अन्ना मोवेमेंट के समर्थक हिंदी ब्लॉगर
आप सब को बधाई
आप ने इस बात को मुझ से जल्दी समझा
और शुक्रिया
मुझे समझाने के कमेन्ट में
ख़ास कर अंशुमाला और राजन का
सच बोलना जितना मुश्किल है , सच को स्वीकारना उस से भी ज्यादा मुश्किल है . लेकिन सच ही शाश्वत है और रहेगा मुझे अपने सच पर उतना ही अभिमान है जितना किसी को अपने झूठ से होने वाले फायदे पर होता हैं
मेरे ब्लॉग के किसी भी लेख को कहीं भी इस्तमाल करने से पहले मुझ से पूछना जरुरी हैं
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August 28, 2011
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रचना जी
ReplyDeleteधन्यवाद तो आप का जो आप आरम्भ में इस आन्दोलन का विरोध करते हुए भी अपना दिल और दिमाग खुला रखा था इसके समर्थको की बात सुनने और समझने के लिए और जानकारी मिलने के बाद आप ने इस आन्दोलन को समझा और अपने विचार बदले किन्तु ज्यादातर इसके विरोधी आप के जैसे अपना दिल और दिमाग खुला नहीं रखा है और केवल अपनी ही बात पर अड़े है और बात को समझने के लिए तैयार ही नहीं है वो भी तब जबकि उनकी सभी शंकाओ का एक के बाद एक समाधान कर दिया गया |
मै आन्दोलन के खिलाफ नहीं करने के तरीके के खिलाफ थी अंशुमाला बस बाद में तरीके के समर्थको की बात और बहुत सी बहस टी वी में देखी दो नजरिया बदला
ReplyDeleteरचना जी,
ReplyDeleteबात ये है कि कोई अपना नजरिया बदलना चाहता है या नहीं.आपने चाहा और मसले पर जो कनफ्यूजन था उसे दूर करने के लिए प्रयास भी आपने खुद ही किया अत: इसका श्रेय आपको ही जाता है.जहाँ तक बात है तरीके की तो इसके बारे में राय सभी की अलग अलग हो सकती है.हमने इस आंदोलन से कुछ न कुछ पाया ही है.क्या आपको नहीं लगता कि सिविल डिसऑबिडियेंस की जगह हम हिंदी शब्दों का प्रयोग करें तो ज्यादा अच्छा रहेगा?
सविनय अवज्ञा
(कुछ तो बात है हिंदी में)
चलिए!...देर आए...दुरस्त आए...
ReplyDeleteलेकिन बहुत से लोग अभी भी बेकार की बहस पर उतारू हैं...पहले उनके पास ये मुद्दा था कि "सिविल सोसाईटी में किसी मुस्लिम या दलित को क्यों नहीं शामिल किया गया"..
अब अन्ना की और आम जनता की जीत को देखने के बाद इस बात पर ऐतराज़ जता रहे हैं कि उनका इलाज महँगे अस्पताल में क्यों किया गया? या रामलीला मैदान में खुलेआम छोटे दुकानदारों को लूटा जा रहा था...उनसे ज़बरदस्ती सामान छीना जा रहा था...
मैं खुद भी दो बार गया था रामलीला मैदान में...मैंने ऐसा होता हुआ तो बिलकुल भी नहीं देखा...