मेरे ब्लॉग के किसी भी लेख को कहीं भी इस्तमाल करने से पहले मुझ से पूछना जरुरी हैं

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August 22, 2011

स्वीकरोक्ति

भ्रष्टाचार के मुद्दे के खिलाफ अन्ना हजारे के तरीके से विरोध मुझे सही नहीं लग रहा था
पर अब मै निसंकोच कह सकती हूँ यही तरीका सही हैं ।

दो बातो ने मेरा नज़रिया बदल दिया
एक बहस के दौरान दो बाते उभर कर सामने आयी

एक
हमारा संविधान सर्वोपरी हैं और वो शुरू होता हैं "We the people of India" से और इस लिये संविधान के बाद संसद नहीं जनता सर्वोपरी हैं

दो
संसद में बैठे नेता "The voice of common people " के आधार पर आये हैं यानी जनता ने उनको अपनी बात कहने के लिये संसद में भेजा हैं सो अगर जनता ये चाहती हैं की "जन - लोकपाल बिल " संसद में लाया जाये और पास करवाया जाये तो इस में किसी भी सांसद को क़ोई आपत्ति नहीं होनी चाहिये ।

सांसद को ये नहीं मानना चाहिये की वो जनता से ज्यादा जानकार हैं और ना ही ये मानना चाहिये की वो "जनता" नहीं हैं क्युकी वो जनता की आवाज हैं इस लिये उन्हे जनता की बात को आगे ले जाना होगा

धिक्कार हैं ऐसी सांसद और संसद पर जो एक ७० साल के अन्ना के अनशन को रोकने में असमर्थ हैं
ये अनशन हमारे ऊपर एक कलंक हैं

इस के साथ मेरी पूर्व की किसी भी पोस्ट से अगर किसी भी उस समर्थक का ह्रदय दुखा हो जो इस मोवेमेंट से जुडा हैं तो मै क्षमा प्रार्थी हूँ मै केवल उह पोह जैसी स्थिती में थी ।

मै भ्रष्टाचार के विरुद्ध हूँ और रहूंगी और आज से में अन्ना के मोवेमेंट की भी समर्थक हूँ

सादर वन्दे


23 comments:

  1. देर आये, दुरुस्त आये। अब साथ निभाना है।

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  2. भारत कभी भी मिश्र या बाकि पश्चिमी देशो के नक़्शे कदम पर नहीं चलेगा. भारतीय जनता परिपक्व हैं और शांति और गाँधी गिरी मैं विश्वास रखना जानती हैं..

    घर का मुखिया जब घर सम्भाल पाने मैं असमर्थ हो जाता हैं तो घर के ही बाकि सदस्य उसे बदल देते हैं. जिससे कि घर कि गरिमा बनी रहे.

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  3. एक प्रश्न मेरा भी...

    क्या जनता के भी सिर्फ अधिकार हैं, कर्तव्य कुछ नहीं...

    जय हिंद...

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  4. aapki aaj ki post acchi lagi rachna .

    anna , darasal ham sabki ladhyi hi lad rahe hai .. maine apne marketing ke 22 saal ke career me itna corruption dekha hai ki bas poochiye mat ..

    aur ab main anna ke saath hoon , taki hammari aane waali generation ko ham ek behatar desh de sake.

    shukriya

    vijay

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  5. खुशदीप
    मै जनता हूँ , और मैने हमेशा ईमानदार रहने की कोशिश की हैं एक खराब सिस्टम के बाद भी . मैने अपने हर कर्त्तव्य को निष्ठां से पूरा किया हैं . और अपने आस पास के समाज में जहां भी गलत को देखा हैं उसका प्रतिकार किया हैं .
    ब्लॉग जगत में भी गलत के प्रति मैने आवाज उठाई हैं और कभी कोम्प्रोमिस नहीं किया गलत के साथ ना निज जिन्दगी में , ना सामाजिक रूप से
    मेरा यही कर्तव्य था मैने पूरा किया , आगर दूसरो को किसी चीज़ के लिये माना किया तो पहले खुद उसको नहीं किया
    इस मुद्दे से मै केवल इस लिये नहीं जुड़ पा रही थी क्युकी मुझे तरीका सही नहीं लग रहा था
    हम सब को इस अनशन के साथ अपनी अन्दर जांच कर देखना चाहिये हमने कब और कहा गलत किया
    और उसको मानना चाहिये
    मुझे ख़ुशी हैं की मेरे जीवन में मुझे कभी भ्रष्टाचार से अपने को आगे बढाने की नौबत नहीं आई क्युकी मैने अपनी जरूरतों को ही कम कर लिया
    आप अपनी कहे क्या कभी दबाव पडने पर भी आपने कुछ गलत नहीं किया ??

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  6. देर आए दुरुस्त आए :)

    जब कपिल सिब्बल और काफी सारे लोग ये कह रहे थे...कि "कोई भी उठ कर कह देगा..मेरी बात मानो नहीं तो मैं अनशन करूँगा...तो उसकी बात कैसे मानी जा सकती है?"

    उस वक़्त भी मैं यही सोच रही थी...कोई उन्हें बताए कि अगर उसके कथन को देश की पूरी(बहुसंख्यक) जनता का समर्थन मिले तो उन्हें बात माननी ही पड़ेगी...लोग जनता को मैनरलेस...बेवकूफ...भेडचाल वाली.. बता रहे हैं....ओके...जनता है बेवकूफ...भेडचाल वाली...मैनरलेस...पर हमारे देश में ऐसी जनता की ही बहुतायत है...तो उनकी बात माननी ही पड़ेगी.....आप रहो अपने बुद्धिजीवी की खोल ओढ़े,अपने समूह में सुरक्षित.

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  7. रचना जी,
    शुक्रिया, जैसा आप ने किया या कर रही है या आगे भी करती रहेंगी, अगर ऐसे ही देश का हर नागरिक खुद भी ईमानदार होने की कोशिश करने लगे तो सब कुछ सुधर जाएगा...ये किसी डंडे के डर से नहीं अपने अंदर से होना चाहिए...आज नार्वे या न्यूजीलैंड का नाम सबसे ईमानदार देशों में लिया जाता है...क्यों...क्योंकि वहां ईमानदारी राष्ट्रीय चरित्र में है...ये सही है कि हमें ऐसा राजनीतिक नेतृत्व ही कभी नहीं मिला कि हम उस से प्रेरणा ले कर खुद को डालते...जैसे हमारे नायक भ्रष्ट निकले वैसे ही हम भी होते चले गए...नायक कहीं आसमान से नहीं निकलते...नायक हमारे बीच से ही निकलेंगे...आज हम सब अन्ना के पीछे हैं...किसलिए...क्योंकि ईमानदारी देश में दुर्लभ वस्तु हो गई है...मैं बार बार चेता रहा हूं, इसीलिए चेता रहा हूं कि वक्त अंधश्रद्धा का नहीं, वक्त आंख-कान खुले रखकर आगे बढने का है...देश का ऐसा स्वरूप बन जाए कि कोई बेईमानी करने की सोचे भी हज़ार लोग उसी वक्त उसकी अक्ल ठिकाने लगाने के लिए आगे आ जाएं...मैंने कल देखा दिल्ली में ऑटो वाले कतार लगाकर अन्ना के समर्थन में रैली निकाल रहे थे...वही ऑटो वाले जो कभी अपना मीटर ऑन नहीं करते...छोटी दूरी पर कभी जाना पसंद नहीं करते...मनमाने पैसे मांगते हैं...विदेशी देखते ही इनके भाव बढ़ जाते हैं...लेकिन मुंबई में ऐसा नहीं है...वहां ऑटो वाले ऐसा नहीं करते...क्यों...क्योंकि मुंबई के चरित्र में दिल्ली के चरित्र से कहीं ज़्यादा ईमानदारी है...एक ऑटो वाला ऐसा करेगा तो दूसरे ऑटो वाले ही उसे टोकेंगे...और दिल्ली में चोरी और सीनाजोरी की तर्ज पर सारे ऑटोवाले एक दूसरे की हिमायत में आ जुटेंगे...ये सिर्फ मिसाल के तौर पर मैंने बताया है....अर्ज मेरी फिर वही है खुद को बदलो, बाकी सब अपने आप बदल जाएगा...

    जय हिंद...

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  8. खुशदीप
    जब भी ऑटो में बैठती हूँ चालक से बात जरुर करती हूँ की मीटर से क्यूँ नहीं चलते
    क्या आप जानते हैं ३००००० {तीन लाख } रूपए खर्च कर के ऑटो का परमिट मिलता हैं और ये फीस नहीं रिश्वत हैं
    क्लास डिवाइड नहीं हैं भ्रष्टाचार से सब त्रस्त हैं । परमिट बल्क में बड़े बड़े नेता लेते हैं जो ट्रांसपोर्टर भी हैं और उसको ट्रान्सफर करने की रिश्वत हैं क्युकी परमिट की संख्या निर्धारित हैं

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  9. रचना जी
    आन्दोलन को समर्थन देने के लिए धन्यवाद | चाहूंगी की सभी को इस बात को समझना चाहिए और इसका विरोध बंद कर इस आन्दोलन का समर्थन करना चाहिए भले आप किसी व्यक्ति विशेष के विरोधी बने रहे |
    और रही ऑटो वालो की बात तो बता दू परमिट मिलने के बाद भी बेचारो के पुलिस वालो को हफ्ता देना पड़ता है तो कहा से देंगे अपनी जेब से क्या उनकी कमाई इतनी है की अपने जेब से हफ्ता दे घूम कर उन्हें आम जनता से ही लेना पड़ता है | बिना मीटर के चल के या जनता से ज्यादा पैसा ले कर भी बेचार गरीब का गरीब ही रहता है | आम लोगों को ये भ्रश व्यवस्था ही भ्रष्टाचार के लिए मजबूर करती है जनता भ्रष्ट नहीं होना चाहती | खुशदीप जी ने कहा था की इस आन्दोलन में गलत लोगों के विदेश पैसे लगे है मै इसके साथ नहीं आ सकता क्या कभी उन्होंने वोट देने से पहले अपने नेता से पूछ है की उसने चुनावों में खर्च रूपये कहा से लाये | पूरे देश के सांसद गलत तरीके से लाये पैसे से संसद पहुंचते है तो क्या वो हमारे सांसद कहलाने लायक है या हमारी तरफ से कोई भी निर्णय लेने के हक़दार है | इस नजर से देखीये तो सांसद ही पहले अपना अधिकार खो चुके है |

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  10. रचना जी,
    फिर शायद मुंबई में परमिट के लिए पैसे नहीं देने होते होंगे...तभी वहां के ऑटो वाले मीटर पर चलते हैं...दूसरों को देखकर खुद भी भ्रष्ट बनें फिर तो सारा देश भ्रष्ट होगा ही...

    अंशुमाला जी,
    मैंने ये कभी नहीं कहा कि मैं अन्ना या उनकी मुहिम का विरोधी हूं...मैं उनका स्वस्थ आलोचक हूं और आगे भी बने रहना चाहता हूं...प्रशंसा करना और सुनना बहुत आसान होता है...खामियों को गिनाना और खामियों को सुनना कलेजे वालों का काम होता है...आपकी जानकारी के लिए अन्ना का जब ब्लॉग पर नाम भी नहीं आया था तो मैंने उनके समर्थन में लिखी थीं...ये रहा लिंक- आज तक नहीं कहा, आज कहता हूं इसे ज़रूर पढ़ें...खुशदीप...और मैंने इसी पोस्ट को पढ़ने के लिए अपने उसूल से हट कर हर किसी को मेल भेजकर ज़ोर दिया था...जो मैंने अपनी सारी ब्लॉगिंग में कभी नही किया...
    मैं बार बार टीम अन्ना को इसी लिए चेता रहा हूं कि एनजीओ को अलग रख कर किसी को उन पर उंगली उठाने का मौका न दें...नहीं तो अमेरिका अमेरिका कर उनके सारे किए कराए पर पानी फेर दिया जाएगा...जब अन्ना के बारे में लोगों को जानकारी नहीं थी तो मैंने यही कोशिश की कि अन्ना के बारे में लोग जागरूक हों...अब मैं दूसरे लेवल पर हूं...यहां अन्ना के बारे में जानकारी देने की ज़रूरत नहीं है...सब अन्ना को जान गए हैं...अब ऐसी आलोचना की भी ज़रूरत है कि टीम अन्ना के पैर ज़मीन पर ही रहे...दंभ न आ जाए, अंहकार न आ जाए...और उससे किसी का भी भला नहीं होने वाला...जेपी के चेलों का हाल हम देख ही चुके हैं....अब आफिस जा रहा हूं...आधी रात को या कल सुबह ही मुलाकात होगी...

    जय हिंद...

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  11. खुशदीप
    समस्या बहुत सीधी हैं और निदान भी
    नैतिकता सब के लिये एक सी कर दे
    हमारे यहाँ नैतिकता की बात नहीं होती हमारे यहाँ दूसरो को नैतिकता सीखाने की बात होती हैं
    इस में क़ोई बुरी बात नहीं हैं की आप को इस आन्दोलन में कमियाँ लगती हैं पर परस्थितियाँ कह रही हैं की उसके अनशन को ख़तम करवाने का प्रयास करना होगा . संसद और सांसद को समझना होगा की वो सुप्रीम नहीं हैं और जन लोकपाल की बात पर ऍन जी औ के लिये भी प्रावधान होगा अलग ऐसा अरविन्द केजरीवाल ने कहा हैं और अगर जन लोक पाल आने के बाद नहीं होता तो अनशन का रास्ता सबके लिये खुल गया हैं

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  12. आपके सुविचारों से पूर्ण सहमति है रचनाजी, जनता की आवाज़ सर्वोपरि है और उसे सुनना, समझना तथा स्वीकार करना संसद व सांसदों का दायित्व है

    - नारी शक्ति

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  13. खुशदीप जी
    आप से सहमत हूं की लोगों पर नियंत्रण जरुरी है आप की पोस्ट पर दी टिप्पणी में मैंने ये बात कही थी किन्तु अभी तक जितने भी आलोचक देखे है वो नकारात्मक ही ज्यादा थे सकरात्मक कम थे नियंत्रण की जगह बस विरोध करने का उद्देश्य ही ज्यादा था यहाँ तक की आप के उठाये सवाल के जवाब में आई टिप्पणियों पर ही आप ने सवाल उठाये है किन्तु इस आन्दोलन में भाग ले रहे लोगों को अनपढ़ गवार से लेकर ना जाने क्या क्या कह दिया गया किन्तु कभी आप ने उन पर सवाल नहीं उठाये जो सीधे सीधे हम पर किये गये थे | | दूसरे यदि आप को अन्ना टीम पर नियंत्रित रखना है तो आप को उनके साईट पर जा कर वहा पर सवाल उठाने होंगे ताकि बात उन लोगों तक पहुंचे यहाँ लिखने से वहा कैसे पहुंचेगा | और फिर पिछली पोस्ट तो आप की बात सकरात्मक आलोचना लगी किन्तु ये बात वर्तमान पोस्ट पर नहीं कही जा सकती है जिसे आप ने खुद तक कुतर्क कहने से नहीं हिचके है | आप कई बार एक ही सवाल के दोहरा चुके है और आप के सवाल को देख कर लगता है जैसे आप ने इस पूरे जान लोकपाल बिल को ठीक से पढ़ा नहीं है उसे समझा नहीं है |

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  14. देर आए दुरुस्त आए।
    प्रजातंत्र की परिभाषा ही कहती है जनता के द्वारा, जनता के लिए, जनता की सरकार।
    यहां तो सत्ता के मद में चूर लोग कहते हैं कि हमें राजनीति न सिखाइए और आप अपना काम करो हमें जो जी में आएगा सो करेंगे।
    इन लोगों ने १९७५ का इतिहास भुला दिया।
    अरे आप सत्तर साल के वृद्ध की बात करती हैं, इन्होंने तो डायलिस पर चल रहे जेपी को नहीं छोड़ा था। और उन्होंने दिखा दिया कि जनता और खास कर युवकों की शक्ति क्या होती है।
    आज के जेनेरशन तो पुनः देख ही रही है।

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  15. रचनाजी एवं खुशदीपजी,
    अन्ना के साथ जो लोग दिखाई दे रहे हैं वे सब ईमानदार ही हैं, ऐसा मानना तो मुश्किल है और अन्ना का रवैया पूरी तरह सही है, यह भी कहना उचित नहीं, परन्तु इतना अवश्य है कि देश अब बदलाव चाहता है ..........सत्ता का बदलाव नहीं, सिस्टम का बदलाव चाहता है
    - नारी शक्ति

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  16. जनतंत्र में जनता सर्वोपरि है। संसद और अन्य संस्थाओं का निर्माण उसी के लिए हुआ है। जनतंत्र का अधिकार पाँच बरस में एक वोट तक सीमित नहीं रखा जा सकता। यह आंदोलन देश की बहुसंख्यक जनता की इच्छा को अभिव्यक्त कर रहा है। इस का मान करना चाहिए, संसद में जन-लोकपाल बिल को ज्यों का त्यों प्रस्तुत करना चाहिए। उस पर बहस चलनी चाहिए और यदि बिल की मूल भावना को बरकरार रखते हुए कुछ छोटे संशोधन जरूरी हों तो किए जाने चाहिए अन्यथा इसे इसी रूप में पारित कर देना चाहिए।

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  17. समस्या इसमें नहीं है...."जन - लोकपाल बिल " संसद में लाया जाये

    समस्या इसमें है,,,

    और पास करवाया जाये


    और लोकपाल बिल संसद में है.. स्टेंडिंग कमिटी उसको देख रही है... सभी को अपनी बात रखने का मौक़ा है... विपक्ष है... पर अन्ना चाहते है बस ३० को कानून बन जाए..

    we the people...इसमें हम शामिल नहीं है क्या? हम नहीं चाहते कि ये एक दिन में पास हो... हम चाहते है इस पर पूरी चर्चा हो.. क्यों केवल अन्ना के समर्थक "we the people" है... why don't they respect our opinion?

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  18. रंजन
    आप ने सही कहा हैं
    मै आप से सहमत भी हूँ पर इतनी जनता { जो मै भी हूँ } किसी के पीछे जाना चाहती थी , अन्ना और टीम ने वो कर दिखाया .
    सब को जगा दिया
    सबसे पहले अब अनशन को ख़तम करने का माध्यम निकलना होगा
    क्युकी आज ये अनशन अपनों के खिलाफ हैं इस लिये ये एक "कलंक " हैं
    जो लोग ४२ साल से लोक पाल बिल लाने की बात कर रहे हैं वो कहीं ना कहीं हम से बेहतर जानते हैं ये मेरा मानना हैं
    और जब हर तरीका फेल होगया होगा तब ही बात यहाँ तक बिगड़ी हैं
    क़ोई भी पोलिटिकल पार्टी जन लोक पाल के पक्ष में नहीं हैं क्यूँ क्युकी ताकत छीन जायेगी
    ४२ साल से गैर संवैधानिक बाते इसी संसद में हुई हैं क्या कभी आप ने किसी भी समय सार्थक बहस देखी

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  19. we the people में आप और मै हम सब हैं जो बस चुप रहते हैं हर गलत से समझोता करते जाते हैं
    और अगर हम में कुछ कहीं गलत का प्रतिकार करते हैं { जैसे मैने ब्लॉग जगत में किया } तो उनके चरित्र पर लाछन लगाये जाते हैं और बाकी सब मूक दर्शक की भाँती गलत का ही साथ देते हैं
    इस लिये हम मे से बहुतो को तो अधिकार भी नहीं हैं ये कहने का का जो हो रहा हैं गलत हैं

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  20. रचना जी,
    खुशी हुई ये जानकर कि अब इस मुहिम को आपका भी साथ मिलेगा.उम्मीद है आपकी तरह बाकी लोग भी एक बार अपने तमाम पूर्वाग्रहों को किनारे रख सोच सकेंगे.
    ये बात सामान्य संदर्भों में कही जाएँ तो अच्छी लगती है कि जनता खुद को सूधार ले तो सब ठीक हो जाएगा.लेकिन समझ में नहीं आता जनलोकपाल बिल के विरोध में इस तर्क को बार बार इतने हास्यास्पद तरीके से आगे क्यों किया जा रहा है.और खुशदीप जी केवल अंध श्रद्धा ही नहीं अंध विरोध भी एक चीज होती है.आपके तर्क का थोडा और विस्तार किया जाए तो फिर यदि जनता अपने आप ईमानदार हो जाए तो कानून पुलिस वकील किसी की भी जरूरत ही न रहें.आप खुद ही ये भी कह रहे है कि मौजूदा कानूनों का ही सख्ती से पालन किया जाए तो जनप्रतिनिधियो को भ्रष्टाचार से रोका जा सकता है तो फिर आप ही बताईये मौजूदा कानून कैसे सख्ती से लागू हो क्योंकि अपराध करने वाले और जाँच करने वाले तो मौसेरे भाई है .जनलोकपाल बिल न भी आए तो सरकारी बिल आएगा जो कि भ्रष्टाचार को बढावा ही देगा.तो फिर क्यों न एक ऐसे लोकपाल का समर्थन किया जाए जो सरकारी नियंत्रण से मुक्त हों और जनता के प्रति जवाबदेह हो.लेकिन आपकी पोस्ट देखकर तो लगता है अभी आपने इस बिल के बारे में ज्यादा जानने की जहमत ही नहीं उठाई है.आप सबसे पहले तो ये स्पष्ट कीजिए कि इस संबंध में कानून जरूरी है या नहीं यदि नहीं तो वर्तमान कानूनों और सरकारी बिल की जरूरत पर क्या राय है और यदि हाँ तो प्रभावी जनलोकपाल क्यों नही. ये तो एक शुरूआत है आगे और भी अच्छे कदम उठाए जा सकते है...अब सरकार को लगने लगा है कि जनता जाग रही है ये सबसे अच्छी बात है.और रंजन जी 43 साल तो हो गये इस विधेयक को लटकाऐ हुए जबकि अपने वेतन भत्ते बढवाने की बात हो तब कैसे सब कुछ एक ही दिन में हो जाता है.विपक्ष भी पूरी तरह इस कानून के पक्ष में कभी नहीं हो सकता.और वैसे भी सरकार की मंशा तो सरकारी बिल के प्रावधान देखकर और रोज रोज आने वाले बयानों से ही समझ आ रही है ऐसे लोगों से कैसे उम्मीद की जाए कि ये खुद को जनता के प्रति जवाबदेह बनाने वाला कोई कानून लाएँगे.हमारे लिए इस समय ये ही महत्तवपूर्ण होना चाहिये कि जनता के हित में क्या है.सरकार तो खुद ये ही चाहती है कि हम लोग ऐसे ही सवालों में उलझे रहें और अब ऐसा हो भी रहा है.

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  21. बहुत खुशी हुई ये पोस्ट पढकर
    क्योंकि आपकी हर बात में सहमति और असहमति का ठोस कारण जरुर होता है।

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  22. भ्रष्टाचार ने देश की स्थिति दयनीय बना दी है।

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  23. इस आन्दोलन को आख़िरकार आपने भी समर्थन दे ही दिया ...
    अन्ना के आन्दोलन ने राजनीतिज्ञों के वास्तविक चरित्र को और अच्छी तरह उजागर कर दिया है !

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