मेरे ब्लॉग के किसी भी लेख को कहीं भी इस्तमाल करने से पहले मुझ से पूछना जरुरी हैं

मेरे ब्लॉग के किसी भी लेख को कहीं भी इस्तमाल करने से पहले मुझ से पूछना जरुरी हैं

August 08, 2011

काश

कभी कभी सोचती हूँ
क्या कभी
इस हिंदी ब्लोगर समुदाय में
क़ोई ऐसे ब्लोगर होगा
जो जब नए से पुराना हो जाए

ये हकीकत सब के सामने लाये


कि कैसे
उसके ब्लॉग लेखन मे आते ही
यहाँ के सम्मानित जनों ने
एक फहरिस्त
उसको दी थी पकड़ा
और
बताया था कि
कौन क्या क्या हैं
किस से डरना हैं
किस को इग्नोर करना हैं
किस पर कमेन्ट जरुर देना हैं


फिर कैसे उसके भ्रम टूटे
और उस ने पाया कि
जिनको वो आईडियल मानता था
वो दिगभ्रमित खुद ही थे
वो यहाँ केवल अपनी कहने आये थे
मजमे और मसाले मे
मसले जिनको कभी यहाँ ना भाये थे

क्या कभी क़ोई एक भी ऐसा ब्लोगर आयेगा
जो इस सच्चाई से
दूसरो को निर्भीकता से परिचित करायेगा




8 comments:

  1. मैं जब ब्लॉगिंग में आयी थी, तो मैंने सिर्फ़ ब्लॉग लिखना ही शुरू किया था. एग्रेगेटर के माध्यम से और लोगों के ब्लॉग से परिचय हुआ था. जिससे संपर्क हुआ, सिर्फ़ टिप्पणी के माध्यम से हुआ. कभी ना ही किसी से फोन पर बात हुयी और ना ही चैट. बहुत बाद में मुझे पता चला कि ब्लॉगर लोगों में व्यक्तिगत संपर्क भी होता है. जब मैंने ब्लॉग जगत को अच्छी तरह समझ लिया तब पिछले कुछ दिनों से कुछ लोगों से फोन के माध्यम से बात हुयी और कुछ लोगों से मुलाक़ात.
    इसीलिये मेरा ना कभी कोई आइडियल था और ना ही कभी मेरा मोहभंग हुआ. मुझे लगता है कि अगर किसी के साथ ऐसा कुछ होता है, तो इसका ज़िम्मेदार बहुत हद तक वो खुद होता है. क्योंकि अपनी छोटी सी ज़िंदगी में मैंने जाना है कि हर जगह राजनीति, गुटबाजी, नेतागिरी होती है. अगर आप इन सबमें पड़ते हैं, तो आपको तकलीफ होती है और नहीं पड़ते तो अलग-थलग पड़ जाते हैं. बहुत मुश्किल होता है खुद को संतुलित कर पाना. इसलिए किसी पर आँख मूँद कर भरोसा तो नहीं ही किया जा सकता. अगर आप करेंगे तो भुगतेंगे.
    रही बात गुट बनाकर किसी के पीछे पड़ने की तो ऐसा ज़रूर होता है. खासकर जब आप किसी की जी हुजूरी नहीं करते. तो इसके लिए भी मानसिक रूप से तैयार रहना चाहिए.
    मेरी छवि मेरे संस्कृत विभाग में हमेशा एक खूसट, खुर्राट, पुरुष विरोधी, सख्त लड़की की रही है. लड़के मुझसे डरते ही नहीं थे, नफरत भी करते थे. पढ़ाई में कुछ मदद भी चाहिए होती थी, तो उनकी हिम्मत नहीं पड़ती थी. क्योंकि मैं और लड़कियों की तरह लड़कों से हँस-हँसकर बात नहीं करती थी. सिर्फ़ मतलब की बात करती थी.
    पर मुझे अपनी इस छवि से कभी कोई प्रोब्लम नहीं हुयी क्योंकि मुझे मालूम था कि अगर आप लकीर से हटकर चलेंगे तो आपको ये सब झेलना ही पड़ेगा.

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  2. मेरे साथ भी ऐसा कुछ नहीं हुआ .. मैं स्‍वतंत्र रूप से आयी .. खुद ही लेखों और टिप्‍पणियों के माध्‍यम से लोगों को जानना समझना शुरू किया और दूसरों की पोस्‍ट पर यथोचित टिप्‍पणियां देनी शुरू की .. धीरे धीरे अन्‍य ब्‍लोगरों से परिचय हुआ!!

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  3. होगा क्या ये काम तो छुट पुट रूप से होता ही रहता है और कई लोग इस बारे में लिखते ही रहते है की क्या गुटबाजी है मठाधीशी है टिप्पणियों का आदान प्रदान है आदि आदि | दभी अपने हिस्से का थोडा थोडा सच कभी ना कभी तो लिखते ही रहते है कोई ब्लॉग के एक साल होने पर कोई सौवी दो सौवी पोस्ट पर | कुछ सोधे लिखा देते है तो कुछ थोडा छुपा कर इशारा कर देते है | पर हा ये सही है की सभी यहाँ पर एक ही उद्देश्य से नहीं आये है सभी का अपना अपना उद्देश्य है और सभी उसे ही पुरा करने में लगे है |

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  4. sab ek dusare ko kuch din main jaan lete hai....

    apna kaam hai karm kar....


    jai baba banaras.....

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  5. रचना जी ब्लोगिंग का आनंद लीजिये और कुछ मत सोंचिये जो अच्छा लगे उसे अपना लो जो बुरा लगे उसे जाने दो .....

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  6. मुझे लगता है ब्लॉग एक ऐसा platefrom है जिसमे हम अपनी भावानाओ को को शब्दों द्वारा वयक्त करते है.. और दुसरे ब्लॉग को पढ़ते ह जब हम किसी दुसरे ब्लॉग पढ़ते है तो बहुत कुछ सीखते है... एक बात जो मैंने महसूस करते है की हर ब्लॉगर बहुत अच्छा लिखते है सभी के अपने विचार है जो कभी कभी हमारे विचारो से विपरीत भी होते है तो वो सही नही है ये नही कह सकते... हम शिकयाते तो सभी से करते है पर कोई तो ऐसा हो जिसे हमें कोई शिकायत न हो...

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  7. आप अपने मिशन पर दृढ हैं , बाकि की जाने दीजिये !

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  8. ब्लोगर्स से ना तो कभी ज्यादा संपर्क रहा है ना ही मुझे लगता है की रहने वाला है

    वैसे भी सीधी बात कहने पर लोग तो दुश्मन या अज्ञानी या अनुभवहीन मानने लग जाते हैं, सबसे बड़ी बातहै की वे दुखी भी होते हैं, [यहाँ तक की लेख लिख ये सोचना पड़ता है की कहीं किसी और की कही बात से मेच तो नहीं हो रहा ], बेकार में क्यों किसी को परेशान करो, बस देखते रहो

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