सच बोलना जितना मुश्किल है , सच को स्वीकारना उस से भी ज्यादा मुश्किल है . लेकिन सच ही शाश्वत है और रहेगा मुझे अपने सच पर उतना ही अभिमान है जितना किसी को अपने झूठ से होने वाले फायदे पर होता हैं
मेरे ब्लॉग के किसी भी लेख को कहीं भी इस्तमाल करने से पहले मुझ से पूछना जरुरी हैं
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अच्छी रचना जो लगे टिप्पणी देते लोग।
ReplyDeleteबदले में टिप्पणी मिले ऐसी चाहत रोग।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
किसी भी रचना के कथ्य के प्रति त्वरित और सहज प्रतिक्रया ही टिप्पणी के रूप ले लेती है ! पहले मुद्रण माध्यमों में लोग सम्पादक के नाम पत्र लिखते थे जिनके अनेक नाम होते थे -मत और सम्मत ,आपकी चिट्ठी ,मतान्तर ,आपके पत्र ,पाठकों ने कहा -आदि आदि ! अब ब्लॉग जगत में टिप्पणियाँ भी उसी परम्परा की बोधक हैं किंवा नवीन संस्करण हैं !
ReplyDeletejo achha lage uski tariff karne ka mann hota hai so comment roopi taliyaan hai.
ReplyDeleteब्लॉग दरअसल विचारो का आदान प्रदान का एक जरिया है.....अभिव्यक्ति से इतर....टिप्पणी उसका जरिया ....
ReplyDeleteमुझे लगता है कि कोई उधार है जो उतार रहा हूँ
ReplyDelete---
तख़लीक़-ए-नज़र । चाँद, बादल और शाम । गुलाबी कोंपलें । तकनीक दृष्टा
भाई जी
ReplyDeleteआपने अपनी इस नन्ही पोस्ट के माध्यम से क्या चाहा है?
यही न कि कोई टिप्पणी दे.
इस जरा सी बात को घुमा कर लिखने के पीछे आपकी जो चाहत है , उसी से मिलती जुलती चाहत भी हमारी है. कि आप भी अब हमें एक टिप्पणी दें.
( इस तरह आप और हम अपने भाव और अभिव्यक्ति बांटते हैं जनाब, आन्ही तो आप हमें कैसे मिलते. अब मैं देखता हूँ कि आपने टिप्पणी पाने के लिए " पंक्तियाँ लिखी हैं या फिर हम से
मिलाने के लिए ???????)
- विजय
टिप्पणी चर्चा सब करें, टिप्पणी करत न कोय
ReplyDeleteजो टिप्पणी करने लगो, तो दुख काहे को होय.
दुख काहे को होय और न फिर यह प्रश्न आयेगा
टिप्पणी करने वाला, ये उत्तर बिन पूछे पायेगा.
कहत समीर कविराय, नाहक ही मचा है दंगल
टिप्पणी तो प्रसाद है, करे है चिट्ठे का मंगल.
-समीर लाल ’समीर’
जाओ मैं टिपण्णी नहीं देता .....devil's moral
ReplyDeleteक्या सवाल है आपका, क्या चाहते हैं आप?
ReplyDeleteमैं टिप्पणी कई कारणों से देता हूँ, जिसमें से कुछ यह हैं:
ReplyDelete१) मूल लेख में कुछ अतिरिक्त सामग्री जोड़ना
२) लेखक का हौसला बढ़ाना
३) अपनी सहमति/असहमति कारणों सहित जताना
४) यदि कोई ऐसी जानकारी मिले जो पहले पता नहीं थी, तो लेखक को धन्यवाद कहना
५) किसी पूछे गये सवाल का जवाब देना, जैसे कि यहाँ पर कर ही रहा हूँ
६) ... ...
टिप्पणी काहे करत हौं ,मत कोई पूछन जाए।
ReplyDeleteटिपियाए जरा देख लो, आपहु समझ आ जाए॥;)०)
किसी के लेख पर टिप्पणी देने से लगता है कि उस उनदेखे से एक नाता जुड़ गया है। वह अनदेखा अपना हो गया है। अपनी उपस्थिति वहां दर्ज करा मुझे तो ऐसा लगता है कि मैने एक दोस्त बना लिया है और जब कभी भी मौका मिलेगा उससे जरूर मिलना चाहूंगा। टिप्पणी ही वह माध्यम है जो देते-लेते रहने से आपस में हम एक अदृश्य धागे से बंध जाते हैं।
ReplyDeleteअभी जैसे समीर जी और भाटिया जी स्वदेश आये, तो उनका बहुत सारे लोगों से मिलना हुआ। पढ कर ही बहुत अच्छा लगा। सोच कर ही कितना अजीब लगता है कि जिनसे रोज ब्लाग पर मुलाकात होती है उन लोगों से साक्षात मिलना कितना रोमांचक होगा। शुरुआती दौर में इन दोनों की टिप्पणियां ही थीं जिन्होंने मुझे यहां बने रहने का हौसला दिया।
कुछ ज्यादा तो नहीं लिख बैठा (-:
अरविन्द जी और समीर जी की टिप्पणी से ज्यादा अलग नही ।
ReplyDelete???????
ReplyDeleteman kiya to de dete hain.. nahi man kiya to post achchha lagne par bhi nahi karte hain.. :)
ReplyDeleteववहारिक रुप से शादी मे लिये-दिये लिफ़ाफ़े की तरह...और अगर झूंठ बुलवाये तो आप कहें वो कह देते हैं.
ReplyDeleteरामराम.
बहुत सारे कारण हैं.
ReplyDelete०१. किसी लेख, कविता, गजल का अच्छा लगना हमेशा टिप्पणी लिखने के लिए प्रेरित करता है.
०२. किसी विमर्श में लेखक के साथ समर्थन या फिर अलग विचार रखने पर अपने विचारों का प्रेषण टिप्पणी करने के लिए एक कारण होता है.
०३. समीर भाई की बात से पूरी तरह से सहमत. नए आने वाले चिट्ठाकारों के प्रयासों की सराहना टिप्पणी करने का एक और कारण है.
०४. कुछ मुद्दे ऐसे हैं जिनसे बचकर निकलने के लिए टिप्पणी नहीं कर पाता. लेकिन कोशिश रहेगी कि इस सोच से निकला जाय. शायद ऐसा तभी हो सकेगा जब यह भय न हो कि टिप्पणी करने से कोई बात बिगड़ जायेगी. वैसे यह सोच निर्मूल नहीं है. ऐसा पहले कई बार हो चुका है.
वाह जी वाह बहुत ही कमाल की रचना पेश की है आपने बेहतरीन शब्दों को पिरोया हे आपने क्या रचना रची है जी बेहतरीन जब से पढी है तो पढे ही जा रहा हूं
ReplyDeleteहा हा हा
अरे भाई अब एक बात बताओ कि आप अच्छी रचना क्यों लिखते हों पहले इसका जवाब दो फिर हम इस बात का जवाब देंगे आपको
ज्यादातर तो ऊपर लिखित सारे ही कारण हैं...पर कई बार ..मिर्ची लगाने को...
ReplyDeleteकिसी आलेख को पढने के बाद मन में कुछ भाव तो आते ही हैं .. गलत हो या सही पर इन विचारों को लेखकों के सामने जाहिर कर देना अच्छा रहता है .. अब इससे लेखकों को भी खुशी मिल जाती है .. इस तरह हमारी खुशी दुगुनी हो जाती है।
ReplyDeleteटीपणीयॉ लेखक के लिऐ विटामिनA-B-C-D का काम करती है
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