सच बोलना जितना मुश्किल है , सच को स्वीकारना उस से भी ज्यादा मुश्किल है . लेकिन सच ही शाश्वत है और रहेगा मुझे अपने सच पर उतना ही अभिमान है जितना किसी को अपने झूठ से होने वाले फायदे पर होता हैं
मेरे ब्लॉग के किसी भी लेख को कहीं भी इस्तमाल करने से पहले मुझ से पूछना जरुरी हैं
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July 04, 2011
लगता हैं जिन्दगी एक गोल चक्र हैं जहां से शुरू करो और जहा तक भी चल लो हमेशा यही लगता हैं हम वही खड़े हैं ।
कुछ दिन पहले पढ़ा था की हम सब १९३२ के "इकोनोमिक रिसेशन " की तरफ बढ़ रहे है ।
आज सुबह सुबह अखबार पढ़ा की इटली , आयरलैंड , पोलैंड , ग्रीस समेत कुछ देश की सरकारों पर इतना कर्जा हैं की सरकारी संस्थानों को बेच कर ये कर्जा उतारने की बात की जा रही हैं ।
कुछ देर बाद फोन की घंटी बजी और पता चला की कालोनी में माँ की एक दोस्त के बेटे जो ५५ साल के थे उन्होने आत्म ह्त्या कर ली , सुबह उनका पार्थिव शरीर रेलवे लाइन पर मिला । तकरीबन ३ साल से आर्थिक तंगी से परेशान थे और भयंकर डिप्रेशन में थे । विवाहित हैं परिवार में बेटी और पत्नी भी हैं , बेटी इंजीनियर हैं ।
रिसेशन और डिप्रेशन दोनों का गहरा सम्बन्ध हैं ।
भारत के सरकारी संस्थान जैसे एयर इंडिया के खाजने खाली हैं और सूना हैं ६०० करोड़ का कर्जा हैं ।
क्या फिर दुनिया privatization की तरफ बढ़ रही हैं । क्या अमीर जो पुश्तैनी अमीर हैं वो फिर ये सब खरीद लेगे ।
मंदिरों में खजाने जो मिलते हैं वो कहा जाते हैं कौन हैं उनका वारिस ??? कल से ये प्रशन भी दिमाग में चल ही रहा हैं
जिन्दगी कभी कभी प्रश्नों से भरी होती हैं जैसे ये जानते हुए भी की देहली बेली एक वाहियात प्रोनोग्रफिक फिल्म हैं लोग देखने जा रहे हैं ? क्यूँ ?? और जो खुद देख कर आ रहे हैं दूसरो को माना कर रहे हैं ।
लगता हैं जिन्दगी एक गोल चक्र हैं जहां से शुरू करो और जहा तक भी चल लो हमेशा यही लगता हैं हम वही खड़े हैं ।
जुलाई के पहले सोमवार की बधाई
८३३ साल बाद ये संयोग आया हैं की जुलाई में ५ शुक्रवार , ५ इतवार और ५ शनिवार होगे ।
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ADBHUD JAANKAARI KE LIYE AABHAR
ReplyDeleteSAHI KAHA AAPNE JINDGI EK CHAKR HI HAI ARTHSHATRA KO JEEVAN SE ACHHA SAMBANDH BATAYA , AUR JANKARI BHI NAI , ABHAR
ReplyDeleteअच्छी जानकारी देती बढ़िया पोस्ट ..
ReplyDeleteरिशेशन और डिप्रेशन में सम्बन्ध है...हम जिन सुख सुविधाओं के आदि हैं उन्हें जुटाना जब रिशेशन के कारण भारी पड़ने लगता है तो डिप्रेशन में जाना स्वाभाविक है...एकल परिवार अपनी लड़ाई खुद लड़ते हैं और विकत परिस्थतियों में हार जाते हैं...पहले कम में ही लोग सुखी रहते थे और साथ साथ रह कर एक दूसरे की तकलीफें बाँट लेते थे... स्वतंत्र होने की सुविधा भोगी होने की कीमत तो चुकानी ही पड़ती है...
ReplyDeleteनीरज
जी हा जिंदगी ऐसी ही होती है एक पुरे गोल चक्र की तरह बचपन जाने के बाद वो बुढ़ापे में फिर एक नए रूप में वापस आ जाता है | और फिल्म तो दो लगी है एक युवाओ के लिए दूसरी समझदार बड़ो के लिए यानि बुढो के लिए !!!!
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