ब्लॉग पर नोस्टेलजिया रोमांस
बिन बारिश के पहली बारिश मे
कवि के मन को जिंदा रखने की साजिश
सब सही था पर चाय की बात आते ही
पकोड़ी की याद आयी
सारा नोस्टेलजिया रोमांस
भाप बन कर उड़ गया
अब ब्लॉग का ज़माना हैं
फिर भी चाय बनाना
पुरानी का काम हैं
और
पकोड़ी बनाना नयी का काम हैं
काफ़ी पी पिला लेते
ये चाय पर क्यों
शाम और सहर हुई
गुरु और चेले काश
माइक्रोवेव का
जुगाड़ कर लेते
क्युकी
ताडने वाले कयामत की
नज़र रखते हैं
इस कविता का कोई उदेश्य नहीं हैं बैठे ठाले बे मौसम की बारिश मे मजा लिया हैं
जवाब कविता मे ही आये यही इल्तिजा है
सच बोलना जितना मुश्किल है , सच को स्वीकारना उस से भी ज्यादा मुश्किल है . लेकिन सच ही शाश्वत है और रहेगा मुझे अपने सच पर उतना ही अभिमान है जितना किसी को अपने झूठ से होने वाले फायदे पर होता हैं
मेरे ब्लॉग के किसी भी लेख को कहीं भी इस्तमाल करने से पहले मुझ से पूछना जरुरी हैं
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(19)
जब सूरज मॉर्निंग वॉक करता हुआ
ReplyDeleteखिड़की तक आ जाए
तब हम उनके लिए
एक चाय बनाकर लाते है
उनकी अंगड़ाईया और चाय
कि गर्माहट.. दिन की शुरुआत
बड़ी रोमॅंटिक होती है..
और जब सूरज बगीचे की बेल
को पकड़ कर छुप जाता है बालकनी के पीछे
तब शाम को दोनो पहुँचते है घर
और वो साड़ी के पल्लू को
कमर में फँसा के
सारा प्यार बेसन में घोल
देती है.. उनकी ये पकोडिया
चाय का जायका बदल देती है..
जब चाय के प्यालो से उठते धुँए से
झाँक कर देखता हू उसको..
तो सोचता हू अरसा बीत चुका है फिर भी
वो मुझे नयी ही क्यो लगती..
गर में माइक्रो वेव ले आया घर
तो बेसन के घोल से भरे
हाथो को वो मेरे गालो
पर कैसे लगाएगी..
चाय और पकोडिया तो बस बहाना है
रूमानियत तो उनकी आमद से है..
कविता का जन्म यूँ भी होता है :) रूमानियत के लिए सिर्फ अच्छे प्यारे माहोल की जरुरत है ....सुविधाएं भी हम खुद ही जुटाते हैं ..पर यह ख्याल दिल में रहे की एक दूजे का साथ किस तरह अधिक अधिक छोटी बातो से पाया जा सकता है तो रिश्ता यूँ ही महकता रहता है ..कुश आपका जवाब मुझे तो बहुत पसंद आया ...यही सोच आगे भविष्य में भी बनाए रखे :)
ReplyDeleteगुरु और चेले काश
ReplyDeleteमाइक्रोवेव का
जुगाड़ कर लेते
और फिर
बिजली के
इन्तजार में
धुन सर लेते!!!
सारी रुमानियत
धरी की धरी रह जाती..
चाय की चाहत
कहीं सहमी सिकुड़ी
खड़ी रह जाती!!!
यहाँ हो क्या रहा है? ..रचना जी कविता में भी दिमाग लगा दिया तो हो गई कविता ...हा हा हा :-)
ReplyDeleteआसमान भी अजीब शै है जब ख्वाहिश करे तब बरसता नहीं ओर .. किसी रोज अचानक खिड़की पे बूंदे फेंक जगा देता है ..बेवफाई उसका शगल है ...ओर मौसम से बगावत उसका मिजाज़ ...दिल मुआ इन रोजमर्रा के मसलो में उलझा रोज कई लफ्जों के पीछे धेकेलता है ...कब तक सहेगे वे भी .किसी रोज आसमान से साजिश करके वे भी बरस पड़ते है ...
ReplyDeleteकभी कभी इस बात का मुगालता भी फायदेमंद रहता है की मुआ ये शायरना इल्म का वायरस हमारी रगों में अब तक मौजूद है ...जिंदगी की धकापेल में मरा नहीं....
कविता तो नहीं एक त्रिवेणी भेज रहा हूँ...नोश फरमाए ....
मुद्दत हुई उससे मिले, जुदा हुए ज़माना गुज़रा
कल किसी किताब के सफहे मे मिली मुझको .........
कुछ तो अपना ठिकाना बता मुझको ज़िंदगी
वो गाना है देव डी का....साली ख़ुशी ...बस समझ लो ब्लॉग का नोस्तेल्ज्जिया वैसा ही है .....
सब सही था पर
ReplyDeleteरोमांस , रोमांस मेँ
भाप बन कर जुड गया
ये चाय पर क्योँ
शाम और सहर हुई
नहीँ था कोई क्योँ
काम और बहर हुई
ब्लोग के गुरु और चेले
नेट और वेब का
जुगाड कर लेते
क्युंकि
कयामत पर,ताडने वाले
ही नज़र रखते हैँ
अब इस ब्लॉग पर
ReplyDeleteकविता दिल की बात नहीं हैं
लवली रानी
ना कुछ मेरी कलम से की
हैं यहाँ कविता कहानी
ये रात कैसी आयी
ReplyDeleteखाली हाथ
न कोई ख्वाब
न ख्याल
पलकों की झालर पर जो तैरता था
वो चांद आज गायब है
आरजुओं की पेहरन पर जो तारे थे
वे भी मद्धम हैं
थमा हुआ है नीला आसमान
न जाने किसके इंतजार में
itne logon ki jadugari dekhi ....to roomani sa ho gaya
ReplyDeleteरूप-राशि मादक सम्मोहन जुल्फें ज्यों अलमस्त घटा।
ReplyDeleteविरहिन सखी को दिखा रही संकेतों से कमनीय छटा।।
हरियाली की छटा सलोनी मन को नहीं डिगा पायी।
अपलक मौन प्रतीक्षा किसकी इन नयनों में है छायी।।
तरू की ओट लिए लख सुषमा मस्त हो गयी अपने में।
किसकी मौन साधना करती खोयी खोयी अपने में।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
हम किसी और की कविता यहां चेप दें तो चलेगा क्या? अभी बस यहां लिखी कवितायें पढ़ने का ही समय है.. अपनी कविता लिखने का समय नहीं है.. :)
ReplyDeleteइस तरह हम भी कविता चोरों में अपना नाम शुमार कर लेंगे.. :D