जिन चीजों का हम तब विरोध करते हैं जब हम दबे होते हैं उन्ही चीजों को हम खुद करते हैं जब हम दबाये हुए होते हैं ।
हम हमेशा चाहते हैं जो भी कानून हो वो हमारे फायदे के हो ।
हम कानून को हमेशा सामाजिक व्यवस्था से जोड़ कर देखते हैं जबकि कानून निस्पक्ष होने का नाम हैं ।
क़ोई भी व्यक्ति अगर किस "सीट" पर बैठा हैं और उसके हाथ में पॉवर हैं तो उसको उस पॉवर का उपयोग वहाँ के बनाये नियम के हिसाब से करना चाहिये पर ऐसा होता नहीं हैं
सच बोलना जितना मुश्किल है , सच को स्वीकारना उस से भी ज्यादा मुश्किल है . लेकिन सच ही शाश्वत है और रहेगा मुझे अपने सच पर उतना ही अभिमान है जितना किसी को अपने झूठ से होने वाले फायदे पर होता हैं
मेरे ब्लॉग के किसी भी लेख को कहीं भी इस्तमाल करने से पहले मुझ से पूछना जरुरी हैं
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बात तो सही है लेकिन...
ReplyDeleteगलत है...