अन्ना मोवेमेंट के समर्थक हिंदी ब्लॉगर
आप सब को बधाई
आप ने इस बात को मुझ से जल्दी समझा
और शुक्रिया
मुझे समझाने के कमेन्ट में
ख़ास कर अंशुमाला और राजन का
सच बोलना जितना मुश्किल है , सच को स्वीकारना उस से भी ज्यादा मुश्किल है . लेकिन सच ही शाश्वत है और रहेगा मुझे अपने सच पर उतना ही अभिमान है जितना किसी को अपने झूठ से होने वाले फायदे पर होता हैं
मेरे ब्लॉग के किसी भी लेख को कहीं भी इस्तमाल करने से पहले मुझ से पूछना जरुरी हैं
मेरे ब्लॉग के किसी भी लेख को कहीं भी इस्तमाल करने से पहले मुझ से पूछना जरुरी हैं
August 28, 2011
August 27, 2011
भाषण
राहुल गाँधी का लम्बा भाषण संसद में कितनो को पसंद आया ?
मुझे नहीं आया
लगा जैसे उन्होने देश को नाना की जागीर समझ लिया हैं जिस का ट्रस्ट बना कर वो उसके ट्रस्टी बनना चाहते हैं ताकि आजीवन उस से खा पी सके और आने वाली पुश्तो के लिये भी सहेज सके
और आग्रह हैं राहुल गाँधी की बात करे तो अन्ना की किसी बात से उनका मिलान ना करे क्युकी
ये अन्ना के प्रति अन्याय होगा
मुझे नहीं आया
लगा जैसे उन्होने देश को नाना की जागीर समझ लिया हैं जिस का ट्रस्ट बना कर वो उसके ट्रस्टी बनना चाहते हैं ताकि आजीवन उस से खा पी सके और आने वाली पुश्तो के लिये भी सहेज सके
और आग्रह हैं राहुल गाँधी की बात करे तो अन्ना की किसी बात से उनका मिलान ना करे क्युकी
ये अन्ना के प्रति अन्याय होगा
August 26, 2011
बहुत से लोग आत्मा को नहीं मानते , ये पोस्ट उनके लिये नहीं हैं ।
जो लोग आत्मा को मानते हैं
क्या वो मानते हैं क्या वो मानते हैं की जो व्यक्ति असमय मृत्यु को प्राप्त होते हैं उनकी आत्मा भटकती हैं अपने परिजनों के आस पास ।
क्या ऐसी आत्मा की शांति के लिए हवन इत्यादि से फरक पड़ता हैं ?
क्या आप में से किसी ने ऐसा महसूस किया कभी किसी परिजन की मृत्यु से पहले की ऐसा होने वाला हैं
क्या मृत्यु का पूर्व आभास कभी आप को मृत्यु का समाचार आने से पहले हुआ हैं
क्या वो मानते हैं क्या वो मानते हैं की जो व्यक्ति असमय मृत्यु को प्राप्त होते हैं उनकी आत्मा भटकती हैं अपने परिजनों के आस पास ।
क्या ऐसी आत्मा की शांति के लिए हवन इत्यादि से फरक पड़ता हैं ?
क्या आप में से किसी ने ऐसा महसूस किया कभी किसी परिजन की मृत्यु से पहले की ऐसा होने वाला हैं
क्या मृत्यु का पूर्व आभास कभी आप को मृत्यु का समाचार आने से पहले हुआ हैं
August 25, 2011
जाईये निर्मोही डॉ अमर आज से आप से अपने मोह को खत्म किया ,
जब से डॉ अमर की मृत्यु की खबर मिली तब से केवल एक ही विचार मन में रहा "उनकी माँ कैसी होगी " , जानती थी वो अभी जीवित हैं पर सुनना चाहती थी की नहीं हैं ।
किसी भी अभिभावक के लिये उसके बच्चे की मौत जिन्दगी की सबसे बड़ी त्रासदी हैं ।
अपनी माँ को देखती हूँ जो ७२ वर्ष की हैं मेरे या मेरी बहनों के ज़रा भी बीमार पड़ने से वो एक दम देहल जाती हैं ।
मै क्युकी उनके साथ रहती हूँ तो मुझ पर इस वृद्ध अवस्था में कुछ ज्यादा डिपेण्ड करने लगी हैं और मुझे खांसी भी आ जाये तो वो नर्वस हो जाती हैं
कई बार खिजलाहट में , मै कह बैठती हूँ , माँ तुम एक पुड़ियाँ बना कर मुझे उसमे रख लो ।
इस पर वो कहती हैं देख तेरा मेरा कुछ भी झगडा हो , अनबन हो पर इस बुढापे में मुझे ऐसा क़ोई कष्ट ना देना । मुझ से क़ोई दुश्मनी ना निकालना ।
ना जाने कितनी बार उनको दिलासा देना पड़ता हैं वायदा करना पड़ता हैं की नहीं ऐसा कभी नहीं होगा । तुमको भेज कर ही इस दुनिया से विदा लुंगी ।
कल जब उन्हे डॉ अमर जो शायद ५८ वर्ष मात्र थे के निधन का बताया और डॉ अमर की माँ का बताया तो कहने लगी पाता नहीं क्यों ईश्वर इतनी लम्बी आयु देता हैं जल्दी उठा ले , बच्चो के कष्ट किसी को ना दिखाये ।
कभी डॉ अमर की एक पोस्ट पढ़ी थी जब कैंसर ने उनके यहाँ दस्तक दी थी जिस में उन्होने अपनी माँ के विषय में लिखा था ।
कल से उनकी माँ का दर्द अपने आस पास बड़ी शिद्दत से महसूस हुआ ।
बच्चो के कर्तव्यो में एक कर्तव्य अभिभावक का संस्कार भी होता हैं क्यों डॉ अमर को वो कर्तव्य पूरा करने से ईश्वर ने रोका ?
और अभिभावकों के कर्तव्यो में एक अपने बच्चो को जिन्दगी में सुव्यवस्थित देखना होता हैं , क्यों डॉ अमर को कर्तव्य पूरा करने से ईश्वर ने रोका ??
और पति का कर्तव्य होता हैं अपनी पत्नी को खुश रखना , हमेशा , क्यूँ डॉ अमर को ईश्वर ने इस कर्तव्य को भी पूरा करने से रोका ?
एक व्यक्ति जिसकी मृत्यु बिना उसके कर्तव्य पूर्ति के होती हैं वो निर्मोही कहलाता हैं ।
और निर्मोही से कैसा मोह
जाईये डॉ अमर आज से आप से अपने मोह को खत्म किया , जो अपनी माँ का ना हुआ , अपनी पत्नी का ना हुआ , अपने बच्चो का ना हुआ वो हमारा कैसे होगा ।
आज़ाद किया आप को अपने मोह बंधन से ताकि आप वहाँ खुश रह सके जहां के लिये आप इतने सब कर्तव्यों की पूर्ति किये बिना चले गए ।
हमारा बार बार आप को याद करना आप को वहाँ भी कष्ट देगा जहां आप होंगे क्युकी कहीं ना कहीं ये दर्द आप को भी साल रहा होगा "मैने मर कर सही नहीं किया " ।
आप जहां रहे इस जीवन की झेली अपूर्णता से मुक्त रहे
आप की आत्मा शांत रहे और उनकी बन कर रहे जहां आप अब होगे
यहाँ की याद में बार बार आप अशांत ना हो
ॐ शांति शांति शांति
किसी भी अभिभावक के लिये उसके बच्चे की मौत जिन्दगी की सबसे बड़ी त्रासदी हैं ।
अपनी माँ को देखती हूँ जो ७२ वर्ष की हैं मेरे या मेरी बहनों के ज़रा भी बीमार पड़ने से वो एक दम देहल जाती हैं ।
मै क्युकी उनके साथ रहती हूँ तो मुझ पर इस वृद्ध अवस्था में कुछ ज्यादा डिपेण्ड करने लगी हैं और मुझे खांसी भी आ जाये तो वो नर्वस हो जाती हैं
कई बार खिजलाहट में , मै कह बैठती हूँ , माँ तुम एक पुड़ियाँ बना कर मुझे उसमे रख लो ।
इस पर वो कहती हैं देख तेरा मेरा कुछ भी झगडा हो , अनबन हो पर इस बुढापे में मुझे ऐसा क़ोई कष्ट ना देना । मुझ से क़ोई दुश्मनी ना निकालना ।
ना जाने कितनी बार उनको दिलासा देना पड़ता हैं वायदा करना पड़ता हैं की नहीं ऐसा कभी नहीं होगा । तुमको भेज कर ही इस दुनिया से विदा लुंगी ।
कल जब उन्हे डॉ अमर जो शायद ५८ वर्ष मात्र थे के निधन का बताया और डॉ अमर की माँ का बताया तो कहने लगी पाता नहीं क्यों ईश्वर इतनी लम्बी आयु देता हैं जल्दी उठा ले , बच्चो के कष्ट किसी को ना दिखाये ।
कभी डॉ अमर की एक पोस्ट पढ़ी थी जब कैंसर ने उनके यहाँ दस्तक दी थी जिस में उन्होने अपनी माँ के विषय में लिखा था ।
कल से उनकी माँ का दर्द अपने आस पास बड़ी शिद्दत से महसूस हुआ ।
बच्चो के कर्तव्यो में एक कर्तव्य अभिभावक का संस्कार भी होता हैं क्यों डॉ अमर को वो कर्तव्य पूरा करने से ईश्वर ने रोका ?
और अभिभावकों के कर्तव्यो में एक अपने बच्चो को जिन्दगी में सुव्यवस्थित देखना होता हैं , क्यों डॉ अमर को कर्तव्य पूरा करने से ईश्वर ने रोका ??
और पति का कर्तव्य होता हैं अपनी पत्नी को खुश रखना , हमेशा , क्यूँ डॉ अमर को ईश्वर ने इस कर्तव्य को भी पूरा करने से रोका ?
एक व्यक्ति जिसकी मृत्यु बिना उसके कर्तव्य पूर्ति के होती हैं वो निर्मोही कहलाता हैं ।
और निर्मोही से कैसा मोह
जाईये डॉ अमर आज से आप से अपने मोह को खत्म किया , जो अपनी माँ का ना हुआ , अपनी पत्नी का ना हुआ , अपने बच्चो का ना हुआ वो हमारा कैसे होगा ।
आज़ाद किया आप को अपने मोह बंधन से ताकि आप वहाँ खुश रह सके जहां के लिये आप इतने सब कर्तव्यों की पूर्ति किये बिना चले गए ।
हमारा बार बार आप को याद करना आप को वहाँ भी कष्ट देगा जहां आप होंगे क्युकी कहीं ना कहीं ये दर्द आप को भी साल रहा होगा "मैने मर कर सही नहीं किया " ।
आप जहां रहे इस जीवन की झेली अपूर्णता से मुक्त रहे
आप की आत्मा शांत रहे और उनकी बन कर रहे जहां आप अब होगे
यहाँ की याद में बार बार आप अशांत ना हो
ॐ शांति शांति शांति
August 24, 2011
अन्ना का अनशन ना तोडने का फैसला गलत हैं क्युकी हमे अन्ना की जरुरत हैं
भ्रष्टाचार मुक्त भारत या india against corruption ये लड़ाई government के खिलाफ नहीं governence के खिलाफ हैं ।
ये लड़ाई सरकार के खिलाफ नहीं हैं ये मुहीम हैं प्रशासन के खिलाफ
सरकार क़ोई भी आजाये प्रशासन का तंत्र वैसे का वैसा ही रहता हैं
६४ साल में हमने इतनी तरक्की की हैं की आज हम को अपने चुने हुए प्रतिनिधियों के प्रति एक वितिश्ना का भाव हो गया
सरकार , सरकारी कर्मचारी , सरकारी नौकरी सब इस प्रशासन का हिस्सा बन गये हैं
सरकार का एक छोटा से अफसर भी सरकारी तंत्र में भ्रष्टाचार फैलाने के लिये एक माध्यम हैं और शायद इसी लिये जन लोक पाल बिल की शर्त की उसको भी इस बिल में शामिल करे हमारी मौजूदा सरकार और विपक्ष दोनों को ही नहीं मंजूर हैं ।
सरकारी नौकरी में पहले ५८ साल पर रिटायर होते थे वो उम्र आज बढ़ कर बहुत से सरकारी संस्थानों में ६५ होगयी हैं
यानी नयी पीढ़ी के लिये क़ोई नौकरी नहीं होगी
सरकारी कर्मचारी की पेंशन ६५ से शुरू होती हैं और जब तक जीवित हैं रहती हैं जब की आम नागरिक के लिये ऐसा क़ोई प्रावधान कहीं नहीं हैं ।
जब सरकारी कर्मचारी को इतनी बढ़िया पेंशन मिलती हैं तो फिर उनको हर जगह सीनियर सिटिज़न में आधा किराया क्यूँ देना होता हैं
इनकम टैक्स में रिटायर्ड सरकारी कर्मचारी को क्यूँ रिबेट दिया जाता हैं
और भी ऐसी बहुत सी सुविधा हैं जो सरकारी कर्मचारियों को मिलती हैं जैसे फ्री पास आजीवन रेल यात्रा का / हवाई यात्रा का / फ़ोन का बिल / अस्पताल में उनके और उनके परिवार का फ्री इलाज
कितना घंटे एक सरकारी कर्मचारी काम करता हैं ? महगाई क्या केवल उसके लिये होती हैं क्युकी महगाई भत्ता बस उसको ही मिलता हैं , तनखा उसकी बढ़ती हैं और महगाई सबके लिये बढ़ जाती हैं
मकान का किराया , स्कूल की फीस मिडल क्लास की दो बेसिक जरुरत , उन से पूछिये जो सरकारी नौकरी में नहीं हैं कैसे निपटाते हैं
कुछ दिन पहले एक जगह पढ़ा था की मिडल क्लास सबसे ज्यादा खर्चा अपने बच्चो की पढाई पर करता हैं भारत में लेकिन आने वाले ५ वर्षो में सरकार के पास नौकरियां ही नहीं हैं इन बच्चो के लिये । { लिंक मिल गया तो पोस्ट पर अपडेट कर दूंगी }
इसके अलावा हमारे मंत्री कहते हैं की क्युकी उनको लेप टॉप दिया गया हैं सो उनको लेप टॉप चलाने के लिये एक व्यक्ति रखना हैं उसकी तनखा सरकारी खजाने से मिले ।
हर मंत्री को सुरक्षा चाहिये किस से ??
हजारो की भीड़ जमा हैं राम लीला मैदान में । उस दिन जुलुस निकला इंडिया गेट से रामलीला मैदान तक ।
आम आदमी था , कहीं कुछ नहीं हुआ । क़ोई आगजनी , क़ोई मार पीट , क़ोई वहां जलना , रेलवे को रोकना , पत्थर बाज़ी , कुछ भी नहीं ।
क्युकी क़ोई पोलिटिकल पार्टी नहीं थी किसी को वोट नहीं चाहिये था किसी को अपने लिये कुछ नहीं चाहिये था
लोग देश को ठीक देखना चाहते थे और हैं
६४ साल में शायद पहली बार दिल्ली में ऐसा हुआ हैं की किसी ने तकलीफ की बात नहीं कहीं रैली को लेकर
अन्ना का अनशन ना तोडने का फैसला गलत हैं क्युकी हमे अन्ना की जरुरत हैं लेकिन अन्ना क्या करे अनशन तोड़ दिया तो प्रशासन फिर कभी नहीं सुधरेगा
ईश्वर से प्रार्थना हैं अन्ना की इच्छा शक्ति बनाए रहे और उनकी सेहत को सही रखे
कभी एक नारा था
जो सरकार निकम्मी हैं वो सरकार बदलनी हैं
आज नारा हैं
जो प्रशासन निकम्मा हैं वो प्रशासन बदलना हैं
आज राम लीला मैदान पर जब भारत माता की जय , वन्दे मातरम और इन्कलाब जिंदाबाद सुनाई देता हैं तो लगता हैं
कभी हम इस से जीते थे {जीते = won }
आज हम इस से जीते हैं {जीते = live }
ये लड़ाई सरकार के खिलाफ नहीं हैं ये मुहीम हैं प्रशासन के खिलाफ
सरकार क़ोई भी आजाये प्रशासन का तंत्र वैसे का वैसा ही रहता हैं
६४ साल में हमने इतनी तरक्की की हैं की आज हम को अपने चुने हुए प्रतिनिधियों के प्रति एक वितिश्ना का भाव हो गया
सरकार , सरकारी कर्मचारी , सरकारी नौकरी सब इस प्रशासन का हिस्सा बन गये हैं
सरकार का एक छोटा से अफसर भी सरकारी तंत्र में भ्रष्टाचार फैलाने के लिये एक माध्यम हैं और शायद इसी लिये जन लोक पाल बिल की शर्त की उसको भी इस बिल में शामिल करे हमारी मौजूदा सरकार और विपक्ष दोनों को ही नहीं मंजूर हैं ।
सरकारी नौकरी में पहले ५८ साल पर रिटायर होते थे वो उम्र आज बढ़ कर बहुत से सरकारी संस्थानों में ६५ होगयी हैं
यानी नयी पीढ़ी के लिये क़ोई नौकरी नहीं होगी
सरकारी कर्मचारी की पेंशन ६५ से शुरू होती हैं और जब तक जीवित हैं रहती हैं जब की आम नागरिक के लिये ऐसा क़ोई प्रावधान कहीं नहीं हैं ।
जब सरकारी कर्मचारी को इतनी बढ़िया पेंशन मिलती हैं तो फिर उनको हर जगह सीनियर सिटिज़न में आधा किराया क्यूँ देना होता हैं
इनकम टैक्स में रिटायर्ड सरकारी कर्मचारी को क्यूँ रिबेट दिया जाता हैं
और भी ऐसी बहुत सी सुविधा हैं जो सरकारी कर्मचारियों को मिलती हैं जैसे फ्री पास आजीवन रेल यात्रा का / हवाई यात्रा का / फ़ोन का बिल / अस्पताल में उनके और उनके परिवार का फ्री इलाज
कितना घंटे एक सरकारी कर्मचारी काम करता हैं ? महगाई क्या केवल उसके लिये होती हैं क्युकी महगाई भत्ता बस उसको ही मिलता हैं , तनखा उसकी बढ़ती हैं और महगाई सबके लिये बढ़ जाती हैं
मकान का किराया , स्कूल की फीस मिडल क्लास की दो बेसिक जरुरत , उन से पूछिये जो सरकारी नौकरी में नहीं हैं कैसे निपटाते हैं
कुछ दिन पहले एक जगह पढ़ा था की मिडल क्लास सबसे ज्यादा खर्चा अपने बच्चो की पढाई पर करता हैं भारत में लेकिन आने वाले ५ वर्षो में सरकार के पास नौकरियां ही नहीं हैं इन बच्चो के लिये । { लिंक मिल गया तो पोस्ट पर अपडेट कर दूंगी }
इसके अलावा हमारे मंत्री कहते हैं की क्युकी उनको लेप टॉप दिया गया हैं सो उनको लेप टॉप चलाने के लिये एक व्यक्ति रखना हैं उसकी तनखा सरकारी खजाने से मिले ।
हर मंत्री को सुरक्षा चाहिये किस से ??
हजारो की भीड़ जमा हैं राम लीला मैदान में । उस दिन जुलुस निकला इंडिया गेट से रामलीला मैदान तक ।
आम आदमी था , कहीं कुछ नहीं हुआ । क़ोई आगजनी , क़ोई मार पीट , क़ोई वहां जलना , रेलवे को रोकना , पत्थर बाज़ी , कुछ भी नहीं ।
क्युकी क़ोई पोलिटिकल पार्टी नहीं थी किसी को वोट नहीं चाहिये था किसी को अपने लिये कुछ नहीं चाहिये था
लोग देश को ठीक देखना चाहते थे और हैं
६४ साल में शायद पहली बार दिल्ली में ऐसा हुआ हैं की किसी ने तकलीफ की बात नहीं कहीं रैली को लेकर
अन्ना का अनशन ना तोडने का फैसला गलत हैं क्युकी हमे अन्ना की जरुरत हैं लेकिन अन्ना क्या करे अनशन तोड़ दिया तो प्रशासन फिर कभी नहीं सुधरेगा
ईश्वर से प्रार्थना हैं अन्ना की इच्छा शक्ति बनाए रहे और उनकी सेहत को सही रखे
कभी एक नारा था
जो सरकार निकम्मी हैं वो सरकार बदलनी हैं
आज नारा हैं
जो प्रशासन निकम्मा हैं वो प्रशासन बदलना हैं
आज राम लीला मैदान पर जब भारत माता की जय , वन्दे मातरम और इन्कलाब जिंदाबाद सुनाई देता हैं तो लगता हैं
कभी हम इस से जीते थे {जीते = won }
आज हम इस से जीते हैं {जीते = live }
बस यूँही
एक बार कबीर से मिलने क़ोई उनके घर आया
कबीर नहीं थे
कहां मिलेगे
एक संत ने कहा कबीर , किसी की मृत्यु के बाद , शमशान घाट गए हैं वहाँ चले जाओ
मिलने वाले ने पूछा मै उन्हे पह्चानुगा कैसे
संत ने कहा कबीर के सिर पर एक लौ जलती दिखेगी
मिलने आने वाला शमशान घाट गया और लौट आया
संत ने पूछा मिल आये
उसने कहा नहीं पहचान पाया , वहाँ सबके सिर पर लौ जल रही थी
संत ने कहा दुबारा जाओ और अबकी बार शमशान घाट के बाहर खड़े रहना और इंतज़ार करना
मिलने वाला दुबारा गया शमशान घाट के दरवाजे पर खडा होगया
लोग बाहर आने लगे
वो अंत में कबीर को पहचान गया
कैसे
कबीर के सिर की लौ शमशान घाट से बाहर आने के बाद भी जलती हुई दिख रही थी और बाकी सब की शमशान के दरवाजे तक ही जलती थी
कबीर नहीं थे
कहां मिलेगे
एक संत ने कहा कबीर , किसी की मृत्यु के बाद , शमशान घाट गए हैं वहाँ चले जाओ
मिलने वाले ने पूछा मै उन्हे पह्चानुगा कैसे
संत ने कहा कबीर के सिर पर एक लौ जलती दिखेगी
मिलने आने वाला शमशान घाट गया और लौट आया
संत ने पूछा मिल आये
उसने कहा नहीं पहचान पाया , वहाँ सबके सिर पर लौ जल रही थी
संत ने कहा दुबारा जाओ और अबकी बार शमशान घाट के बाहर खड़े रहना और इंतज़ार करना
मिलने वाला दुबारा गया शमशान घाट के दरवाजे पर खडा होगया
लोग बाहर आने लगे
वो अंत में कबीर को पहचान गया
कैसे
कबीर के सिर की लौ शमशान घाट से बाहर आने के बाद भी जलती हुई दिख रही थी और बाकी सब की शमशान के दरवाजे तक ही जलती थी
August 22, 2011
भ्रष्टाचार मुक्त भारत का निर्माण एक html कोड
एक html कोड बना दिया हैं
भ्रष्टाचार मुक्त भारत का निर्माण का जो सीधा indiaagainstcorruption की साईट पर जाता हैं
अगर आप को ये कोड पसंद आये तो आप कॉपी करके { पोस्ट के ऊपर देखिये } अपने ब्लॉग पर डिजाईन में नया html gadjet में पेस्ट कर सकते हैं
भ्रष्टाचार मुक्त भारत का निर्माण का जो सीधा indiaagainstcorruption की साईट पर जाता हैं
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स्वीकरोक्ति
भ्रष्टाचार के मुद्दे के खिलाफ अन्ना हजारे के तरीके से विरोध मुझे सही नहीं लग रहा था
पर अब मै निसंकोच कह सकती हूँ यही तरीका सही हैं ।
दो बातो ने मेरा नज़रिया बदल दिया
एक बहस के दौरान दो बाते उभर कर सामने आयी
एक
हमारा संविधान सर्वोपरी हैं और वो शुरू होता हैं "We the people of India" से और इस लिये संविधान के बाद संसद नहीं जनता सर्वोपरी हैं
दो
संसद में बैठे नेता "The voice of common people " के आधार पर आये हैं यानी जनता ने उनको अपनी बात कहने के लिये संसद में भेजा हैं सो अगर जनता ये चाहती हैं की "जन - लोकपाल बिल " संसद में लाया जाये और पास करवाया जाये तो इस में किसी भी सांसद को क़ोई आपत्ति नहीं होनी चाहिये ।
सांसद को ये नहीं मानना चाहिये की वो जनता से ज्यादा जानकार हैं और ना ही ये मानना चाहिये की वो "जनता" नहीं हैं क्युकी वो जनता की आवाज हैं इस लिये उन्हे जनता की बात को आगे ले जाना होगा
धिक्कार हैं ऐसी सांसद और संसद पर जो एक ७० साल के अन्ना के अनशन को रोकने में असमर्थ हैं ।
ये अनशन हमारे ऊपर एक कलंक हैं
इस के साथ मेरी पूर्व की किसी भी पोस्ट से अगर किसी भी उस समर्थक का ह्रदय दुखा हो जो इस मोवेमेंट से जुडा हैं तो मै क्षमा प्रार्थी हूँ मै केवल उह पोह जैसी स्थिती में थी ।
मै भ्रष्टाचार के विरुद्ध हूँ और रहूंगी और आज से में अन्ना के मोवेमेंट की भी समर्थक हूँ
सादर वन्दे
पर अब मै निसंकोच कह सकती हूँ यही तरीका सही हैं ।
दो बातो ने मेरा नज़रिया बदल दिया
एक बहस के दौरान दो बाते उभर कर सामने आयी
एक
हमारा संविधान सर्वोपरी हैं और वो शुरू होता हैं "We the people of India" से और इस लिये संविधान के बाद संसद नहीं जनता सर्वोपरी हैं
दो
संसद में बैठे नेता "The voice of common people " के आधार पर आये हैं यानी जनता ने उनको अपनी बात कहने के लिये संसद में भेजा हैं सो अगर जनता ये चाहती हैं की "जन - लोकपाल बिल " संसद में लाया जाये और पास करवाया जाये तो इस में किसी भी सांसद को क़ोई आपत्ति नहीं होनी चाहिये ।
सांसद को ये नहीं मानना चाहिये की वो जनता से ज्यादा जानकार हैं और ना ही ये मानना चाहिये की वो "जनता" नहीं हैं क्युकी वो जनता की आवाज हैं इस लिये उन्हे जनता की बात को आगे ले जाना होगा
धिक्कार हैं ऐसी सांसद और संसद पर जो एक ७० साल के अन्ना के अनशन को रोकने में असमर्थ हैं ।
ये अनशन हमारे ऊपर एक कलंक हैं
इस के साथ मेरी पूर्व की किसी भी पोस्ट से अगर किसी भी उस समर्थक का ह्रदय दुखा हो जो इस मोवेमेंट से जुडा हैं तो मै क्षमा प्रार्थी हूँ मै केवल उह पोह जैसी स्थिती में थी ।
मै भ्रष्टाचार के विरुद्ध हूँ और रहूंगी और आज से में अन्ना के मोवेमेंट की भी समर्थक हूँ
सादर वन्दे
August 18, 2011
कभी कभी बहुत सी बाते बेकार ही दिमाग में कुलबुलाने लगती हैं
अन्ना के अनशन के लिये राम लीला मैदान तय कर दिया गया हैं
१५ दिन के लिये अनशन होगा अभी
ऍम सी डी सफाई करवा रही हैं
१५ दिन तक वहाँ सब सुविधाए सरकारी खर्चे पर होगी ?
कभी कभी बहुत सी बाते बेकार ही दिमाग में कुलबुलाने लगती हैं
सरकार किसी की हैं और किसके लिये हैं ?? हमारे लिये ही हैं ना
ऐसे ही कुछ दिन पहले लगा था अन्ना अनशन से पहले प्राइवेट हॉस्पिटल क्यूँ गए
आज लग रहा हैं सरकारी में गए होते तो हम कहते सरकारी में क्यूँ गए
जैसे आर्ट ऑफ़ लिविंग वाले गुरुदेव हर जगह पहुच जाते हैं पर अपनी फीस बड़ी तगड़ी रखते हैं
ख़ैर दिमाग को समझाना शुरू कर दिया हैं
उतना ही कुलबुलाओ जितना जरुरी हैं ऐसा न हो की लोकपाल माफ़ करिये जन लोकपाल आने से पहले ही तुम्हारा फ्यूज़ उड़ जाए या उड़ा दिया जाए
वैसे एक बात हैं हमारा मीडिया हमेशा से भ्रष्टाचार से दूर ही रहता हैं
कभी राहुल गांधी के पीछे भागता और कभी अन्ना के पीछे
मायावती के यहाँ राहुल को हीरो बना दिया था और शीला दीक्षित के यहाँ अन्ना जी को
बाढ़ का पानी आ रहा हैं,तेजा वाला कभी भी पानी छोड़ सकता हैं । झुग्गी झोपड़ी वाले फिर फ्लाईओवर के ऊपर आ जायेगे ।
पता नहीं कभी कभी ठाकरे की बात बहुत याद आती हैं मुंबई में दूसरे प्रांत के लोग अपना त्यौहार नहीं मना सकते या नौकरी पहले मुंबई वालो को मिलेगी ।
अगर क़ोई नोर्थ का यानी राहुल गाँधी वहाँ अनशन करे तो क्या उनको करने दिया जाएगा
ओ मेरे दिमाग अब बस
और नहीं बस और नहीं
गम के प्याले और नहीं
१५ दिन के लिये अनशन होगा अभी
ऍम सी डी सफाई करवा रही हैं
१५ दिन तक वहाँ सब सुविधाए सरकारी खर्चे पर होगी ?
कभी कभी बहुत सी बाते बेकार ही दिमाग में कुलबुलाने लगती हैं
सरकार किसी की हैं और किसके लिये हैं ?? हमारे लिये ही हैं ना
ऐसे ही कुछ दिन पहले लगा था अन्ना अनशन से पहले प्राइवेट हॉस्पिटल क्यूँ गए
आज लग रहा हैं सरकारी में गए होते तो हम कहते सरकारी में क्यूँ गए
जैसे आर्ट ऑफ़ लिविंग वाले गुरुदेव हर जगह पहुच जाते हैं पर अपनी फीस बड़ी तगड़ी रखते हैं
ख़ैर दिमाग को समझाना शुरू कर दिया हैं
उतना ही कुलबुलाओ जितना जरुरी हैं ऐसा न हो की लोकपाल माफ़ करिये जन लोकपाल आने से पहले ही तुम्हारा फ्यूज़ उड़ जाए या उड़ा दिया जाए
वैसे एक बात हैं हमारा मीडिया हमेशा से भ्रष्टाचार से दूर ही रहता हैं
कभी राहुल गांधी के पीछे भागता और कभी अन्ना के पीछे
मायावती के यहाँ राहुल को हीरो बना दिया था और शीला दीक्षित के यहाँ अन्ना जी को
बाढ़ का पानी आ रहा हैं,तेजा वाला कभी भी पानी छोड़ सकता हैं । झुग्गी झोपड़ी वाले फिर फ्लाईओवर के ऊपर आ जायेगे ।
पता नहीं कभी कभी ठाकरे की बात बहुत याद आती हैं मुंबई में दूसरे प्रांत के लोग अपना त्यौहार नहीं मना सकते या नौकरी पहले मुंबई वालो को मिलेगी ।
अगर क़ोई नोर्थ का यानी राहुल गाँधी वहाँ अनशन करे तो क्या उनको करने दिया जाएगा
ओ मेरे दिमाग अब बस
और नहीं बस और नहीं
गम के प्याले और नहीं
August 17, 2011
मेरा कमेन्ट
मेरा कमेन्ट
जन लोक पाल बिल और लोकपाल बिल का अंतर क़ोई कहीं विस्तार से दे ताकि बात खुले
भ्रष्टाचार का मुद्दा बिलकुल सही
अन्ना का तरीका सही या गलत अभी निर्णय देने में मानसिक उह पोह
कारण हो सकता हैं यही तरीका सही हो क्या पता
लेकिन मुझे ये सही नहीं लगता की जिस देश की संसद में ५०० से ऊपर लोग हो उस देश के कानून और सामाजिक व्यवस्था का काम १० लोगो से भी कम की सिविल सोसाइटी करे . वो दस लोग जो कहे मान लिया जाये
गाँधी जी जब करते थे अनशन तो वो सविनय अवज्ञा आन्दोलन था , एक विदेशी सरकार के कानून को तोडना और इसके लिये वो सजा से नहीं डरते थे . उनका मानना था की ब्रिटिश हुकूमत जाए और हम अपने कानून बनाये वो कानून तोड़ कर हुकूमत के खिलाफ थे वो कानून के खिलाफ नहीं थे . कानून तोडने की सजा सालो जेल में रह कर उन्होने काटी थी
अन्ना और उनके सिविल सहयोगी कानून का पालन नहीं करना चाहते
वो कानून से भी बड़े हैं क्युकी वो जो कहे वो ही सही हैं
वो जेल में हैं क्युकी धारा १४४ का पालन नहीं हुआ
अगर धारा १४४ लगाना गलत हैं तो ये नियम भी संसद से ही पास करवाना होगा
और अगर वो सही हैं तो उस नियम का पालन तो करना ही होगा
अन्ना को जेल भेजने का निर्णय बेहद घटिया था
पहले भी बहुत बार गिरफ्तारियां हुई हैं रैलियों में पर सब को कहीं दूर ले जा कर छोड़ दिया जाता हैं
आज फैशन की तरह अन्ना का नाम लिया जा रहा जो नेता नहीं ले रहा यानी वो भ्रष्टाचारी हैं
जन लोक पाल बिल और लोकपाल बिल का अंतर क़ोई कहीं विस्तार से दे ताकि बात खुले
भ्रष्टाचार का मुद्दा बिलकुल सही
अन्ना का तरीका सही या गलत अभी निर्णय देने में मानसिक उह पोह
कारण हो सकता हैं यही तरीका सही हो क्या पता
लेकिन मुझे ये सही नहीं लगता की जिस देश की संसद में ५०० से ऊपर लोग हो उस देश के कानून और सामाजिक व्यवस्था का काम १० लोगो से भी कम की सिविल सोसाइटी करे . वो दस लोग जो कहे मान लिया जाये
गाँधी जी जब करते थे अनशन तो वो सविनय अवज्ञा आन्दोलन था , एक विदेशी सरकार के कानून को तोडना और इसके लिये वो सजा से नहीं डरते थे . उनका मानना था की ब्रिटिश हुकूमत जाए और हम अपने कानून बनाये वो कानून तोड़ कर हुकूमत के खिलाफ थे वो कानून के खिलाफ नहीं थे . कानून तोडने की सजा सालो जेल में रह कर उन्होने काटी थी
अन्ना और उनके सिविल सहयोगी कानून का पालन नहीं करना चाहते
वो कानून से भी बड़े हैं क्युकी वो जो कहे वो ही सही हैं
वो जेल में हैं क्युकी धारा १४४ का पालन नहीं हुआ
अगर धारा १४४ लगाना गलत हैं तो ये नियम भी संसद से ही पास करवाना होगा
और अगर वो सही हैं तो उस नियम का पालन तो करना ही होगा
अन्ना को जेल भेजने का निर्णय बेहद घटिया था
पहले भी बहुत बार गिरफ्तारियां हुई हैं रैलियों में पर सब को कहीं दूर ले जा कर छोड़ दिया जाता हैं
आज फैशन की तरह अन्ना का नाम लिया जा रहा जो नेता नहीं ले रहा यानी वो भ्रष्टाचारी हैं
August 16, 2011
क्या ब्लॉग इंश्योरेंस होनी चाहिये ??
क्या ब्लॉग इंश्योरेंस होनी चाहिये ?? आज कल बहुत लोग ब्लॉग लिख रहे हैं और बहुत बार ब्लॉग हैक भी हो रहे हैं । आप को क्या लगता हैं समय आगया हैं कि बीमा कम्पनियां अब कोई पोलिसी निकले ।
अगर ऐसा हुआ तो क्या आप ऐसी कोई बिमा पोलिसी लेगे । कितना प्यार करते हैं आप अपने लेखन और ब्लॉग को ?? कितने कि बिमा पोलिसी आप लेगे ??
ज़रा बाते तो
अगर ऐसा हुआ तो क्या आप ऐसी कोई बिमा पोलिसी लेगे । कितना प्यार करते हैं आप अपने लेखन और ब्लॉग को ?? कितने कि बिमा पोलिसी आप लेगे ??
ज़रा बाते तो
August 13, 2011
दो चित्र
एक सज्जन ब्लोगर जहां जहां भी सलट वाल्क पर पोस्ट थी कमेन्ट में लिख रहे थे पता नहीं ये अर्ध नगन , विदेशी परिधानों में सजी महिला क्या हासिल कर लाएगी इस वाल्क से । ना जाने कितनी गलिया दे दी उन्होने उन सब बच्चियों को जो सल्ट वाल्क में थी और उन महिला ब्लोगर को भी को जो इस विषय में कमेन्ट या पोस्ट में लिख रही थी ।
अभी कुछ देर पहले ईमेल से दो चित्र मिले उनकी बेटी के विदेशी परिधान में , नीली बॉडी हगिंग जींस पहने हुए { मन खुश हुआ उसको देख कर } । किसी ने उसके फेस बुक अकाउंट से भेजे ।
ईमेल भेजने वाले ने कहा की
जो अपने घर में या तो निर्लिप्त हैं ,
या बोल नहीं पाते ,
वो यहाँ केवल तमाशा खड़ा करने के लिये ही बोलते हैं ।
अभी कुछ देर पहले ईमेल से दो चित्र मिले उनकी बेटी के विदेशी परिधान में , नीली बॉडी हगिंग जींस पहने हुए { मन खुश हुआ उसको देख कर } । किसी ने उसके फेस बुक अकाउंट से भेजे ।
ईमेल भेजने वाले ने कहा की
जो अपने घर में या तो निर्लिप्त हैं ,
या बोल नहीं पाते ,
वो यहाँ केवल तमाशा खड़ा करने के लिये ही बोलते हैं ।
August 12, 2011
ईश्वर मृतक की आत्मा को शांति दे
कल या परसों अखबार में एक खबर थी
एक चमड़े के व्यापारी ने बहुत अधिक कर्ज़े के कारण और व्यापार में बहुत अधिक नुक्सान के कारण आत्म हत्या कर ली
अफ़सोस हुआ मंदी के दौर में एक्सपोर्ट का व्यापार बहुत लोगो को नुक्सान ही दे रहा हैं इस लिये ज्यादा आश्चर्य नहीं हुआ
आश्चर्य तब हुआ जब मैने उसी अखबार के तीसरे पन्ने पर उन्ही सज्जन की obituary देखी चित्र के साथ । उस obituary को छपने के लिये कम से कम २५००० रूपए तो लगे ही होगे
एक व्यक्ति ने अपनी जान देदी और उसके परिवार को अब भी दिखावा करना है और पैसा नष्ट करना हैं ।
मंदी के दौर से ज्यादा , दिखावे ने परिवारों को आर्थिक तंगी के दौर में ला कर खड़ा कर दिया हैं ख़ास कर बिज़नस करने वालो को ।
लगा बहुत गैर जरुरी खर्चा था ये २५००० रुपया , हो सकता हैं उनके यहाँ काम करने वालो को तनखा ना मिली हो , हो सकता हैं लोन को क़ोई किश्त जानी हो ।
बैंक से लोन लेकर गाडी , मकान खरीदना और किश्ते ना दे पाना ,
क्रेडिट कार्ड से समान खरीदना
पैसा ना होने पर भी पैसे का दिखावा करना और अपने परिवार को अपनी आर्थिक वस्तु स्थिति से परचित ना करवाना आज कल जितना आम हो गया हैं उतना ही आम अब आर्थिक तंगी के कारण आत्महत्या करना हो गया हैं
ईश्वर मृतक की आत्मा को शांति दे
एक चमड़े के व्यापारी ने बहुत अधिक कर्ज़े के कारण और व्यापार में बहुत अधिक नुक्सान के कारण आत्म हत्या कर ली
अफ़सोस हुआ मंदी के दौर में एक्सपोर्ट का व्यापार बहुत लोगो को नुक्सान ही दे रहा हैं इस लिये ज्यादा आश्चर्य नहीं हुआ
आश्चर्य तब हुआ जब मैने उसी अखबार के तीसरे पन्ने पर उन्ही सज्जन की obituary देखी चित्र के साथ । उस obituary को छपने के लिये कम से कम २५००० रूपए तो लगे ही होगे
एक व्यक्ति ने अपनी जान देदी और उसके परिवार को अब भी दिखावा करना है और पैसा नष्ट करना हैं ।
मंदी के दौर से ज्यादा , दिखावे ने परिवारों को आर्थिक तंगी के दौर में ला कर खड़ा कर दिया हैं ख़ास कर बिज़नस करने वालो को ।
लगा बहुत गैर जरुरी खर्चा था ये २५००० रुपया , हो सकता हैं उनके यहाँ काम करने वालो को तनखा ना मिली हो , हो सकता हैं लोन को क़ोई किश्त जानी हो ।
बैंक से लोन लेकर गाडी , मकान खरीदना और किश्ते ना दे पाना ,
क्रेडिट कार्ड से समान खरीदना
पैसा ना होने पर भी पैसे का दिखावा करना और अपने परिवार को अपनी आर्थिक वस्तु स्थिति से परचित ना करवाना आज कल जितना आम हो गया हैं उतना ही आम अब आर्थिक तंगी के कारण आत्महत्या करना हो गया हैं
ईश्वर मृतक की आत्मा को शांति दे
August 10, 2011
नेत्र ज्योति से सम्बंधित एक पोस्ट जानकारी बढ़ने के लिये
अगर आँखों से पास का कम दिखता हैं और दूर का सही दिखता है और आप डॉक्टर के पास जाते हैं तो आप को बताया जाता हैं इसका क़ोई इलाज नहीं हैं आप को चश्मा ही लगाना होगा ।
ज्यादा जानकारी लेने पर पता चलता हैं की वैसे इसका इलाज भी संभव हैं और ये १५ मीनट में आँख में लेंस डाल कर कर दिया जाता हैं और ३ हफ्ते बाद दूसरी आँख का भी
आँख में प्रोग्रेसिव लेंस डाला जाता हैं
इस का फायदा , आँख की रौशनी स्थाई हो जायेगी यानी घटेगी नहीं और आप को चश्मा नहीं पहनना होगा ।
इस ओपरेशन में आँखों का नेचुरल लेंस निकल कर कृत्रिम लेंस लगाया जाता हैं
इस ओप्रेशन के बाद cataract भी नहीं होगा
दोनों आँखों का ओपरेशन का खर्चा तक़रीबन १ लाख ४० हज़ार ।
अगर किसी को ४५ साल में ये परेशानी हो यानी पास से कम दिखता हो और अगर उसके पास पैसा हो तो क्या उसको ये ओपरेशन करवा लेना चाहिये या ५५ साल तक इंतज़ार करके करवाना चाहिये ।
मुझे लगता हैं जल्दी करवाना सही हैं अगर निदान चाहिये ही तो देर क्यूँ करनी , इतनी परेशानी क्यूँ उठानी
और क्या क़ोई बता सकता हैं की इस तरह के ओपरेशन में आँखों की पूरी ज्योति भी ख़तम हो सकती हैं या ये एक साधारण ओपरेशन ही होता हैं
ज्यादा जानकारी लेने पर पता चलता हैं की वैसे इसका इलाज भी संभव हैं और ये १५ मीनट में आँख में लेंस डाल कर कर दिया जाता हैं और ३ हफ्ते बाद दूसरी आँख का भी
आँख में प्रोग्रेसिव लेंस डाला जाता हैं
इस का फायदा , आँख की रौशनी स्थाई हो जायेगी यानी घटेगी नहीं और आप को चश्मा नहीं पहनना होगा ।
इस ओपरेशन में आँखों का नेचुरल लेंस निकल कर कृत्रिम लेंस लगाया जाता हैं
इस ओप्रेशन के बाद cataract भी नहीं होगा
दोनों आँखों का ओपरेशन का खर्चा तक़रीबन १ लाख ४० हज़ार ।
अगर किसी को ४५ साल में ये परेशानी हो यानी पास से कम दिखता हो और अगर उसके पास पैसा हो तो क्या उसको ये ओपरेशन करवा लेना चाहिये या ५५ साल तक इंतज़ार करके करवाना चाहिये ।
मुझे लगता हैं जल्दी करवाना सही हैं अगर निदान चाहिये ही तो देर क्यूँ करनी , इतनी परेशानी क्यूँ उठानी
और क्या क़ोई बता सकता हैं की इस तरह के ओपरेशन में आँखों की पूरी ज्योति भी ख़तम हो सकती हैं या ये एक साधारण ओपरेशन ही होता हैं
देखिये जाकिर कहां से पहुचे हैं और कुश कहां से आ रहे हैं चिट्ठा चर्चा पर
चिट्ठा चर्चा पर जो कमेन्ट कर रहे हैं वो कहा से आ रहे हैं दिख रहा हैं
देखिये जाकिर कहां से पहुचे हैं
और कुश कहां से आ रहे हैं
चर्चा पर कमेन्ट किसने किया और कहां से किया
ज़रा आप भी कर के देखे की आप कहां से पहुचे
तकनीक का सही गलत पता करे
यहाँ
August 08, 2011
काश
कभी कभी सोचती हूँ
क्या कभी
इस हिंदी ब्लोगर समुदाय में
क़ोई ऐसे ब्लोगर होगा
जो जब नए से पुराना हो जाए
ये हकीकत सब के सामने लाये
कि कैसे
उसके ब्लॉग लेखन मे आते ही
यहाँ के सम्मानित जनों ने
एक फहरिस्त
उसको दी थी पकड़ा
और
बताया था कि
कौन क्या क्या हैं
किस से डरना हैं
किस को इग्नोर करना हैं
किस पर कमेन्ट जरुर देना हैं
फिर कैसे उसके भ्रम टूटे
और उस ने पाया कि
जिनको वो आईडियल मानता था
वो दिगभ्रमित खुद ही थे
वो यहाँ केवल अपनी कहने आये थे
मजमे और मसाले मे
मसले जिनको कभी यहाँ ना भाये थे
क्या कभी क़ोई एक भी ऐसा ब्लोगर आयेगा
जो इस सच्चाई से
दूसरो को निर्भीकता से परिचित करायेगा
क्या कभी
इस हिंदी ब्लोगर समुदाय में
क़ोई ऐसे ब्लोगर होगा
जो जब नए से पुराना हो जाए
ये हकीकत सब के सामने लाये
कि कैसे
उसके ब्लॉग लेखन मे आते ही
यहाँ के सम्मानित जनों ने
एक फहरिस्त
उसको दी थी पकड़ा
और
बताया था कि
कौन क्या क्या हैं
किस से डरना हैं
किस को इग्नोर करना हैं
किस पर कमेन्ट जरुर देना हैं
फिर कैसे उसके भ्रम टूटे
और उस ने पाया कि
जिनको वो आईडियल मानता था
वो दिगभ्रमित खुद ही थे
वो यहाँ केवल अपनी कहने आये थे
मजमे और मसाले मे
मसले जिनको कभी यहाँ ना भाये थे
क्या कभी क़ोई एक भी ऐसा ब्लोगर आयेगा
जो इस सच्चाई से
दूसरो को निर्भीकता से परिचित करायेगा
August 06, 2011
अच्छे लोगो / ब्लोगर गुट में शामिल हो
आप अच्छाई को परिभाषित करना भूल गए ।
और आप ये भी भूल गए नैतिकता केवल एक तरफ़ा होती हैं यानी अपने लिये एक , समाज के लिये दूसरी
आप अच्छाई को परिभाषित करदे , नैतिकता का पैमाना बता दे गुट अपने आप बन जाएगा और जुडने वाले जुड़ जायेगे
आप ने आज तक कभी भी किसी को ये कहते सुना हैं की " मै गलत हूँ , मै गन्दा/ गन्दी हूँ । "
शामिल होने के लिये ऊपर दिया लिंक क्लिक करे
और आप ये भी भूल गए नैतिकता केवल एक तरफ़ा होती हैं यानी अपने लिये एक , समाज के लिये दूसरी
आप अच्छाई को परिभाषित करदे , नैतिकता का पैमाना बता दे गुट अपने आप बन जाएगा और जुडने वाले जुड़ जायेगे
आप ने आज तक कभी भी किसी को ये कहते सुना हैं की " मै गलत हूँ , मै गन्दा/ गन्दी हूँ । "
शामिल होने के लिये ऊपर दिया लिंक क्लिक करे
वाणी जी को दे बधाई , २ साल वो यहाँ पूरे कर आई
वाणी जी
बहुत बहुत बधाई , दो साल से आप यहाँ "suffer" कर रही हैं और अब नौबत आप को reform करने तक आ ही गयी हैं । शायद मेरी तरह ५ साल तक "suffer" करने के बाद भी स्थिति यही रहेगी क्युकी कुछ लोग यहाँ ब्लॉग लिखने का नहीं व्यक्तिगत आक्षेपों का अजेंडा लेकर टीप देते हैं ।
ख़ैर एक पूरा पेराग्राफ मेरे ऊपर हैं इस बार , एक साल ख़तम होने पर आप ने महज एक लाइन दी थी । तीसरे वर्ष की पोस्ट पर मेरे ऊपर पोस्ट हो आप से सम्बन्ध इतने प्रगाढ़ हो जाए बिना मिले यही कामना हैं ।
मेरी अदा पर ना जाए उसके कारण हैं कभी ऑनलाइन होगी तो बता दूंगी ।
आप को शुभकामना देने में कंजूसी , उफ़ ये तो ना इंसाफी होगी
वाणी की ज्ञान वाणी
लोगो को छूती रहे
सफ़र शब्दों का चलता रहे
मिलना हो ना हो
मकसद हमारा मिलता हैं
बस दिल को सुकून हैं
की क़ोई हैं
जो जानता हैं की
समय असमय मै हूँ
और रहूंगी
मेरा कमेन्ट
बहुत बहुत बधाई , दो साल से आप यहाँ "suffer" कर रही हैं और अब नौबत आप को reform करने तक आ ही गयी हैं । शायद मेरी तरह ५ साल तक "suffer" करने के बाद भी स्थिति यही रहेगी क्युकी कुछ लोग यहाँ ब्लॉग लिखने का नहीं व्यक्तिगत आक्षेपों का अजेंडा लेकर टीप देते हैं ।
ख़ैर एक पूरा पेराग्राफ मेरे ऊपर हैं इस बार , एक साल ख़तम होने पर आप ने महज एक लाइन दी थी । तीसरे वर्ष की पोस्ट पर मेरे ऊपर पोस्ट हो आप से सम्बन्ध इतने प्रगाढ़ हो जाए बिना मिले यही कामना हैं ।
मेरी अदा पर ना जाए उसके कारण हैं कभी ऑनलाइन होगी तो बता दूंगी ।
आप को शुभकामना देने में कंजूसी , उफ़ ये तो ना इंसाफी होगी
वाणी की ज्ञान वाणी
लोगो को छूती रहे
सफ़र शब्दों का चलता रहे
मिलना हो ना हो
मकसद हमारा मिलता हैं
बस दिल को सुकून हैं
की क़ोई हैं
जो जानता हैं की
समय असमय मै हूँ
और रहूंगी
मेरा कमेन्ट
मेरा कमेन्ट
हम तो विचार को thought समझते थे अब आपके आइडिया से विचार idea हैं ये नयी thought हैं वैसे
‘हिंदी में आइडिया” और “हिंदी का आईडिया” भी महज एक thought हैं
मेरा कमेन्ट
‘हिंदी में आइडिया” और “हिंदी का आईडिया” भी महज एक thought हैं
मेरा कमेन्ट
August 05, 2011
मेरा कमेन्ट
मेरा कमेन्ट
अब तो सबके कमेन्ट आ चुके हैं सो कुछ प्रश्न हैं सोचा अब पूछ ही लूँ
इतनी सारी ब्लॉग मीटिंग के बाद
हिंदी को कितना आगे लेजाने में आप सक्षम हुए हैं
ब्लोगिंग को इस से कितना फायदा हुआ हैं
किस सामाजिक समस्या के लिये ब्लॉग समाज जो वास्तविक धरातल पर मिल चुका उसने कुछ किया हैं
क्या मसौदा होता हैं इन मीट का और क्या उस पर कभी बात भी होती हैं
हर बार कहा ये ही जाता हैं { जो ब्लॉग पर पढ़ कर पता चलता हैं } समय अभाव के कारण ब्लोगिंग पर ज्यादा बात नहीं हुई बस मिलना हुआ
केवल और केवल खाना पीना और ग्रुप बना कर एक दूसरे के ब्लॉग पर एक दूसरे की तारीफ़ में पोस्ट लिखना क्या यही हैं हिंदी ब्लॉग्गिंग की सकारात्मकता जिसके इतना बखान होता हैं
और क्या कभी आप ने ब्लॉग पर क़ोई सर्वे किया हैं की जो ज्यादा सक्रिय हैं ब्लोगिंग में वो इन मीटिंग में आते ही नहीं
ये मीटिंग केवल अपने सामाजिक सरोकारों को बढ़ावा देना का माध्यम हैं और उससे ज्यादा कुछ नहीं
इतने चित्र डाल कर क्या हासिल होता हैं की हम कितने प्रिये और पोपुलर हैं
चाय नाश्ता खाना पीना सब ठीक हैं अगर किसी मकसद से मिलना हो तो वर्ना इसको ब्लॉगर मीट कहना फिजूल ही हैं क्युकी ये फैशन हो गया हैं की हम ब्लोग्गर हैं , हम मिले , हम बैठे , हमने बीयर पी , हमने ब्लडी मेरी पिलाई .
ठीक हैं आप को या किसी को शौक हो सकता हैं अपने सामाजिक सरोकार बढाने का पर उसको मीट ना कहा करे . मीट हो तो क़ोई मुद्दा तो हो जिस पर दिस्कुशन हो यहाँ तो गाना बजना , ग़ज़ल कविता होती हैं हम किसी कवि सम्मलेन में नहीं जा रहे और ना ही किसी की ग़ज़ल सुनने ये सब पहले ही बता देना चाहिये ताकि जो लोग आते हैं उनको पता हो किस लिये आना हैं .
स्नेह प्रदर्शन के लिये मीट जरुरी हैं पता नहीं था और स्नेह का प्रदर्शन भी होना चाहिये ये भी पता नहीं था ।
ब्लॉग परिवार का ढोंग करने से क्या हासिल होता हैं
क्या आप के साथ कभी नहीं हुआ की इस परिवार के पीछे आप ने सच को नकार दिया वहाँ कमेन्ट नहीं दिया जहां आप के मित्र ब्लोग्गर गलत लिखते हैं क्या कभी आप की आत्मा ने आप को कचोटा हैं की हाँ मैने गलत किया इस मुद्दे पर अपने ख्याल ना देकर क्युकी ये मेरे दोस्त का ब्लॉग था और मेरे कमेन्ट करने से वो नाराज हो जाएगा
परिवार तो बच जाता हैं सतीश जी पर समाज रीढ़ विहीन हो जाता हैं जब हम मुद्दों से बचते हैं और स्नेह और समझदारी की बात करते हैं केवल इस लिये की टिप्पणी की संख्या में कमी ना आये
अब तो सबके कमेन्ट आ चुके हैं सो कुछ प्रश्न हैं सोचा अब पूछ ही लूँ
इतनी सारी ब्लॉग मीटिंग के बाद
हिंदी को कितना आगे लेजाने में आप सक्षम हुए हैं
ब्लोगिंग को इस से कितना फायदा हुआ हैं
किस सामाजिक समस्या के लिये ब्लॉग समाज जो वास्तविक धरातल पर मिल चुका उसने कुछ किया हैं
क्या मसौदा होता हैं इन मीट का और क्या उस पर कभी बात भी होती हैं
हर बार कहा ये ही जाता हैं { जो ब्लॉग पर पढ़ कर पता चलता हैं } समय अभाव के कारण ब्लोगिंग पर ज्यादा बात नहीं हुई बस मिलना हुआ
केवल और केवल खाना पीना और ग्रुप बना कर एक दूसरे के ब्लॉग पर एक दूसरे की तारीफ़ में पोस्ट लिखना क्या यही हैं हिंदी ब्लॉग्गिंग की सकारात्मकता जिसके इतना बखान होता हैं
और क्या कभी आप ने ब्लॉग पर क़ोई सर्वे किया हैं की जो ज्यादा सक्रिय हैं ब्लोगिंग में वो इन मीटिंग में आते ही नहीं
ये मीटिंग केवल अपने सामाजिक सरोकारों को बढ़ावा देना का माध्यम हैं और उससे ज्यादा कुछ नहीं
इतने चित्र डाल कर क्या हासिल होता हैं की हम कितने प्रिये और पोपुलर हैं
चाय नाश्ता खाना पीना सब ठीक हैं अगर किसी मकसद से मिलना हो तो वर्ना इसको ब्लॉगर मीट कहना फिजूल ही हैं क्युकी ये फैशन हो गया हैं की हम ब्लोग्गर हैं , हम मिले , हम बैठे , हमने बीयर पी , हमने ब्लडी मेरी पिलाई .
ठीक हैं आप को या किसी को शौक हो सकता हैं अपने सामाजिक सरोकार बढाने का पर उसको मीट ना कहा करे . मीट हो तो क़ोई मुद्दा तो हो जिस पर दिस्कुशन हो यहाँ तो गाना बजना , ग़ज़ल कविता होती हैं हम किसी कवि सम्मलेन में नहीं जा रहे और ना ही किसी की ग़ज़ल सुनने ये सब पहले ही बता देना चाहिये ताकि जो लोग आते हैं उनको पता हो किस लिये आना हैं .
स्नेह प्रदर्शन के लिये मीट जरुरी हैं पता नहीं था और स्नेह का प्रदर्शन भी होना चाहिये ये भी पता नहीं था ।
ब्लॉग परिवार का ढोंग करने से क्या हासिल होता हैं
क्या आप के साथ कभी नहीं हुआ की इस परिवार के पीछे आप ने सच को नकार दिया वहाँ कमेन्ट नहीं दिया जहां आप के मित्र ब्लोग्गर गलत लिखते हैं क्या कभी आप की आत्मा ने आप को कचोटा हैं की हाँ मैने गलत किया इस मुद्दे पर अपने ख्याल ना देकर क्युकी ये मेरे दोस्त का ब्लॉग था और मेरे कमेन्ट करने से वो नाराज हो जाएगा
परिवार तो बच जाता हैं सतीश जी पर समाज रीढ़ विहीन हो जाता हैं जब हम मुद्दों से बचते हैं और स्नेह और समझदारी की बात करते हैं केवल इस लिये की टिप्पणी की संख्या में कमी ना आये
August 03, 2011
Wrist Watch
The wrist watch was invented by the Swiss watch maker, Patek Phillippe in the late 1800s; though at first only women wore them.
The man's wristwatch was invented by Louis Cartier in the early 1900s for Mr. Alberto Santos-Dumont. Dumont was working on the development of aircraft and found a pocket watch inconvenient to look at while in the aircraft. He asked his friend Cartier to design a watch for him.
Thomas Jefferson was the one to invent the american wrist watch, which was later worn by Abraham Lincoln.
Read more: http://wiki.answers.com/Q/Who_invented_the_first_wrist_watch#ixzz1TxSgJXQZ
August 02, 2011
मेरा कमेन्ट
ये जो आप बार बार पोल की बात कर रहे हैं ये पोल का तरीका तकनीक का खेल हैं
एक इस आईपी से ब्रोव्सेर बदल कर जितनी बार चाहो वोट दिया जा सकता हैं
और रह गयी बात मुद्दा भटकाने की तो सच्चाई आप ने खुद बयान कर दी हैं
की यौन शोषण गरीब औरतो को ज्यादा होता हैं यानी यौन शोषण के लिये कहीं भी कपड़े जिम्मेदार नहीं हैं
गरीब औरतो में शिक्षा की कमी हैं और वो ये मान कर चलती हैं की क्युकी वो स्त्री हैं इस लिये यौन शोषण होगा ही
यौन शोषण , जेंडर बायस और बलात्कार , इन तीन बातो को कभी भी कहीं भी कहो बात को औरत के कपड़ो पर ले जाया ही जाता हैं और औरत को खुद ही इसका जिम्मेदार बता दिया जाता हैं
आप को एक हफ्ते पहले तक सलट मार्च के पता भी नहीं था और मेरे कमेन्ट के बाद आप ने मुझ से ही इसकी जानकारी मांगी थी और आज आप मुझे ही समझा रहे हैं की मै मुद्दा भटका रही हूँ
क्या ऐसा तो नहीं हैं की मेरी देखा देखी कही और भी नारी भी समानता की बात ना करने लगे
आज तो भारतीये नारी ब्लॉग पर भी इसका समर्थन देख कर अच्छा लगा ।
मेरा कमेन्ट यहाँ
एक इस आईपी से ब्रोव्सेर बदल कर जितनी बार चाहो वोट दिया जा सकता हैं
और रह गयी बात मुद्दा भटकाने की तो सच्चाई आप ने खुद बयान कर दी हैं
की यौन शोषण गरीब औरतो को ज्यादा होता हैं यानी यौन शोषण के लिये कहीं भी कपड़े जिम्मेदार नहीं हैं
गरीब औरतो में शिक्षा की कमी हैं और वो ये मान कर चलती हैं की क्युकी वो स्त्री हैं इस लिये यौन शोषण होगा ही
यौन शोषण , जेंडर बायस और बलात्कार , इन तीन बातो को कभी भी कहीं भी कहो बात को औरत के कपड़ो पर ले जाया ही जाता हैं और औरत को खुद ही इसका जिम्मेदार बता दिया जाता हैं
आप को एक हफ्ते पहले तक सलट मार्च के पता भी नहीं था और मेरे कमेन्ट के बाद आप ने मुझ से ही इसकी जानकारी मांगी थी और आज आप मुझे ही समझा रहे हैं की मै मुद्दा भटका रही हूँ
क्या ऐसा तो नहीं हैं की मेरी देखा देखी कही और भी नारी भी समानता की बात ना करने लगे
आज तो भारतीये नारी ब्लॉग पर भी इसका समर्थन देख कर अच्छा लगा ।
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