आज अखबार में पढ़ा हैं जो लोग सोशल नेट्वोर्किंग साइट्स पर ज्यादा सक्रियाए हैं उनमे पर्सनैलिटी डिस आर्डर की संभावनाए दिख रही हैं ।
वो बार बार अपनी पोस्ट की गयी बातो पर जा कर देखते हैं की लोगो ने क्या जवाब दिया , जवाब ना मिलने की दशा में ऐसी व्यक्ति के अन्दर क्रोध का बढ़ना देखा गया हैं । इस के अलावा उनके कितने मित्र हैं और दूसरे के कितने मित्र ये जानकारी उस व्यक्ति को डिप्रेशन की और ले जाती देखी गयी हैं
सोशल नेट्वोर्किंग से लोगो ने अपने सम्बन्धियों और रीयल दुनिया के मित्रो से अपने दूर कर लिया हैं ऐसा भी पाया गया हैं ।
कितना सच कितना झूठ पता नहीं
सच बोलना जितना मुश्किल है , सच को स्वीकारना उस से भी ज्यादा मुश्किल है . लेकिन सच ही शाश्वत है और रहेगा मुझे अपने सच पर उतना ही अभिमान है जितना किसी को अपने झूठ से होने वाले फायदे पर होता हैं
मेरे ब्लॉग के किसी भी लेख को कहीं भी इस्तमाल करने से पहले मुझ से पूछना जरुरी हैं
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पता नहीं, हम तो सबसे दूर हैं, पर संभव है।
ReplyDeletekisi had tak sahi .....
ReplyDeleteप्रायः,लोग ऐसा कहते ही सुने जाते हैं कि सोशल नेटवर्किंग साइट के कारण उन्हें बचपन के वे दोस्त मिले जिनसे मिल पाना अन्यथा शायद ही संभव होता। मगर यह एक सच्चाई है कि ब्लॉगिंग की ही तरह,सोशल नेटवर्किंग साइट एक नशा है जो पर्सनैलिटी पर किसी न किसी रूप में असर डालता ही है।
ReplyDeleteयह पूरा सच नहीं मगर पूरा झूठ भी नहीं
ReplyDeleteआभासी दुनिया में एक हजार मित्रों वाले विद्वान् भी अक्सर अकेलेपन की शिकायत कर दिया करते हैं , तो ये तो सच ही हुआ ना !
ReplyDeleteजो लोग प्राथमिकताएं या कहें जरूरी और गैर जरूरी का फर्क नहीं समझते उनके मामले में सच ही होगा इसमें कोई दोराय नहीं
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