राहुल गाँधी का लम्बा भाषण संसद में कितनो को पसंद आया ?
मुझे नहीं आया
लगा जैसे उन्होने देश को नाना की जागीर समझ लिया हैं जिस का ट्रस्ट बना कर वो उसके ट्रस्टी बनना चाहते हैं ताकि आजीवन उस से खा पी सके और आने वाली पुश्तो के लिये भी सहेज सके
और आग्रह हैं राहुल गाँधी की बात करे तो अन्ना की किसी बात से उनका मिलान ना करे क्युकी
ये अन्ना के प्रति अन्याय होगा
सच बोलना जितना मुश्किल है , सच को स्वीकारना उस से भी ज्यादा मुश्किल है . लेकिन सच ही शाश्वत है और रहेगा मुझे अपने सच पर उतना ही अभिमान है जितना किसी को अपने झूठ से होने वाले फायदे पर होता हैं
मेरे ब्लॉग के किसी भी लेख को कहीं भी इस्तमाल करने से पहले मुझ से पूछना जरुरी हैं
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sahi kaha ha rachna ji ne
ReplyDeleteएक घमंड साफ झलक रहा था राहुल के चेहरे पर.बोलते समय उनके चेहरे के हाव भाव से ही लग रहा था मानो कोई तानाशाह बोल रहा हो और अब उनका आदेश देश को मानना ही होगा.जहाँ तक राहुल के प्रस्ताव का प्रश्न है तो ये बात को उलझाने की चाल भर है.इसके बारे में शांति भूषण ने बहुत अच्छी बात कही कि रोटी तो दे नहीं सकते मिठाई की बात करते है और वैसे भी लोकपाल को संवैधानिक संस्था बना देने से कोई खास फायदा नहीं होगा क्योंकि फिर ये संसद के प्रति जवाबदेह होगा और ये एक लंबी प्रक्रिया भी है.
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