हमारी दो "सेल्फ " होती हैं
"इमोशनल सेल्फ "
और
" रैशनल सेल्फ "
निर्णय लेते समय अगर आप की इमोशनल सेल्फ हावी हैं तो आप का निर्णय आप के लिये नुकसानदेह होता हैं
जिनकी रैशनल सेल्फ हावी होती हैं वो ना केवल सही निर्णय पे पाते हैं अपितु उस निर्णय के दूरगामी परिणाम भी सोच / देख पाते हैं ।
जो लोग बार बार अपना निर्णय बदलते हैं या किसी दूसरे के निर्णय की वजह से अपना निर्णय बनाते और लेते हैं उनकी इमोशनल सेल्फ बहुत बलवान होती हैं
इमोशनल सेल्फ से ज्यादा बेहतर होती हैं रैशनल सेल्फ
सच बोलना जितना मुश्किल है , सच को स्वीकारना उस से भी ज्यादा मुश्किल है . लेकिन सच ही शाश्वत है और रहेगा मुझे अपने सच पर उतना ही अभिमान है जितना किसी को अपने झूठ से होने वाले फायदे पर होता हैं
मेरे ब्लॉग के किसी भी लेख को कहीं भी इस्तमाल करने से पहले मुझ से पूछना जरुरी हैं
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इमोशनल सेल्फ से ज्यादा बेहतर होती हैं रैशनल सेल्फ
ReplyDeleteहाँ .. अच्छा फंडा है
बढ़िया जानकारी
ReplyDeleteलाभ हानि के नजरिये से देखें तो आपकी बात सही है
ReplyDeleteपर जीवन का गणित इतना आसान भी नहीं।कल्पना
करें ऑफिस जाते समय रास्ते में हमने सड़क दुर्घटना
में घायल किसी इन्सान को देखा,क्या करेंगे?मदद के लिए हाथ संवेदनशील होने पर ही आगे बढता है।दुनिया के कारोबार में इंसानियत को बचाए रखने के लिए इमोशनल सेल्फ का अपना महत्तव है।
सहमत नहीं हूँ, दोनों की आवश्यकता है समय समय पर, पर किस समय किसकी, यह विवेक का विषय है।
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