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April 14, 2009

पाश्चात्य सभ्यता अगर इतनी खुली हैं तो जनसँख्या हमारी क्यूँ ज्यादा हैं ?? जरुर बताये

हिन्दी ब्लोगिंग मे जीतना विरोध पाश्चात्य सभ्यता का देखा हैं शायद ही कहीं और देखा । यहाँ हर जगह बस एक ही बात पढ़ने को मिलती हैं की हमारे बच्चे पाश्चात्य सभ्यता और संस्कृति के "खुले" पन की वजह से बिगड़ते जा रहे हैं ।

खुला पन क्या होता हैं ? इसकी कोई परिभाषा नहीं मिली कहीं भी बस जहाँ तहां { ब्लोग्स पर } यही पढ़ने को मिला की पाश्चात्य सभ्यता मे सेक्स को ज्यादा महत्व दिया गया हैं ।

जनसँख्या सम्बंधित कुछ आकडे प्रस्तुत करे रही हूँ जो शायद आप को रुचिकर लगे अब जनसँख्या की बढोतरी सेक्स आधारित हैं या नहीं , इस पर जरुर चर्चा हो !!!!!!

IndiaPopulation: 1,147,995,904

United StatesPopulation: 303,824,640

"Paris"Population: 2,167,994

United KingdomPopulation: 60,943,912


पाश्चात्य सभ्यता अगर इतनी खुली हैं तो जनसँख्या हमारी क्यूँ ज्यादा हैं ?? जरुर बताये

13 comments:

  1. पाश्चात्य का खुलापन मानसकिता और बुद्धि से आता है, जो उनके व्यवहार में भी झलकता है. खुलेपन का मतलब अज्ञानता और लापरवाही नहीं है.

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  2. किसी भी वस्तु को बाँध दोगे तो वह सड़ जाएगी. हमारे साथ भी वही हो रहा है. वरना तो भारत में स्त्रियाँ कमर से उपर कपड़े नहीं पहनती थी और वह भारत का स्वर्णकाल था.

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  3. सोचनीय और विचारणीय प्रश्न...हथियार का उपयोग अगर खुद को घायल करने में करोगे तो भला हथियार का क्या दोष...
    नीरज

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  4. वहाँ खुला पन है, इस लिए नंगई दिख जाती है। यहाँ ढकापन है इस लिए नंगई ढकी रहती है। नंगई को तो पैमाने से ही नापा जा सकता है। वह आप ने सब के सामने रख ही दिया है।

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  5. नंगेपन का बच्चे पैदा करने से कोई मेल नहीं है।

    शिक्षा के अभाव में व्यक्ति को पता नहीं होता कि बच्चे कितने पैदा करने चाहियें, उनकी परवरिश कैसे हो, इत्यादि। रूढ़िवादियों को तो यह भी कहते सुना है "बच्चे तो भगवान की देन हैं, इन्हें कैसे रोकें?"। अब ऐसों का क्या करियेगा?

    ले-देकर सब शिक्षा का ही खेल है। नग्नता तो पश्चिम का मज़ाक बनाने का ढकोसला-मात्र है।

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  6. बच्चे पैदा करना खुलापन की श्रेणी में नहीं आता जो की पश्चिमी सभ्यता में है..

    रही बात भारत कि पोपुलेशन ज्यादा क्यों है ? तो पश्चिम में सेक्स पर खुलकर बात होती है.. वहा पर शिक्षा में भी सेक्स एजुकेशन को शामिल किया जाता है.. परन्तु हमारे यहाँ इसका सर्वथा अभाव है.. भारत में सेक्स एजुकेशन लोग स्टेशनों पर मिलने वाले साहित्यों में पाते है.. वजह साफ़ है किसी ने अभी तक इनिशिएटिव नहीं लिया.. पर अब लिया जा सकता है.. कुछ पत्रिकाओ में जान बूझ कर सेक्स सम्बन्धी सवालों को मसालेदार बना कर लिखा जाता है.. इन पत्रिकाओ में सबसे ज्यादा पढ़ा जाने वाला स्तम्भ भी यही होता होगा..

    पश्चिमी देशो से तुलना किसी भी कीमत पर नहीं की जानी चाहिए.. आपकी पोस्ट भी कुछ वैसी ही है जहाँ तुलना हो रही है.. अच्छी या बुरी फर्क नहीं पड़ता..

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  7. फक्ट्स एंड फिगर्स को जब डाटा अनाल्य्सिस के लिये इस्तमाल किया जाए तो तुलना की शेदी मे नहीं आता । आप जिस तुलना की बात कर रहे उसका अर्थ हैं की दो चीजों की कमियाँ या खूबियाँ । on the contrary i am talking about census based data and our thinking process and fault finding in others where as the fault is in our own system

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  8. कुश की बात में दम है .....खुलेपन को भी देखा जाए तो कई रूप हैं

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  9. वैसे तो कुश ने आपके प्रश्न का एक तर्कसंगत उत्तर दे ही दिया है, किन्तु फिर भी आपके विचारों को जानकर मैं टिप्पणी करने से अपने आपको रोक नहीं पा रहा हूं...नैतिकता और शुचिता से जुड़े सवालों पर अगर क्रांतिकारिता हो तो गलत नहीं है। न ही सामाजिक दोषों, बुराइयों, कमजोरियों और अपवादों के खिलाफ लड़ना कोई छोटी बात है। मगर आज स्त्री जब सर्वाधिक स्वतंत्र, सक्षम, सहज, और समर्थ हो रही हो और उसके लिए समाज में परिवेश भी निर्मित हो रहा हो तब आपका इस प्रकार वैयक्तिक शारीरिक असंयम एवं नग्नता को नारी मुक्ति रूपी आंदोलनकारिता का दर्जा देना(जैसा कि आपके विचारों से मुझे आभास हो रहा है) न केवल स्त्री जाति की स्वाभाविकता और नैसर्गिकता को गलत अर्थ एवं दिशा देने की कोशिश है बल्कि सामाजिक संतुलन, गरिमा और मर्यादा को विश्रृंखलित करने की एक उच्छृंखल शरारत भी लगती है। आजादी भी जरूरत से ज्यादा हो तो अक्सर वो बर्बादी में बदल जाती है। चाहे आप मुझसे उम्र में बडी हों या छोटी किन्तु एक बात कहना चाहूंगा कि असंयम और चारित्रिक पतन से बदलाव नहीं बवाल ही हुआ करते हैं। ईश्वर से कामना करता हूं कि मेरी बात आपको समझ में आ जाए ।

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  10. यही सवाल मैंने कुछ दिनों पहले भारतीय संस्कृति के समर्थक अमरीकी युवक -- सीजे -- से पूछा था, उसने बताया, पश्चिम में बिना शादी के किसी के भी साथ कभी भी व्यभिचार होता है, समाज की अनुमति की परवाह नहीं की जाती. और समाज भी परवाह नहीं करता. वह खुला नहीं व्यभिचारी समाज है.

    पर भारत में यौन सम्बन्ध समाज की अनुमति से अधिकतर पति पत्नी के बीच ही होते हैं. हाँ भारत के लोगों की जनन दर (फर्टिलिटी रेट) ज़रूर अधिक है, जो की अधिकतर गर्म देशों में होती है.

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  11. समय का जबर्दस्त अभाव है व मन, तबीयत भी ऐसी नहीं है कि अपने कथन को तर्कों के साथ प्रस्तुत करूँ किन्तु मुझे विश्वास है कि मेरी बात के बारे में सोचोगी अवश्य इसलिए कह रही हूँ। आँकड़े आज के ही न देखिए। भारत की लगभग सारी आबादी भारत में ही है। पश्चिमी देशों याने यूरोप ने पूरा का पूरा उत्तर व दक्षिणी अमेरिका बसा दिया। इंगलैंड ने आस्ट्रेलिया लगभग अकेले ही बसा दिया। यदि आप यूरोप के क्षेत्रफल पर ध्यान देंगी तो आपको भी मानना पड़ेगा कि संसार की अन्य जातियों को खत्म करके गौरे लोगों की आबादी बढाने में ये लोग हमसे दो कदम आगे ही रहे। एक छोटे से द्वीप के लोगों ने अपनी आबादी इतनी बढ़ा ली थी कि उन्हें लोगों को बसाने के लिए सारे संसार में भटकना पड़ा।
    वैसे खुलेपन से मेरा कोई विरोध नहीं है। नैतिकता का सम्बन्ध आबादी के घटने बढ़ने से नहीं है। शरीर बेचने वाले सबसे कम बच्चे पैदा करते हैं।
    भारत के लोग जब सदियों की दासता से उबरेंगे तो आबादी पर भी नियन्त्रण हो जाएगा। जीवन स्तर,स्वास्थ्य व शिक्षा का आबादी से गहरा नाता है। कॉलेज के दिनों में पढ़ाया गया था कि जब भी माता पिता को विश्वास होता है कि उनकी सारी संतानें लगभग लगभग निश्चित रूप से जीयेंगी तब तब वे कम बच्चे पैदा करते हैं। यदि हम उन्हें यह आश्वासन नहीं दे पाते तो आबादी बढ़ेगी ही। ये समस्याएं ऐसी नहीं हैं कि इनका इतना सरलीकरण कर दि्या जाए। बहुत गंभीर मुद्दे हैं। इन्हें हम अपनी बात सिद्ध करने भर को यूँ उपयोग नहीं कर सकते। बच्चों की संख्या का कितनी बार कोई संभोग करता है से इतना सीधा सम्बन्ध भी नहीं है। सीधा सम्बन्ध केवल परिवार नियोजन के साधन के उपयोग करने या न करने से है।
    आशा है कि मेरी बात को अन्यथा नहीं लेंगी व हो सके तो इस विषय का और अध्ययन करेंगी।
    घुघूती बासूती

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  12. Pt.डी.के.शर्मा"वत्स"

    yahii antar aata haen soch kaa ki ham koi bhi prshan karae usko naari purush ki baat par lae jaa kar smaapt kar diya jaaye


    vishay sae bhatakae huae kament koi baat nahin badhaatey post laekhak kae sochnae kae liyae

    kewal aur kewal vivaad utpaan kartey haen

    yahaan ek census vs thinking process ki baat thee

    aur aap ki zara mae wo stri aur shuchitaa ka mudaa ban gayee

    please padh kar viccar dae dubara

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  13. all those who found this post worth writing a response on , i thank them

    we grow when we discuss

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