच बोलना जितना मुश्किल है , सच को स्वीकारना उस से भी ज्यादा मुश्किल है . लेकिन सच ही शाश्वत है और रहेगा मुझे अपने सच पर उतना ही अभिमान है जितना किसी को अपने झूठ से होने वाले फायदे पर होता हैं
मेरे ब्लॉग के किसी भी लेख को कहीं भी इस्तमाल करने से पहले मुझ से पूछना जरुरी हैं
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सच मानिए मै भी तब से यही सोच रहा हूँ...क्यूंकि वे अपनी मां की सेवा में यकीन रखते थे ...अभी तक भाभी से बात करने की हिम्मत नहीं हुई है .
ReplyDeleteटिप्पणी हेतु शब्द नहीं मिल रहे… हृदयविदारक है यह सब…
ReplyDeleteसच तो यह है कि हम ऐसे दुख को देख कर सन्न से हो जाते हैं..दिल और दिमाग शिथिल पड़ जाते हैं...समझ ही नहीं आता कि ऐसे में क्या किया जाए..कैसे हौंसला दिया जाए जब कि खुद ही हौंसला पस्त हुए जाते हों...
ReplyDeleteकुछ भी नही..बस आँखें नम हैं...अपने भईया सामने निर्विकार पड़े है और माँ ज़ार ज़ार रोती दिखाई पड़ रही है.......!!
ReplyDeleteडॉ० अमर से कुछ लेन देन बाकी रह गया... शायद अगले जनम में मिलने का एक बहाना छोड़ा हो....!!
सच ही मान कैसे बर्दाश्त कर रही होंगी इस दुःख को ... विनम्र श्रद्धांजलि
ReplyDeleteयह पोस्ट और आप का यह अंदाज़ अच्छा लगा.
ReplyDeleteमाँ को लेकर वो बहुत भावुक थे. मेरी माँ पर लिखी पोस्ट पर उन्होंने बहुत भावुक होकर टिप्पणी दी थी.
ReplyDeleteश्रद्धांजलि
ReplyDeleteयह समय उलाहना का कम उनके प्रति सदर नमन का है.इस तरह के लोग कभी नहीं मरते.पारिवारिक दायित्व से उन्होंने पीठ नहीं दिखाई बल्कि जीवन के वास्तविक सत्य का आकलन किया था.
ReplyDeleteअभी जब मैं उनसे मिलकर आया था,उनमें जीवन के प्रति बड़ी आशा थी !
अपने दोस्तों के साथ ज़रूर वे दगाबाजी कर गए !
उनकी स्मृति को शतशः नमन !
ek to pahle se hi dukh tha unke jaane ka aur ab aapka likha padhkar aankh me aansu aa gaye.. kya kahe..
ReplyDeleteunko naman
डॉ अमर कुमार जैसा जीवंत और जीवट व्यक्ति मैंने कभी नहीं देखा । न सिर्फ बीमारी से साहस के साथ लड़े , बल्कि अपने व्यक्तित्त्व को भी अंत तक प्रभावित होने नहीं दिया ।
ReplyDeleteउनकी टिप्पणियों के रूप में हमेशा हमारे बीच रहेंगे ।
उनकी क्षति परिवार के लिए , ब्लॉगजगत के लिए अपूरणीय है ।
विनम्र श्रधांजलि ।
अमर जी ब्लोगबुड में भी अपनी जिंदा उपस्थिति के लिए जाने जाते रहे हैं, रिक्तता बची ही रहेगी। क्या किया जा सकता है, ‘हानि लाभु जीवबु मरबु जस अपजस बिधि हाथ!’
ReplyDeleteआखिर क्या था इस शख्सियत के व्यक्तित्व में कि आज सारा ब्लॉग जगत श्रद्धांजलियों के लिए उमड़ आया है .....
ReplyDeleteहमें इसकी मीमांसा करनी होगी फुरसत से ....
आपका विचार मंथन समझा जा सकता है -ऐसे भाव किसी स्नेही के ही हो सकते हैं और निर्मोही ऐसे ही होते हैं जो स्नेहियों को मर्मान्तक कष्ट देते हैं !
पर जिन्हें जाना होता है वह उनके वश में होता है क्या ?
श्रद्धांजलि का अलग ही अंदाज..अलग सोच।
ReplyDeleteश्रद्धांजलि का अलग ही अंदाज..अलग सोच।
ReplyDeleteडॉ साहब के कुछेक बार टिप्पणियां मेरे ब्लॉग पर आई थी, इटैलिक अक्षरों में टिप्पणी को देखते ही पता चल जाता कि यह टिप्पणी डॉ साहब की है।
ReplyDeleteआँखें नम हो गई। कोई शब्द नहीं मिल रहे। भगवान डॉ कुमार के परिवार को यह दु:ख सहन करने की शक्ति दे।
विनम्र श्रृद्धांजलि!!
ReplyDeleteआज उनका जन्मदिन है..
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