कल राम नवमी थी लेकिन हमारे हिन्दी ब्लोग्स पर कोई ख़ास बात नहीं दिखाई दी इस विषय मे । कोई शुभ कामना कोई बधाई नहीं दिखी , या कहें की गिनती के एक दो ब्लॉग पर ही इस का कोई जिक्र देखा गया ।
जब भी वैलेंटाइन डे { या किसी भी ऐसे दिन } कि बात होती हैं विरोध के मुखर स्वर ब्लॉग पर होते हैं क्युकी उनको लगता हैं कि भारतीये संस्कृति रसातल मे चली गयी । विरोध कराने वाले नाम गिने हुए हैं उँगलियों पर जिनको हमेशा डर रहता हैं कि पाश्चात्य सभ्यता हम पर हावी हैं या हो रही हैं । बार बार ब्लॉग पर आलेख पर आलेख आते हैं , आलेखों को एक ब्लॉग से दूसरे ब्लॉग पर डाला जाता हैं , एक दूसरे को unconditional support दी जाती हैं ।
उस समय एक युद्ध जैसा माहोल तैयार कर दिया जाता हैं ।
लेकिन कल जब राम नवमी थी वो सब ब्लॉगर बिल्कुल चुप थे क्यूँ क्या भारतीये संस्कृति का अर्थ केवल और केवल दुसरो का विरोध करना हैं लेकिन जब बात अपनी संस्कृति के त्योहारों कि हो तो उसको भूल जाना बेहतर होता हैं ।
कभी कभी लगता हैं कि जो ब्लॉगर सबसे ज्यादा विरोध करते हैं पाश्चात्य सभ्यता का वो ही सबसे कम याद रखते हैं अपनी संस्कृति और सभ्यता को ।
सच बोलना जितना मुश्किल है , सच को स्वीकारना उस से भी ज्यादा मुश्किल है . लेकिन सच ही शाश्वत है और रहेगा मुझे अपने सच पर उतना ही अभिमान है जितना किसी को अपने झूठ से होने वाले फायदे पर होता हैं
मेरे ब्लॉग के किसी भी लेख को कहीं भी इस्तमाल करने से पहले मुझ से पूछना जरुरी हैं
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Exactly! They are ashamed of mentioning Ram these days . But u know if there is a war tomorrow , it will be Rajputana Rifles in the forefront and u know what would they shout before wiping out the enemy " Raja Ram Chandra Ki Jay". So till Raj.Rif is on duty we need not bother about blog -buffoons!
ReplyDeleteजै राम जी की, राम-राम सा' और जै सिया राम! ये हमारे यहाँ के सामान्य अभिवादन हैं।
ReplyDeleteआप ने बहुत अच्छा पकड़ा है। पाश्चात्य सभ्यता का विरोध एक राजनीति है। राम की किसे पड़ी है। यहाँ एक प्राचीन हनुमान मंदिर है। वहाँ बहुत लोग जाते हैं। वहीं उसी परिसर में उतना ही प्राचीन राम मंदिर है। लोग हनुमान जी के दर्शन कर चले आते हैं। राम जी को पूछते ही नहीं।
मैं ने अयोध्या राम मंदिर आंदोलन के दिनों में आंदोलन के समर्थकों से पूछा- आप ने वहाँ राम मंदिर देखा? तो 100 प्रतिशत ने उत्तर में पूछा -वहाँ राम मंदिर कहाँ है। इसे कहते हैं दिये तले अंधेरा। लोगों को अपना राममंदिर पता न था,और अयोध्या की ओर दौड़े चले आ रहे थे। यह राम प्रेम नहीं था केवल और केवल राजिनीति थी। अब चुनाव के मौसम में फिर जय श्री राम बोला जाएगा, फिर हिन्दू की याद सताएगी। राम लोगों के दिलों में बसते हैं। अयोध्या में नहीं।
आपकी इस सोच की मैं प्रशंसा करता हूँ। प्रत्येक शब्द दग्ध लोहे की तरह लगा। भारतीय सभ्यता और संस्कृति को बनाए रखने के लिए इस प्रकार के प्रयास की आवश्यकता है।
ReplyDeleteरचना तुम्हारी बात से सहमत हूँ,
ReplyDeleteI,once again, extend my support for raising this issue.
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ReplyDeleteमुझे लगता है कि इस अवसर पर जिसे शुभकामना आदि देना थी, व्यक्तिगत तौर पर आपस में नेटवर्किंग के जरिये दे दी… वैसे भी यह त्यौहार शालीनता से मनाने के लिये है, इसमें हल्ला-गुल्ला करने की क्या जरूरत है… हरेक बात ब्लॉग पर लिखी ही जाये कोई आवश्यक नहीं… राम दिल में बसते हैं उसके लिये मन्दिर जाकर दिखावा करने की भी जरूरत नहीं है। रामनवमी एक भारतीय त्योहार है इसे शालीनता से मनाया जा चुका है…। ये कोई वेलेण्टाइन डे नहीं है कि लड़कियों को गुलाब भेजे जायें या कोई अन्य सार्वजनिक छिछोरापन किया जाये…। एक ही बात बार-बार विभिन्न ब्लॉग पर बदल-बदल कर कौन-कौन और कितने लोग लिखते हैं ये भी सबको पता है… अन्त में एक बात, कि हर चीज़ को भारतीय संस्कृति से जोड़ना उचित नहीं लगता, आगे जैसी आपकी मर्जी… आप विद्वान हैं… टिप्पणी करना चाहता तो नहीं था, लेकिन द्विवेदी जी जैसे विद्वान की टिप्पणी के बाद सोचा कि एक अदना सी बात रख ही दी जाये… :)
ReplyDeleteरचना मै सुरेश जी की बात से सहमत हूं, जरुरी नही हम अपने त्योहारो को पाश्चात्य सभ्यता की तरह दिखावे के रुप मे मनाये, मै कभी मंदिर नही जाता, लेकिन भगवान को मानता हुं, अब आप मुझे नास्तिक कह सकती है, क्योकि मै दिखावा नही चाहता, यह पाश्चात्य सभ्यता वाले हमारे कोन से त्योहार मनाते है ? क्या इन के बेहुदा त्योहार मना कर हम अपने आप को सभ्य घोषित करना चाहाते है, नकल हमेशा बंदर ही करते है....
ReplyDeleteराम राम जी की
मैं बधाई वगेरे कम ही देता हूँ, फिर भी कल की पोस्ट में राम को याद कर लिया था.
ReplyDeleteराम-राम :)
किसी बात का विरोध सारे आम करते हैं पर अपनी अच्छी बातो का प्रचार नहीं करते तो लोग कैसे आप की संस्कृति की अच्छी बातो को पहचानेगे जितनी शक्ति आप पाश्चात्य सभ्यता का विरोध करने मे ब्लॉग पर लगाते हैं अगर उतनी शक्ति अपनी सभ्यता और संस्कृति की बातो के "सही " प्रचार मे लगाये तो हिंदू धर्म का सही स्वरुप सामने आता हैं । आशा है सुरेश जी और राज भाटिया जी को इस पोस्ट का मंतव्य सही समझ आया होगा अब ।
ReplyDeleteऔर यह 'सही' प्रचार कैसे किया जाता है???
ReplyDeleteright way of doing things is not what i am saying
ReplyDeleteright form is what i am talking about @ abinconvenienti
सटीक ।
ReplyDeleteयाद तो उसको किया जाता है जिसको भूला जाए, हमारी भारतीय संस्कृति कोई भूलने वाली चीज नहीं है। फिर भी आपने ठीक फरमाया कि ब्लागरों को कम से कम अपनी संस्कृति को जिंदा रखने के लिए रामनवमी पर भी कुछ न कुछ तो लिखना ही था।
ReplyDeleteसंस्कृति का ढोल पीटने की क्या जरूरत है?
ReplyDeleteऔर अपने हर व्यक्तिगत मसले को ब्लॊग पर लिखने या हार चीज का दुनिया के सामने दिखावा करने की भी क्या? ब्लॊग न ह गया कोई बड़ा क्रान्तिकारी काम हो गया। एक अदना-सा ब्लॊग लिखना मानो बड़ा महान काम है, कि सब कुछ इसी पर घोषणा पूर्वक सारी दु्निया के सामने ढिंढोरा पीट कर किया जाए।
ब्लॊग लेखन से लाख गुणा बड़े मह्वपूर्ण सामाजिक कार्य लोग करते हैं, और किसी को हवा भी नहीं लगने देते। आत्मप्रदर्शन या आत्मश्लाघा कितनी अच्छी या कितनी बुरी है,यह बताने की बात नहीं.
दिखावे की जरूरत क्या है?
मेरा ख्याल हैं कविता जी की ब्लॉग लेखन और ब्लॉग सम्बंधित बाते ब्लॉग पर करना , लोग क्या क्या ब्लॉग पर लिखते हैं उसको पढना एक ब्लॉगर ही करता हैं . ब्लॉग कोई काम नहीं हैं ब्लॉग एक अभिव्यक्ति का साधन जिसका उपयोग हर कोई अपनी दृष्टि से कर रहा हैं . जिनको ब्लॉग लेखन मे कुछ नहीं मिलता या जीको लगता हैं ब्लॉग लिखना एक तुच्छ काम हैं उनको ब्लॉग से दूर ही रहना चाहिये क्युकी श्याद उनको अभिव्यक्ति के इस माध्यम की ताकत का पता ही नहीं हैं
ReplyDeleteशाबाश कविता जी !
ReplyDeleteघसीट दिया ! घसीट दिया :)
उफ़ विवेक जी आप हडबड़ी मे नाम देना भूल गए की कविता जी को आप किस को घसीटने की शाबाशी दे रहे हैं । आप जैसे क्रांतिकारी महापुरुषों के कारण ही तो हिन्दी ब्लोगिंग इतनी रुचिकर हो गयी है । कहते हैं ना आ बैल मुझे मार पर आप का तो नारा हैं "आ बैल किसी को तो मार और मे टंकी पर चढ़ कर नीचे थूकुं "
ReplyDeleteआपकी बात से पूर्ण सहमती है.
ReplyDeleteरचना जी, मैं व्यक्तिगत रूप से आपसे पूर्णत: सहमत हूं....जब हम लोग अप्रेल फूल/वैलनटाईन डे/क्रिसमिस डे/न्यू ईयर जैसे मौकों पर एक दूसरे को बधाईय़ा देते नहीं थकते और आप देखें कि इन मौकों पर ब्लागजगत पर लेखन की भरमार रहती है,लेकिन अपनी संस्कृ्ति,त्योंहारों के बारे में शायद ही कोई पोस्ट देखने को मिलती होगी
ReplyDeletenice post...
ReplyDeleteकिसी भी विषय पर "ब्लागबाजी" छिड़ने के लिये उसका विवादित होना बहुत जरूरी है। जैसे की चड्डियाँ, आतंकवाद और इस्लाम, राजनेताओं का चरित्र इत्यादि।
ReplyDeleteहजारों साल बीत गये, लेकिन राम पर अभी ज्यादा कुछ विवाद खड़े नहीं हो पाये। अलबत्ता कुछ तथाकथित रामभक्त हमेशा ही विवादों से घिरे रहे हैं।
राम को जिस दिन विवादों में घसीटा जायेगा, उस दिन राम पर भी धड़ाधड़ चिट्ठे छपने लगेंगे।
आपकी प्रविष्टि ठीक है ।
ReplyDelete"आ बैल किसी को तो मार और मे टंकी पर चढ़ कर नीचे थूकुं " - आपके इस मुहावरे की चर्चा होनी चाहिये । कहिये विवेक जी !