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August 24, 2011

अन्ना का अनशन ना तोडने का फैसला गलत हैं क्युकी हमे अन्ना की जरुरत हैं

भ्रष्टाचार मुक्त भारत या india against corruption ये लड़ाई government के खिलाफ नहीं governence के खिलाफ हैं ।

ये लड़ाई सरकार के खिलाफ नहीं हैं ये मुहीम हैं प्रशासन के खिलाफ

सरकार क़ोई भी आजाये प्रशासन का तंत्र वैसे का वैसा ही रहता हैं

६४ साल में हमने इतनी तरक्की की हैं की आज हम को अपने चुने हुए प्रतिनिधियों के प्रति एक वितिश्ना का भाव हो गया

सरकार , सरकारी कर्मचारी , सरकारी नौकरी सब इस प्रशासन का हिस्सा बन गये हैं

सरकार का एक छोटा से अफसर भी सरकारी तंत्र में भ्रष्टाचार फैलाने के लिये एक माध्यम हैं और शायद इसी लिये जन लोक पाल बिल की शर्त की उसको भी इस बिल में शामिल करे हमारी मौजूदा सरकार और विपक्ष दोनों को ही नहीं मंजूर हैं ।

सरकारी नौकरी में पहले ५८ साल पर रिटायर होते थे वो उम्र आज बढ़ कर बहुत से सरकारी संस्थानों में ६५ होगयी हैं
यानी नयी पीढ़ी के लिये क़ोई नौकरी नहीं होगी
सरकारी कर्मचारी की पेंशन ६५ से शुरू होती हैं और जब तक जीवित हैं रहती हैं जब की आम नागरिक के लिये ऐसा क़ोई प्रावधान कहीं नहीं हैं ।
जब सरकारी कर्मचारी को इतनी बढ़िया पेंशन मिलती हैं तो फिर उनको हर जगह सीनियर सिटिज़न में आधा किराया क्यूँ देना होता हैं
इनकम टैक्स में रिटायर्ड सरकारी कर्मचारी को क्यूँ रिबेट दिया जाता हैं
और भी ऐसी बहुत सी सुविधा हैं जो सरकारी कर्मचारियों को मिलती हैं जैसे फ्री पास आजीवन रेल यात्रा का / हवाई यात्रा का / फ़ोन का बिल / अस्पताल में उनके और उनके परिवार का फ्री इलाज


कितना घंटे एक सरकारी कर्मचारी काम करता हैं ? महगाई क्या केवल उसके लिये होती हैं क्युकी महगाई भत्ता बस उसको ही मिलता हैं , तनखा उसकी बढ़ती हैं और महगाई सबके लिये बढ़ जाती हैं
मकान का किराया , स्कूल की फीस मिडल क्लास की दो बेसिक जरुरत , उन से पूछिये जो सरकारी नौकरी में नहीं हैं कैसे निपटाते हैं

कुछ दिन पहले एक जगह पढ़ा था की मिडल क्लास सबसे ज्यादा खर्चा अपने बच्चो की पढाई पर करता हैं भारत में लेकिन आने वाले ५ वर्षो में सरकार के पास नौकरियां ही नहीं हैं इन बच्चो के लिये । { लिंक मिल गया तो पोस्ट पर अपडेट कर दूंगी }

इसके अलावा हमारे मंत्री कहते हैं की क्युकी उनको लेप टॉप दिया गया हैं सो उनको लेप टॉप चलाने के लिये एक व्यक्ति रखना हैं उसकी तनखा सरकारी खजाने से मिले ।
हर मंत्री को सुरक्षा चाहिये किस से ??

हजारो की भीड़ जमा हैं राम लीला मैदान में । उस दिन जुलुस निकला इंडिया गेट से रामलीला मैदान तक ।

आम आदमी था , कहीं कुछ नहीं हुआ । क़ोई आगजनी , क़ोई मार पीट , क़ोई वहां जलना , रेलवे को रोकना , पत्थर बाज़ी , कुछ भी नहीं ।

क्युकी क़ोई पोलिटिकल पार्टी नहीं थी किसी को वोट नहीं चाहिये था किसी को अपने लिये कुछ नहीं चाहिये था

लोग देश को ठीक देखना चाहते थे और हैं

६४ साल में शायद पहली बार दिल्ली में ऐसा हुआ हैं की किसी ने तकलीफ की बात नहीं कहीं रैली को लेकर

अन्ना का अनशन ना तोडने का फैसला गलत हैं क्युकी हमे अन्ना की जरुरत हैं लेकिन अन्ना क्या करे अनशन तोड़ दिया तो प्रशासन फिर कभी नहीं सुधरेगा

ईश्वर से प्रार्थना हैं अन्ना की इच्छा शक्ति बनाए रहे और उनकी सेहत को सही रखे

कभी एक नारा था

जो सरकार निकम्मी हैं वो सरकार बदलनी हैं

आज नारा हैं

जो प्रशासन निकम्मा हैं वो प्रशासन बदलना हैं


आज राम लीला मैदान पर जब भारत माता की जय , वन्दे मातरम और इन्कलाब जिंदाबाद सुनाई देता हैं तो लगता हैं

कभी हम इस से जीते थे {जीते = won }
आज हम इस से जीते हैं {जीते = live }


4 comments:

  1. अभी नहीं,
    देखो तो सही कि इन कमीने नेताओं में कितना कमीनापन बाकि है,
    अन्ना जैसे सिपाही बहुत कुछ झेल सकते है।

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  2. लीजिये रचना जी सरकार ने तो कह दिया की अन्ना का अनशन हम लोगो का सरदर्द उसका नहीं |

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  3. aapka kathan sahi hai parantu ab unt kis karvat baithega, koi nahin jaanta

    asamanjas ki sthiti bani hui hai

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  4. रचना जी केवल आप ही नही जो भी इस प्रयास का समर्थन कर रहा है उसके सामने ये एक तरह का नैतिक प्रश्न खडा हो गया है कि वो क्या करे..कल से मैं खुद ये ही सोच रहा हूँ यदि अन्ना अनशन तोड देते है तो ये भ्रष्टाचार के खिलाफ एक बड़ी लड़ाई के लिए एक बहुत बड़ा झटका होगा जिसका असर भविष्य में भी देखने मिलेगा और यदि वे अनशन नहीं तोडते है तो ये शरीर उनका कब तक साथ देगा.जनता भले ही उनके साथ इसलिए जुड़ी क्योंकि वह व्यवस्था से परेशान है और इसके पीछे उसका खुद का स्वार्थ है लेकिन आखिर है तो सब इंसान ही न! सभी सरकार की तरह निष्ठुर तो नहीं हो सकते.आखिर में सब एक जैसे ही निकले विपक्ष का साथ मिलते ही सरकार ने आँखे दिखानी शुरु कर दी?अब उसे क्या फर्क पडता है कोई मरे या जिएँ.ये सरकार न हमारी तकलीफों को देख पिघलती है न गुस्से को और न भावनाओं को.कहने को सबसे बडे लोकतंत्र में रहते है हम लेकिन ये सरकार किसी तानाशाह से कम नहीं है.आईबी ने पहले से सरकार को चेता दिया था कि जल्दी कुछ करिए लोगों में गुस्सा बढ रहा है और यदि अन्ना के साथ कुछ अशुभ हुआ तो युवाओं को सम्भालना बहुत मुश्किल होगा लेकिन सरकार तो जैसे चाहती ही ये ही है ताकि मूल प्रश्न कहीं पीछे छूट जाएँ और लॉ एण्ड ऑर्डर का बहाना बनाकर दोष हम पर ही डाल दिया जाएँ.यदि किसी और लोकतांत्रिक देश के जन प्रतिनिधि होते तो ऐसी स्थिति में उनके हाथ पैर फूल जाते जवाब देना मुश्किल हो जाता जनता के पैरों में लोट गए होते लेकिन ये लोग तो हर बात अपनी ही उपर रख रहे है.प्रवण मुखर्जी कहता है कि करते रहो जो कर रहे हो हमें परवाह नहीं यानि जनता की भावनाओं की उसे कोई कद्र ही नहीं है.अब चाहे सफाई दी जा रही हो पर ये जनता के लिए कितने फिक्रमंद है ये तो जाहिर हो ही गया.एक वो भोंदूराम अभी तक सामने ही नहीं आया है कम से कम जनता को झूठी ही सही तसल्ली तो दे.
    अब तो अन्ना को ड्रिप के जरिये ग्लूकोस चढवा लेनी चाहिये.जब तक स्वास्थय साथ दे अनशन जारी रखना चाहिये और जनता को जगह जगह विरोध प्रदर्शन और तेज कर देने चाहिये और जैसा टीम अन्ना कहे उसे माना जाए.

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