सच बोलना जितना मुश्किल है , सच को स्वीकारना उस से भी ज्यादा मुश्किल है . लेकिन सच ही शाश्वत है और रहेगा मुझे अपने सच पर उतना ही अभिमान है जितना किसी को अपने झूठ से होने वाले फायदे पर होता हैं
मेरे ब्लॉग के किसी भी लेख को कहीं भी इस्तमाल करने से पहले मुझ से पूछना जरुरी हैं
December 30, 2010
४०० करोड़ बीस खाते एक मैनेजर !!!!
December 29, 2010
मेरा कमेन्ट यहाँ
शुभकामना हैं अगले वर्ष आप सपत्निक मिले किसी ब्लॉग मीट मे ।
किसी का एक आंसू,बिना उस पर अहसान किये, पोंछ सका, तो अगले वर्ष अपना मन संतुष्ट मान लेंगे ..।
बस अगर ऐसा कर सके तो ब्लॉग पर ना दे पोस्ट बना कर क्युकी इश्वर हमारे उन्ही अच्छे कार्यो का लेखा जोखा रखता हैं जिन का हम प्रचार नहीं करते , पढ़ा था ये कहीं सो बाँट रही हूँ
नया साल आप को और आप के अपनों को शुभ हो
मेरा कमेन्ट यहाँ
आभासी दुनिया मे अपनत्व खोजने से बेहतर हैं जो अपने हैं उनसे अपने संबंधो को सुधरा जाए ताकि आभासी दुनिया मे रिश्तो को नहीं शब्दों और मुद्दों को जिया जाए
मो सम कौन कुटिल खल .... ?
आप ने सही कहा हैं माथा देख कर तिलक करने की परिपाटी ने काफी मुश्किल किया हैं । मुद्दे के साथ खड़े हो ब्लोगर के साथ नहीं तो बात बनती हैं । लेकिन यहाँ ये नहीं हैं ।
हम आभासी दुनिया मे क्यूँ आये ताकि मन की कह सके और निश्चिंतता से आगे बढ़ सके । अपने सामाजिक सरोकारों से ही कहना होता तो बाहर के समाज मे कम लोग हैं क्या ?/ रिश्तो का निर्मम प्रदर्शन यहाँ लोगो को रिश्तो मे तो बाँध नहीं रहा हां एक दूसरे के प्रति निर्मम जरुर कर रहा हैं ।
हम यहाँ एक दूसरे को टिपण्णी प्रति टिपण्णी से खेमो मे बांधते हैं । जब की इन्टरनेट की सुविधा से हम देश की सीमाए लाँघ रहे हैं फिर रिश्तो मे आभासी दुनिया मे बंधने से क्या हासिल होगा । बस इतना ही की आज एक दुसरो को पेडस्टल पर खडा करके और कल डोर मेट की तरह उस पर पैर पोछ कर निकल जाए ।
आभासी दुनिया मे अपनत्व खोजने से बेहतर हैं जो अपने हैं उनसे अपने संबंधो को सुधरा जाए ताकि आभासी दुनिया मे रिश्तो को नहीं शब्दों और मुद्दों को जिया जाए
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December 28, 2010
बिना संकलक के हिंदी ब्लॉग पढना बहुत आसान हैं
अपने अपने ब्लॉग के फोलोवर के फोटो को क्लिक करिये और उस पर दिये हुए ब्लॉग पर जा कर उनको पढिये । इतने ब्लॉग मिल जायेगे की आप पढ़ नहीं पायेगे
हर फोलोवर के नाम के अपने ब्लॉग के साथ साथ उन ब्लॉग का नाम भी होता हैं जिसको वो फोलो कर रहे हैं
सो संकलक की सुविधा के इतर ब्लॉग पढिये और जब अपने फोलोवर के पढ़ चुके तो दुसरो के फोलोवर के पढिये
क्या आईडिया हैं सर जी
December 22, 2010
टीप कुछ लम्बी होगयी पर कहना जरुरी हैं सो आगे
जब मैने ये कहा की @ क्युकी आप की नज़र मे महिला को आवाज उठानी ही नहीं चाहिये उसके खिलाफ जो जो चाहे लिखे ।तो मेरा तात्पर्य था आप की उस पोस्ट से जो एक प्रकरण से जुड़ी थी और आप ने शायद अनूप के कहने से मिटा दी । उस प्रकरण से जुड़े तीन पोस्ट मिटा दिये गये और बात ख़तम होगई लेकिन विषाक्त मन मै हैं और रहेगी तो पोस्ट भी रहने देते । और अगर आप को या किसी को भी पूरी पोस्ट मिटने का अधिकार गूगल ने दिया हैं हैं तो रविन्द्र को टीप मिटा कर आगे बढ़ना का अधिकार क्यूँ नहीं हैं ??? {मै रविंद्रे की आलोचक हूँ पर कोई अपने ब्लॉग पर क्या करे ये उसका अधिकार मानती हूँ ।}
एक प्रकरण से जुड़े लोग एक दूसरे पर लिख रहे हैं उसमे एक महिला हैं तो महिला कि तरफ हूँ ये आप का आक्षेप सही नहीं हैं ये आप कि सोच का धोखा हैं हां मै ये जरुर मानती हूँ कि अगर आप गाली दे कर अपने को गौरवान्वित महसूस करते हैं क्युकी आप पुरुष हैं तो ये अपराध नहीं हैं तो एक महिला को भी वही अधिकार हैं ।
"क्या यह नहीं देखा जाना चाहिए उस पुरुष के अन्य उदाहरण हैं ऐसे अन्य महिलाओं के प्रति ?
मै ऊपर कह चुकी हूँ कि मै किसी के भी संबंधो का आकलन करने ब्लॉग मै नहीं आयी हूँ जो लिखा जाता हैं पढ़ लेती हूँ । ब्लॉग को मै सोशल नेट्वोर्किंग के लिये नहीं मानती हूँ और ना ही आप को मै किसी सोशल नेट्वोर्किंग साईट पर मिलूंगी
क्या यह प्रकरण 'जेनुइन' के समर्थन की मांग नहीं करता , स्त्री या पुरुष की वर्ग-दृष्टि से अलग निरपेक्ष होकर ..क्योंकि -
महज किसी स्त्री का समर्थन करना स्त्रीवाद का समर्थन करना नहीं है !
मेरी सोच मै नारीवाद का एक ही मतलब हैं समानता हर चीज़ मै । उस से ऊपर कुछ नहीं हां अगर चौराहे पर खड़े होकर किसी स्त्री के कपड़े नोचे जाए तो मै एक स्त्री होने के नाते सबसे पहले उसके साथ खड़ी होयुंगी क्युकी आज भी समाज स्त्री को ही डराता हैं और नंगा करता हैं । पुरुष को जिस दिन नंगे होने का भय होने लगेगा उस दिन प्रिय अमेरंद्र समानता आ जायेगी ।
टीप कुछ लम्बी होगयी पर कहना जरुरी हैं सो आगे
आप ने जितने भी लिंक दिये हैं उनकी याद हैं मुझ सो चलिये शुक्रिया कहना बनता हैं सो कह रही हूँ । आग्रह करती हूँ कि अपना साथ देते रहियेगा । और अंत मे कभी कभी हम गलत नहीं होते पर हम सही भी नहीं होते हैं । आपआकलन कीजिये
December 14, 2010
ब्लॉग जगत में निर्मल हास्य या तो है ही नहीं या लोगों को हँसना नहीं आता
# हमारा समाज ‘एन्टी ह्यूमर’ है। हम मजाक की बात पर चिढ़ जाते हैं। व्यंग्य -विनोद और आलोचना सहन नहीं कर पाते।
# हिंदी में हल्का साहित्य बहुत कम है। हल्के-फ़ुल्के ,मजाकिया साहित्य, को लोग हल्के में लेते हैं। सब लोग पाण्डित्य झाड़ना चाहते हैं।
# गांवों में जो हंसी-मजाक है , गाली-गलौज उसका प्रधान तत्व है। वहां बाप अपनी बिटिया के सामने मां-बहन की गालियां देता रहता है। लेखन में यह सब स्वतंत्रतायें नहीं होतीं। इसलिये गांव-समाज हंसी-मजाक प्रधान होते हुये भी हमारे साहित्य में ह्यूमर की कमी है"
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ये किसने कह दिया कि हिंदी ब्लॉग पर "साहित्यकारों वो भी हिंदी के " का अधिकार हैं . हिंदी मे ब्लॉग लिखने वाले अहिन्दी भाषी भी हैं और जिनके लिये हिंदी साहित्य कि नहीं मात्र बोल चाल कि भाषा हैं . टंकण कि सुविधा मिल गयी , सो हिंदी मे लिख दिया . गीत , ग़ज़ल , कहानी और भी ना जाने क्या क्या लिखा जा सकता हैं क्युकी ये ब्लॉग माध्यम का उपयोग मात्र हैं . वैसे ब्लॉग केवल और केवल एक डायरी ही है जिस मे समसामयिक बाते जयादा होती हैं .
निर्मल हास्य कि परिभाषा स्थान से स्थान पर बदलती हैं . जिनकी परवरिश गाव और देहातो मे नहीं हुई हैं वो गोबर से होली खेलने को "गंदगी "कहते हैं जबकि गाव मे और कुछ ना मिले तो गोबर ही सही .
कुछ लोग ब्लॉग पर मुद्दे पर लिखते हैं तो कुछ लोग सर्जनात्मक । मुदे पर बहस हो सकती हैं लेकिन किसी कि सर्जनात्मकता पर नहीं . हां देखना ये हैं कि एक दूसरे के ऊपर तारीफ़ कि पोस्ट लगा लगा कर निर्मल हास्य को कब तक मुद्दा बना कर कौन कितना लिख सकता हैं . निर्मल हास्य का फ़ॉर्मूला या कहले कल्ट से जल्दी ही ऊब जायेगे लोग
चिटठा चर्चा पर कमेन्ट
December 11, 2010
हम जिस परिवेश मे रहते हैं वहाँ अपने "नाम" से जाने जाते हैं ।
काफी इग्नोर कर लिया हैं जब आप लोग समाज के लिये इतना कदम उठाने का सहास रखते हैं तो मै भी एक पहल कर लम्बी लड़ाई कि तयारी क्यों ना करू
खुशदीप जी कि पोस्ट पर मेरा कमेन्ट
December 09, 2010
ईमेल पर उत्तराधिकार संबंधी जानकारी
कुछ दिन पहले ये पढ़ा था सोचा बाँट लूँ । अब ईमेल / ब्लॉग इत्यादि केपास्वोर्ड / संचालन पर उत्तराधिकार संभव हैं । किसी की मृत्यु होने पर किस प्रकार से उसके उत्तराधिकारी उसके अकाउंट पर जा सकते हैं ये इस पोस्ट मे बताया हैं । आज का सन्दर्भ गूगल तक सिमित हैं ।
आगे यहाँ
ईमेल पर उत्तराधिकार संबंधी जानकारी
कुछ दिन पहले ये पढ़ा था सोचा बाँट लूँ । अब ईमेल / ब्लॉग इत्यादि केपास्वोर्ड / संचालन पर उत्तराधिकार संभव हैं । किसी की मृत्यु होने पर किस प्रकार से उसके उत्तराधिकारी उसके अकाउंट पर जा सकते हैं ये इस पोस्ट मे बताया हैं । आज का सन्दर्भ गूगल तक सिमित हैं ।
Accessing a deceased person's mail
If an individual has passed away and you need access to the content of his or her mail, please fax or mail us the following information:
1. Your full name, physical mailing address, and verifiable email address.
2. A photocopy of your government issued ID or driver’s license.
3. The Gmail address of the individual who passed away.
4a. The full header from an email message that you have received at your verifiable email address, from the Gmail address in question. (To obtain the header from a message in Gmail, open the message, click the down arrow next to Reply, at the top-right of the message pane, and select 'Show original.') The full headers will appear in a new window. Copy everything from 'Delivered-To:' through the 'References:' line. To obtain headers from other webmail or email providers, please follow these instructions.
4b. The entire contents of the message.
Please provide certified English translations of the following:
5. Proof of death
6. One of the following: a) if the decedent was 18 or older, please provide a proof of authority under local law that you are the lawful representative of the deceased or his or her estate or b) if the decedent was under the age of 18 and you are the parent of the individual, please provide a copy of the decedent’s birth certificate.
Postal Mail:
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Attention: Gmail User Support- Decedents’ Accounts
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Mountain View, CA 94043
Fax: 650-644-0358
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December 07, 2010
नए शक्तिशाली शक्ति पुंज आ चुके हैं और उम्मीद है वे ऐसे नहीं होंगे !
ओह लगता हैं वरिष्ठ , सम्मानित इत्यादि से मोह भंग होगया । और ये मान भी लिया कि यहाँ शक्ति पुंज थे !!!! शक्ति पुंज यानी ???? "muscle power ? .
"नए शक्तिशाली शक्ति पूंज " उफ़ ये कौन कौन हैं क्युकी पहली बार आप के ब्लॉग पर पढ़ रही हूँ और आप सबसे ज्यादा ब्लॉग मीटिंग मे गए हैं सो नामो का खुलासा कर ही दे । अब डरना पड़ेगा ना उनसे । पहले वरिष्ठो और सम्मानित के ऊपर पोस्ट लिख लिख कर डराते रहे अपने सरोकारों से अब नए शक्तिशाली शक्ति पुंजो से डरा रहे हैं । ब्लॉग लिखना बंद करदे या अपने लिये muscle power का जुगाड़ करले ।
नाम बता देते तो आगाह करना हो जाता ।
December 05, 2010
चिटठा जगत का सक्रियता क्रम नहीं डोल रहा हैं , लीजिये कैसे डोल सकता हैं एक उपाय
जब चिटठा जगत बना था उस समय जो सक्रिय ब्लॉग थे वो अगर आज एक महीने बाद भी अपने ब्लॉग पर पोस्ट देते हैं तो अपने ओरीजिनल संख्या पर वापस आ जाते हैं क्युकी उनके ब्लॉग का उल्लेख बहुत ब्लॉग मे हुआ हैं ।
सक्रियता केवल लिखना नहीं हैं आप को कितना पढ़ा जाता हैं और कितने लोगो ने आप का ब्लॉग पुस्तक चिन्ह किया हैं इस पर भी निर्भर हैं
इस पोस्ट पर मुझ कमेन्ट नहीं चाहिये आप ने पढ़ लिया शुक्रिया
वो कहते हैं ना " जे न मित्र दुःख होई दुखारी " सो अपने अपने मित्र ब्लॉगर को जोडीये और उनके दुःख को समझिये सक्रियता क्रम मे उनका नाम ऊपर आये इस लिये उनके ब्लॉग का जिक्र करिये ।
लिंकिंग कीजिये खुश रहिये जो चर्चा करते हैं अलग अलग ब्लॉग पर उनसे कहिये आप के ब्लॉग का लिंक भी दे । फिर देखिये ये सक्रियता क्रम कैसे डोलता हैं
December 04, 2010
जो लोग चिटठा जगत पर अपनी पोस्ट क्रम "धड़ाधड़ टिप्पणियां" मे ऊपर देखना चाहते हैं उनके लिये आसान और सरल उपाय
जो लोग चिटठा जगत पर अपनी पोस्ट क्रम "धड़ाधड़ टिप्पणियां" मे ऊपर देखना चाहते हैं उनके लिये आसान और सरल उपाय
पोस्ट पुब्लिश करे
चिटठा जगत पर जब दिखने लगे तो अपने नाम से कम से कम १५ कमेन्ट कर दे
फिर ५ मिनट रुके और सारे कमेन्ट "स्पाम" के फोल्डर मे डाल दे
यानी कमेन्ट डिलीट भी नहीं हुआ और दिखा भी नहीं और आप कि पोस्ट "धड़ाधड़ टिप्पणियां" मे १५ कमेन्ट दिखा देगी
कर के देखिये और बताइये नहीं यहाँ नहीं क्युकी हमको इस पोस्ट पर कमेन्ट कि चाह नहीं हैं हमने तो मात्र ब्लॉगर सेवा हित ये बात कही हैं
December 02, 2010
पिद्दी न पिद्दी का शोरबा
कल मुंबई में अभिजात सावंत कि पिटाई कर दी जनता ने कारण एक एक्सिडेंट मे उनकी दोस्त प्राजक्ता शुक्रे कि गाडी ने दो लोगो को घायल किया । सावंत और शुक्रे रेस लगा रहे थे ।
अभिजीत सावंत ने बीच बचाव करते हुए कहा " मेरे बहुत कोंटेक्ट हैं "
कल तक जो अभिजात सावंत ती वी पर वोते के लिये याचन कर रहे थे आज उनके भी "कोंटेक्ट" बन गए हैं वाह
इसे ही कहते हैं पिद्दी न पिद्दी का शोरबा
December 01, 2010
दम लगा के हईशा हिंदी ब्लोगिंग को ऊपर उठाना हैं
हिंदी ब्लोगिंग को ऊपर उठाना हैं , सन २०१० मे ये नारा हिंदी ब्लॉग मे तकरीबन किसी ना किसी ब्लॉग पर हर दिन किसी एक पोस्ट मे जरुर दिख ही गया ।
बहुत बार पढ़ा सोचा आज पूछ ही लूँ ऊपर उठाने से तात्पर्य क्या हैं ?? साल ख़तम होने को हैं
एक साधारण प्रश्न हैं , ना इसमे कोई व्यंग हैं ना तंज महज एक जिज्ञासा
कि
हिंदी ब्लोगिंग को ऊपर उठाना हैं का टार्गेट क्या हैं ???
सो निवेदन हैं कि कमेन्ट मे कुछ सार्थक रौशनी दी जाए इस विषय मे
November 28, 2010
सोच रही हूँ
५००० - १०००० रूपए एक रात मे खर्च करने कि सामर्थ्य सब कि नहीं हो सकती । तो ऐसी पार्टी मे वही जायेगे जो रिटर्न मे इतना खर्च करने कि सामर्थ्य रखते होगे । और जो रिटर्न कि सामर्थ्य के बिना इन पार्टियों का मज़ा रखते हैं उनको क्या कहा जायेगा ये आप को कुछ दिन मे दिख जायेगा ।
November 24, 2010
जानकारी साझा करे
November 22, 2010
बद्दुआ से बचे
जरुर किसी का बुरा किया होगा ,
किसी कि बद्दुआ लग गयी इत्यादि ।
क्या आप को भी लगता हैं कि विपत्तियों का निरंतर आना , जैसे परिवार जनों का एक्सिडेंट , मृत्यु इत्यादि एक के बाद के होना किसी कि बद्दुआ का नतीजा भी हो सकता हैं ।
क्या सच मे कोई ऐसा चक्र हैं जो घूमता हैं और कहीं ना कही अगर आप किसी का मन दुखाते हैं , बुरा करते हैं जान बुझ कर तो आप का बुरा अपने आप हो जाता हैं ।
इस से क्या ये भी सिद्ध होता हैं कि जिनकी जिंदगी मे आपदाये नहीं आती वो किसी का भी बुरा नहीं करते हैं ।
और हां
ये बद्दुआ होती क्या हैं और नज़र लगने का अर्थ क्या होता हैं क्या ये दोनों एक ही बात हैं ।
जो पढ़ा है उसके अनुसार नज़र उनको लगती हैं जिनकी जिंदगी मे आपदाये नहीं होती हैं ।
तो क्या जो नज़र लगता हैं उसको बद्दुआ लगती हैं और उसका बुरा होना स्वयं निश्चित हो जाता हैं
बड़ा कनफूजन हैं
November 21, 2010
क्या आप दूसरे के घर कि सफाई करते हैं ??
जब आप केवल अपने घर कि सफाई करते हैं तो आप को ये अधिकार कैसे हैं कि आप दूसरे के धर्म की बुराईयाँ बता सके । आप अपने को जितना चाहे सही साबित कर ले लेकिन आप को अधिकार नहीं हैं कि ब्लॉग के सार्वजनिक मंच पर आप अपने धर्म को ऊँचा बताने के "पाखण्ड" मे दूसरे के धर्म को नीचा बताये ।
जो बाते कभी "समकालीन" होती हैं वो कभी "रुदिवादी " हो जाती हैं और इस लिये जरुरी हैं कि अगर आप को प्रोग्रेस करनी हैं तो रुढ़िवादी बातो का विरोध करे लेकिन विरोध अपने अपने धर्म को रुढ़िवादी बातो का करे ताकि आपस मे रंजिश का माहोल ना पैदा हो ।
आप कितने भी ज्ञानी हो कितनी भी किताबे आपने पढ़ी हो लेकिन आप अपनी आस्था से ऊपर नहीं उठ सकते । जो उठ जाते हैं वो "महान " होते हैं । और हाँ आस्था से बे पढ़ा भी जुडा होता हैं ।
कम्युनिटी लिविंग के नियम हैं उनको माने । भारत मे सब रह सकते हैं लेकिन रहेगा वो हिन्दू राष्ट्र ही और इस लिये अमन और शांति कि बात तभी हो सकती हैं जब हिन्दू धर्म को आप गाली ना दे और अपने धर्म को अपने धर्म ग्रंथो मे दिये हुए तर्कों से हिन्दू धर्म को सुधारने कि बात ना करे अगर आप मुसलमान हैं तो । आप कि ये बाते हिन्दू धर्म मे आस्था रखने वालो को नहीं भाती हैं ।
उसी तरह अगर मुस्लिम धर्म कि खामियां कोई ब्लॉगर जो हिन्दू धर्म मे आस्था रखता हैं वो लिखता हैं तो बवाल होना निश्चित ही हैं ।
पिछली पोस्ट और इस पोस्ट दोनों का मंतव्य ये नहीं हैं कि आप धर्म मे सुधार कि बात ना करे बस दूसरे के नहीं अपने धर्म मे सुधार कि बात करे । दूसरे धर्म कि कौनसी कमी आप को ख़राब लगती हैं से बेहतर हैं कि आप बताये कि दूसरे धर्म कि कौन सी बात आप को अच्छी लगती हैं । आप का ज्ञान केवल और केवल दूसरे धर्म कि कमियाँ और अपने धर्म कि खूबियों पर ही क्यूँ केंद्रित होता हैं ????? आप को क्यूँ केवल वहीँ पुस्तके अच्छी लगती हैं जो दूसरे धर्म कि आस्था पर चोट करती हैं ।?? कितना तथ्य सही हैं जो आपने किताबो मे पढ़ा हैं । किताबी ज्ञान मानसिक उत्थान देता हैं लेकिन अगर जो आप ने पढ़ा हैं उसके तथ्य सही नहीं हैं और आप उसको ब्लॉग पर देते हैं तो आप खुद को हंसी का पात्र बना रहे हैं ।
आप का अधिकार हैं कि ब्लॉग के जरिये आप अपने धर्म का प्रचार करे पर आप को ये अधिकार बिलकुल नहीं हैं कि आप अपने धर्म के प्रचार मे दूसरे धर्म को नीचा दिखाये ।
राम रहीम कृष्ण करीम सबकी हैं एक ही तालीम आपसी सद्भाव
November 20, 2010
हम को कोशिश करनी चाहिये कि हम अपने धर्म कि विकृतियों पर लिखे ना कि दूसरे धर्म की।
बलि का बकरा काटना अगर पाप हैं तो निज के शौक और खान पान के लिये मासाहार लेना भी पाप ही हैं । बकरा केवल मुसलमान ही नहीं काटते हैं बल्कि हिन्दू भी काटते हैं नेपाल मे तो ये मदिर मे भी चढ़ाया जाता हैं ।
लखनऊ मे बहुत से घरो मे जहां हिन्दू धर्म का पालन होता हैं वहाँ बकरीद पर कटा बकरा के गोश्त को खाया जाता हैं ।
अगर अमन का ही पैगाम देना, रूढ़िवादिता हटाना और जागरूकता लाना मकसद हैं तो
हम को कोशिश करनी चाहिये कि हम अपने धर्म कि विकृतियों पर लिखे ना कि दूसरे धर्म की। हां बलि का बकराऔर scapegoat दो अलग अलग धर्मो के प्रतीक हैं scape goat का कांसेप्ट इस्राएल और ईसाई धर्म से जुडा हैं
November 18, 2010
बिग बॉस और राखी का इन्साफ किस समय प्रसारित हो ???
आज कोर्ट से स्टे मिल गया हैं और बिग बॉस अपने निर्धारित समय पर ही आएगा । आगे देखते हैं क्या होगा
November 16, 2010
आभासी दुनिया मे करे क्या ब्लॉग विमर्श ???
मीटिंग शुरू होने के बाद ब्लोगर के परिचय कि बात हुई । परिचय के साथ साथ लोगो ने अपने विचार भी रखने शुरू कर दिये , यानी ब्लोगर तैयार थे विचार रखने के लिये । शुरू मे दो तीन लोगो ने ७ मिनट तक समय लिया तो आयोजको को टोकना पडा ।
विमर्श के लिये कई पॉइंट थे
१ वोटिंग के जरिये हिंदी ब्लॉग को आगे ले जाना यानी पोपुलर करना
२ ब्लॉग के जरिये हिंदी का उत्थान
३ ब्लॉग से कमाई के साधन
४ ब्लोग्वाणी का जाना और वापस ना आना
५ तकनीक कि जानकारी के लिये कार्यशाला
६ ब्लॉग का घटता आकडा
७ ब्लॉग पर साहित्य का सृजन
८ समीर और अनूप के गुट
९ ब्लॉग पर मुद्दे
१० ब्लॉग पर पाठक कैसे बढ़े
इतने सारे मुद्दे और कोई समय ही नहीं सवाल जवाब या सम्वाद या डिस्कशन के लिये । बोलने के लिये समय सिर्फ समीर , बालेन्दु और अविनाश को ही दिया गया था सो बाकी लोग केवल श्रोता ही थे । शायद ये मान लिया गया कि जो समीर और बालेन्दु ने कहा सहज सहमती से विमर्श हुआ ।
मेरा अपना मानना हैं कि जो पाठक इन मुद्दों पर विमर्श करना चाहे वो यहाँ या अपने ब्लॉग पर इन विषयों पर अपनी राय दे तो बात कुछ आगे जा सकती हैं ।
इन मुद्दों पर मेरा सोचना हैं :-
हम हिंदी मे ब्लोगिंग केवल इस लिये करते हैं क्युकी हिंदी भाषा मे हम अपनी बात बहुत आसानी से कह सकते हैं । ये हमारा हिंदी प्रेम तो हैं लेकिन उस से भी ज्यादा ये हमारे लिये सुविधा जनक हैं । ब्लॉग लिख कर मुझ नहीं लगता हम हिंदी के उत्थान मे सहयोगी हैं ।
ब्लॉग विमर्श के लिये मीटिंग हो और अगर उस मे कविता , कहानी और साहित्य कि ही बात होगी तो जो लोग अन्य विधाओ से जुड़े हैं और हिंदी साहित्य मे जिनकी रूचि नहीं हैं उनके लिये अरुचिकर होगा वहाँ बैठना । इन मीटिंग मे साहित्यकारों को बुला कर हम केवल और केवल बुद्धिजीवी बनने कि कोशिश करते हैं जो ब्लोगिंग का मात्र एक हिस्सा हैं
ब्लॉग का आकड़ा और पाठक इस लिये घट रहे हैं क्युकी पिछले एक साल मे बहुत से ब्लॉग पर जितनी भी पोस्ट आयी हैं उन पर केवल और केवल "चिट्ठाकार / ब्लोगर " प्रेम दिखा हैं । ब्लोगर नंबर १ ब्लॉगर नंबर २ के ऊपर तारीफ़ के पोस्ट लिखता हैं और पलट कर ब्लोगर नंबर २ ब्लोगर नंबर १ के ऊपर पोस्ट देता हैं । और ऐसे हर ब्लॉग पर कमेन्ट कि संख्या ५० से ऊपर होती हैं ।
इसके अलावा हर डिस्कशन को हम विवाद कहते हैं , उसको सकारातमक /नकारात्मक कि परिधि मे जोडते हैं । इस लिये लोगो का इंटरेस्ट ख़तम हो गया हैं क्युकी वो नयापन अब नहीं हैं ।
विमर्श के मुद्दों पर आप लोग अपनी राय दे , यहाँ दे , अपने ब्लॉग पर दे । कोई ना कोई नयी बात जरुर आयेगी । संभव हो तो कमेन्ट मे लिंक भी छोड़ दे । ब्लॉग आभासी दुनिया हैं और इस पर विमर्श भीआभासी दुनिया मे हो तो बहुत से लोग अपना इनपुट दे सकते हैं
हिंदी ब्लॉग विमर्श दिल्ली -- उपजे प्रश्न ??
संगोष्ठी का निर्धारित समय था ३ बजे दोपहर और काफी लोग उस समय तक आ ही गये थे लेकिन मुख्य अतिथि नहीं आये थे जो तक़रीबन ३.४०-३.५० के आस पास ही आये { या आ सके }
क्या मीटिंग तब तक शुरू नहीं की जा सकती थी ??? अगर कहीं विदेश मे ये मीट होती तो समय कि पाबन्दी सब पर होती हैं क्युकी समय से शुरू होगी तो ज्यादा बात हो सकती हैं । हम क्यूँ कोई भी काम समय सारणी से नहीं कर सकते हैं ।??जो लोग समय से आये वो समय से जाना भी चाहते थे और चले भी गए , मुख्य अतिथि को बिना सुने । सबके अपने अपने निरधारित काम हैं और उस पर वापस जाना भी जरुरी हैं
मीटिंग शुरू होने से पहले और मुख्या अतिथि के आने से पहले ही अल्पाहार का बंदोबस्त हो गया , समय बीतने के लिये करना था कुछ काम !!! अब प्रश्न ये हैं कि क्या २ घंटे की मीटिंग मे अल्पाहार कि जरूरत भी हैं ??? ये औपचारिकताये ना हो तो क्या अच्छा नहीं होगा ??? २ घंटे का समय अगर केवल विमर्श के लिये होता तो निश्चय ही कुछ विमर्श होता । केवल पानी कि व्यवस्था होती और वो भी छोटी वाली मिनिरल वाटर कि जिसके लिये हम पैसा दे सकते तो ज्यादा बेहतर होता । अल्पाहार एक प्रकार का अपव्य ही था जिसको रोका जाना चाहिये ।
अल्पाहार कि वजह से आयोजको को टिका टिपण्णी भी सुननी पड़ती हैं । मुझे आयोजक ने वो रजिस्टर भी दिखाया जहा किसी ब्लॉगर ने "सुझावों " के कोलम मे लिखा था "चाय गर्म नहीं थी " । उनको इस बात से बहुत चोट पहुची थी । कोई भी प्रथा ना बनाये और हर आडम्बर से ब्लॉग विमर्श कि मीट को दूर रखे तो एक नयी बात होगी अन्यथा ये सब मिलने और मिलाने कि चाय पार्टी से ऊपर कुछ नहीं नहीं होगा { इसके लिये स्नेह मिलन अलग से आयोजित किये जा सकते हैं जिनको नेट्वोर्किंग मे रूचि हो उनके लिये }
मुख्य अतिथि के आने के बाद मीटिंग शुरू हुई और उसमे फिर ओपचारिक आडम्बर हुआ । यानी मुख्य अतिथि का स्वागत किया गया दो बड़े बड़े बुके दे कर । कम से कम भी माने तो एक बुके १०० रूपए का होगा ही । एक तरफ हम भारतीये सभ्यता और संस्कृति कि बात करते हैं तो दूसरी तरफ हम अग्रेजो कि छोड़ी हुई प्रथाओ को निरंतर मान्यता देते हैं । इस पैसे मे कुछ और पैसे मिला कर मुख्य अतिथि को कुछ पुस्तके भेट दी जासकती थी जिनको वो अपने साथ ले जा सकते थे । पुस्तकों पर हर आने वाले ब्लॉगर के हस्ताक्षर ले कर उनको यादगार बनाया जा सकता हैं और हिंदी कि पुस्तके जो बिकती नहीं हैं उनको ख़रीदा जा सकता था । इस के लिये साहित्य से जुड़े ब्लॉगर से भी उनकी पुस्तके खरीदी जा सकती थी । बेकार के आडम्बरो पर पैसा नष्ट करने से बेहतर था हम उस पैसे किसी गरीब बच्चे को वही कुछ खिला दे ।
ब्लॉग विमर्श कि मीट को आडम्बर विहीन रखा जाये ऐसा मेरा मानना हैं । विमर्श हो और कुछ नहीं ।
और विमर्श आत्म मंथन ही हैं जिसको मे ब्लॉग पर पोस्ट के रूप मे दे रही हूँ । इस को सकारात्मक , नकारात्मक ईत्यादी कि परिधि में ना बंधे
ब्लॉग विमर्श मे हुआ क्या इस पर अगली पोस्ट अगर आप को उत्सुकता हो तो .
November 03, 2010
सचिन , अमिताभ , आदर्श सोसाइटी और राम प्रस्थ
पहले ही अमिताभ बच्चन गुजरात के ब्रांड एम्बस्सीडर बन चुके हैं ।
और ये दोनों ही वो हैं जिनके लिये समाना मे लिखा जा चुका हैं ।
इन दोनों का ये जवाब शायद आंखे खोल सके उनलोगों कि जिन्होने बम्बई को मुंबई बना दिया । वो लोग जो भारत रतन के सच्चे हक़दार हैं उनका जवाब शांत सही पर हैं टंकार वाला
आदर्श सोसाइटी का काण्ड चलता रहेगा क्युकी हमारे यहाँ नीति हैं कि पहले गैर क़ानूनी ढंग से कब्ज़ा करो और फिर उसको क़ानूनी जमा पहना दो ।
आदर्श सोसाइटी मे ये कुछ बड़े पैमाने पर हुआ हैं और संभव हैं किसी को फ्लैट ना मिला हो और उसने विसिल बजा दी हो !!!!!! इस बिल्डिंग को नष्ट कर देना चाहिये चाहे इस मे कितना भी आर्थिक नुक्सान क्यूँ ना हो क्यूँ कि ये पर्यावरण के हिसाब से भी गलत हैं । लेकिन कुछ नहीं होगा । बीस साल ३० साल निकल जायेगे आर टी आयी लागने वाले लडते रहेगे और जांच आयोगों पर बिल्डिंग बनाने से ज्यादा खर्चा आयेगा ।
ये हमारी संस्कृति बनती जा रही हैं कि जहां भी कोई गलत बात का प्रतिकार करता हैं उसको विद्रोह और विवाद का नाम दिया जाता हैं ।
ना जाने कितनी जगह इललीगल कंस्ट्रक्शन होते हैं और बाद मे सरकार कानून बना कर उनको लीगल कर देती हैं "आम आदमी कि दुहाई दे कर " लेकिन क्या वाकई आम आदमी का फायदा होता हैं ?? उनका क्या जो लीगल तरह से रह रहे है ?
राम प्रस्थ कालोनी दिल्ली से सटी यु पी कि एक फ्री होल्ड कालोनी हैं । १९७० मे ये बनी थी और यहाँ १५०० प्लाट थे २०० गज से ८०० गज के जिन पर कोठी और २.५ मंजिल मकान का प्रावधान था । ४० % एरिया खुला रखना था । बहुत से लोगो ने उस समय यहाँ प्लाट लिये थे जो सब ज्यादातर मिडिल क्लास के थे क्युकी उस समय जमीं का मूल्य मात्र २५ रूपए गज था । आज वो सब लोग सीनियर सिटिज़न हो गए हैं और सुबह से शाम तक उनको यहाँ लड़ना पड़ता हैं क्युकी अब यहाँ उनके मकानों के बगल मे १२ - १२ फ्लैट बनगए हैं और वो सब गैर कानूनी हैं । उनको 10% एरीया खाली रखना हैं . इलाहाबाद कोर्ट मे मुकदमा चल रहां है सन २००० से । ये फैसला भी आ चुका हैं कि ये सब गैर क़ानूनी ढंग से सरकारी अफसरों कि मिली भगत से हुआ हैं । जो फ्लैट मे रहते हैं उनको कोठी मे रहने वालो से प्रॉब्लम हैं क्युकी उनको लगता हैं इतनी जगह क्यूँ हैं ४-५ लोगो के परिवार के पास जबकि उसकी १/१२ जगह मे वो हैं । लेकिन जो कोठी मे हैं उनसे टैक्स भी ज्यादा लिया जाता हैं और उनकी बुनियादी सुविधाये जिन के लिये वो ज्यादा टैक्स दे रहे हैं वो उनको नहीं मिलती ।
कितनी बार ये फ्लैट गिराने कि बात उठती हैं पर हर बार पैसा ले दे कर रफा दफा हो जाती हैं । सीनियर सिटिज़न को दबया जाता हैं कि वो प्लाट बिल्डर को बेच दे ।
आम आदमी वो भी हैं जो फ्लैट मे हैं और वो भी जिसने कोठी बनायी हैं पर कौन कानूनी तरीके से हैं और कौन गर क़ानूनी देखने कि बात ये हैं । लेकिन कानून कि बात किसी कि समझ मे नहीं आती ।
ना जाने कितनी "आदर्श " सोसाइटी हमारे समाज मे पनप रही हैं क्युकी सजा का प्रावधान ही नहीं हैं ।
October 29, 2010
ब्लोगिंग का टाइम कैप्सूल बनाना छोड़ दे
इसके अलावा टिपण्णी पाने कि इच्छा और अपने लिखे पर तारीफ़ पाने कि इच्छा सबको आभासी रिश्तो बनाने केलिये प्रेरित करती हैं ।
लोग कहते हैं ये पुराने ब्लॉगर , ये वरिष्ठ ब्लॉगर ये अति विद्वान् ब्लॉगर , ये सम्मानित ब्लॉगर इत्यादि । जब भी आप किसी को तेग देते हैं तो आप उसको एक मंच पर खडा कर देते हैं और फिर अगर वो आप को जवाब नहीं देता तो उसके नीचे का मंच खीचना चाहते हैं और खीच भी लेते हैं सो किसी को भी महिमा मंडित करना ही अपने आप मे आप कि कमजोरी हैं । सबको सम्मान क्यूँ ना समझा जाये इस आभासी दुनिया ।
क्या ज़रूरी हैं कि आप किसी कि उम्र , लिंग और उसके व्यक्तिगत चीजों से परचित हो । आप को लेख अच्छा लगा आप कमेन्ट कर दे , नहीं लगा तो भी कह दे । मुद्दा हो कोई तो मुद्दे कि बात करे नहीं हैं तो आगे चले जाए ।
आभासी दुनिया मे रिश्ते बनाना ही अपने आप मे सही नहीं हैं । रिश्ते मजबूत करिये अपने घर मे अपने आस पास मे ये दुनिया शब्दों कि हैं , मुद्दों कि हैं , विचारों कि हैं यहाँ क्यूँ माँ , पिता भाई बहना खोजना । क्यूँ अपने को एक छवि मे बंधना ।
ईश्वर ने जिन रिश्तो को आपकी जिंदगी मे दिया हैं पहले उनको पूरा कीजिये क्यूँ अपनी रीयल जिंदगी कि कमियों हो यहाँ पूरा कीजिये
टिपण्णी के लिये नहीं अपनी ख़ुशी के लिये लिखे । जो मुद्दे आप को व्यथित करते हैं उनपर लिखे । हर दिन एक दूसरे के ऊपर लिखकर आप कोई इतहास नहीं दर्ज करा सकते ब्लोगिंग का । ब्लोगिंग का टाइम कैप्सूल बनाना छोड़ दे
October 26, 2010
एक कमेन्ट "जाकी पाँव न फटी बिबाई , वो क्या जाने पीर पराई"
माता पिता बच्चो कि समस्या नहीं समझ सकते और बच्चे माता पिता कि
पति पत्नी कि समस्या नहीं समझ सकता , पत्नी पति कि
अमीर गरीब कि समस्या नहीं समझ सकता , गरीब अमीर कि
हम सब एक समाज का हिसा हैं । अपनी अपनी पीड़ा हम भोगते हैं और दुसरो कि पीड़ा को समझते हैं । भोगने और समझने के अंतर को केवलमनुष्य ही नहीं जानवर भी समझते हैं । नारी कि पीड़ा , यानी प्रसव इसको एक माँ भोगती हैं लेकिन उस माँ से जुदा हर व्यक्ति इस को समझता हैं। डिलीवरी कराने वाली डॉक्टर कई बार अविवाहित भी होती हैं । क्या आप का मानना हैं कि हर गाइनोकोल्गिस्त को विवाहिता होना चाहिये ताकिवो प्रसव कि पीड़ा को समझ सके या किसी भी पुरुष को डिलीवरी कराने का अधिकार ही नहीं होना चाहिये ।
मिशनरी मे बहुत से तरह के लोग होते हैं और वो सब इंसान हैं । वो अपनी मर्जी से वहाँ नहीं होते । मे जिस स्कूल मे पढ़ती थी वहाँ कई "brother नौकरी के कार्यकाल के बाद brother hood छोड़ देते थे । जैसा कि आपने कहा हैं क्युकी आप उनकी जगह नहीं हैं आप उनकी पीड़ा और त्रासदीको नहीं समझ सकती
October 25, 2010
एक भरी भरकम समझाइश पोस्ट हैं ये । वही पढे जिनका दिल मजबूत हो ।
October 21, 2010
आस्था - पाखण्ड
मृत्यु के बाद हिन्दू रीति से संस्कार यानी ब्राह्मणों को भोजन वस्त्र रुपया पैसा -- पाखण्ड
ईश्वर कि शक्ति पर विश्वास --- आस्था
होनी - अनहोनी को टालने के लिये ब्राह्मणों को भोजन वस्त्र रुपया इत्यादि , हवन --- पाखण्ड
आत्मा का होना --- आस्था
आत्मा के होने के प्रमाण के लिये पास्ट लाइफ मे जाना -- पाखण्ड
पुनर्जनम मे विश्वास --- आस्था
अपने निकटतम का पुनर्जनम सुन कर दौड़ना -- पाखण्ड
पूजा , पाठ मे विश्वास - आस्था
पूजा पाठ के लिये हर मंदिर मे चढावा चढ़ाना ---- पाखण्ड
साधू संतो कि सेवा -- आस्था
होनी अनहोनी को जानने के लिये साधू संतो को दान -- पाखण्ड
व्रत उपवास --- आस्था
व्रत उपवास से पति का जीवन, पुत्र का जीवन बढ़ता हैं -- पाखण्ड
सूची और विस्तार मांगती हैं कम शब्दों मे ज्यादा परिभाषित करे
October 20, 2010
मेरे मरने के बाद राम नाम सत्य ना कहना क्युकी मेरी आस्था नहीं हैं ये सब पाखण्ड हैं ।
ब्लॉग पर पिछले कुछ दिनों से soul / आत्मा को ले कर कई पोस्ट आई हैं और हर पोस्ट पर अपने तर्क हैं पोस्ट मे भी और कमेन्ट मे भी क्युकी "शिक्षा" ने मजबूर किया हैं कुछ को अपनी "आस्था" को डिस्कस करने के लिए और कुछ को उनकी " शिक्षा " ने मजबूर किये हैं लोगो के " पाखण्ड " को डिस्कस करने के लिये ।
यानी शिक्षा वो लकीर हैं जो आस्था को पाखण्ड से अलग करती हैं ।
"राम" हिन्दू आस्था के प्रतीक हैं इस लिये "राम" शब्द से शक्ति मिलती हैं और नश्वर शरीर को लेजाते समय " राम नाम सत्य का उच्चारण " होता हैं ।
वही अगर हर पुरुष "राम" बन कर "सीता " का त्याग करे तो वो हिन्दू धर्म का पाखण्ड हैं आस्था नहीं ।
"वर्जिन मेरी " एक आस्था हैं क्युकी ईसा मसी की माँ का कांसेप्ट उनसे जुडा हैं । लेकिन क्या एक वर्जिन माँ बन सकती हैं ?? हां आज के परिवेश मे ये संभव हैं क्युकी आज बिना पुरुष के सहवास के भी माँ बनना संभव हैं अब अगर कोई भी साइंटिस्ट इस बात को नकार सकता हैं तो कहे । हो सकता हैं उस समय भी वो साइंस का ही चमत्कार हो लेकिन उसको आस्था से जोड़ दिया गया । पर अगर हर वर्जिन ये सोचे की वो " ईसा मसी " पैदा कर रही हैं / सकती हैं तो पाखण्ड का बोल बाला होगा ।
बड़े से बड़ा वैज्ञानिक भी फैथ / आस्था रखता हैं । कभी भी जब नासा का लौंच होता हैं तो आप को सीधे प्रसारण मे लोग किसी दैविक शक्ति को याद करते दिखते हैं । साइंस अपने आप मे एक फैथ हैं की हम को विश्वास हैं की हम ये खोज कर रहेगे । हर वैज्ञानिक QED कह कर अपने विश्वास को पूर्ण करता हैं ।
एक किताब मे पढ़ा था की आत्मा दो हिस्सों मे होती हैं और जिस दिन दोनों हिस्से मिल जाते हैं उस दिन आप को आप का सोलमेट मिल जाता हैं । सोलमेट यानी आप की अपनी छाया । उसी किताब मे लिखा हैं की दो लोग जब विवाह मे बंधते हैं तो वो दो लोग बंधते हैं जिन्होने पिछले जनम मे एक दूसरे का बहुत नुक्सान किया था और उनमे आपस मे बहुत नफरत थी । इस जनम मे विवाह मे बांध कर वो उस नफरत को ख़तम करते हैं ।
दूसरी किताब मे पढ़ा था की आत्मा अपने लिए खुद शरीर का चुनाव करती हैं । वो ऐसी कोख चुनती हैं जहां वो सुरक्षित रहे यानी आपके बच्चे आप को चुनते हैं {वैसे ज्यादा देखा गया हैं बच्चे कहते हैं हमे क्यूँ पैदा किया }
नारी आधारित विषयों पर अच्छे अच्छे वैज्ञानिक जब हिंदी मे ब्लॉग पर लिखते हैं तो यही कहते हैं नारी को बनाया ही प्रजनन के लिये हैं मुझे इस से बड़ा पाखंड कुछ नहीं लगता ।
वही जब हिन्दुत्वादी होने की बात होती हैं तो एक दो ब्लॉगर का नाम लिया जाता हैं जबकि शायद ही कोई ऐसा ब्लॉगर होगा जो अगर हिन्दू हो कर अपनी पुत्र आया पुत्री के विवाह के लिये मुस्लिम वर आया वधु खोजे । या ये कह कर जाए की मेरे मरने के बाद राम नाम सत्य ना कहना क्युकी मेरी आस्था नहीं हैं ये सब पाखण्ड हैं ।
वैसे आप कुछ भी कह कर जाए मरने के बाद आप के शरीर का क्या होगा ये जिनके हाथ वो पड़ेगा वही उसकी गति करेगे ।
चलते चलते
मेरी माता जी की इच्छा हैं की वो अपना मृत शरीर अस्पताल को दान करदे । इसके लिये क्या करना होगा , किसी के पास कोई जानकारी हो उपलब्ध करा दे आभार होगा उनको बता सकुंगी ।
October 14, 2010
वर्धा मे ब्लॉग प्रयोगशाला सम्बंधित एक प्रश्न
बहुत से रिपोर्ट पढ़ ली हैं
एक जानकारी चाहिये
क्या वहाँ हमारा राष्ट्रीय गान / नॅशनल एंथम कार्यक्रम शुरू या संपन्न होने पर गाया गया था किसी भी सत्र मे ।
October 08, 2010
हर कुत्ते बिल्ली को आप आदरणीय की कैटेगरी में खड़ा कर देते हैं.
हर कुत्ते बिल्ली को आप आदरणीय की कैटेगरी में खड़ा कर देते हैं...
सतीश जी ने अपने ब्लॉग पर आचार सहिता बता दी ये देखिये लिंक
वो कहते हैं "अपमान करने के उद्देश्य से कहे कमेन्ट यहाँ नहीं छापे जायेंगे ! कुछ लोगों का यह मानना है कि विरोध की आवाज सहन करने की हिम्मत नहीं है वे इसे शौक से मेरी कायरता मान लें इसमें मुझे कोई आपत्ति नहीं है !"
ऊपर एक कमेन्ट का अंश मात्र हैं जो मोडरेशन के बाद भी दिख रहा हैं । एक और भी कमेन्ट था इन्ही का महिला ब्लॉगर के ऊपर वो भी छपा गया था लेकिन मेरी आपति के बाद हटा ।
इस मोडरेशन का क्या फायदा । ये तो सेलेक्टिवे नीति हैं अपशब्द सुनवाने कि जो पहले से ही यहाँ हैं ।
नेवर माइंड क्युकी लिंक दे कर बात कहने मे उनको आपत्ति नहीं हैं सो ये पोस्ट
October 07, 2010
CWG कोमन वेअल्थ गेम्स के सेलिब्रेशन कोमन मैन के लिये नहीं हैं
अगर कॉमन आदमी सेलिब्रेट करना चाहे तो क्या करे ? देश मे महा उत्सव का माहोल हैं , दिल्ली की रौनक के चर्चे हैं पर आम आदमी इन सब से दूर कर दिया गया हैं
काश सब खुला होता लोग अपना तिरंगा लिये सडको पर टहलते दिखते । जवाहर लाल नेहरु स्टेडियम के बाहर कतारों मे खड़े आने वाले खिलाड़ियों का स्वागत करते । कनोट प्लेस मे रात को घुमते फवारो को निहारते ।
जब दिल्ली एक स्टेट नहीं थी ना जाने कितनी बार रात को दस बजे इंडिया गेट जाते थे { १९६८-१९७३ } पापा ममी के साथ फियट मे बैठ कर , १ रूपए लीटर था पट्रोल , और इंडिया गेट घूम कर आइसक्रीम खा कर राजसी ठाट थे रात मे दिल्ली बड़ी खुबसूरत थी तब भी
या फिर प्रेस रोड पर बड़े मामाजी के यहाँ २६ जनवरी की परेड देखने के लिये उनके नौकर सबरे ४ बजे से जा कर आगे की जगह रोकते और फिर ममी पूड़ी आलू बनाती और हम लोग वहाँ बैठ कर कहते । ११ बजे के आस पास परेड वहाँ से निकलती थी । फिर बीटिंग था रिट्रीट देख कर ही मॉडल टाउन वापस आते थे
या रामलीला देखने कोटला मैदान जाते जहाँ सोंग और डांस की राम लीला तीन घंटे मे पूरी दिखाई जाती १ रूपए का टिकेट होता था
या प्रगति मैदान मे फेयर देखने जाते और २ रूपए का टिकेट होता अपना और पापा की फियट का भी २ रूपए ही लगता लेकिन गाडी अन्दर पार्क होती जहां आज अड़मिनिसत्रेतिवे ब्लाक हैं
और सबसे ज्यादा मजा आता था जब रात को लाल किला देखने पैदल जाते थे प्रेस रोड से
वो सब एक सेलिब्रेशन लगता था । आज चाह कर भी अपनी भांजी को कहीं नहीं ले जा सकते क्युकी आम आदमी के लिये कुछ नहीं हैं और आम आदमी के छोटे छोटे सुख से ये पीढ़ी वंचित हैं
बहुत से ब्लॉग पर पढ़ रही थी दिल्ली मे सब कितना सुन्दर हो गया हैं और वो सब जो इसको नहीं देख पा रहे वो नकारात्मक हैं लेकिन पता नहीं क्यों जब हम दिल्ली मे रह कर आम आदमी की तरह कुछ नहीं एन्जॉय कर पा रहे तो जो दिल्ली से बाहर हैं वो इस प्रगति को क्या एन्जॉय करेगे
अभी अभी पता चला की पी टी उषा को अधिकारिक निमंत्रण नहीं दिया गया हैं ये गेम्स किसके लिये हो रहे हैं ???
प्रियदर्शिनी मट्टू हत्याकांड का फैसला दूरगामी लगता हैं
विचार शून्य जी लीजिये कमेन्ट
जितनी जानकारी कानून कि हैं उसके अनुसार आज कल आजीवन कारावास का अर्थ हैं जब तक मृत्यु ना हो पहले ये १४ साल कि होती थी
हमारे देश मे इस समय कोई भी जल्लाद मौजूद नहीं हैं सो फांसी कि सजा बेमानी होती हैं
मुझे ये फैसला देने वाले नयाधीश पर इन्ही दो बातो कि वजेह से गुस्सा नहीं आया क्युकी ये फैसला बहुत दूरगामी हैं
हाँ कभी कभी सोचती हूँ रेप और मर्डर करने वालो से लोग शादी कैसे करलेते हैं और ऐसे लोग अपने बच्चो के भविष्य के बारे मे क्या कभी सोचते हैं उन्हे संसार मे लाने से पहले ??
लिंक दे सके तो आभार होगा
नवभारत टाइम्स
टाइम्स ऑफ़ इंडिया
इन पर ब्लॉग बनाना हो तो कैसे बनाया जाता हैं
जो जानकारी हो बताये
लिंक दे सके तो आभार होगा
October 03, 2010
मेरी सोच स्वतंत्र हैं
"नारी हूँ नारीवादी नहीं "
This is a mere obnoxious comment on those woman who try to bring an era of equality in man- woman
Woman who are born with slave mentality always try to justify the slavery that they have been going thru for ages
Being a woman means to enjoy ones woman hood which is far more than just
marriage
being mother
being daughter
cleaning nappies
breast feeding
hormonal problems
menopausal problems
making tea lunch for the entire household
because YOU ARE MEANT TO DO
this in itself is reservation { certain tasks that are reserved for woman }
If you are against reservation Ms Divya then please dont ask woman to do reserved tasks so that they become A GLORY A DEITY in the eyes of society
We need more human beings here as we have ample of deities and dharma . pujan etc in india
Enjoyment of woman hood means
To do all the above things IF YOU WANT TO DO THEM AND NOT BECAUSE YOU ARE EXPECTED TO DO THAT
and
to do all the other things that you feel will bring happiness and fulfillment in your own self
A TRUE FEMINIST is one who knows that
she has equal rights given by nature , law and constitution to do what ever she wants to do
and which means the RIGHT TO CHOOSE HER OWN WAY OF LIVING which is not governed by the whims and fancies of someone else
No woman copies man because matriarchal society existed before patriarchal society
No man is cruel if he is doing what he has been trained to do The society is cruel
Writing all that woman needs to do and then saying say No to reservation means what ????
Writing that marriage and motherhood makes woman a woman and then saying refuse maariage because of dowry will make woman a FEMINIST AND NOT NAARI
BE A WOMAN AND ENJOY BEING A WOMAN
अपने अस्तित्व और महिमा को समझने के लिए है।
set example by your own deeds
do sacrifice yourself rather than asking others to do it
be a leader then a follower
BE A FREE THINKER DONT LET YOUR THOUGH PROCESS BE POLLUTED BY WHAT OTHERS HAVE DONE BEFORE YOU
मेरी सोच स्वतंत्र है ।
।
No the post is crystal clear
Two third has been written to please the society
One third is written to appease the conscience
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